सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, अफगानिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के अधिकारियों ने तुर्कमेनिस्तान सीमा के अंदर पूर्ण हो चुकी तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (तापी/ TAPI) गैस पाइपलाइन परियोजना का संयुक्त रूप से उद्घाटन किया। साथ ही, अफगानिस्तान ने कहा कि वह जल्द ही इस पाइपलाइन परियोजना को पूरा करने के लिए तेजी से काम शुरू करेगा।
तापी परियोजना के बारे में

- 1990 के दशक के मध्य में तापी गैस पाइपलाइन परियोजना की परिकल्पना की गई थी। इस परियोजना को दक्षिण-पूर्वी तुर्कमेनिस्तान के गाल्किनीश गैस क्षेत्र से निकाली गई प्राकृतिक गैस को अफगानिस्तान-पाकिस्तान से होते हुए भारत तक पहुंचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- गाल्किनीश गैस क्षेत्र को पहले ओलोटेन गैस क्षेत्र कहा जाता था। इसकी खोज 2006 में हुई थी। यह मैरी (तुर्कमेनिस्तान) से 75 किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
- यह दुनिया के पांच सबसे बड़े गैस क्षेत्रों में से एक है। इस क्षेत्र में अनुमानतः 4 से 14 ट्रिलियन क्यूबिक मीटर गैस के भंडार मौजूद हैं तथा 2.8 ट्रिलियन क्यूबिक मीटर के प्रमाणित वाणिज्यिक भंडार हैं।
- इस क्षेत्र में लगभग 300 मिलियन टन क्रूड ऑयल का भी पता लगा है।
- यह तुर्कमेनिस्तान से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत तक प्रस्तावित 1,814 किलोमीटर तक की पाइपलाइन है।
- इस पाइपलाइन के माध्यम से गाल्किनीश गैस फिल्ड से प्रतिवर्ष 33 बिलियन क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस का निर्यात किया जाएगा।
- वित्त-पोषण: इसे एशियाई विकास बैंक द्वारा वित्त-पोषित किया जा रहा है। यह बैंक इस परियोजना के विकास के लिए ट्रांजेक्शन एडवाइजर के रूप में भी कार्य कर रहा है।

तापी परियोजना का महत्त्व
- रणनीतिक और भू-राजनीतिक: परस्पर आर्थिक निर्भरता भारत और पाकिस्तान के बीच बेहतर संबंधों का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
- यह भारत को मध्य एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को प्रतिसंतुलित करने में भी मदद कर सकता है।
- आर्थिक: संभावित रूप से सस्ती प्राकृतिक गैस तक पहुंच से भारत के औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ावा मिल सकता है। साथ ही, ऊर्जा आयात लागत को कम करके भारत के व्यापार घाटे को कम किया जा सकता है।
- ऊर्जा सुरक्षा: तापी परियोजना, प्राकृतिक गैस का एक स्थिर व दीर्घकालिक स्रोत प्रदान कर सकती है। इससे भारत के एनर्जी मिक्स में विविधता लाने और तेल आयात पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।
निष्कर्ष
तापी परियोजना में दक्षिण और मध्य एशिया के ऊर्जा परिदृश्य को बदलने की क्षमता है। इससे क्षेत्रीय एकीकरण और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, परियोजना में देरी और असफलताओं का लंबा इतिहास यथार्थवादी अपेक्षाओं एवं कार्यान्वयन के लिए लचीली व अनुकूली रणनीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।