वायु गुणवत्ता प्रबंधन विनिमय मंच {Air Quality Management Exchange Platform (AQMx)} | Current Affairs | Vision IAS
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    संक्षिप्त समाचार

    Posted 01 Jan 2025

    Updated 03 Dec 2025

    10 min read

    वायु गुणवत्ता प्रबंधन विनिमय मंच {Air Quality Management Exchange Platform (AQMx)}

    इसे 7 सितंबर को आयोजित किए गए इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काई के दौरान लॉन्च किया गया था।

    • इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काई का आयोजन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के नेतृत्व में किया जाता है। इस वर्ष के आयोजन की थीम है-‘स्वच्छ वायु में अभी निवेश करें (Invest in Clean Air Now)।

    वायु गुणवत्ता प्रबंधन विनिमय मंच (AQMx) के बारे में

    • यह एक वन-स्टॉप-शॉप की तरह कार्य करेगा। इसके तहत WHO वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों के अंतरिम लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रस्तावित नवीनतम वायु गुणवत्ता प्रबंधन मार्गदर्शन तथा अन्य सहायता प्रदान की जाएगी। 
    • यह CCAC क्लीन एयर फ्लैगशिप का एक घटक है। यह वैश्विक स्तर पर वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य से क्षेत्रीय सहयोग और साझा कार्यवाहियों को बढ़ावा देने के लिए UNEA (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा)-6 संकल्प के कार्यान्वयन में योगदान देगा। 

    वायु गुणवत्ता प्रबंधन विनिमय मंच (AQMx) की आवश्यकता क्यों है?

    • वायु प्रदूषण का खतरा: हर साल वायु प्रदूषण के कारण 8 मिलियन से अधिक लोगों की असामयिक मौत हो जाती है। इससे निर्धन और हाशिये पर रहने वाले लोग सर्वाधिक प्रभावित होते हैं।
    • क्षमता अंतराल: AQMx के तहत वायु गुणवत्ता निगरानी, ​​स्वास्थ्य प्रभाव आकलन आदि पर बेहतर मार्गदर्शन प्रदान करने के साथ ही वायु गुणवत्ता प्रबंधन क्षमता में आई कमियों को दूर करने में भी मदद की जाएगी। 
    • ज्ञान साझाकरण: यह क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय समुदायों को वायु गुणवत्ता प्रबंधन से जुड़े सर्वोत्तम तरीकों एवं ज्ञान का आदान-प्रदान करने की सुविधा प्रदान करेगा। 

    जलवायु और स्वच्छ वायु गठबंधन (CCAC) के बारे में

    • इसका गठन वर्ष 2012 में UNEP के नेतृत्व में किया गया था। यह 160 से अधिक सरकारों, अंतर-सरकारी संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों का एक स्वैच्छिक साझेदारी आधारित गठबंधन है। भारत 2019 में CCAC में शामिल हुआ था।
    • यह अल्पकालिक किन्तु शक्तिशाली जलवायु प्रदूषकों जैसे- मीथेन, ब्लैक कार्बन और हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) तथा ट्रोपोस्फेरिक ओजोन के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए कार्य करता है। ये प्रदूषक तत्व जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण दोनों को बढ़ावा देते हैं।

    WHO वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देश (AQG) 

    • ये विशिष्ट वायु प्रदूषकों के उत्सर्जन की उच्चतम सीमा का निर्धारण करने वाली साक्ष्य-आधारित सिफारिशों का एक सेट हैं। 
    • ये सामान्य वायु प्रदूषकों के उत्सर्जन के स्तरों और अंतरिम लक्ष्यों की सिफारिश करते हैं। इन प्रदूषकों में पार्टिकुलेट मैटर्स (PM), ओजोन (O3), NO2, SO2 और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) शामिल हैं।
      • उदाहरण के लिए, PM2.5 का 24 घंटे का औसत 15 µg/m³ से अधिक नहीं होना चाहिए। साथ ही PM2.5 का वार्षिक औसत 5 µg/m³ से अधिक नहीं होना चाहिए (इन्फोग्राफिक्स देखें)
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    • Climate and Clean Air Coalition (CCAC)
    • Air Pollution
    • AQMX

    वायु गुणवत्ता और जलवायु बुलेटिन (Air Quality and Climate Bulletin)

    संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने अपना चौथा वार्षिक “वायु गुणवत्ता और जलवायु” बुलेटिन जारी किया है। इस बुलेटिन में वायु गुणवत्ता की स्थिति और इस पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में बताया गया है।

    इस बुलेटिन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर  

    • PM2.5 की वैश्विक सांद्रता: यूरोप और चीन में PM2.5 संबंधी प्रदूषण का स्तर कम है, जबकि उत्तरी अमेरिका एवं भारत में मानवजनित गतिविधियों से इसके उत्सर्जन में वृद्धि देखी गई है।
      • 2.5 माइक्रोमीटर से छोटे व्यास वाले पार्टिकुलेट मैटर को PM2.5 कहा जाता है।
    • पार्टिकुलेट मैटर के ग्लोबल हॉटस्पॉट्स: इसमें मध्य अफ्रीका, पाकिस्तान, भारत, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया के कृषि क्षेत्र शामिल हैं।
    • फसलों पर पार्टिकुलेट मैटर का प्रभाव: यह पत्तियों की सतह पर जमा होकर  पत्तियों तक पहुंचने वाले सूर्य के प्रकाश की मात्रा को कम कर देता है। इससे फसल की पैदावार 15% तक कम हो जाती है।
    • एयरोबायोलॉजी के क्षेत्र में प्रगति: नई तकनीकों ने बायोएयरोसॉल्स की रियल टाइम निगरानी को संभव किया है।

    एयरोबायोलॉजी के बारे में

    • एयरोबायोलॉजी मानव, पशु और पादपों के स्वास्थ्य पर वायु में मौजूद जैविक कणों या बायोएयरोसॉल्स के संचरण एवं प्रभाव का अध्ययन है। बायोएयरोसॉल्स में निम्नलिखित शामिल हैं:
      • बैक्टीरिया, फंगल बीजाणु, पराग कण, वायरस आदि।
    • बायोएयरोसॉल्स जैव विविधता, पादपों में फूल खिलने के पैटर्न और पादपों के वितरण में परिवर्तन को दर्शाते हैं, ये सभी जलवायु परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
      • इसलिए, बायोएयरोसॉल्स की समझ को बेहतर बनाने के लिए नई तकनीकों की आवश्यकता है। इससे पूर्वानुमान लगाने तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के आकलन को और बेहतर किया जा सकेगा।
    • बायोएयरोसॉल्स पर्यवेक्षण संबंधी नई तकनीकें: इसमें हाई-रिज़ॉल्यूशन इमेज विश्लेषण, होलोग्राफी, मल्टी-बैंड स्कैटरमेट्री, फ्लोरोसेंस स्पेक्ट्रोमेट्री और DNA सीक्वेंसिंग के लिए नैनो तकनीक शामिल हैं।
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    • Aerobiology
    • Air Quality and Climate Bulletin

    टील कार्बन (Teal Carbon)

    केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (KNP) में भारत का पहला 'टील कार्बन' अध्ययन किया गया है। 

    • अध्ययन में यह दर्शाया गया है कि यदि आर्द्रभूमि में मानवजनित प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके, तो टील कार्बन जलवायु परिवर्तन शमन में उपयोगी सिद्ध हो सकता है। 
    • अध्ययन से यह भी पता चला है कि विशेष प्रकार के बायोचार (जो कि चारकोल का एक रूप है) के उपयोग से उच्च मीथेन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।

    टील कार्बन के बारे में

    • टील कार्बन से तात्पर्य गैर-ज्वारीय मीठे पानी की आर्द्रभूमि में संग्रहित कार्बन से है। इसमें वनस्पति, सूक्ष्मजीवी बायोमास तथा विघटित एवं कणिकीय (Particulate) कार्बनिक पदार्थों में संग्रहित कार्बन शामिल है।
    • टील कार्बन, एक रंग-आधारित शब्दावली है (इन्फोग्राफिक्स देखें)। इसमें ऑर्गेनिक कार्बन के वर्गीकरण को उसके भौतिक गुणों की बजाय उसके कार्यों और स्थान के आधार पर दर्शाया जाता है।
    • इसके विपरीत, काला और भूरा कार्बन कार्बनिक पदार्थों के अपूर्ण दहन से उत्पन्न होते हैं और ग्लोबल वार्मिंग में योगदान करते हैं।
    • महत्त्व: यह भूजल स्तर में वृद्धि, बाढ़ शमन और हीट आइलैंड प्रभाव में कमी करने में योगदान देता है। साथ ही, संधारणीय शहरी अनुकूलन को समर्थन प्रदान करता है।

    केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (भरतपुर, राजस्थान) के बारे में

    • इसे 1982 में राष्ट्रीय उद्यान तथा 1985 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
    • यह 370 से अधिक प्रजातियों के पक्षी और प्राणी जैसे अजगर, साइबेरियन सारस आदि का पर्यावास है।
    • 1990 में "जल की कमी और असंतुलित चराई" के कारण इसे मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड (रामसर कन्वेंशन) में शामिल किया गया था। 
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    • Teal Carbon
    • Keoladeo National Park (KNP)
    • Black Carbon

    जलविद्युत परियोजनाओं हेतु योजना {Scheme for Hydro Electric Projects (HEP)}

    केंद्रीय मंत्रिमंडल ने “जलविद्युत परियोजनाओं के लिए सक्षमकारी अवसंरचना लागत हेतु बजटीय सहायता की योजना” में संशोधन को मंजूरी दी है। 

    • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जलविद्युत परियोजनाओं (HEP) के त्वरित विकास और दूरदराज एवं पहाड़ी परियोजना स्थलों में अवसंरचना में सुधार हेतु योजना में संशोधन को मंजूरी दी है। 
    • भारत में जलविद्युत क्षेत्रक को बढ़ावा देने हेतु “जलविद्युत परियोजनाओं के लिए सक्षमकारी अवसंरचना लागत हेतु बजटीय सहायता की योजना” को विद्युत मंत्रालय ने 2019 में शुरू किया था। साथ ही, कुछ अन्य महत्वपूर्ण उपाय भी अपनाए थे।  
      • इस योजना के तहत प्रमुख बांध, बिजली घर और अन्य परियोजना संबंधी अवसंरचनाओं को निकटतम राज्य/ राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ने वाली सड़कों एवं पुलों के निर्माण के लिए बजटीय सहायता प्रदान की जाती है।

    संशोधित योजना के बारे में 

    • वित्त-पोषण: लगभग 31,350 मेगावाट की संचयी उत्पादन क्षमता के लिए 12,461 करोड़ रुपये का कुल आवंटन किया जाएगा।
    • कार्यान्वयन अवधि: वित्त वर्ष 2024-25 से वित्त वर्ष 2031-32 तक।
    • विस्तार: सड़कों व पुलों के अलावा ट्रांसमिशन लाइन्स, रोपवे, रेलवे साइडिंग और संचार अवसंरचना के निर्माण की लागत को शामिल करने के लिए योजना का विस्तार किया गया है।
    • पात्रता: इसमें निजी क्षेत्रक की परियोजनाओं और सभी पम्पड स्टोरेज परियोजनाओं (PSP) सहित 25 मेगावाट से अधिक क्षमता वाली जलविद्युत परियोजनाएं शामिल हैं।

    जलविद्युत परियोजनाओं के विकास के लिए अन्य उपाय

    • 25 मेगावाट से अधिक बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत घोषित किया गया है।
    • जलविद्युत खरीद दायित्व (Hydro Power Purchase Obligations: HPOs) अपनाए गए हैं। इनके तहत संस्थाओं को जलविद्युत परियोजनाओं से बिजली खरीदना अनिवार्य किया गया है।
    • जलविद्युत शुल्क को कम करने के लिए प्रशुल्क युक्तिकरण उपाय लागू किए जाएंगे। 
    • बाढ़ नियंत्रण और जल भंडारण जलविद्युत परियोजनाओं के लिए बजटीय सहायता प्रदान की जाएगी।
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    • Scheme for Hydro Electric Projects (HEP)
    • Hydro Electric Projects (HEP)

    बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन के लिए पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति दिशा-निर्देश (Environmental Compensation Guidelines for Battery Waste Management)

    ये दिशा-निर्देश बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2022 के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने जारी किए हैं। इन्हें जारी करने का उद्देश्य पूरे देश में बैटरी अपशिष्ट के उचित प्रबंधन से संबंधित पद्धतियों और पर्यावरणीय संधारणीयता को बढ़ावा देना है।

    पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति (Environmental Compensation) क्या होती है?

    • अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022: इसके तहत नियमों का पालन न करने की स्थिति में CPCB अपशिष्ट बैटरी के नवीनीकरण और पुनर्चक्रण में शामिल उत्पादकों एवं संस्थाओं पर पर्यावरणीय कर लगा व वसूल सकता है।
    • “प्रदूषणकर्ता द्वारा भुगतान सिद्धांत” के आधार पर निम्नलिखित पर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति आरोपित की जाएगी:
      • पंजीकरण के बिना गतिविधियां संचालित करने वाली संस्थाओं पर;
      • पंजीकृत संस्थाओं द्वारा गलत सूचना प्रदान करने/ जानबूझकर तथ्यों को छिपाने आदि पर।
    • यह इन नियमों के तहत निर्धारित विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) लक्ष्यों, जिम्मेदारियों और बाध्यताओं को पूरा नहीं कर पाने वाले उत्पादकों पर भी आरोपित की जाएगी। 
      • EPR का अर्थ है कि किसी बैटरी निर्माता की यह जिम्मेदारी होती है कि वह अपशिष्ट बैटरी (Waste Battery) का पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित प्रबंधन सुनिश्चित करे।
    • हालांकि, पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति का भुगतान करने से बैटरी निर्माता को इन नियमों के तहत निर्धारित EPR दायित्व से छूट नहीं मिलेगी। उदाहरण के लिए, किसी वर्ष विशेष में पूरी नहीं की गई EPR संबंधी बाध्यताओं को अगले वर्ष के लिए कैरिड फॉरवर्ड कर दिया जाएगा।

    मुख्य दिशा-निर्देशों पर एक नजर: 

    • पर्यावरणीय कर को दो व्यवस्थाओं में विभाजित किया गया है:
      • पर्यावरणीय कर व्यवस्था 1- इसके तहत पर्यावरणीय कर धातु-वार (लेड एसिड, लिथियम-आयन और अन्य बैटरियों के लिए) EPR संबंधी लक्ष्यों को पूरा न करने वाले निर्माताओं पर लगाया जाएगा। 
      • पर्यावरणीय कर व्यवस्था 2- इसके तहत अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 का पालन न करने की स्थिति में किसी भी संस्था पर आवेदन शुल्क के आधार पर पर्यावरणीय कर लगाया जाएगा।
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    • Environmental Compensation
    • Battery Waste Management
    • Polluter Pays Principle

    वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश के लिए भारत-जर्मनी प्लेटफॉर्म (India-Germany Platform for Investments in Renewable Energies Worldwide)

    चौथे वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा निवेशक सम्मेलन और प्रदर्शनी (RE-INVEST) में वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश के लिए भारत-जर्मनी प्लेटफॉर्म का शुभारंभ किया गया। 

    • RE-INVEST का आयोजन नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा किया जाता है। 

    भारत-जर्मनी प्लेटफॉर्म के बारे में 

    • इसका उद्देश्य भारत में और विश्व स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा के त्वरित विस्तार के लिए ठोस एवं संधारणीय समाधान विकसित करना है।
    • यह विश्व भर के हितधारकों के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय मंच के रूप में कार्य करेगा, ताकि 2030 तक 500 गीगावाट की गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य को प्राप्त करने में भारत की सहायता के लिए समाधान विकसित किया जा सके।
    • यह भारत और जर्मनी के बीच 2022 में हस्ताक्षरित हरित एवं सतत विकास साझेदारी (GSDP) के तहत एक पहल है। 
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    • India-Germany
    • RE-INVEST
    • Green and Sustainable Development Partnership (GSDP)

    UN द्वारा एनर्जी ट्रांजिशन प्रिंसिपल्स (Energy Transition Principles by UN)

    “रिसोर्सिंग द एनर्जी ट्रांजिशन: प्रिंसिपल्स टू गाइड क्रिटिकल एनर्जी ट्रांजिशन मिनरल्स टूवर्ड्स इक्विटी एंड जस्टिस” रिपोर्ट जारी की गई। यह रिपोर्ट क्रिटिकल एनर्जी ट्रांजिशन मिनरल्स (CETM) पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव के नेतृत्व में गठित पैनल ने जारी की है।

    •  यह पैनल एनर्जी ट्रांजिशन के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत विकसित करने हेतु गठित किया गया था। 
    • CETM वे खनिज होते हैं, जो नवीकरणीय ऊर्जा के निर्माण, उत्पादन, वितरण और भंडारण के लिए आवश्यक हैं।
      • इनमें दुर्लभ भू खनिज, तांबा, कोबाल्ट, निकल, लिथियम, ग्रेफाइट, कैडमियम, सेलेनियम आदि शामिल हैं।
      • विश्व जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर ट्रांजिशन कर रहा है।  इसलिए, CETM की मांग 2030 तक तीन गुना बढ़ने की उम्मीद है।

    रिपोर्ट के बारे में

    • रिपोर्ट में नवीकरणीय क्रांति को सफल बनाने के लिए न्याय और समानता में सात मार्गदर्शक सिद्धांत (इन्फोग्राफिक देखें) तथा पांच कार्रवाई योग्य  सिफारिशें की गई हैं।  
      • मार्गदर्शक सिद्धांत जरूरी हैं, क्योंकि CETM की बढ़ती मांग से कमोडिटी पर निर्भरता को बढ़ावा मिलने; भू-राजनीतिक तनाव व पर्यावरणीय एवं सामाजिक चुनौतियों के बढ़ने तथा एनर्जी ट्रांजिशन की दिशा में प्रयासों के कमजोर होने का जोखिम है।
    • कार्रवाई योग्य सिफारिशों में निम्नलिखित की स्थापना शामिल है:
      • उच्च-स्तरीय विशेषज्ञ सलाहकार समूह: CETM मूल्य श्रृंखलाओं में अधिक लाभ-साझाकरण, मूल्य संवर्धन और आर्थिक विविधीकरण में तेजी लाने के लिए।
      • वैश्विक ट्रेसेब्लिटी, पारदर्शिता और जवाबदेही फ्रेमवर्क: संपूर्ण खनिज मूल्य श्रृंखला के साथ यह फ्रेमवर्क जरूरी है।
      • ग्लोबल माइनिंग लीगेसी फंड: खदान बंद करने और पुनर्वास के लिए वित्तीय आश्वासन तंत्र को मजबूत करने हेतु।
      • कारीगरों और छोटे पैमाने के खनिकों को जिम्मेदारीपूर्ण खनन के लिए सशक्त बनाने वाली पहलें शुरू की जा सकती हैं।
      • उपभोग को संतुलित करने और पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए मटेरियल एफिशिएंसी और सर्कुलेटरी लक्ष्य निर्धारित किए जाने चाहिए। 
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    • United Nations
    • Energy Transition
    • Critical Energy Transition Minerals (CETMs)
    • Principles of Energy Transition

    इंटरनेशनल राइनो फाउंडेशन ने 'स्टेट ऑफ द राइनो' रिपोर्ट जारी की {International Rhino Foundation (IRF) released State of the Rhino 2024 Report}

    इंटरनेशनल राइनो फाउंडेशन (IRF) विश्व भर की गैंडा प्रजातियों के अस्तित्व को बचाने के लिए कार्य कर रहा है। इस संगठन की स्थापना 1991 में इंटरनेशनल ब्लैक राइनो फाउंडेशन के रूप में की गई थी।

    रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर 

    • राइनो की सभी पांच प्रजातियों को मिलाकर, दुनिया में लगभग 28,000 गैंडे शेष बचे हुए हैं।
    • 2022 से 2023 के बीच अफ्रीका में गैंडों के अवैध शिकार में 4% की वृद्धि दर्ज की गई है।
    • 2022 से 2023 के बीच सफेद गैंडों की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन एक सींग वाले गैंडों (भारतीय गैंडा) की संख्या लगभग स्थिर रही है।
    • अवैध शिकार के बावजूद दक्षिण अफ्रीका में सफेद गैंडों की संख्या बढ़ रही है।

    गैंडों के बारे में

    • गैंडों की पांच प्रजातियां: इनमें दो अफ्रीकी प्रजातियां (सफेद गैंडा और काला गैंडा) तथा तीन एशियाई प्रजातियां (भारतीय गैंडा, सुमात्राई गैंडा और जावा गैंडा) शामिल हैं।
    • गैंडों के संरक्षण हेतु शुरू की गई पहलें: 
      • भारतीय गैंडे के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय गैंडा संरक्षण रणनीति, 2019 जारी की गई है; 
      • एशियाई गैंडों पर नई दिल्ली घोषणा-पत्र 2019 जारी किया गया है; 
      • इंडियन राइनो विजन, 2020 जारी किया गया है आदि।

    अफ्रीकी गैंडे और एशियाई गैंडे के बीच अंतर

    विशेषताएं

    अफ्रीकी गैंडा

    एशियाई गैंडा

    आकार

    सफेद गैंडा हाथियों के बाद जमीन पर रहने वाला दूसरा सबसे बड़ा स्तनपायी है।

    भारतीय गैंडा सभी एशियाई गैंडा प्रजातियों में सबसे बड़ा है।

    रंग-रूप और व्यवहार

    • इसकी कवच जैसी दिखाई देने वाली गांठदार त्वचा बहुत कम होती है,
    • अधिक आक्रामक,
    • 2 सींग वाला
    • तैरने में कुशल नहीं होते, और वे गहरे पानी में डूब सकते हैं, इसलिए वे कीचड़ में लोटते हैं। 
    • लड़ने के लिए सींगों का इस्तेमाल करते हैं। 
    • ये जमीन पर उगने वाली छोटी-छोटी घास और कम ऊँची वनस्पतियों को खाते हैं । 
    • इसकी कवच जैसी दिखाई देने वाली गांठदार त्वचा बहुत अधिक होती है,, 
    • कम आक्रामक,
    • 2 सींग (सुमात्राई गैंडा) और 1 सींग (भारतीय गैंडा व जावा गैंडा)
    • अच्छे तैराक
    • लड़ते समय अपने निचले दांतों का उपयोग करते हैं। 
    • आहार के लिए लंबी घास, झाड़ियों और पत्तियों पर निर्भर हैं।

    पर्यावास

    घास-भूमियां, सवाना और झाड़ियां; रेगिस्तान

    उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय घास-भूमियां तथा सवाना व उष्णकटिबंधीय आर्द्र वन

    संरक्षण स्थिति (IUCN रेड लिस्ट)

    • सफेद गैंडा: नियर थ्रेटेन्ड
    • काला गैंडा: क्रिटिकली एंडेंजर्ड
    • भारतीय गैंडा: वल्नरेबल; 
      • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I में सूचीबद्ध। 
    • सुमात्राई गैंडा: क्रिटिकली एंडेंजर्ड। 
    • जावा गैंडा: क्रिटिकली एंडेंजर्ड। 

     

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    • Rhino
    • African Rhino

    वन्यजीव पर्यावासों का एकीकृत विकास (Integrated Development of Wildlife Habitats)

    हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 15वें वित्त आयोग की अवधि के लिए “वन्यजीव पर्यावासों का एकीकृत विकास (IDWH)” योजना को जारी रखने को मंजूरी दी। 

    • यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है। 
    • मौजूदा योजना के मौलिक एवं मुख्य घटकों को मजबूत किया गया है। साथ ही, यह योजना बाघ एवं अन्य वन्य जीव बहुल वनों में विविध विषयगत (थीमेटिक) क्षेत्रकों में प्रौद्योगिकी को अपनाने को बढ़ावा देती है।

    ‘वन्यजीव पर्यावासों का एकीकृत विकास’ (IDWH) योजना के बारे में

    • उद्देश्य: यह केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा शुरू की गई “केंद्र प्रायोजित अम्ब्रेला योजना” है। इसका उद्देश्य भारत में वन्यजीव पर्यावासों का विकास करना है।  
    • योजना के घटक:
      • राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, संरक्षण रिजर्व और सामुदायिक रिजर्व जैसे संरक्षित क्षेत्रों को सहायता प्रदान करना।
      • संरक्षित क्षेत्रों के बाहर वन्यजीवों का संरक्षण सुनिश्चित करना।
      • अत्यधिक संकटग्रस्त प्रजातियों और पर्यावासों को बचाने के लिए पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम (Recovery programs) संचालित करना। 
        • प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम के अंतर्गत अब तक 22 प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है।
    • IDWH के अंतर्गत उप-योजनाएं:
      • प्रोजेक्ट टाइगर (1973): इसके तहत बाघ के प्राकृतिक पर्यावास वाले 18 राज्यों के कुल 55 टाइगर रिजर्व शामिल हैं। ये रिजर्व देश के 5 भू-परिदृश्यों (Landscapes) में स्थित हैं। 
        • यह प्रोजेक्ट देश में महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट चीता का भी समर्थन करता है।
      • वन्यजीव पर्यावासों का विकास: इस उप-योजना के अंतर्गत प्रोजेक्ट डॉल्फिन और प्रोजेक्ट लायन को भी कार्यान्वित किया गया है।
      • प्रोजेक्ट एलीफेंट (1992): इसमें हाथियों, उनके पर्यावासों और गलियारों की रक्षा करना; मानव-हाथी संघर्ष से जुड़ी समस्याओं का समाधान करना तथा बंदी (कैप्टिव) हाथियों का कल्याण करना शामिल है।
        • इसे हाथी पर्यावास वाले 22 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में कार्यान्वित किया जा रहा है।

    नोट: वित्त वर्ष 2023-24 में प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलीफेंट योजनाओं का आपस में विलय कर दिया गया है। अब इसे “प्रोजेक्ट टाइगर और एलीफेंट” के नाम से जाना जाता है।

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    • Integrated Development of Wildlife Habitats

    आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन की पांचवीं वर्षगांठ मनाई गई {Coalition for Disaster Resilient Infrastructure (CDRI) marks its Fifth Anniversary}

    पांचवीं वर्षगांठ के अवसर पर, आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) ने अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर रेजिलिएंस प्रोग्राम (UIRP) के तहत 2.5 मिलियन डॉलर के फंड की घोषणा की। इस फंड का उपयोग भारत सहित 30 निम्न और मध्यम आय वाले देशों के शहरों को जलवायु परिवर्तन-रोधी बनाने में किया जाएगा।

    CDRI का महत्त्व

    • वित्त-पोषण: यह CDRI के उद्देश्यों को प्रभावी तरीके से लागू करने हेतु वित्त-पोषण और समन्वय के लिए एक वैश्विक तंत्र प्रदान करता है। 
    • तकनीकी सहायता और क्षमता निर्माण: यह आपदा से निपटने और आपदा के बाद पुनर्बहाली हेतु सहायता प्रदान करता है; नवाचार का समर्थन करता है आदि।

    CDRI द्वारा शुरू की गई पहलें

    • इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर रेजिलिएंट आइलैंड स्टेट्स (IRIS): इसका उद्देश्य लघु द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) में लचीली, संधारणीय और समावेशी अवसंरचना के विकास को बढ़ावा देना है।
    • DRI कनेक्ट प्लेटफॉर्म: यह आपदा-रोधी ज्ञान का आदान-प्रदान करने, एक-दूसरे के उदाहरणों से सीखने और सहयोग करने हेतु प्लेटफॉर्म है। 
    • अंतर्राष्ट्रीय आपदा-रोधी अवसंरचना सम्मेलन (ICDRI): यह आपदा-रोधी चुनौतियों पर चर्चा करने और अच्छी पहलों की पहचान करने के लिए विशेषज्ञों व निर्णयकर्ताओं को एक साथ लाने वाला वार्षिक सम्मेलन है।
    • इंफ्रास्ट्रक्चर रेजिलिएंस एक्सेलेरेटर फंड (IRAF): यह आपदा-रोधी अवसंरचनाओं पर वैश्विक प्रयासों का समर्थन करता है। 
      • इसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNDRR) के समर्थन से स्थापित किया गया है। 
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