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हड़प्पा सभ्यता की खोज के 100 वर्ष (100 Years Of Discovery Of Harappan Civilisation)

01 Jan 2025
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

"हड़प्पा सभ्यता" की खोज को 100 वर्ष पूरे हो गए हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के तत्कालीन महानिदेशक जॉन मार्शल ने 20 सितंबर, 1924 को "सिंधु घाटी या हड़प्पा सभ्यता" की खोज की घोषणा की थी।

हड़प्पा सभ्यता के बारे में

  • पृष्ठभूमि: हड़प्पा सभ्यता को 'सिंधु घाटी सभ्यता' के नाम से भी जाना जाता है। इस सभ्यता की खोज सबसे पहले 1921 में दयाराम साहनी ने आधुनिक पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के हड़प्पा नामक स्थल से की थी। 
  • हड़प्पा सभ्यता एक कांस्य युगीन सभ्यता थी। इस सभ्यता के कई स्थलों से कांसे की बनी वस्तुएं पाई गई हैं। कांसा, तांबा और टिन से बनी एक मिश्र धातु है। 
  • अवस्थिति: हड़प्पा सभ्यता का विस्तार भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में था। इसके 2,000 से अधिक स्थलों को भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में खोजा गया है। इसके अधिकांश स्थल सिंधु और सरस्वती नदी घाटियों के बीच खोजे गए हैं।
  • सभ्यता का विस्तार: इस सभ्यता का विस्तार जम्मू में मांडा (सबसे उत्तरी) से महाराष्ट्र में दैमाबाद (सबसे दक्षिणी) तक तथा उत्तर प्रदेश में आलमगीरपुर (सबसे पूर्वी) से पाकिस्तान में सुतगाकेंडोर (सबसे पश्चिमी) तक था।
  • समयावधि: कई विद्वानों के अनुसार, यह सभ्यता 6000 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक अस्तित्व में थी। पुरातात्विक खोजों से हड़प्पा संस्कृति के क्रमिक विकास का पता चलता है। हड़प्पा सभ्यता को निम्नलिखित कालखंडों में विभाजित किया जा सकता है-
  • प्राक् हड़प्पा (6000 ईसा पूर्व-2600 ईसा पूर्व): यह इस सभ्यता का एक प्रारंभिक चरण था; 
  • परिपक्व हड़प्पा (2600 ईसा पूर्व-1900 ईसा पूर्व): यह इस सभ्यता का नगरीय चरण था, जो इसका सबसे समृद्ध काल भी था; तथा 
  • उत्तरवर्ती चरण (1900 ईसा पूर्व-1300 ईसा पूर्व): इसे उत्तर हड़प्पा काल भी कहा जाता है।

 हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं

घटक 

  प्रमुख विशेषताएं 

नगर नियोजन और 

स्थापत्य 

 

  • नगर नियोजन:
  • ग्रिड पैटर्न: नगर आयताकार ग्रिड पैटर्न में बसे हुए थे और सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
  • पकी हुई ईंटों का उपयोग: मिट्टी की पकी हुई ईंटों का उपयोग किया जाता था, जिसे जिप्सम के मोर्टार से जोड़ा जाता था। समकालीन मिस्र में धूप में सुखाई गई ईंटों का उपयोग किया जाता था।
  • सभी घरों को सड़क की नालियों से जोड़ने वाली भूमिगत जल निकासी व्यवस्था थी। 
  • स्थापत्य:
  • इसमें दुर्गीकृत नगर, अन्नागार, मोहनजोदड़ो का प्रसिद्ध विशाल स्नानागार और बहुमंजिला इमारतें शामिल हैं, जो इस सभ्यता के स्थापत्य कौशल का प्रदर्शन करती हैं।

कृषि

  • कृषि: खेतों की जुताई लकड़ी के फाल वाले हल से की जाती थी।
    • मुख्य फसलें: गेहूं, चावल, बाजरा, जौ, मसूर, चना, तिल आदि। हड़प्पावासियों ने ही विश्व में सबसे पहले कपास का उत्पादन किया था। यूनानी इसे सिंडोन कहते थे ।
  • जानवरों को पालतू बनाना: बैल, भैंस, बकरी, भेड़, सूअर, कुत्ते, बिल्ली, गधे, कूबड़ वाले बैल, ऊंट आदि पाले जाते थे। 
    • हड़प्पावासी हाथी और गैंडे से भी परिचित थे।

शिल्प

  • हड़प्पावासी कताई, नाव बनाने, मुहर बनाने, टेराकोटा निर्माण (कुम्हार का चाक), स्वर्णकारी, मनका बनाने आदि में दक्ष थे। 
  • मनके बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्रियों की विविधता उल्लेखनीय है। उदाहरण के लिए- कार्नेलियन (सुंदर लाल रंग का पत्थर), जैस्पर, क्रिस्टल, क्वार्ट्ज और सेलखड़ी; तांबा, कांस्य और स्वर्ण जैसी धातुएं; तथा शंख, फेयॉन्स और टेराकोटा या पकी हुई मिट्टी इत्यादि। 
  • ज्यादातर सेलखड़ी से बनी मुहरों का उपयोग मुख्य रूप से व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए, ताबीज बनाने के लिए, पहचान के रूप में तथा शैक्षिक उद्देश्यों के लिए किया जाता था।
  • हड़प्पावासी लोहे से परिचित नहीं थे।

कला

  • कांसे की ढलाई: हड़प्पावासियों ने कांसे की ढलाई के लिए 'लुप्त मोम (लॉस्ट वैक्स) विधि' या साइर पर्ड्यू का इस्तेमाल किया था। इस तकनीक का उत्कृष्ट उदाहरण हड़प्पा सभ्यता की नर्तकी की कांस्य मूर्ति (डांसिंग गर्ल) है, जो 'त्रिभंग' नृत्य मुद्रा में खड़ी हुई है।
  • पत्थर की मूर्तियां: मोहनजोदड़ो से प्राप्त दाढ़ी वाले व्यक्ति की मूर्ति की पहचान एक पुजारी के रूप में की गई है। यह मूर्ती सेलखड़ी से बनी है। हड़प्पा से भी लाल बलुआ पत्थर से बने एक पुरुष के धड़ (मूर्ती) का अवशेष प्राप्त हुआ है। 
  •  टेराकोटा की मूर्तियां: मातृदेवी, सींग वाले देवता का मुखौटा, खिलौने, आदि। 

व्यापार और वाणिज्य

  • आंतरिक और विदेशी व्यापार: मानकीकृत वजन एवं माप के उपयोग ने व्यापार व वाणिज्य को सुविधाजनक बनाया।
  • विदेशी व्यापार मुख्यतः मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान और ईरान के साथ होता था। 
    • मेसोपोटामिया के अभिलेखों में सिंधु क्षेत्र को 'मेलुहा' कहा गया है। इसके अलावा, दो मध्यवर्ती व्यापारिक केंद्रों दिलमुन (बहरीन) और माकन (मकरान तट) का भी उल्लेख मिलता है।
    • हड़प्पावासी अनाज, आभूषण और मिट्टी के बर्तनों का निर्यात करते थे तथा पतले तांबे और कीमती पत्थरों का आयात करते थे।

धर्म एवं संस्कृति

 

  • देवता: इस सभ्यता के लोग मुहरों पर अंकित योगी मुद्रा में बैठे पुरुष देवता पशुपति (आद्य-शिव) तथा टेराकोटा की मूर्तियों पर उत्कीर्ण मातृदेवी की पूजा करते थे। हड़प्पाई समाज में लिंग पूजा भी प्रचलित थी।
    •  हड़प्पा के किसी भी स्थल से किसी भी प्रकार के मंदिर का अवशेष नहीं मिला है।
  • प्रकृति पूजा: हड़प्पावासियों द्वारा वृक्षों (जैसे पीपल) और पशुओं की पूजा की जाती थी।

लेखन प्रणाली

  • चित्रात्मक लिपि: हड़प्पाई लिपि बौस्ट्रोफेडन शैली में लिखी गई है यानी, एक पंक्ति दाएं से बाएं और फिर अगली पंक्ति बाएं से दाएं लिखी जाती थी।
  •  हालांकि, इसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।

 

हड़प्पा सभ्यता की खोज का महत्त्व

दक्षिण एशिया में मानव बसावट का प्रारंभिक साक्ष्य प्रदान करती है।

इसके उन्नत नगरीय नियोजन ने आगे की नगरीय विकास की अवधारणाओं को प्रभावित किया।

यह प्राचीन विश्व में व्यापक व्यापार नेटवर्क और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रारंभिक साक्ष्य प्रदान करती है।

जलवायु परिवर्तन शमन के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि हड़प्पा सभ्यता का पतन पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण हुआ है।

 

हड़प्पा सभ्यता से जुड़े नवीन साक्ष्य

  • नए पुरातात्विक उत्खनन से गुजरात के कच्छ के पड़ता बेट में 5,200 साल पुरानी हड़प्पा बस्ती का पता चला है।
  • राखीगढ़ी से प्राप्त कंकालों के DNA विश्लेषण से पता चला है कि हड़प्पावासियों का DNA आज तक बना हुआ है और अधिकांश दक्षिण एशियाई आबादी उनकी वंशज प्रतीत होती है। 
  • हड़प्पावासियों के दूरदराज के क्षेत्रों के साथ व्यापार और सांस्कृतिक संपर्कों के कारण, जीनों का मिश्रण अल्प मात्रा में पाया गया है।

हड़प्पा सभ्यता से संबंधित चुनौतियां

  • हड़प्पाई लिपि और भाषा की समझ का अभाव: इससे हड़प्पा सभ्यता की भाषा, संस्कृति और मान्यताओं के बारे में हमारी समझ सीमित हो गई है।
  • स्पष्ट पदानुक्रम का अभाव: हड़प्पा सभ्यता में बस्ती दो भागों में विभाजित थी: एक छोटा लेकिन ऊँचाई पर किलेबंद बस्ती थी, दूसरा कहीं अधिक बड़ा लेकिन नीचे बनाया गया था। इस कारण एक केंद्रीकृत राजनीतिक प्राधिकरण या स्पष्ट सामाजिक पदानुक्रम का कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिला है।
  • महिलाओं की भूमिका: यद्यपि शिल्पों और मुहरों पर महिलाओं का कुछ चित्रण मिला है, लेकिन उनकी सटीक स्थिति तथा अधिकारों को लेकर अस्पष्टता बनी हुई है।
  • हड़प्पा सभ्यता का पतन: मृदा की उर्वरता में गिरावट, भूकंप, जलवायु परिवर्तन और आर्यों द्वारा आक्रमण जैसे कई कारकों को हड़प्पा सभ्यता के पतन के लिए जिम्मेदार माना जाता है। यद्यपि, इस मुद्दे पर भी अभी तक कोई स्पष्ट सर्वमान्य राय नहीं है। 
  • उत्खनन से संबंधित चुनौतियां:
  • सीमित उत्खनन: भारत-पाकिस्तान सीमा और स्थानीय विकास जैसे राजनीतिक एवं भौगोलिक कारकों ने अधिक व्यापक पुरातात्विक कार्यों में बाधा उत्पन्न की है।
  • कलाकृतियों को पुनर्प्राप्त करना और वर्गीकृत करना: कई कलाकृतियां या तो पिछले उत्खनन में खो गई या संरक्षण की उचित व्यवस्था न होने के कारण नष्ट हो गई। इसके अलावा, कई कलाकृतियां संग्रहालयों या निजी संग्रह में जमा हो गई और उनका वर्गीकरण नहीं हो सका।
  • स्थलों का विनाश: हड़प्पा सभ्यता के स्थल हजारों वर्षों से भूमि के नीचे दबे हुए थे, और कई स्थल बाढ़, क्षरण या आधुनिक विकास के कारण क्षतिग्रस्त हो गए हैं।

प्रमुख नगर/ स्थल एवं खोज

नगर/ स्थल

वर्तमान अवस्थिति

खोजकर्ता/ जिनके द्वारा उत्खनन किया गया

प्रमुख प्राप्तियां

हड़प्पा

 

पाकिस्तान

 

1921 में दया राम साहनी द्वारा

 

लाल बलुआ पत्थर से बना पुरुष का धड़, लिंग आकृतियां, अन्नागार, मातृदेवी की मूर्तियां आदि। 

मोहनजोदड़ो

पाकिस्तान

1922 में आर.डी. बनर्जी द्वारा

नगर नियोजन, दुर्गीकरण, जल निकासी व्यवस्था, विशाल स्नानागार आदि।  

गनवेरीवाला

पाकिस्तान का चोलिस्तान क्षेत्र

1973 में रफीक मुगल द्वारा

 

टेराकोटा मिट्टी से बनी यूनिकॉर्न की मूर्तियां, हड़प्पाई लिपि के साथ क्ले से बनी मुड़ी हुई गोली (टेबलेट) आदि। 

राखीगढ़ी

हरियाणा (भारत) 

पहली बार 1960 के दशक में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा खोजा गया था।

अन्नागार, कब्रिस्तान, नालियां, टेराकोटा की ईंटें आदि।

धोलावीरा

कच्छ का रण (गुजरात)

1968 में जगत पति जोशी द्वारा

यह स्थल अपनी अनूठी जल संचयन प्रणाली के लिए विख्यात है। इसकी वर्षा जल निकासी प्रणाली विशिष्ट है। सिंधु सभ्यता का एकमात्र नगर जो तीन भागों में विभाजित था। इस जगह से मेगालिथिक स्टोन सर्कल (विशाल पत्थरों के घेरे) पाए गए हैं। 

लोथल

गुजरात

1955 में एस. आर. राव द्वारा

गोदीबाड़ा, अग्निवेदियां आदि। 

निष्कर्ष

यद्यपि विश्व के सबसे प्राचीन और सबसे उन्नत नगरीय समाजों में से एक, हड़प्पा सभ्यता का 1300 ईसा पूर्व में पतन हो गया था, परन्तु इसने नगर नियोजन, शिल्प कौशल, धातु विज्ञान आदि के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। इसकी अपठनीय लिपि और आकस्मिक पतन से जुड़े रहस्यों के बावजूद, हड़प्पावासियों ने दक्षिण एशिया की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक नींव में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

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