ऑर्गन-ऑन-चिप (OOC) प्रौद्योगिकी {Organ-On-Chip (OOC) Technology} | Current Affairs | Vision IAS
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    ऑर्गन-ऑन-चिप (OOC) प्रौद्योगिकी {Organ-On-Chip (OOC) Technology}

    Posted 01 Jan 2025

    Updated 28 Nov 2025

    1 min read

    सुर्ख़ियों में क्यों?

    ऑर्गन-ऑन-चिप तकनीक BioE3 के पर्सनलाइज्ड मेडिसिन के दायरे को बढ़ावा दे सकती है। ऑर्गन-ऑन-चिप तकनीक का बाजार 2032 तक लगभग 1.4 बिलियन डॉलर के मूल्य तक पहुंचने की उम्मीद है।

    इस संबंध में अन्य नये दृष्टिकोण:

    • ऑर्गेनोइड्स: इन्हें ऊतक, भ्रूण स्टेम कोशिकाओं या इंड्यूस्ड प्लुरिपोटेंट स्टेम कोशिकाओं से नियंत्रित दशाओं में कोशिकाओं को विकसित करके बनाया जाता है। 
    • स्फेरॉइड्स: ऐसा माना जाता है कि ये पारंपरिक द्वि-आयामी (2D) सेल कल्चर्स की तुलना में ट्यूमर के व्यवहार की अधिक प्रभावी ढंग से नकल करते हैं। 
    • बायो प्रिंटिंग: इसे 3D बायो प्रिंटिंग या एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग के नाम से भी जाना जाता है। यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें जीवित ऊतकों और अंगों को बनाने के लिए 3D प्रिंटिंग का उपयोग किया जाता है।

    ऑर्गन-ऑन-चिप (OoC) तकनीक

    • यह मानव-अनुरूप 3D कल्चर मॉडल्स में से एक है, जिसे 'न्यू अप्रोच मेथड्स' (NAMs) भी कहा जाता है। 
      • 3D कल्चर प्रणाली शोधकर्ताओं को एक ही प्रयास में मानव अंगों और बीमारियों की संरचना को पुनः बनाने की सुविधा प्रदान करती है।
        • यह रीजेनरेटिव मेडिसिन, औषधि की खोज करने, प्रिसिजन मेडिसिन, कैंसर संबंधी अनुसंधान और जीन एक्सप्रेशन अध्ययन जैसे अनेक उपयोगों के लिए बहुत आशाजनक मानी जाती है। 
    • OoC एक माइक्रो-स्केल सिस्टम है जिसका उपयोग मानव शरीर की स्थितियों की नकल करने के लिए किया जाता है। इसके तहत शरीर में अनुभव की जाने वाली शारीरिक और यांत्रिक स्थितियों की नकल करने के लिए कोशिकाओं के साथ-साथ माइक्रोफ्लुइडिक्स का उपयोग किया जाता है।
    • इसमें चैनल्स, चैंबर्स और मेंब्रनेस आदि का उपयोग करके पदार्थों और कोशिकाओं की गति एवं व्यवहार को नियंत्रित किया जा सकता है। ऑर्गन-ऑन-ए-चिप का लक्ष्य डिज़ीज़ मॉडलिंग और दवा के परीक्षण के लिए मानव ऊतक मॉडल विकसित करना है। 
    • शोधकर्ताओं ने पहली बार 2010 के एक अध्ययन में ऑर्गन-ऑन-चिप मॉडल की उपयोगिता का ज़िक्र किया था। 

    ऑर्गन-ऑन-ए-चिप डिवाइस के चार प्रमुख घटक हैं: 

    • माइक्रोफ्लुइडिक्स: यह छोटे चैनलों के माध्यम से कोशिकाओं को विशिष्ट स्थानों पर पहुंचाने और संवर्धन प्रक्रिया (कल्चर प्रोसेसेस) के दौरान द्रव प्रवाह को नियंत्रित या प्रबंधित करते हैं।
      • माइक्रोफ्लुइडिक्स की विशेषताएं:
        • छोटा आकार: यह अत्यंत छोटे पैमाने पर काम करता है।
        • एकीकृत: इसे अन्य प्रणालियों के साथ आसानी से जोड़ा जा सकता है।
        • स्वचालित: यह प्रक्रिया स्वतः नियंत्रित होती है, जिससे मानव हस्तक्षेप कम होता है और दक्षता बढ़ती है।
    • जीवित कोशिका उत्तक या लिविंग सेल टिश्यूज़: इस भाग में विशेष प्रकार की कोशिकाओं को सही स्थानों पर व्यवस्थित किया जाता है, ताकि ऊतक के वास्तविक कार्यों की नकल की जा सके।
    • सिम्युलेशन या ड्रग डिलीवरी:  कुछ ऊतकों को वास्तविक स्थितियों का निर्माण करने के लिए विद्युत या रासायनिक उद्दीपन जैसे संकेतकों की आवश्यकता होती है। 
      • इन संकेतों का उपयोग ड्रग डिलीवरी में भी किया जा सकता है।
    • सेंसिंग: डिवाइस में लगे सेंसर्स डेटा को ट्रैक करते और मापते हैं। यह काम या तो डिवाइस में लगे सेंसर्स से होता है या फिर विज़ुअल मॉनिटरिंग सिस्टम से, ताकि चिप के कामकाज का मूल्यांकन किया जा सके।

    ऑर्गन-ऑन-ए-चिप तकनीक कैसे काम करती है?

    • कोशिकाओं को चिप पर रखा जाता है और उन्हें 3D संरचनाओं में विकसित होने दिया जाता है जो मानव शरीर के वास्तविक ऊतक जैसा ही होता है। 
    • यह द्रव के प्रवाह के लिए सूक्ष्म चैनल्स का उपयोग करता है जो रक्त प्रवाह, ऑक्सीजन के परिवहन, पोषक तत्व के परिवहन आदि का अनुकरण करते हैं, ताकि चिप के आकार के डिवाइस पर जैविक अंगों (फेफड़े, हृदय आदि) के लघु मॉडल बनाए जा सकें। 
    • अंगों के अधिक वास्तविक मॉडल बनाने के लिए, अलग-अलग प्रकार की कोशिकाओं को परतों में संयोजित करके एक 3D संरचना बनाई जा सकती है, जो वास्तविक अंगों की जटिलता को बेहतर ढंग से दर्शाती है।

    OoC प्रौद्योगिकी के लाभ:

    • प्रिसिजन मेडिसिन: रोगी के विशेष ऊतक की दशाओं का अनुकरण करके, शोधकर्ता यह परीक्षण कर सकते हैं कि कोई दवा उस व्यक्ति या समूह को कैसे प्रभावित करेगी। इससे उसका अधिक सटीक उपचार करने की योजनाएं बन सकती हैं। 
      • प्रिसिजन मेडिसिन में प्रत्येक व्यक्ति के जीन, वातावरण और जीवनशैली में होने वाली विविधताओं को ध्यान में रखकर इलाज किया जाता है। 
        • पहले इसे पर्सनलाइज्ड मेडिसिन कहा जाता था, लेकिन यह चिंता थी कि "पर्सनलाइज्ड" शब्द से यह गलतफहमी हो सकती है कि हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग उपचार और रोकथाम विकसित की जा रही है।
    • दवा के प्रभाव का परीक्षण: OoC जीवों पर परीक्षण या इन विट्रो सेल कल्चर जैसे पारंपरिक तरीकों की तुलना में अधिक सटीक पूर्वानुमान प्रदान करती है। उदाहरण के लिए, हेपेटाइटिस उपचार के लिए लिवर-ऑन-चिप।
    • सटीक मानव फिजियोलॉजी सिमुलेशन: OoC मॉडल पारंपरिक 2D सेल कल्चर्स की तुलना में मानव अंगों की संरचना और कार्य की अधिक सटीकता से नकल कर सकते हैं।
    • जीवों पर परीक्षण का एक नैतिक विकल्प: चूंकि OoC उपकरण मानव कोशिकाओं और ऊतकों का उपयोग करते हैं, इसलिए ये जीवों पर परीक्षण करने की आवश्यकता को कम कर सकते हैं। 
    • जटिल अंग अंतःक्रिया: OoC प्रणालियां कई ऑर्गन मॉडल्स को एक साथ जोड़ सकती हैं तथा यह अनुकरण कर सकती हैं कि शरीर में अलग-अलग अंग किस प्रकार आपस में अंतःक्रिया करते हैं। 
    • रोग की कार्यप्रणाली पर अनुसंधान: इसके तहत शोधकर्ता इन चिप्स पर मानव अंगों के कार्यों की नकल करके और रोग संबंधी मॉडल बनाकर रोग की प्रगति, कोशिकीय व्यवहार और संभावित चिकित्सीय लक्ष्यों की बेहतर समझ हासिल कर सकते हैं। 
      • कोविड-19 से संबंधित अनुसंधान में, लंग्स-ऑन-चिप प्रणाली का उपयोग यह अध्ययन करने के लिए किया गया है कि SARS-CoV-2 वायरस मानव फेफड़े के ऊतकों को कैसे संक्रमित करता है।

    ऑर्गन ऑन चिप प्रौद्योगिकी से जुड़ी चुनौतियां:

    • तकनीकी जटिलता और मानकीकरण: जटिल अंगों के कार्यों की नकल करना काफी मुश्किल होता है। साथ ही, OoC उपकरणों के निर्माण के लिए सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत प्रोटोकॉल और सामग्रियों की कमी भी है।
    • बहु-अंग प्रणालियों का एकीकरण: अलग-अलग अंग प्रणालियों का सटीक अनुकरण करना तथा उनके बीच वास्तविक अंतःक्रिया को सुनिश्चित करना तकनीकी रूप से काफी कठिन है। 
    • नैतिक और कानूनी मुद्दे: इसमें विशेष रूप से डेटा की निजता, बौद्धिक संपदा और रोगी की कोशिकाओं के उपयोग से संबंधित नैतिक और कानूनी मुद्दे आदि शामिल हैं।
    • अन्य चुनौतियां: इसमें विनियामकीय फ्रेमवर्क का अभाव, सीमित इम्यून सिस्टम मॉडलिंग, उच्च लागत आदि शामिल हैं। 

    प्रिसिजन मेडिसिन और ऑर्गन ऑन चिप प्रौद्योगिकी के विकास के लिए उठाए गए कदम:

    भारत में:

    • BioE3 नीति: इसका उद्देश्य मुख्य रूप से प्रिसिजन थेरेप्यूटिक्स पर फोकस करते हुए जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्रक में नवाचार को बढ़ावा देना है।
    • न्यू ड्रग्स और क्लिनिकल ट्रायल्स नियम 2019 में संशोधन: यह संशोधन नई औषधियों का मूल्यांकन करते समय जीवों पर परीक्षण करने से पहले और उसके साथ ह्यूमन-ऑर्गन-ऑन-चिप एवं अन्य NAMs (नॉन-एनिमल मेथड्स) के उपयोग की अनुमति देता है।
    • जीनोम इंडिया परियोजना (GIP): यह भारतीय आबादी के आनुवंशिक मैप को तैयार करने के लिए सरकार द्वारा संचालित पहल है। GIP का उद्देश्य रोगियों के जीनोम के आधार पर पर्सनलाइज्ड मेडिसिन विकसित करना है, ताकि रोगों का पूर्वानुमान लगाया जा सके और उन्हें नियंत्रित किया जा सके। 
    • फेनोम इंडिया परियोजना: इसे CSIR द्वारा प्रिसिजन मेडिसिन को आगे बढ़ाने के लिए भारतीय आबादी के अनुरूप एक व्यापक फेनोम डेटाबेस तैयार करने के लिए शुरू किया गया है। 
    • भारतीय कैंसर जीनोम एटलस (ICGA): ICGA का मिशन भारत के मामले में कैंसर डेटा का डेटाबेस तैयार करना है, जिससे शोधकर्ताओं और चिकित्सकों को पर्सनलाइज्ड कैंसर उपचार विकसित करने में मदद मिल सके। 

    वैश्विक स्तर पर:

    • FDA मॉडर्नाइजेशन एक्ट 2.0: इसे 2022 में USA द्वारा पारित किया गया था। इसने शोधकर्ताओं को विकास के प्रीक्लिनिकल चरणों में दवा परीक्षण के विकल्प के रूप में ऑर्गन-ऑन-चिप्स का उपयोग करने की अनुमति दी।
    • अंतर्राष्ट्रीय दवा कंपनियां: दवा निर्माता कंपनी बायर, अन्य कंपनी टिश्यू के साथ मिलकर लिवर और मल्टी-ऑर्गन-ऑन-चिप मॉडल विकसित कर रही है। 

    निष्कर्ष

    ऑर्गन-ऑन-चिप तकनीक दवा की खोज, रोग अनुसंधान और पर्सनलाइज्ड मेडिसिन को आगे बढ़ाने के लिए बहुत आशाजनक है, लेकिन इसे व्यापक रूप से अपनाने से पहले कई चुनौतियों को दूर करना होगा। निरंतर निवेश और नवाचार के साथ, ऑर्गन-ऑन-चिप सिस्टम भविष्य के स्वास्थ्य देखभाल हेतु समाधानों में क्रांति ला सकते हैं।

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