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भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Bharatiya Antariksh Station: BAS)

01 Jan 2025
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों? 

हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गगनयान प्रोग्राम का दायरा बढ़ाते हुए भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की पहली इकाई के निर्माण को मंजूरी दे दी है। 

अन्य संबंधित तथ्य:

  • संशोधित गगनयान प्रोग्राम में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • दिसंबर, 2028 तक BAS-1 मॉड्यूल का विकास करना और BAS के लिए विविध प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन एवं सत्यापन हेतु चार मिशन।
    • गगनयान प्रोग्राम के तहत चार मिशन को 2026 तक पूरा करना। 
  • संशोधित प्रोग्राम के तहत गगनयान प्रोग्राम के लिए कुल वित्तीय सहायता को 12,000 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 20,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। 

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) के बारे में 

  • BAS वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए भारत द्वारा पृथ्वी की सतह से लगभग 400-450 कि.मी. ऊपर की कक्षा में स्थापित अंतरिक्ष स्टेशन होगा। 
    • इसमें पांच मॉड्यूल होंगे और इसका निर्माण चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा।
  • लक्ष्य: पहला मॉड्यूल (बेस मॉड्यूल) 2028 में लॉन्च किया जाएगा और BAS को 2035 तक संचालन में लाया जाएगा।
  • वर्तमान स्थिति: BAS वर्तमान में योजना के चरण में है, जिसके अंतर्गत समग्र आर्किटेक्चर, मॉड्यूल की संख्या और प्रकार, डॉकिंग पोर्ट आदि पर अध्ययन किया जा रहालंबी अवधि के मिशनों पर अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित और स्वस्थ रखने के तरीकों का अध्ययन कर है। 

BAS का महत्त्व

  • अंतरिक्ष उड़ान और ह्यूमन-हैबिटेट या मानव निवास स्थल: BAS ने के लिए एक परीक्षण स्थल के रूप में काम करेगा। यह भारत के अन्य दीर्घकालिक अंतरिक्ष लक्ष्यों को भी आगे बढ़ाने में मदद करेगा। 
  • पृथ्वी अवलोकन: अंतरिक्ष स्टेशन दिन और रात, दोनों समय में बेहतर आकाशीय (Spatial) रिज़ॉल्यूशन प्रदान कर सकता है। इससे प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में सहायता मिल सकती है।
  • माइक्रोग्रैविटी आधारित अनुसंधान: उदाहरण के लिए, मांसपेशियां और हड्डियां पृथ्वी की तुलना में अंतरिक्ष में अलग तरह से प्रतिक्रिया करती हैं। इस प्रकार, BAS में नियंत्रित दशाओं में प्रयोगों को तेजी से ट्रैक किया जा सकता है, ताकि मांसपेशी के कमजोर होने और हड्डियों के घनत्व में कमी जैसी स्वास्थ्य स्थितियों का अध्ययन किया जा सके। 
  • नवाचारों को बढ़ावा देना: लघु उद्यमी अंतरिक्ष में अपनी तकनीक का परीक्षण कर सकते हैं। इससे अंतरिक्ष और संबद्ध उद्योगों से संबंधित अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के क्षेत्रक में रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं। 
    • नैसकॉम (NASSCOM) और भारतीय अंतरिक्ष संघ की 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का वर्तमान आकार 546 बिलयन डॉलर है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी केवल 2% है।
      • भारत का लक्ष्य इस हिस्सेदारी को बढ़ाकर 10% करना है।
  • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से उपजे नवाचार (स्पिन-ऑफ): स्पिन-ऑफ उत्पाद अंतरिक्ष क्षेत्रक आधारित ऐसे नवाचार और तकनीक होती हैं जिनका उपयोग अन्य क्षेत्रकों में किया जा सकता है, जैसे कि:
    • पर्यावरण निगरानी के लिए अंतरिक्ष-आधारित डेटा प्रोसेसिंग एल्गोरिदम या, 
    • विकसित किए गए एडवांस्ड मटेरियल का उपयोग एयरोस्पेस, ऑटोमोटिव और कंस्ट्रक्शन के क्षेत्रक में किया जा सकता है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा: अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण करके भारत विश्व के चुनिंदा देशों के समूह में शामिल हो जायेगा, जिससे भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा बढ़ेगी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। 

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन से संबंधित चुनौतियां: 

  • परियोजना के विकास से संबंधित चुनौतियां:
    • अनुसंधान एवं विकास हेतु कम बजटीय आवंटन: भारत में अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर खर्च अपेक्षाकृत काफी कम है, जो कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का मात्र 0.7% है। 
      • वित्तीय बाधाएं परियोजना की गति और दायरे तथा इसके द्वारा किए जाने वाले प्रयोगों को सीमित करती हैं। 
    • नई तकनीक का विकास: भारत ने उपग्रहों के विकास में अपनी क्षमताएं साबित कर दी हैं। हालांकि, अंतरिक्ष स्टेशन के लिए अलग कौशल और प्रणालियों की आवश्यकता होती है। 
      • इसमें लाइफ सपोर्ट सिस्टम, विकिरण से सुरक्षा, संरचनात्मक मजबूती और ऑर्बिटल मेंटेनेंस आदि  शामिल हैं।
    • भू-राजनीतिक मुद्दों का प्रबंधन: अंतरिक्ष स्टेशन न केवल एक वैज्ञानिक प्रयास है, बल्कि एक रणनीतिक परिसंपत्ति भी है। 
      • देश को अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय संघ जैसे अन्य अंतरिक्ष में सक्रिय देशों से संभावित प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा और उनके साथ सहयोग भी बनाना होगा।
  • अंतरिक्ष स्टेशन के संबंध में उत्पन्न होने वाली चुनौतियां:
    • अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य के लिए ख़तरा: सही सुरक्षा उपकरणों और सावधानियों के बिना अंतरिक्ष का वातावरण अंतरिक्ष यात्रियों के लिए जानलेवा हो सकता है। इससे संबंधित सबसे बड़े खतरे हैं: 
      • अंतरिक्ष स्टेशन की बंद और नियंत्रित दशाओं से ऑक्सीजन एवं आवश्यक दबाव में कमी आना
      • सेरेब्रल वेंट्रिकल्स का विस्तार हो सकता है (यह मस्तिष्क के मध्य में रिक्त स्थान होता है जिसमें मस्तिष्कमेरु द्रव होता है जो अचानक बल या झटके के मामले में मस्तिष्क को सुरक्षा प्रदान करके उसकी रक्षा करता है); 
      • गुरुत्वाकर्षण के स्तर में बदलाव; 
      • अलगाव और अकेलेपन से जुड़े मनोवैज्ञानिक प्रभाव। 
    • अंतरिक्ष मलबा: अंतरिक्ष मलबे में वृद्धि से अंतरिक्ष अभियानों के सामने गंभीर चुनौतियां उत्पन्न होती हैं तथा ऐसे में टकराव से बचने के लिए तकनीक को बेहतर करना अनिवार्य हो जाता है।

आगे की राह

  • पर्याप्त वित्त-पोषण सुनिश्चित करना: भारत को अंतरिक्ष कार्यक्रमों में पर्याप्त वित्त-पोषण सुनिश्चित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और निजी क्षेत्रक की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।
  • क्षमता का विकास करना: इसरो के लाइफ सपोर्ट, विकिरण सुरक्षा, संरचनात्मक मजबूती और ऑर्बिटल मेंटेनेंस जैसे घटकों के लिए मौजूदा तकनीकी अवसंरचनाओं  को बेहतर बनाने की आवश्यकता है। 
  • दीर्घावधि तक कार्य करने में सक्षम: भारत को अपने अंतरिक्ष स्टेशन को क्रियाशील बनाये रखने के लिए नियमित तौर पर रखरखाव, पुनः आपूर्ति मिशन और उसे बेहतर बनाने हेतु एक स्पष्ट योजना विकसित करनी होगी।
  • भू-राजनीतिक मुद्दों का प्रबंधन: भारत को अपनी अंतरिक्ष स्टेशन परियोजना को आगे बढ़ाते हुए अपने राष्ट्रीय हितों और अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों में संतुलन बनाना होगा। 
    • भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र से जुड़े कानून एवं व्यवस्था के मौजूदा मानदंडों एवं नियमों का भी पालन करना होगा। 
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: अंतरिक्ष स्टेशन का अनुभव रखने वाले देशों (अमेरिका, रूस) के साथ सहयोग से बहुमूल्य जानकारी मिल सकती है और इससे लागत को भी कम किया जा सकता है। 

अन्य अंतरिक्ष स्टेशन:

  • निष्क्रिय
    • सैल्यूट 1: यह दुनिया का पहला अंतरिक्ष स्टेशन था, जिसे अप्रैल 1971 में सोवियत संघ द्वारा प्रक्षेपित किया गया था।
    • स्काईलैब: यह संयुक्त राज्य अमेरिका का पहला अंतरिक्ष स्टेशन था, जिसे नासा द्वारा 1973 में प्रक्षेपित किया गया था।
  • कार्यशील
    • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS): यह एक विशाल अंतरिक्ष स्टेशन है, जिसे 1998 में स्थापित किया गया था और यह 2000 से कार्यरत है। 
      • इसे पृथ्वी की निम्न भू-कक्षा (LEO) में स्थापित किया गया है। इसका रखरखाव निम्नलिखित पांच अंतरिक्ष एजेंसियों और उनके कांट्रैक्टर्स के सहयोग से किया जाता है:
  • नासा (संयुक्त राज्य अमेरिका), रोस्कोस्मोस (रूस), ESA (यूरोप), JAXA (जापान), और CSA (कनाडा)।
  • चीन: तियांगोंग 1 को 2011 में लॉन्च किया गया, तियांगोंग-2 को 2016 में लॉन्च किया गया था। ये अंतरिक्ष आधारित परीक्षण प्रयोगशालाएं थीं। तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन को 2021 में लॉन्च किया गया था। यह 2022 के अंत से पूरी तरह से संचालन में है।
  • आगामी:
    • गेटवे स्पेस स्टेशन: यह नासा के नेतृत्व वाला गेटवे प्रोग्राम का हिस्सा है। इसके तहत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग  से आर्टेमिस अभियान के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में चंद्रमा की कक्षा में पहला अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित किया जाएगा।
    • एक्सिओम स्टेशन: यह एक वाणिज्यिक अंतरिक्ष स्टेशन है, जिसे एक्सिओम स्पेस द्वारा निम्न भू-कक्षा में संचालित करने के लिए विकसित किया जा रहा है। यह दुनिया का पहला वाणिज्यिक अंतरिक्ष स्टेशन होगा।

 

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