ड्रोन और आंतरिक सुरक्षा (Drones and Internal Security) | Current Affairs | Vision IAS
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    ड्रोन और आंतरिक सुरक्षा (Drones and Internal Security)

    Posted 01 Jan 2025

    Updated 27 Nov 2025

    1 min read

    सुर्ख़ियों में क्यों?

    असम राइफल्स और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) ने मणिपुर में ड्रोन-रोधी सिस्टम तैनात किए हैं। इसका उद्देश्य विद्रोहियों के ड्रोन हमलों से निपटना है।

    अन्य संबंधित तथ्य 

    • मणिपुर में, सशस्त्र आतंकी समूह "इम्पैक्ट एक्सप्लोसिव" गिराने के लिए ऐसे ड्रोन्स का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिनसे अधिक ऊंचाई से बम गिराया जा सकता है।
    • ऐसे हमलों को रोकने के लिए, सुरक्षाकर्मी संवेदनशील क्षेत्रों में ड्रोन-रोधी सिस्टम तैनात कर रहे हैं।
      • ड्रोन-रोधी सिस्टम, रियल टाइम आधार पर विद्रोही समूह के ड्रोन्स की पहचान करने, उनका पता लगाने, ट्रैक करने और उन्हें निष्क्रिय करने (सॉफ्ट/ हार्ड किल) में सक्षम होते हैं।
    • साथ ही, मणिपुर के पुलिस महानिदेशक (DGP) ने उग्रवादियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले ड्रोन्स की गतिविधियों का विश्लेषण करने, उनसे जुड़े साक्ष्य एकत्र करने और उनसे निपटने के तरीके सुझाने के लिए पांच शीर्ष अधिकारियों की एक समिति गठित की है।

    सुरक्षा प्रबंधन में ड्रोन की भूमिका

    • सीमा सुरक्षा: ये बड़े क्षेत्रों की निगरानी कर सकते हैं तथा सीमाओं की निगरानी और टोही-कार्यों में दक्षता को बढ़ावा देते हैं। यहां तक कि ये उन दुर्गम क्षेत्रों में भी कार्य कर सकते हैं जहां इंसानी खुफिया तंत्र की तैनाती संभव नहीं है (जैसे कि पर्वतीय या जंगली इलाकों में)।
      • इनका उपयोग सैन्य लॉजिस्टिक की व्यवस्था करने और दुर्गम क्षेत्रों में दुश्मनों या उनकी अवसंरचनाओं पर घातक हमला करने के लिए भी किया जा सकता है।
    • रियल टाइम में खुफिया जानकारी जुटाना: एडवांस सेंसर से लैस ड्रोन युद्धरत क्षेत्रों में परिस्थितियों की सटीक जानकारी जुटाने के लिए रियल टाइम डेटा प्रदान करते हैं।
    • 'मनोवैज्ञानिक युद्ध' का साधन: युद्धरत क्षेत्रों में मानव रहित हवाई वाहनों (UAVs) की निरंतर मौजूदगी शत्रुओं में बेचैनी और असहजता पैदा करती है। इसका उन पर मनोवैज्ञानिक दबाव पैदा होता है। इसके अलावा, अचानक हमलों का डर भी उन्हें कोई कार्रवाई करने से रोकता है।
    • मानवयुक्त विमानों का विकल्प: यह सुरक्षा अभियानों के दौरान पायलट की जान को जोखिम में डाले बिना सैन्य उद्देश्यों को हासिल कर सकता है।
    • कानून और व्यवस्था बनाए रखना: पुलिस बल ड्रोन का प्रयोग अधिक भीड़ पर नजर रखने, अवैध गतिविधियों की निगरानी करने तथा ​​खोज और बचाव अभियान जैसे कार्यों में कर सकते हैं।
    • सटीक निशाना लगाना: लेजर गाइडेड मिसाइलों से लैस UAVs शत्रुओं की सामरिक जगहों पर सर्जिकल स्ट्राइक करने में सेना के सहायक हो सकते हैं। इससे हमले के दौरान संभावित जोखिम और नागरिक हताहतों की संख्या कम होती है।
    • कम लागत में कई कार्य करने की क्षमता: ड्रोन कम लागत में प्रभावी तरीके से निगरानी की क्षमता प्रदान करते हैं। इसके अलावा, ड्रोन का रखरखाव भी आसान है और इसके लिए कम संसाधनों की आवश्यकता होती है। साथ ही, इसे आसानी से और शीघ्रता से तैनात भी किया जा सकता है।

    ड्रोन के खतरों से निपटने के लिए भारत की पहलें

    • काउंटर ड्रोन सिस्टम (D4 सिस्टम): इसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने विकसित किया है तथा भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड ने इसे निर्मित किया है। यह उड़ते हुए ड्रोन (माइक्रो/ स्मॉल UAVs) की रियल टाइम आधार पर पहचान करने, उनका पता लगाने, ट्रैक करने तथा निष्क्रिय (सॉफ्ट/ हार्ड किल) करने में सक्षम है।
    • एंटी-रॉग ड्रोन टेक्नोलॉजी कमेटी (ARDTC): इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गठित किया है। इसका उद्देश्य देश विरोधी गतिविधियों में ड्रोन के इस्तेमाल से निपटने के लिए उपलब्ध तकनीक का अध्ययन करने एवं देश विरोधी ड्रोन गतिविधियों से निपटने में इस तकनीक की प्रभावशीलता को प्रमाणित करना है।
    • UAVs की गतिविधियों के बारे में जन-जागरूकता बढ़ाना: सीमावर्ती क्षेत्रों में आम लोगों को ड्रोन गतिविधियों से जुड़े सुरक्षा संबंधी खतरों के बारे में जागरूक किया जा रहा है। साथ ही, ऐसी किसी भी घटना की सूचना सीमा सुरक्षा बल (BSF) और स्थानीय पुलिस के साथ साझा करने के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा है।
    • ड्रोन-रोधी सिस्टम की तैनाती: ड्रोन से जुड़े खतरों का मुकाबला करने के लिए पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों में ड्रोन-रोधी सिस्टम तैनात किए गए हैं। साथ ही एंटी-रॉग ड्रोन स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) तैयार किया गया है और फील्ड यूनिट में इनकी तैनाती की गई है।
    • ड्रोन से खतरे वाले क्षेत्रों की विस्तृत मैपिंग की गई है: इसके तहत भारत-पाकिस्तान सीमा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में वाहनों और कैमरों, सेंसर्स और इंफ्रारेड अलार्म से लैस अतिरिक्त विशेष निगरानी उपकरण तैनात किए गए हैं।

    ड्रोन के दुरुपयोग को रोकने के लिए आगे की राह

    • राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक कार्रवाई: आतंकी गतिविधियों सहित नॉन-स्टेट सशस्त्र समूहों द्वारा UAVs के उपयोग को रोकने, इनसे सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा इनके विरुद्ध जवाबी कार्रवाई करने के लिए राष्ट्रीय कार्रवाई योजना तैयार की जानी चाहिए।
      • 2019 में, नागर विमानन मंत्रालय ने 'राष्ट्रीय काउंटर रॉग ड्रोन दिशा-निर्देश' जारी किए थे। इन्हें ड्रोन से जुड़े खतरों का आकलन करने के बाद जारी किया गया था।
    • आपूर्ति श्रृंखला की सुरक्षा से संबंधित उपाय: UAVs के लेनदेन का पूरा रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए तथा UAVs से संबंधित कोड ऑफ कंडक्ट जारी किया जाना चाहिए। साथ ही, इनका उचित उपयोग और ड्रोन नियमों का पालन सुनिश्चित करने हेतु उपाय किए जाने चाहिए।
    • जागरूकता का प्रसार: ड्रोन के सुरक्षित और वैध उपयोग के लिए नियम-कानूनों के पालन के बारे में जागरूकता का प्रसार किया जाना चाहिए। साथ ही, UAVs के खतरों के प्रभावों से निपटने के लिए जनता को तैयार रहने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
    • निजी क्षेत्र की भूमिका: नॉन-स्टेट एक्टर्स से जुड़े खतरों की शुरुआत में पहचान और एहतियाती उपायों के लिए निजी क्षेत्र, उद्योग जगत और विशेषज्ञों के साथ सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
    • खतरों का आकलन: अति महत्वपूर्ण अवसंरचनाओं और सार्वजनिक परिसंपत्तियों की सुरक्षा से जुड़े खतरों की पहचान करने के लिए समय-समय पर आकलन किए जाने चाहिए। इनसे निपटने वाली टीम को बेहतर प्रशिक्षण और उपकरण प्रदान करने चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे ड्रोन हमलों की किसी भी घटना का सुरक्षित और प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सकें।
    • मजबूत साइबर सुरक्षा उपायों को अपनाना: हनी ड्रोन (HDs) जैसी रक्षा रणनीतियों का उपयोग साइबर अटैकर्स को महत्वपूर्ण UAV मिशनों से दूर रखने के लिए जा सकता है। इसके लिए कम वजन वाली वर्चुअल मशीनों का उपयोग करके हमलों को बेअसर किया जा सकता है। यह मिशन के संचालन तथा सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है।
    • ड्रोन उपयोग फ्रेमवर्क को मजबूत करना:
      • लाइसेंसिंग: प्रत्येक ड्रोन का पंजीकरण करके उसे लाइसेंस प्रदान किया जाना चाहिए। इससे अधिकारियों को किसी भी दुर्भावनापूर्ण ड्रोन के मालिक की पहचान करने में आसानी होगी।
      • फ्लाइंग परमिट: पंजीकृत ड्रोन के साथ ड्राइविंग लाइसेंस के समान एक फ्लाइंग परमिट जारी किया जाना चाहिए।
      • मल्टी-फैक्टर सत्यापन: सत्यापन की सख्त विधियां, आम सुरक्षा के कई खतरों को रोकने में मदद कर सकती हैं।
      • ड्रोन प्रतिबंधित क्षेत्रों की पहचान करना: मैप आधारित पब्लिक ऐप में उन क्षेत्रों के बारे में बताया जाना चाहिए जिनमें UAVs/ ड्रोन उड़ाने की अनुमति नहीं है।

    निष्कर्ष

    आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग जैसी नई प्रौद्योगिकियों के आने से ड्रोन प्रौद्योगिकी और अधिक आधुनिक होती जा रही है। ऐसे में भारत को सक्रिय और बहुआयामी अप्रोच अपनाने की जरूरत है। इसके तहत  मजबूत विनियामक फ्रेमवर्क बनाना, काउंटर ड्रोन इंडस्ट्री में निवेश बढ़ाना तथा अनुसंधान और विकास गतिविधियों को बढ़ावा देना शामिल हैं। इससे सुरक्षा एजेंसियों को ड्रोन के खतरों से निपटने में मदद मिलेगी।

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