वित्तीयकरण (Financialisation) | Current Affairs | Vision IAS
मेनू
होम

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के लिए प्रासंगिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास पर समय-समय पर तैयार किए गए लेख और अपडेट।

त्वरित लिंक

High-quality MCQs and Mains Answer Writing to sharpen skills and reinforce learning every day.

महत्वपूर्ण यूपीएससी विषयों पर डीप डाइव, मास्टर क्लासेस आदि जैसी पहलों के तहत व्याख्यात्मक और विषयगत अवधारणा-निर्माण वीडियो देखें।

करंट अफेयर्स कार्यक्रम

यूपीएससी की तैयारी के लिए हमारे सभी प्रमुख, आधार और उन्नत पाठ्यक्रमों का एक व्यापक अवलोकन।

ESC

संक्षिप्त समाचार

01 Jan 2025
11 min

मुख्य आर्थिक सलाहकार के अनुसार भारत को अति ‘वित्तीयकरण’ (Financialisation) के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है 

  • वित्तीयकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके तहत वित्तीय बाजार, वित्तीय संस्थान और वित्तीय अभिजात वर्ग का आर्थिक नीतियों एवं आर्थिक परिणामों पर अधिक प्रभाव स्थापित हो जाता है।
  • इस प्रकार, वित्तीय मध्यवर्ती और प्रौद्योगिकियां हमारे दैनिक जीवन पर काफी प्रभाव डालने लगते हैं।
  • इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि पारंपरिक रूप से, ‘भौतिक परिसंपत्तियों’ (जैसे रियल एस्टेट, स्वर्ण आदि) की बजाय ‘वित्तीय परिसंपत्तियों’ (जैसे म्यूचुअल फंड) में निवेश किया जाने लगा है।

वित्तीयकरण को बढ़ावा देने वाले कारक

खर्च करने की बढ़ती क्षमता के साथ मध्यम वर्ग का उदय।

लोगों में मुद्रास्फीति के कारण फिक्स्ड डिपॉजिट की तुलना में अन्य विकल्पों से अधिक रिटर्न हासिल करने की इच्छा।

सरकार द्वारा फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स को दिए जा रहे प्रोत्साहन। 

डिजिटलीकरण और वित्तीय समावेशन का बढ़ता स्तर।

अति वित्तीयकरण एक चिंता का विषय क्यों है?

  • असमानता में वृद्धि: वित्तीय आय का एक बड़ा हिस्सा (जैसे कि स्टॉक और अन्य निवेशों से होने वाला लाभ) सबसे अधिक इक्विटी स्वामित्व वाले धनी व्यक्तियों को मिलता है। ये धनी व्यक्ति आबादी का शीर्ष 1% हैं। 
  • अर्थव्यवस्था की कार्यप्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव: ऐसा इस कारण, क्योंकि वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार की बजाय वित्तीय निवेश से अधिक लाभ होने लगता है।
    • इस प्रकार, अर्थव्यवस्था पर शेयर बाजार का अधिक प्रभाव स्थापित हो जाता है और रोजगार सृजन या जीवन स्तर में वृद्धि की अनदेखी होने लगती है।
  • आम लोगों द्वारा ऋण लेने में वृद्धि: वास्तविक आय में ठहराव के चलते आम लोगों की ऋण पर निर्भरता बढ़ सकती है (जैसा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में देखा गया है)।
  • नीतियों पर प्रतिकूल प्रभाव: वित्तीयकरण से प्रीडेटरी लेंडिंग, अधिक जोखिम लेने और श्रमिक संरक्षण की उपेक्षा करने वाली नीतियों को बढ़ावा मिल सकता है।

विकासशील देशों को अक्सर तब कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जब उनके वित्तीय बाजार बहुत तेजी से बढ़ते हैं या जटिल नवाचार को बाजार में ले कर आते हैं, जबकि इसे संभालने के लिए उस देश की अर्थव्यवस्था उतनी मजबूत नहीं होती है। इससे गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जैसे कि 1997-98 का एशियाई वित्तीय संकट। इस कारण भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके वित्तीय बाजार सावधानीपूर्वक, स्थिर और सुव्यवस्थित तरीके से विकसित हों, ताकि अर्थव्यवस्था इसके साथ तालमेल बिठा सके और बड़े संकटों से बचा जा सके।

यह तथ्य प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) ने “भारत के खाद्य उपभोग में परिवर्तन और नीतिगत निहितार्थ: घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-23 और 2011-12 का एक व्यापक विश्लेषण” शीर्षक वाले एक वर्किंग पेपर में उजागर किया है। 

वर्किंग पेपर के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र: 

  • क्षेत्रीय भिन्नताएं: पूरे देश में घरेलू (पारिवारिक) व्यय में वृद्धि हुई है। हालांकि, इस व्यय की सीमा राज्य और क्षेत्र के अनुसार भिन्न-भिन्न है। उदाहरण के लिए- 2011-12 और 2022-23 के बीच पश्चिम बंगाल में 151% और तमिलनाडु में 214% की वृद्धि देखी गई थी।
  • ग्रामीण बनाम शहरी क्षेत्र में व्यय: ग्रामीण परिवारों द्वारा उपभोग व्यय में वृद्धि (164%) शहरी परिवारों (146%) की तुलना में अधिक थी।
  • पोषक तत्व और आहार विविधता: अनाज आधारित खाद्य उपभोग से ऐसे आहार की ओर बदलाव हुआ है जिसमें फल, दूध व दूध संबंधी उत्पाद, अंडे, मछली एवं मांस शामिल हैं। 
  • प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ: सभी आय समूहों में रेडी-टू-ईट और पैकेज्ड प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर घरेलू खर्च में वृद्धि हुई है। हालांकि, यह शीर्ष 20% परिवारों में सबसे अधिक है और शहरी क्षेत्रों में काफी अधिक प्रचलित है।

बदलते उपभोग पैटर्न के कारण नीतिगत निहितार्थ

  • सरकार को विविध खाद्य पदार्थों (मुख्य रूप से फलों, सब्जियों और पशु-स्रोत आधारित खाद्य पदार्थों आदि) के उत्पादन को बढ़ावा देने वाली नीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • अलग-अलग क्षेत्रों में सूक्ष्म पोषक तत्वों के सेवन में भिन्नता के कारण सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से निपटने वाली नीति को अच्छी तरह से लक्षित किया जाना चाहिए।
  • कृषि संबंधी नीतियों में अनाज के अलावा अन्य खाद्य पदार्थों पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि अनाज की खपत कम हो रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसे समर्थनकारी उपाय, जो अनाज संबंधी फसलों को लक्षित करते हैं, किसानों को केवल सीमित लाभ प्रदान करेंगे। 

भास्कर पहल एक महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करेगी। इसे स्टार्ट-अप्स व निवेशकों सहित उद्यमशीलता इकोसिस्टम के भीतर प्रमुख हितधारकों के बीच सहयोग को केंद्रीकृत, सुव्यवस्थित और बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। भास्कर पहल वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की पहल है। 

  • इसका प्राथमिक लक्ष्य स्टार्ट-अप इकोसिस्टम के तहत हितधारकों के लिए विश्व की सबसे बड़ी डिजिटल रजिस्ट्री बनाना है। 
  • यह पहल स्टार्ट-अप इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत संचालित की जाएगी। 
    • स्टार्ट-अप इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य देश में नवाचार को बढ़ावा देने और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए एक मजबूत इकोसिस्टम का निर्माण करना है।

भास्कर की मुख्य विशेषताओं पर एक नज़र

  • नेटवर्किंग और सहयोग: भास्कर प्लेटफॉर्म स्टार्ट-अप्स, निवेशकों, सलाहकारों और अन्य हितधारकों के बीच के अंतराल को समाप्त करेगा। इससे अलग-अलग क्षेत्रकों में समेकित अंतर्क्रिया संभव हो सकेगी।
  • संसाधनों तक केंद्रीकृत पहुंच: भास्कर स्टार्ट-अप्स को महत्वपूर्ण उपकरणों और ज्ञान तक तत्काल पहुंच प्रदान करेगा। इससे तेजी से निर्णय लेने और अधिक कुशल स्केलिंग में सहायता मिलेगी।
  • व्यक्तिगत पहचान बनाना: प्रत्येक हितधारक को विशिष्ट भास्कर आई.डी. दी जाएगी। इससे प्लेटफॉर्म पर व्यक्तिगत अंतर्क्रिया और अनुरूप अनुभव सुनिश्चित होंगे।
  • खोज क्षमता को बढ़ाना: शक्तिशाली खोज सुविधाओं के माध्यम से यूजर आसानी से प्रासंगिक संसाधनों, सहयोगियों और अवसरों का पता लगा सकते हैं। इससे तेजी से निर्णय निर्माण और कार्रवाई सुनिश्चित की जा सकेगी। 
  • भारत के ग्लोबल ब्रांड का समर्थन: यह नवाचार हब के रूप में भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को बढ़ावा देगा। इससे स्टार्ट-अप्स और निवेशकों के लिए सीमा-पार सहयोग अधिक सुलभ हो जाएगा।

भारत का स्टार्ट-अप इकोसिस्टम

  • भारत में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम है। यहां 1,46,000 से अधिक DPIIT-मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप्स हैं।
  • भारत में उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) किसी व्यवसाय को एक स्टार्ट-अप के रूप में मान्यता देता है।

RBI ने “प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रक को ऋण (PSL): भारत का अनुभव” शीर्षक से एक स्टडी रिपोर्ट जारी किया है।

PSL को 1972 में औपचारिक रूप दिया गया था, ताकि ऐसे क्षेत्रकों को ऋण प्राप्ति की सुविधा मिल सके, जो ऋण लेने के लिए पात्र तो हैं, लेकिन औपचारिक वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त करने में असमर्थ हैं।

अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र

  • बेहतर परिसंपत्ति गुणवत्ता: PSL परिसंपत्ति गुणवत्ता के प्रति उत्तरदायी है। PSL में उच्च वृद्धि से समग्र बैंक परिसंपत्ति गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है।
  • विशिष्ट PSL सेगमेंट्स में बैंक ऋण में बढ़ोतरी: प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रक को ऋण प्रमाण-पत्र (PSLC) की शुरुआत के बाद से, समग्र बैंक ऋण में PSL की हिस्सेदारी बढ़ी है। इससे कुछ बैंक विशिष्ट PSL सेगमेंट्स में विशेषज्ञता हासिल करने में सक्षम हुए हैं।
  • PSL संबंधी लक्ष्य प्राप्त करना: अलग-अलग अवधियों और बैंक श्रेणियों में प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रक को दिया जाने वाला ऋण लगातार 40% से अधिक रहा है, जो अलग-अलग बैंकों की रणनीतियों से प्रभावित है।
    • सार्वजनिक क्षेत्रक के बैंकों (PSBs) ने अक्सर अपने 18% कृषि ऋण लक्ष्य को पूरा किया है।

प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रक को ऋण (PSL) के बारे में

  • उद्देश्य: समाज के कमजोर वर्गों और अविकसित क्षेत्रों की ऋण तक पहुंच सुनिश्चित करना।
  • PSL लक्ष्य: बैंकों को अपने समायोजित निवल बैंक ऋण (ANBC) या ऑफ-बैलेंस शीट एक्सपोजर के ऋण के समान राशि (CEOBE) का एक हिस्सा (जो भी अधिक हो) PSL के लिए अनिवार्य रूप से आवंटित करना होगा।
    • अनिवार्य लक्ष्य अलग-अलग बैंकों के लिए अलग-अलग है। यह अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और 20 या अधिक शाखाओं वाले विदेशी बैंकों के लिए 40% है, जबकि क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा लघु वित्त बैंकों के लिए यह 75% है।
    • शहरी सहकारी बैंकों को वित्त वर्ष 2024-25 में PSL सेगमेंट में 65% ऋण आवंटित करना होगा, लेकिन वित्त वर्ष 2025-26 में इसे बढ़ाकर 75% करना होगा।

यूनिफाइड लेंडिंग इंटरफ़ेस (ULI) के बारे में

  • यह एक टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म होगा, जो बाधारहित ऋण उपलब्ध कराएगा। 
  • इससे ऋणदाताओं के लिए विविध डेटा सेवा प्रदाताओं से डिजिटल सूचना का निर्बाध और सहमति-आधारित प्रवाह सुगम हो जाएगा। इन सूचनाओं में अलग-अलग राज्यों के भूमि अभिलेख (land records) भी शामिल हैं। 
  • इसमें कॉमन एंड स्टैंडर्डाइज्ड एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस होगा, जिसे 'प्लग एंड प्ले' एप्रोच के लिए डिज़ाइन किया गया है।

ULI के लाभ

  • यह ऋण लेने वालों को व्यापक दस्तावेजीकरण की आवश्यकता के बिना ऋण के निर्बाध वितरण और त्वरित समय-सीमा का लाभ प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा।
  • यह कृषि और MSME क्षेत्रकों के लिए ऋण की समस्या का समाधान करेगा।

केंद्र सरकार ने कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत NaBFID को  सार्वजनिक वित्तीय संस्थान (PFI) के रूप में अधिसूचित किया है।

  • केवल उन संस्थानों को PFI के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है, जो किसी केंद्रीय या राज्य अधिनियम के तहत स्थापित हों या जिनकी कम-से-कम 51% पेड-अप कैपिटल केंद्र या राज्य सरकार के पास हो। 

राष्ट्रीय अवसंरचना वित्त-पोषण और विकास बैंक (NaBFID) के बारे में

  • इसकी स्थापना 2021 में ‘राष्ट्रीय अवसंरचना वित्त-पोषण और विकास बैंक अधिनियम, 2021 द्वारा की गई थी। इसे अवसंरचना पर केंद्रित विकास वित्तीय संस्थान (DFI) के रूप में स्थापित किया गया है। 
  • इसकी स्थापना भारत में दीर्घकालिक नॉन-रिकोर्स अवसंरचना वित्त-पोषण के विकास का समर्थन करने के लिए की गई है, जिसमें बॉण्ड और डेरिवेटिव बाजारों का विकास भी शामिल है। 

हाल ही में, नियमों में बदलाव के बाद भारत का पहला अतिरिक्त टियर-I (AT-1) परपेचुअल बॉण्ड जारी किया गया। नियमों में बदलाव परपेचुअल बॉण्ड को अधिक आकर्षक बनाने के लिए किए गए थे।

परपेचुअल बॉण्ड्स के बारे में

  • ये धन जुटाने के साधन हैं। सामान्य बॉण्ड्स के विपरीत इनकी कोई परिपक्वता अवधि नहीं होती है।
  • यह अपने धारकों को नियमित रूप से ब्याज या कूपन का भुगतान करता रहता है। ऐसे बॉण्ड की कोई निश्चित समाप्ति तिथि नहीं होती है।
  • इसमें बॉण्डधारक द्वितीयक बाजार में बॉण्ड बेचकर या जब जारीकर्ता बॉण्ड को भुनाने का निर्णय लेता है, तब अपना मूलधन वापस प्राप्त कर सकते हैं। 
  • इन बॉण्डस के जारीकर्ताओं को तब तक ऋण चुकाने की आवश्यकता नहीं होती है, जब तक वे बॉण्ड धारकों को देय ब्याज (कूपन) का भुगतान करते रहते हैं।

केंद्र ने घरेलू स्तर पर उत्पादित कच्चे तेल पर विंडफॉल टैक्स को कम कर दिया है। 

विंडफॉल टैक्स के बारे में

  • विंडफॉल टैक्स सरकारों द्वारा कुछ ऐसे उद्योगों पर लगाया जाने वाला कर है, जो अनुकूल आर्थिक परिस्थितियों के कारण औसत से काफी अधिक लाभ कमाते हैं। 
  • इसका उद्देश्य अतिरिक्त लाभ को एक क्षेत्र में पुनर्वितरित करके व्यापक सामाजिक कल्याण के लिए धन जुटाना है। 
  • सरकारें यह तर्क देकर कर को उचित ठहराती हैं कि ये लाभ केवल कर देने वाले निकाय के प्रयासों के कारण ही नहीं, बल्कि बाहरी कारकों के कारण भी प्राप्त हुए हैं। 

हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘कृषि अवसंरचना कोष (AIF)’ के तहत वित्त-पोषण की सुविधा वाली केंद्रीय क्षेत्रक योजना में प्रगतिशील विस्तार को मंजूरी दी है। इस विस्तार का उद्देश्य इस योजना को और अधिक आकर्षक, प्रभावशाली और समावेशी बनाना है।

कृषि अवसंरचना कोष (AIF) के हालिया विस्तार के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र

  • व्यवहार्य कृषि परिसंपत्तियां: AIF योजना के सभी पात्र लाभार्थियों को  ‘सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए व्यवहार्य परियोजना’ के तहत शामिल अवसंरचनाओं के निर्माण की अनुमति दी गई है।
  • एकीकृत प्रसंस्करण परियोजनाएं: कृषि अवसंरचना कोष के तहत पात्र गतिविधियों की सूची में एकीकृत प्राथमिक और द्वितीयक प्रसंस्करण परियोजनाओं को शामिल किया गया है। 
  • प्रधान मंत्री कुसुम घटक-A: किसानों, कृषक समूहों, किसान उत्पादक संगठनों, सहकारी समितियों और पंचायतों के मामलों में पीएम-कुसुम योजना के घटक-A को कृषि अवसंरचना कोष में शामिल करने की अनुमति दी गई है।
  • अब एनएबीसंरक्षण (NABSanrakshan) द्वारा भी किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के कृषि अवसंरचना कोष ऋण को गारंटी कवरेज प्रदान करने की मंजूरी दी गई है। ज्ञातव्य है कि इस ऋण को सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (CGTMSE) की गारंटी प्राप्त है। 
    • NABSanrakshan, नाबार्ड (NABARD) की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है। 

कृषि अवसंरचना कोष (AIF) के बारे में 

  • इसके तहत फसल कटाई के बाद फसलों के प्रबंधन हेतु अवसंरचना निर्माण और सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के निर्माण हेतु व्यवहार्य परियोजनाओं में निवेश के लिए मध्यम से दीर्घावधि हेतु ऋण दिया जाता है। इस ऋण पर ब्याज छूट और क्रेडिट गारंटी सहायता भी दी जाती है। 
  • इस योजना के तहत बैंक और वित्तीय संस्थान 1 लाख करोड़ रुपये तक का ऋण प्रदान कर सकते हैं। ऋण पर प्रतिवर्ष 3% की ब्याज छूट दी जाती है और CGTMSE के तहत 2 करोड़ रुपये तक के ऋण को क्रेडिट गारंटी कवरेज दिया जाता है।

हाल ही में, केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने SPICED योजना को मंजूरी प्रदान की

SPICED योजना के बारे में 

  • 'निर्यात विकास के लिए प्रगतिशील, अभिनव और सहयोगात्मक हस्तक्षेपों के माध्यम से मसाला क्षेत्र में संधारणीयता' (SPICED) स्पाइस बोर्ड की एक योजना है।
    • उद्देश्य: इलायची की खेती के क्षेत्र का विस्तार करना तथा छोटी व बड़ी इलायची की उत्पादकता बढ़ाना, निर्यात संवर्धन करना, क्षमता निर्माण करना और हितधारकों का कौशल विकास करना आदि।
  • इस योजना के प्रमुख घटक निम्नलिखित है: 
    • इलायची की खेती की उत्पादकता में सुधार करना; 
    • फसल कटाई के बाद गुणवत्ता उन्नयन करना; 
    • बाजार विस्तार के प्रयास करना; 
    • व्यापार के अवसरों को बढ़ावा देना; 
    • नवीन प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना; 
    • अनुसंधान और क्षमता निर्माण गतिविधियों को बढ़ावा देना; तथा 
    • हितधारकों के कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
  • योजना का कार्यान्वयन 15वें वित्त आयोग की शेष अवधि (2023-24 से 2025-26 तक) के लिए किया जाएगा।

इलायची के बारे में

  • इलायची की व्यावसायिक खेती इसके ड्राई फ्रूट्स (कैप्सूल्स) के लिए की जाती है।
  • छोटी इलायची के बारे में:
    • स्थानिक: यह दक्षिण भारत के पश्चिमी घाट के सदाबहार वनों की स्थानिक प्रजाति है। 
  • छोटी इलायची के प्रमुख उत्पादक: केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु।
  • छोटी इलायची के लिए अनुकूल दशाएं:
    • घने छायादार क्षेत्र;
    • अम्लीय वनीय दोमट मृदा;
    • ऊंचाई: 600 से 1200 मीटर की ऊंचाई पर;
    • पर्याप्त जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए आदि। 
  • बड़ी इलायची
    • वितरण: पूर्वोत्तर भारत, नेपाल और भूटान के उप-हिमालयी क्षेत्र।
    • बड़ी इलायची के लिए अनुकूल दशाएं: इसकी खेती के लिए लगभग 200 दिनों में 3000-3500 मि.मी. औसत वर्षा उपयुक्त होती है।
      • तापमान 6-30 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए।

हाल ही में, दूसरा एशिया-प्रशांत मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (APMC) संपन्न हुआ। इस सम्मेलन की समाप्ति पर दिल्ली घोषणा-पत्र को सर्वसम्मति से अपनाया गया।  

  • ज्ञातव्य है कि APMC अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन संगठन (ICAO) की 80वीं वर्षगांठ भी मना रहा है। APMC का आयोजन भारत के नागर विमानन मंत्रालय और ICAO द्वारा किया गया था।

दिल्ली घोषणा-पत्र के अंतर्गत प्रमुख प्रतिबद्धताएं: 

  • नागर विमानन पर एशिया और प्रशांत मंत्रिस्तरीय घोषणा-पत्र की पुष्टि (बीजिंग): राज्य सुरक्षा कार्यक्रम और एशिया/ प्रशांत निर्बाध वायु नेविगेशन सेवा योजना के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाना। 
  • विमानन सुरक्षा एवं संरक्षा: वैश्विक विमानन सुरक्षा योजना के आकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करना। 
  • लैंगिक समानता: लैंगिक समानता को हासिल करने के लिए आवश्यक उपाय करना।
  • विमानन पर्यावरण संरक्षण: विमानन के उत्सर्जन और अन्य पर्यावरणीय प्रभावों को कम करना। 
  • अंतर्राष्ट्रीय वायु कानून संधियों का अनुसमर्थन: अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन अभिसमय में संशोधनों का अनुसमर्थन करने के लिए एशिया और प्रशांत क्षेत्र के देशों को प्रोत्साहित करना।  

भारत में नागर विमानन क्षेत्रक

  • भारत विश्व में सबसे तेजी से बढ़ता विमानन बाजार है और वर्तमान में डोमेस्टिक सेगमेंट में तीसरा सबसे बड़ा बाजार है। 
    • भारत में विमानों की संख्या 800 से अधिक है तथा हवाई अड्डों की संख्या तेजी से बढ़कर 157 हो गई है। 
  • लैंगिक समानता: भारत में 15% पायलट महिलाएं हैं, जबकि वैश्विक औसत 5% है। 
  • विमानन क्षेत्र के लिए योजनाएं: क्षेत्रीय संपर्क योजना (RCS)- उड़े देश का आम नागरिक (उड़ान/ UDAN), डिजी यात्रा, कार्बन न्यूट्रैलिटी को प्राथमिकता देने हेतु ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा नीति, 2008 आदि।

Explore Related Content

Discover more articles, videos, and terms related to this topic

Title is required. Maximum 500 characters.

Search Notes

Filter Notes

Loading your notes...
Searching your notes...
Loading more notes...
You've reached the end of your notes

No notes yet

Create your first note to get started.

No notes found

Try adjusting your search criteria or clear the search.

Saving...
Saved

Please select a subject.

Referenced Articles

linked

No references added yet

Subscribe for Premium Features