स्वच्छ भारत मिशन (Swachh Bharat Mission) | Current Affairs | Vision IAS
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स्वच्छ भारत मिशन (Swachh Bharat Mission)

01 Jan 2025
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

स्वच्छ भारत मिशन (SBM) के 10 वर्ष पूरे हुए। 

अन्य संबंधित तथ्य 

  • इस मिशन के 10 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में स्वच्छ भारत दिवस 2024 मनाया गया। यह 'स्वभाव स्वच्छता, संस्कार स्वच्छता' की थीम के साथ निम्नलिखित तीन प्रमुख स्तंभों पर आधारित था: 
    • स्वच्छता की भागीदारी: स्वच्छ भारत के लिए जन भागीदारी, जागरूकता और सहयोग को बढ़ावा देना। 
    • सम्पूर्ण स्वच्छता: पहुंचने में कठिनाई वाले और गंदे स्थानों (स्वच्छता लक्ष्य इकाइयाँ) को लक्षित करके मेगा सफाई अभियान को बढ़ावा देना।
    • सफाई मित्र सुरक्षा शिविर: सफाई कर्मचारियों के कल्याण और स्वास्थ्य के लिए सिंगल-विंडो सर्विस, सुरक्षा और मान्यता शिविर की स्थापना करना। 

स्वच्छ भारत मिशन (2014) के बारे में 

  • शुरुआत: इसे महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर, 2014 को एक राष्ट्रीय अभियान के रूप में शुरू किया गया।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य सार्वभौमिक स्वच्छता कवरेज प्राप्त करना और स्वच्छता पर ध्यान केंद्रित करने के प्रयासों में तेजी लाना है।
  • उप-मिशन: इसके 2 उप-मिशन हैं। ये दोनों केंद्र प्रायोजित योजनाएं हैं: 
    • स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण): यह जल शक्ति मंत्रालय के तहत संचालित है। 
      • SBM(G) चरण- II (2020-21 से 2024-25) को लागू किया जा रहा है।
    • स्वच्छ भारत मिशन (शहरी): यह आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) के तहत संचालित है। 
      • SBM-U 2.0 चरण II को 2026 तक लागू किया जा रहा है।
  • इसके तहत "समग्र सरकार दृष्टिकोण" को अपनाया जाता है (इन्फोग्राफिक देखें)।  
  • SBM का महत्त्व: इस योजना ने भारत में जल, सैनिटेशन और स्वच्छता (WASH) में सुधार किया है तथा स्वास्थ्य, सामाजिक और पर्यावरणीय स्थितियों को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

स्वास्थ्य, सामाजिक और पर्यावरणीय स्थितियों को बेहतर बनाने में स्वच्छ भारत मिशन (SBM) की परिवर्तनकारी भूमिका

  • मातृ एवं नवजात स्वास्थ्य सुधार: एक शोध के अनुसार, SBM के तहत निर्मित 30% से अधिक शौचालय वाले जिलों में शिशु मृत्यु दर (IMR) में 5.3% की कमी आयी है। साथ ही, पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (U5MR) में 6.8% की कमी दर्ज की गई है। 
  • खुले में शौच जल और खाद्य प्रदूषण का स्रोत है। SBM के तहत खुले में शौच को रोककर हर साल 60 से 70 हजार बच्चों की जान बचाई गई है।
  • रोग:  WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2014 की तुलना में 2019 में डायरिया से 3,00,000 मौतें कम हुई हैं।
    • बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के अनुसार, ऐसे क्षेत्र जो खुले में शौच मुक्त नहीं हैं, वहां बच्चों में वेस्टिंग (दुबलापन) के मामले 58% अधिक हैं। 
  • छात्रों का नामांकन: जल, सैनिटेशन और स्वच्छता (WASH) की खराब सुविधाएं खासकर छात्राओं की उपस्थिति और नामांकन पर प्रतिकूल असर डालती हैं। 
  • महिलाओं के खिलाफ हिंसा में कमी: यूनिसेफ के अनुसार, स्वच्छता सुविधाओं तक बेहतर पहुंच को, 93% महिलाओं ने घर पर सुरक्षित महसूस करने का एक बड़ा कारण माना है।
  • स्वास्थ्य व्यय में कमी से बचत: यूनिसेफ के अनुसार, स्वच्छता के कारण, गांवों में परिवारों द्वारा हर साल औसतन 50,000 रुपये की बचत की जा रही है। ये राशि पहले बीमारियों के इलाज के लिए ख़ुद ही खर्च करनी पड़ती थी। 
  • आजीविका के अवसरों को बढ़ावा: यूनिसेफ के अनुसार, SBM के करण लगभग 1.25 करोड़ लोगों को किसी न किसी रूप में रोजगार मिला है। 
  • पर्यावरण में सुधार: यूनिसेफ के अनुसार, खुले में शौच में कमी से भूजल संदूषण की संभावना 12.70 गुना कम हो गई है। 

स्वच्छ भारत मिशन स्वास्थ्य, सामाजिक और पर्यावरणीय स्थितियों को बेहतर बनाने में सफल क्यों रहा है? 

SBM की सफलता इसके नए दृष्टिकोण में निहित है। इस दृष्टिकोण के तहत शौचालय निर्माण को सामुदायिक सहभागिता के साथ जोड़ा गया और IEC  में बड़े निवेश किए गए, ताकि व्यवहार में बदलाव लाया जा सके। इसे निम्नलिखित के रूप में देखा जा सकता है- 

  • इसके तहत सरकारी अधिकारियों, फ्रंटलाइन कर्मचारियों, स्वयंसेवकों और समुदायों के लिए क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश किया गया।
  • प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन के लिए उपचार संयंत्रों और पुनर्चक्रण केंद्रों के साथ-साथ अपशिष्ट पृथक्करण, संग्रह, परिवहन और निपटान प्रणालियों की स्थापना की गई।
  • नागरिक जुड़ाव और निगरानी के लिए मोबाइल और वेब एप्लिकेशन लांच किए गए हैं।
  • राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण (NARSS) के माध्यम से प्रगति का आकलन किया गया है। 

स्वच्छ भारत मिशन से संबंधित प्रमुख मुद्दे

  • व्यवहार में बदलाव की चुनौती: सर्वेक्षणों के दौरान, कई घरों में यह पाया गया है कि शौचालयों का उपयोग गोबर आदि के भंडारण के लिए किया जा रहा है।
  • बुनियादी ढांचे की कमी: इसमें कचरा प्रबंधन प्रणालियों और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की कमी प्रमुख समस्याएं हैं। 
    • SBM (G) के तहत शौचालयों के निर्माण में खराब गुणवत्ता वाले कच्चे माल का उपयोग किया जा रहा है। 
  • जल की उपलब्धता: जिन राज्यों में शौचालयों में जल की उपलब्धता कम है, वहाँ खुले में शौच की अधिकता है। 
  • वित्त-पोषण: इसके तहत बजटीय आवंटन 2017-18 में लगभग 16,000 करोड़ था, जो घटकर 2024-25 में लगभग 7,000 करोड़ हो गया है।
    • साथ ही, IEC गतिविधियों के लिए धन के उपयोग में भी गिरावट आई है।
  • ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन (SLWM) की चुनौती: अपशिष्ट पृथक्करण की कमी और आबादी क बिखरे हुए पैटर्न में बसावट के चलते आर्थिक रूप से व्यवहार्य बाजार-आधारित समाधान लाना कठिन हो जाता है। 

आगे की राह 

  • व्यवहार में बदलाव को बढ़ावा: व्यापक जागरूकता अभियान जैसे उपायों के माध्यम से व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। 
    • मिशन के तहत IEC का उपयोग ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी ढंग से किया जाना चाहिए। 
  • मानक बुनियादी ढांचे का निर्माण: प्रभावी स्वच्छता के लिए, नोडल एजेंसियों द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मानक गुणवत्ता वाले कच्चे माल का उपयोग किया जाए।  
  • पानी की उपलब्धता: सभी गाँवों में खुले में शौच से मुक्त का दर्जा प्राप्त करने के लिए शौचालयों के निर्माण के साथ-साथ पानी की उपलब्धता के प्रावधान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • विश्वसनीय डेटा तक पहुँच: संस्थागत तंत्र के माध्यम से या पुनः सर्वेक्षण द्वारा खुले में शौच से मुक्त घोषित गांवों/ शहरों की जानकारी निरंतर अंतराल पर  सटीक रूप से एकत्र की जानी चाहिए। 
  • अव्ययित शेष राशि का उपयोग करना: यदि राज्य कार्यान्वयन एजेंसियाँ आवंटित राशि का उपयोग नहीं कर रही हैं, तो सरकार अव्ययित शेष राशि का उपयोग करने के लिए राज्य-विशिष्ट कार्य योजनाएँ बना सकती है। 
  • केंद्र सरकार के हिस्से का समयबद्ध आवंटन: केंद्र का हिस्सा केवल तभी जारी किया जाना चाहिए जब केंद्र सरकार को राज्यों से प्राप्त उपयोग प्रमाणपत्रों (Utilisation Certificates: UCs) की सत्यता सुनिश्चित हो। 

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