सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, गुजरात के सूरत से जल संचय जन भागीदारी पहल की शुरूआत की गई है।
जल संचय और जन भागीदारी पहल के बारे में
- इस पहल का उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी और स्वामित्व पर विशेष जोर देते हुए जल संरक्षण को बढ़ावा देना है।
- इसका लक्ष्य सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से लगभग 24,800 वर्षा जल संचयन संरचनाओं का निर्माण करना है, जिससे राज्य में लंबे समय तक जल की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।
- यह गुजरात सरकार की जल संचय पहल की सफलता पर आधारित है, जिसमें नागरिकों, स्थानीय निकायों, उद्योगों और अन्य हितधारकों की सक्रिय भागीदारी से जल संचयन में बेहतरीन परिणाम प्राप्त हुए हैं।
- मंत्रालय: यह जल शक्ति मंत्रालय की पहल है।

जल संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी का महत्त्व
- व्यवहार में बदलाव को बढ़ावा देना: इसमें नीति के तहत संचालित प्रतिक्रिया के बजाए वास्तविक कार्रवाई को बढ़ावा दिया जाता है।
- उदाहरण के लिए: बुंदेलखंड की पानी-पंचायतों में जल सहेलियों ने जल संरक्षण की दिशा में सांस्कृतिक बदलाव को बढ़ावा दिया है।
- स्थानीय ज्ञान और समझ का उपयोग: स्थानीय लोगों को अपने क्षेत्र की जल संबंधी आवश्यकताओं और चुनौतियों की बेहतर समझ होती है।
- उदाहरण के लिए: बारी खेती प्रणाली (असम) में तालाबों के नजदीक फलों के पेड़ों को लगाया जाता है और सब्जियों की खेती की जाती है।
- लोगों में स्वामित्व की भावना पैदा करना: इससे जल-कुशल पद्धतियों को अपनाने और भविष्य की पीढ़ियों के लिए संसाधनों को संरक्षित करने हेतु साझे नेतृत्व का विकास होगा।
- उदाहरण के लिए: ओडिशा के पानी पंचायत में सतही और भूजल के संचयन एवं वितरण में किसानों की स्वैच्छिक भागीदारी होती है।
- समावेशिता और समानता को बढ़ावा: यह सुभेद्य समुदायों की समस्याओं का समाधान करता है और सामाजिक असमानताओं को समाप्त करने में मदद करता है।
- नवीन अनुभवों को शामिल करना: इससे शामिल समुदायों के जीवन के अनुभवों के आधार पर स्थानीय रूप से प्रासंगिक जल संरक्षण पहलों का विकास करना संभव हो सकेगा।
जल संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी के कुछ उदाहरण
भारत में पारंपरिक जल भंडारण प्रणालियां
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जल संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने में आने वाली चुनौतियाँ
- सीमित जानकारी और क्षमता: जल संसाधन संबंधी डेटा की उपलब्धता के अभाव और जटिलता के कारण जल संरक्षण के लिए आवश्यक तकनीकी ज्ञान सीमित है।
- नीतिगत प्रक्रियाएं असमानता को बढ़ावा देती हैं: नीतिगत प्रक्रियाओं में तकनीकी और वैज्ञानिक ज्ञान रखने वाले विशेषज्ञों का प्रभुत्व होता है।
- केवल औपचारिक भागीदारी: कई बार कानूनी अनिवार्यताओं के चलते समुदायों की भागीदारी जरूरी होती है, लेकिन वास्तविक धरातल पर शायद ही इसे लागू किया जाता है।
- बाहरी लोगों के साथ सीमित जुड़ाव: यह समुदायों को ऐसे नेटवर्क में भाग लेने से रोकता है, जो आम सहमति बनाने और भविष्य में परामर्श को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।
सहभागी जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए आगे की राह
- लोगों तक आधारभूत डेटा की उपलब्धता: सरकारों को जल नीति से संबंधित मामलों पर व्यापक और समग्र संचार प्रक्रिया की सुविधा प्रदान करनी चाहिए।
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व का उपयोग करना: इसके माध्यम से गुजरात के कई जिलों में लगभग 10,000 बोरवेल रिचार्ज संरचनाओं को पूरा किया गया है।
- संधारणीय पद्धतियों को बढ़ावा देना: LiFe जैसी पहलों के माध्यम से जल का आवश्यकता के अनुसार उपयोग, पुनः उपयोग, भंडारण और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना चाहिए।
- अभिनव दृष्टिकोण और आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग: इसमें सौर ऊर्जा संचालित वॉटर फिल्ट्रेशन; विलवणीकरण प्रणाली, नैनो प्रौद्योगिकी का उपयोग आदि शामिल हैं।
- नीतिगत समर्थन: इसके तहत मक्का, तिलहन, दलहन, बाजरा जैसी कम जल-गहन फसलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना और उनके लिए क्षमता निर्माण को बढ़ावा देना चाहिए।
जल संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने वाली अन्य सरकारी पहलें
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