कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment of Women at Workplace) | Current Affairs | Vision IAS
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कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment of Women at Workplace)

01 Jan 2025
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति हेमा समिति की रिपोर्ट में मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं के शोषण, यौन उत्पीड़न और लैंगिक असमानता का खुलासा हुआ है।

कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न

  • परिभाषा: यह किसी भी कार्यस्थल पर अवांछित यौन प्रस्ताव, यौन संबंध की मांग, अथवा यौन प्रकृति के अन्य मौखिक या शारीरिक आचरण को संदर्भित करता है।
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में देश में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के 419 से अधिक मामले (यानी लगभग 35 मामले प्रति माह) दर्ज किए गए थे। 
  • यौन उत्पीड़न के प्रकार: यौन उत्पीड़न को पारंपरिक रूप से दो प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया जाता है:
    • किसी लाभ के बदले यौन संबंध (क्विड प्रो क्वो): इसमें पदोन्नति, उच्च वेतन आदि के वादे जैसे कार्यस्थल संबंधी लाभों के बदले में यौन संबंधों की मांग करना शामिल है। 
    • कार्यस्थल पर अनुचित माहौल: एक ऐसा कार्यस्थल जहां कर्मचारी नियमित रूप से अवांछित यौन व्यवहार का सामना करते हैं, जो इतना गंभीर होता है कि यह उनके काम करने की क्षमता को प्रभावित करता है और उन्हें अपमानित, डरा हुआ या असुरक्षित महसूस कराता है। इस तरह के व्यवहार में यौन उत्पीड़न, यौन छेड़छाड़, यौन टिप्पणियां और यौन प्रकृति के अवांछित शारीरिक संपर्क शामिल हो सकते हैं। उदाहरण के लिए- यौन चुटकुले, अनुचित स्पर्श आदि।

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के प्रभाव

  • महिला पर प्रभाव:
    • करियर में व्यवधान: यह एक असुरक्षित और प्रतिकूल कार्य संस्कृति का निर्माण करता है, जो महिलाओं के पेशेवर विकास में बाधा डालती है तथा उनके समग्र कल्याण को प्रभावित करती है। 
    • स्वास्थ्य पर प्रभाव: यौन उत्पीड़न से पीड़ित महिला अक्सर तनाव और अत्यधिक चिंता की स्थिति का सामना करती है। साथ ही, उसे आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास में कमी का भी अनुभव करना पड़ता है। 
    • महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न लैंगिक भेदभाव का एक रूप है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत समानता के अधिकार तथा अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन है।
  • कार्यस्थल पर प्रभाव: 
    • दूषित कार्य संस्कृति: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न दूषित कार्य संस्कृति का निर्माण कर सकता है। ऐसी कार्य संस्कृतियां भेदभाव, धमकियों और अनुचित व्यवहार को सामान्य बनाती हैं। इससे महिलाओं के लिए कार्यस्थल का परिवेश असुरक्षित और गैर-समावेशी हो जाता है।
    • उत्पादकता में गिरावट: यौन उत्पीड़न अक्सर संगठनात्मक दक्षता और वित्तीय प्रदर्शन को दुष्प्रभावित करता है।
  • समाज पर प्रभाव:
    • लैंगिक असमानता का बने रहना: यौन उत्पीड़न महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित करता है। यह महिलाओं की करियर वृद्धि और पेशेवर विकास को हतोत्साहित करके लैंगिक असमानता को मजबूत करता है।
    • महिलाओं की कार्यबल में कम भागीदारी: जब महिलाएं उत्पीड़न के कारण अपनी नौकरी या करियर को छोड़ती हैं, तो इससे कुल कार्यबल में उनकी भागीदारी कम हो जाती है।
      • यौन उत्पीड़न के कारण नौकरी में बदलाव या करियर में व्यवधान वेतन में लैंगिक अंतराल में वृद्धि को भी बढ़ावा देते हैं।

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए शुरू की गई पहलें

  • विशाखा दिशा-निर्देश (1997): ये दिशा-निर्देश सुप्रीम कोर्ट द्वारा विशाखा बनाम राजस्थान राज्य मामले में जारी किए गए थे। 
    • POSH अधिनियम से पहले, विशाखा दिशा-निर्देश भारत में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने की दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम था। 
  • महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, निषेध और रोकथाम) अधिनियम, 2013 (POSH अधिनियम): इसका उद्देश्य कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की घटनाओं को रोकना और उनका समाधान करना है। साथ ही, ऐसे उत्पीड़न से संबंधित शिकायतों के निवारण के लिए एक तंत्र प्रदान करना है। 
    • यह यौन उत्पीड़न की शिकायतों के निपटान के लिए आंतरिक शिकायत समिति (ICC) और स्थानीय शिकायत समितियों के गठन का प्रावधान करता है। 10 या अधिक कर्मचारियों वाले प्रत्येक निजी या सार्वजनिक संगठन में एक ICC को अनिवार्य किया गया है।
  • यौन उत्पीड़न इलेक्ट्रॉनिक-बॉक्स (She-Box): यह कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न से संबंधित शिकायतों को दर्ज करने के लिए एक ऑनलाइन शिकायत प्रबंधन प्रणाली है। इसे महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 2017 में लॉन्च किया था।
  • महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय: यह एक अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय है, जो यौन उत्पीड़न के खिलाफ सुरक्षा और गरिमा के साथ काम करने के अधिकार को सार्वभौमिक मानवाधिकार के रूप में मान्यता देता है। 
    • भारत ने 1993 में इस अभिसमय की अभिपुष्टि की थी।

आगे की राह 

  • POSH अधिनियम के कार्यान्वयन को सुदृढ़ बनाना: कंपनियों द्वारा आंतरिक शिकायत समितियों (ICCs) की स्थापना सुनिश्चित करने के लिए बिना पूर्व सूचना के ऑडिट करना चाहिए। साथ ही, अनुपालन करने में विफल रहने वाले संगठनों पर सख्त दंड लागू करना चाहिए।
    • अनौपचारिक क्षेत्रक में महिलाओं के लिए स्थानीय शिकायत समितियों को अधिक सुलभ बनाया जाना चाहिए। 
  • कार्यस्थल पर लैंगिक समानता को बढ़ावा देना: कंपनियों के वरिष्ठ पदों पर लैंगिक विविधता पितृसत्तात्मक संरचनाओं को खत्म करने में सहायता करती है और उत्पीड़न की घटनाओं को कम करती है। 
  • सिविल सोसाइटी समूहों के साथ सहयोग: विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्रक जैसे कि कृषि क्षेत्रक में और घरेलू काम करने वाली महिलाओं को शिक्षित करने तथा उनका समर्थन करने में इनका उपयोग किया जाना चाहिए।
  • हेमा समिति की सिफारिशें: 
    • सिनेमा में महिलाओं का चरित्र चित्रण: फिल्मों में उन्हें सिविल सेवक, राजदूत, नेता जैसे शक्तिशाली पदों पर आसीन व्यक्तियों के रूप में चित्रित करना चाहिए। 
    • लैंगिक जागरूकता प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत करना: इसमें पुरुषों द्वारा प्राप्त सत्ता के एकाधिकार को चुनौती देना; महिलाओं को पुरुषों के बराबर प्रस्तुत करना आदि शामिल है। 
    • पुरुषत्व और स्त्रीत्व को फिर से परिभाषित करना: पुरुषत्व को हिंसा और आक्रामकता की बजाय न्याय, समानता और करुणा के रूप में प्रदर्शित करना चाहिए। 
      • स्त्रीत्व को निष्क्रियता और मौन होकर पीड़ा सहने वाले चित्रण से अलग करना चाहिए। 
    • महिलाओं की सहायता के लिए कल्याण कोष का निर्माण: प्रसव और स्वास्थ्य या अन्य जिम्मेदारियों के कारण नौकरी छोड़ने वाली महिलाओं की सहायता के लिए कल्याण कोष का गठन करना चाहिए। 
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