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मिशन मौसम (Mission Mausam)

01 Jan 2025
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मिशन मौसम को मंजूरी दी। इसके लिए 2,000 करोड़ रुपये के बजट निर्धारित किया गया है। 

मिशन मौसम के बारे में

  • "मिशन मौसम" भारत के मौसम और जलवायु विज्ञान, अनुसंधान एवं  सेवाओं को व्यापक रूप से बढ़ावा देने के लिए एक बहुआयामी पहल के रूप में शुरू किया गया है। 
  • इसकी प्रमुख विशेषताओं पर एक नज़र:
    • रडार और सैटेलाइट्स, विंड प्रोफाइलर्स, रेडियोमीटर, हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटर (HPC) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/ मशीन लर्निंग (AI/ ML) आधारित मॉडल्स के व्यापक नेटवर्क की स्थापना की जाएगी। इससे मौसम के बहुआयामी अवलोकन और भविष्यवाणी में सहायता मिलेगी। 
    • भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) में एक 'क्लाउड-सिमुलेशन चैंबर' की स्थापना की जाएगी। इसका उपयोग मौसम संबंधी हस्तक्षेपों, जैसे- क्लाउड सीडिंग के परीक्षण के लिए किया जाएगा। 
  • कार्यान्वयन मंत्रालय: पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES)
    • इस मिशन को मुख्य रूप से MoES के तहत तीन संस्थान लागू करेंगे- 
      • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD), 
      • राष्ट्रीय मध्यम-अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र (NCMRWF), और
      • भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM)। 

मिशन मौसम का महत्त्व

  • भारत को जलवायु के प्रति स्मार्ट बनाना और मौसम में बदलावों के लिए तैयार करना: इसके तहत स्थानिक और सामयिक आधार पर मौसम पूर्वानुमान की भौतिक प्रक्रियाओं और विज्ञान से संबंधित समझ बढ़ेगी। 
  • समय पर सूचना और सेवाएं: इससे बदलते मापदंडों, जैसे- पवन की गति, दाब आदि के मामले में नियमित आधार पर सूचना प्राप्त होगी, जिससे क्षमता निर्माण और सामुदायिक रेजिलिएंस सुनिश्चित होगा। 
  • विभिन्न क्षेत्रकों को लाभ: इससे कृषि, आपदा प्रबंधन, पर्यटन, स्वास्थ्य आदि के साथ-साथ शहरी नियोजन, सड़क और रेल परिवहन आदि में डेटा-आधारित निर्णय लेने में मदद मिलेगी।
  • हितधारकों का सशक्तीकरण: यह नागरिकों और दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले उपयोगकर्ताओं सहित कई  हितधारकों को चरम मौसमी घटनाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में बेहतर ढंग से सक्षम बनाने में मदद करेगा। 
  • पूर्वानुमान के लिए नया दृष्टिकोण: यह अम्ब्रेला मॉडल प्रदान करेगा, जिसमें हाइपर लोकल फोरकास्टिंग या पूर्वानुमान के साथ-साथ पूर्वानुमानों की सटीकता भी बेहतर होगी। 
  • अंतिम छोर तक पूर्वानुमान: यह घटना के 10 से 15 दिन पहले पंचायत स्तर तक सूचना प्रदान करेगा और नाउकास्ट फ्रीक्वेंसी को 3 से 1 घंटे तक कम करेगा। 
    • नाउकास्ट बहुत ही अल्पकालिक पूर्वानुमान प्रदान करता है। यह आमतौर पर अगले कुछ घंटों के लिए तथा तेजी से बदलते मौसम की घटनाओं जैसे कि आंधी-तूफान आदि पर नज़र रखने के लिए उपयोगी होता है।

भारत में मौसम पूर्वानुमान संबंधी चुनौतियां

  • वायुमंडलीय प्रक्रियाओं की जटिलता: उष्णकटिबंधीय अवस्थिति और मानसून की अप्रत्याशितता ने भारत में मौसम पूर्वानुमान को मुश्किल बना दिया है। 
  • स्थानीय पूर्वानुमान क्षमता का कमजोर होना: भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) वर्तमान में 12 कि.मी. x 12 कि.मी. क्षेत्र में मौसम की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने में सक्षम है, जो कि किसी शहर के लिए पूर्वानुमान प्रदान करता है। हालांकि, यह शहर के भीतर किसी विशेष स्थान के लिए नहीं पूर्वानुमान लगाने में सक्षम नहीं है।
  • पूर्वानुमान लगाने वाले उपकरणों की कमी: वर्तमान में, IMD के पास 39 डॉपलर रडार हैं और कोई भी विंड प्रोफाइलर नहीं है, जबकि चीन के पास 217 रडार और 128 विंड प्रोफाइलर हैं। 
  • पूर्वानुमान की खराब व्याख्या: पूर्वानुमान में बार-बार होने वाली चूक का कारण मौसम विज्ञानियों द्वारा उपग्रह से प्राप्त इमेज, रडार और अन्य डेटा की खराब व्याख्या है। 
  • जलवायु परिवर्तन की भूमिका: जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम पैटर्न अनिश्चित हो गए हैं। इससे भारी बारिश और सूखे जैसी स्थानीय घटनाएँ अधिक हो रही हैं।
    • बादल फटने, आंधी-तूफान आने जैसी घटनाओं की वर्तमान में अच्छी तरह से व्याख्या नहीं हो पाती है। 

भारत में मौसम पूर्वानुमान में सुधार के लिए की गई अन्य पहलें  

  • मानसून मिशन (2012): यह कई समयावधियों पर मौसम का पूर्वानुमान करने के लिए व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है। साथ ही, यह बेहतर आर्थिक नियोजन के लिए दीर्घावधि के मानसून पूर्वानुमान में सुधार करेगा। 
  • मौसम सूचना नेटवर्क और डेटा प्रणाली (WINDS): यह प्रणाली कृषि मंत्रालय द्वारा स्थापित की गई है, जिसका उद्देश्य किसानों की मदद के लिए दीर्घ-अवधिक, हाइपर-लोकल मौसम डेटा तैयार करना है। 
  • पृथ्वी विज्ञान (PRITHVI) योजना: यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की योजना है। इसके तहत पांच उप-योजनाएं जारी हैं: 
    • वायुमंडल और जलवायु अनुसंधान-मॉडलिंग अवलोकन प्रणाली और सेवाएं (Atmosphere & Climate Research-Modelling Observing Systems & Services: ACROSS)
    • महासागर सेवाएँ, मॉडलिंग एप्लीकेशन, संसाधन और प्रौद्योगिकी (Ocean Services, Modelling Application, Resources and Technology: O-SMART)
    • ध्रुवीय विज्ञान और क्रायोस्फीयर अनुसंधान (Polar Science and Cryosphere Research: PACER)
    • भूकंप विज्ञान और भू-विज्ञान (Seismology and Geosciences: SAGE) और
    • अनुसंधान, शिक्षा, प्रशिक्षण और पहुँच (Research, Education, Training and Outreach: REACHOUT)।
  • भू-अवलोकन उपग्रह: इनसैट-3D (2013), इनसैट-3DR (2016) और इनसैट-3DS (2024)।
  • IMD द्वारा शुरू की गई पहलें: यह वर्तमान मौसम की जानकारी के साथ-साथ, नाउकास्ट, शहरी मौसम का पूर्वानुमान, वर्षा की जानकारी, अखिल भारतीय बहु-खतरा शीतकालीन चेतावनी बुलेटिन, आदि प्रदान करता है। 
  • मोबाइल एप्लीकेशन: इसमें MAUSAM (मौसम पूर्वानुमान), मेघदूत (कृषि मौसम संबंधी सलाह का  प्रसार), दामिनी (बिजली की चेतावनी), आदि शामिल हैं। 
  • MoES ने 2018 में मौसम पूर्वानुमान के लिए प्रत्युष और मिहिर नामक सुपर कंप्यूटर का संचालन शुरू किया। 

आगे की राह 

  • अनुसंधान एवं विकास में निवेश को बढ़ावा देना: जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जटिलताओं को समझने तथा कम लागत पर बेहतर पूर्वानुमान के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता की क्षमता का उपयोग करने हेतु निवेश को बढ़ाने की जरूरत है। 
  • एजेंसियों और विशेषज्ञों के बीच समन्वय बढ़ाना: स्थानीय पारिस्थितिकी और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए विशेषज्ञों और योजनाकारों के बीच बेहतर समन्वय आवश्यक है। 
  • मौसम पूर्वानुमान से संबंधित बुनियादी ढांचे का निरंतर अपग्रेडेशन करना: इसे महासागर अवलोकन प्रणाली और उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले भू-अवलोकन उपग्रहों की स्थापना के ज़रिये उन्नत करना चाहिए। 
  • क्षेत्रीय असमानताओं का समाधान करना: डॉप्लर रडार द्वारा पूर्वी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों को बेहतर तरीक़े से कवर किया जाना चाहिए। 
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक के बीच साझेदारी को बढ़ाना: एडवांस तकनीकों तथा पूर्वानुमान उपकरणों के विकास के कार्य को और बेहतर बनाने के लिए IMD को सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक से सहयोग दिया जाना चाहिए।

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