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मिडिल इनकम ट्रैप (Middle Income Trap)

01 Jan 2025
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों? 

विश्व बैंक ने 'विश्व विकास रिपोर्ट 2024: द मिडिल इनकम' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत सहित कई देश मिडिल इनकम ट्रैप में फंसने के जोखिम का सामना कर रहे हैं।

मिडिल इनकम ट्रैप के बारे में

  • मध्यम आय वाले देश (MIC): विश्व बैंक उन अर्थव्यवस्थाओं को मिडिल इनकम यानी मध्यम आय वाले देश के रूप में वर्गीकृत करता है, जिनकी प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) 1,135 अमेरिकी डॉलर से 13,846 अमेरिकी डॉलर के बीच है।
    • निम्न मध्यम-आय वाले देश: इसमें 1,136 अमेरिकी डॉलर से 4,465 अमेरिकी डॉलर की प्रति व्यक्ति GNI वाले देश शामिल हैं। विश्व बैंक के अनुसार, 2023 में भारत का प्रति व्यक्ति GNI 2,540 डॉलर था।
    • उच्च मध्यम-आय वाले देश: ऐसे देश जिनका प्रति व्यक्ति GNI 4,466 अमेरिकी डॉलर और 13,845 अमेरिकी डॉलर के मध्य है।
  • मिडिल इनकम ट्रैप: सबसे पहले 2007 में, विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट 'ऐन ईस्ट एशिया रेनेसां-आइडियाज फॉर इकोनॉमिक ग्रोथ' में "मिडिल इनकम ट्रैप" शब्द का उल्लेख किया था।
    • यह वह स्थिति है जिसमें तीव्र आर्थिक संवृद्धि वाली अर्थव्यवस्थाएं मध्यम आय के स्तर पर स्थिर हो जाती हैं और उच्च आय वाले देशों की श्रेणी तक पहुंचने में विफल रहती हैं।
  • ट्रेंड: पिछले दशक के दौरान मिडिल इनकम यानी मध्यम आय वाले बहुत कम देश उच्च आय वाले देशों की श्रेणी में शामिल हो सके हैं।
    • इसके कई कारण हैं, जैसे- बुजुर्गों की बढ़ती आबादी और कर्ज में वृद्धि, भू-राजनीतिक और व्यापारिक संघर्ष, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना आर्थिक संवृद्धि को गति देने में आने वाली चुनौतियां, आदि।

भारत के मिडिल इनकम ट्रैप में उलझने के प्रमुख कारण?

  • मानव संसाधन का ठीक से दोहन नहीं होना:
    • कौशल की कमी: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, केवल 51% स्नातक ही रोजगार के योग्य हैं और भारत में केवल 2.3% कार्यबल ने औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
    • नवाचार क्षमता की कमी: भारत में अनुसंधान एवं विकास पर GDP का केवल 0.64% व्यय किया जाता है। दूसरी ओर, चीन में यह अनुपात 2.4% और संयुक्त राज्य अमेरिका में 3.47% है।
  • आय असमानता में वृद्धि: वर्ल्ड इनिक्वेलिटी लैब रिपोर्ट के मुताबिक, 2022-23 में भारत के शीर्ष 1% लोगों के पास देश की सकल राष्ट्रीय आय का 22.6% हिस्सा था।
    • इस वजह से सरकार का कर राजस्व कम हो सकता है तथा सामाजिक तनाव और राजनीतिक अस्थिरता में वृद्धि हो सकती है। ये सभी आर्थिक संवृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
  • औद्योगीकरण का स्थिर होना: भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि से सीधे सेवा क्षेत्रक की ओर आगे बढ़ रही है। इसका मतलब है कि विनिर्माण क्षेत्रक की उपेक्षा हुई है। इस वजह से देश के समग्र उत्पादन और रोजगार में विनिर्माण क्षेत्रक की हिस्सेदारी 20% से नीचे बनी हुई है।
    • विनिर्माण क्षेत्रक का अधिक विकास नहीं होने से बेरोजगारी और विशेष रूप से कृषि में छिपी हुई बेरोजगारी में वृद्धि हुई है।
  • समकालीन वैश्विक बाधाएं:
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, मध्यम आय वाले देश स्वयं को "धनी देशों की तेजी से बदलती अत्याधुनिक तकनीक तथा गरीब देशों में सस्ते श्रम की मदद से तैयार उत्पादों से प्रतिस्पर्धा के बीच फंसा हुआ पाते हैं।"
    • भू-राजनीतिक तनावों के कारण विदेशी व्यापार और निवेश कम होने का खतरा बढ़ गया है। साथ ही लोकलुभावन कार्यों के कारण सरकारों के पास कार्रवाई करने की गुंजाइश कम रह जाती है।
    • विदेशी ऋण में वृद्धि हुई है (पिछले वर्ष की तुलना में मार्च, 2024 में यह 6.4% बढ़ा है)।
    • जलवायु कार्रवाई में तेजी लाने व पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना आर्थिक संवृद्धि को बढ़ाने में नई चुनौती सामने आ रही है।

आगे की राह

विश्व बैंक की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि उच्च आय वाले देश का दर्जा हासिल करने का लक्ष्य रखने वाले देशों को 3i रणनीति अपनानी चाहिए। इस रणनीति में शामिल हैं- Investment (निवेश), Infusion of global technologies (वैश्विक प्रौद्योगिकियों का समावेश) और Innovation (नवाचार)। हालांकि, 1i से 2i और फिर 3i की ओर आगे बढ़ने के लिए 'रचनात्मक परिवर्तन' एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा (बॉक्स देखें)।

निम्न आय वाले देशों में निवेश (1i)

निम्न-MIC के लिए निवेश + समावेश (2i)

उच्च-MIC के लिए निवेश + समावेश + नवाचार (3i)

निम्न आय वाले देशों में आर्थिक सफलता मुख्य रूप से निवेश में तेजी लाने से ही हासिल हो सकती है। साथ ही, घरेलू और विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए निवेश के अनुकूल माहौल बनाने की आवश्यकता भी होती है।

जैसे-जैसे निम्न आय वाले देश मध्यम आय वाले देशों की स्थिति में आते हैं, उन्हें प्रगति जारी रखने के लिए अनुकूल निवेश माहौल बनाए रखने के अलावा ऐसे उपाय करने होते हैं जो विदेशों से नए आइडियाज को प्राप्त कर सके और अर्थव्यवस्था में उन्हें अपना सकें। इन्हें ही "समावेश या इन्फ्यूजन" कहा जाता है।

एक बार जब कोई MIC अपनी अर्थव्यवस्था के सबसे क्षमतावान हिस्सों में इन्फ्यूजन की क्षमता का पूरा उपयोग कर लेता है, और उसे सीखने एवं अपनाने के लिए वांछित प्रौद्योगिकियां कम पड़ जाती हैं - तो उसे नवाचार आधारित अर्थव्यवस्था बनने के लिए अपने प्रयासों को बढ़ाना चाहिए।

 

रचनात्मक परिवर्तन (Creative Destruction) के बारे में

  • रचनात्मक परिवर्तन की अवधारणा अर्थशास्त्री जोसेफ शुम्पीटर की देन है।
  • यह नवाचार और तकनीकी परिवर्तन की प्रक्रिया है जो पुरानी तकनीकों पर आधारित उद्योगों, फर्मों और रोजगारों के अप्रासंगिक होने का कारण बनती है।
  • यह बदलाव नई संरचनाओं के उद्भव का मार्ग प्रशस्त करता है। यह दीर्घकालिक आर्थिक संवृद्धि और विकास को भी सुनिश्चित करता है।

अन्य पहलें जो शुरू की जा सकती हैं:

  • मानव पूंजी में निवेश:
    • कुशल कार्यबल: सामाजिक स्थिति में परिवर्तन के लिए महिलाओं और वंचित समूहों को शामिल करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए माध्यमिक शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण में निवेश बढ़ाना चाहिए।
      • अटल नवाचार मिशन (AIM), राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) नीति, 2016 जैसी पहलें इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
  • ब्रेन गेन: प्रवासी समुदायों की विशेषज्ञता का लाभ उठाने और शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी स्थापित करने पर जोर देना चाहिए। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM); स्वास्थ्य और ऊर्जा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में अनुसंधान हेतु निवेश बढ़ाना चाहिए।  
  • बाजार सुधार:
    • स्मॉल फर्म्स या व्यवसायों को अनावश्यक अधिक सहायता से बचना: अनुत्पादक लघु व्यवसायों को अत्यधिक सहायता देने से बचना चाहिए, क्योंकि ये विकास में बाधा डाल सकते हैं और संसाधनों की बर्बादी कर सकते हैं।
    • वैश्विक बाजारों से जुड़ना: विदेशी निवेशकों को अवसर उपलब्ध कराना और सक्रिय होकर वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं से जुड़ना, ताकि घरेलू कंपनियों को बड़े बाजारों से जुड़ने और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियां प्राप्त करने में मदद मिल सके।
      • इस दिशा में की गई कुछ प्रमुख पहलों में शामिल हैं- रक्षा क्षेत्रक में पूंजीगत अधिग्रहण की 'बाय (इंडियन)' और 'बाय एंड मेक (इंडियन)' जैसे प्रावधान; उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं की घोषणा; अंतरिक्ष क्षेत्रक में 100% FDI की अनुमति; आदि।
    • प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना: प्रतिस्पर्धा-रोधी गतिविधियों को रोकने हेतु मजबूत एजेंसी और एंटी-ट्रस्ट कानून की आवश्यकता है। ये बड़ी कंपनियों द्वारा अपने प्रभुत्व के दुरुपयोग को रोकने और नई प्रौद्योगिकियों के विकास को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।
    • पूंजी के पर्याप्त साधन जुटाना: इक्विटी बाजार विशेष रूप से ऐसी निजी कंपनियों में नवाचार गतिविधियों के लिए पूंजी जुटाने में सहायक हो सकते हैं, जो आम तौर पर सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनियों की तुलना में वित्त-पोषण की कमी का सामना करते हैं।
  • डिजिटल प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना: इंटरनेट, मोबाइल फोन, सोशल मीडिया और वेब आधारित सूचना प्रणाली जैसी डिजिटल प्रौद्योगिकियां सामाजिक स्थिति में सुधार और प्रतिभा विकास, दोनों को बढ़ावा दे सकती हैं। 
    • उदाहरण के लिए, आधार नंबर से तैयार डिजिटल फुटप्रिंट (जैसे- पेमेंट हिस्ट्री) लोगों को ऋण प्राप्त करने और अपनी वित्तीय विश्वसनीयता साबित करने में मदद कर सकता है।
  • वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटना: उदाहरण के लिए, मध्यम आय वाले देशों को निम्न-कार्बन उत्सर्जन वाली आपूर्ति श्रृंखलाओं में शामिल होना चाहिए। हालांकि, इसकी सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि विकसित देश किस सीमा तक अपनी संरक्षणवादी व्यापार नीतियों को कम करते हैं।

निष्कर्ष

भारत और मध्यम आय वाले अन्य देशों को अपनी विशिष्ट परिस्थितियों और विकास चरण के अनुरूप व्यवस्थित एवं नई नीतियों को अपनाने की आवश्यकता है ताकि वे सफलतापूर्वक प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि कर सकें और 'मिडिल इनकम ट्रैप' से बाहर निकल सकें।

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