सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI) के पांच वर्ष पूरे हुए।
हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI) के बारे में
- यह एक गैर-संधि आधारित स्वैच्छिक व्यवस्था है, जो स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत तथा नियम-आधारित क्षेत्रीय व्यवस्था के लिए सहयोग को बढ़ावा देती है।
- उत्पत्ति: भारत ने IPOI को 2019 में बैंकॉक (थाईलैंड) में आयोजित हुए पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) के दौरान लॉन्च किया था।
- उद्देश्य: यह व्यावहारिक सहयोग के जरिए समान विचारधारा वाले देशों के साथ नई साझेदारी बनाकर एक समुदाय की भावना का निर्माण करने पर केंद्रित है।
- सिद्धांत: यह भारत द्वारा 2015 में शुरू की गई 'क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास (सागर/ SAGAR)' पहल की अवधारणा पर आधारित है।
- सागर पहल का विज़न, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानूनों एवं मानदंडों का सम्मान करते हुए तथा आर्थिक सहायता और समुद्री सुरक्षा चिंताओं को एक साझा मंच पर लाते हुए समावेशी विकास को बढ़ावा देना है।

हिंद-प्रशांत क्या है? |
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हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI) का महत्त्व
- सामरिक प्रासंगिकता: यह सुरक्षा एवं भू-राजनीतिक चुनौतियों पर आधारित हिंद-प्रशांत की पारंपरिक धारणा का विस्तार करती है तथा आर्थिक, विकास और पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों से निपटने जैसे विषयों को समुद्री सहयोग के क्षेत्र में शामिल करती है।
- सामूहिक प्रयासों को समेकित, समन्वित एवं चैनलाइज करना: यह समुद्री सुरक्षा और सतत विकास के साझा लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में विविध पहलों में समन्वय स्थापित करते हुए क्षेत्रीय भागीदारों को एकजुट करती है।
- उदाहरण के लिए- आसियान आउटलुक ऑन इंडो-पैसिफिक (AOIP) और इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव (IPOI) एक दूसरे के पूरक हैं।
- क्षेत्रीय खतरों से निपटना: यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक व्यवहार से निपटने में मदद कर सकती है।
- उदाहरण के लिए- 2020 में भारत और वियतनाम IPOI के अनुरूप अपने द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाने पर सहमत हुए थे।
- समुद्री सुरक्षा: IPOI का समुद्री सुरक्षा स्तंभ, भागीदारों के बीच सहयोगात्मक जुड़ाव के माध्यम से हिंद-प्रशांत समुद्री क्षेत्र में शांति स्थापित करने पर केंद्रित है।
- संसाधनों को हासिल करने पर आधारित भूराजनीति का समाधान: यह पहल महत्वपूर्ण खनिजों (कोबाल्ट, लिथियम, निकल आदि) और दुर्लभ भू-धातुओं (जैसे टेल्यूरियम, नियोडिमियम इत्यादि) की आपूर्ति को सुरक्षित करने में सहयोग को बढ़ावा देती है।
- लचीला फ्रेमवर्क: यह क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करने के लिए अनुकूल व गैर-संस्थागत मंच प्रदान करती है। इससे हिंद-प्रशांत की उभरती हुई चुनौतियों से निपटने में सामंजस्य पर आधारित कार्रवाई संभव हो पाती है।
हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI) के समक्ष प्रमुख चुनौतियां:
- संस्थागत क्षमता एवं कार्रवाई की कमी: प्रत्येक स्तंभ के अंतर्गत बहु-हितधारक और बहुपक्षीय सहयोग के लिए सुपरिभाषित दिशा एवं एजेंडा का अभाव है। यह समस्या इस पहल के प्रभाव को सीमित कर रही है।
- भू-राजनीतिक तनाव: यह हिंद-प्रशांत की धारणा को और जटिल बनाता है, क्योंकि चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पश्चिमी देशों की बढ़ती सक्रियता को उसके (चीन) प्रभाव को कम करने वाली एक और कार्रवाई मानता है।
- संसाधन की कमी: संयुक्त पहलों के लिए वित्त-पोषण तंत्र की कमी है तथा भागीदार देशों के बीच तकनीक और अवसंरचना क्षमताओं के स्तर पर काफी असमानता है।
- भागीदार देशों की विनियामक व्यवस्था में सामंजस्य की कमी: भागीदार देशों की राष्ट्रीय नीतियां, नियम और विनियम काफी अलग-अलग हैं। इन नीतियों और नियमों-विनियमों में सामंजस्य बैठना तथा साझा मानक का निर्माण करना एक बड़ी चुनौती है।
- क्षेत्र के सभी देशों को शामिल करने से जुड़े मुद्दे: इस पहल में पूर्वी अफ्रीकी और खाड़ी सहयोग परिषद के देशों का सीमित प्रतिनिधित्व है।
आगे की राह
- विज़न और व्यापक एजेंडा: चर्चा, संवाद आदि के आधार पर IPOI के लिए एक सामूहिक विज़न स्टेटमेंट को अपनाया जा सकता है। प्रत्येक स्तंभ के लिए, अगले पांच वर्षों हेतु एक संक्षिप्त योजना और एजेंडा की रूपरेखा तैयार की जा सकती है।
- प्रत्येक स्तंभ पर संवाद: किसी स्तंभ में विशेषज्ञता प्राप्त अग्रणी देशों को संबंधित स्तंभ पर समय-समय पर वार्ताओं का आयोजन करना चाहिए। ये आयोजन पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, ईस्ट एशिया मैरीटाइम फोरम (EAMF), इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) जैसे फ़ोरम्स के समन्वय में आयोजित किए जा सकते हैं।
- पूर्वी अफ्रीका, खाड़ी सहयोग परिषद के देशों और लघु द्वीपीय देशों की भागीदारी: ऐसे देशों की भागीदारी बढ़ाई जानी चाहिए और उन्हें नेतृत्व प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए है। ये कदम IPOI को वास्तव में एक क्षेत्रीय कंस्ट्रक्ट बना देगा।
- समय-समय पर सूचनाएं साझा करना: अग्रणी देशों द्वारा प्रत्येक स्तंभ से जुड़े एजेंडा एवं सहयोग पर वार्षिक विवरणी भागीदार देशों के साथ साझा करनी चाहिए। इससे एजेंडा की दिशा पर साझा समझ विकसित करने में मदद मिलेगी।
निष्कर्ष
भारत का हिंद-प्रशांत के प्रति दृष्टिकोण, इसकी एक्ट ईस्ट नीति का विस्तार है। यह दृष्टिकोण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समावेशिता और नौवहन की स्वतंत्रता को महत्त्व देता है। यह जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे प्रमुख क्षेत्रीय शक्तियों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देता है। साथ ही, अंतर्राष्ट्रीय महासागरों में सभी देशों के लिए एक संतुलित व सहयोगात्मक फ्रेमवर्क को प्रोत्साहित करता है।
