मानव-वन्यजीव संघर्ष (Human-Wildlife Conflict) | Current Affairs | Vision IAS
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    मानव-वन्यजीव संघर्ष (Human-Wildlife Conflict)

    Posted 01 Jan 2025

    Updated 28 Nov 2025

    1 min read

    सुर्ख़ियों में क्यों? 

    हाल ही में, उत्तर प्रदेश के कुछ गांवों में भेड़ियों के हमलों के चलते मानव-वन्यजीव संघर्ष (HWC) का मुद्दा चर्चा का विषय बन गया है। 

    मानव-वन्यजीव संघर्ष के बारे में

    • यह संघर्ष तब उत्पन्न होता है जब वन्यजीवों की उपस्थिति या उनका व्यवहार मानव हितों के लिए खतरा पैदा करता है, जिससे लोगों या वन्यजीवों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 
    • ये घटनाएं आमतौर पर उन क्षेत्रों में घटित होती हैं, जहां वन्यजीव और मानव आबादी वाले क्षेत्रों के बीच काफी निकटता होती है।
    • मानव-वन्यजीव संघर्ष का प्रबंधन संबंधित राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। 
      • हाल ही में, केरल ने भी मानव-वन्यजीव संघर्ष को राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित किया है। इस घोषणा के परिणामस्वरूप मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन की जिम्मेदारी राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की हो गई।

    मानव वन्यजीव संघर्ष का प्रभाव 

    • वन्यजीवों पर प्रभाव: यह कई स्थलीय और समुद्री प्रजातियों के अस्तित्व को खतरे में डालता है, क्योंकि प्रतिशोध या खतरे की आशंका के चलते वन्यजीवों की हत्याओं से प्रजातियाँ विलुप्त हो सकती हैं। 
    • पारिस्थितिक तंत्रों पर प्रभाव: इससे फसलों और पशुधन को नुकसान पहुंच सकता है, जिससे शिकारी-शिकार का संतुलन और भी बिगड़ सकता है।
    • सामाजिक गतिशीलता पर प्रभाव: यह हितधारकों के बीच मतभेद को बढ़ावा दे सकता है, क्योंकि किसान वन्य प्रजातियों के संरक्षण के लिए सरकार को दोषी ठहराते हैं। वहीं, दूसरी ओर संरक्षणवादी किसानों और उद्योगों पर वन्यजीवों के आवासों को नष्ट करने का आरोप लगाते हैं।  
    • स्थानीय समुदायों पर प्रभाव: इससे होने वाली जान-माल, मवेशियों, फसलों और संपत्ति की हानि का सबसे अधिक असर गरीब, कमजोर और हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर पड़ता है। 
    • वस्तु उत्पादन पर प्रभाव: यह कृषि उत्पादों से संबंधित व्यवसायों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, जिससे उनकी उत्पादकता और लाभप्रदता में कमी आती है।
    • अन्य प्रभाव: इससे आजीविका की असुरक्षा; खाद्य असुरक्षा; वन्यजीवों के स्थानांतरण आदि को बढ़ावा मिलता है। 

    मानव वन्यजीव संघर्ष के समाधान के लिए उठाए गए कदम 

    • संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क का गठन: इसमें वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत पूरे देश में राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, संरक्षण रिजर्व और सामुदायिक रिजर्व स्थापित किए गए हैं, ताकि वन्यजीवों और उनके पर्यावासों का संरक्षण किया जा सके। 
    • विशिष्ट प्रजातियों के संरक्षण हेतु दिशा-निर्देश: ये पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी किए गए हैं। इसमें हाथी, गौर, तेंदुआ, मगरमच्छ जैसी 10 प्रजातियां शामिल हैं।
    • केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत संरक्षण: इसके तहत 'वन्यजीव पर्यावासों का विकास (Development of Wildlife Habitats), 'प्रोजेक्ट टाइगर' और 'प्रोजेक्ट एलीफेंट' जैसी योजनाओं के लिए राज्य/ केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। 
    • राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (NWAP) 2017-2035: इसमें मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन पर एक समर्पित अध्याय को शामिल किया गया है। 
    • राष्ट्रीय मानव-वन्यजीव संघर्ष शमन रणनीति और कार्य योजना (2021-26): यह सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व और मनुष्यों एवं वन्यजीवों की समग्र भलाई को सुनिश्चित करती है। 

    मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने की दिशा में आगे की राह 

    • संघर्ष से सह-अस्तित्व की ओर ध्यान केंद्रित करना: इसमें मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन के लिए समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण को बढ़ावा देना शामिल है। 
      • उदाहरण के लिए, भारत का वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 राज्यों के मुख्य वन्यजीव वार्डनों को यह अधिकार प्रदान करता है कि वे राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के भीतर एवं बाहर मनुष्यों तथा वन्यजीवों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठा सकें। 
    • मानव-वन्यजीव संघर्ष को समझना: मानव-वन्यजीव संघर्ष के संदर्भ को समझने, हॉटस्पॉट की मैपिंग, स्थानिक और समयगत विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए पर्याप्त अनुसंधान किया जाना चाहिए।
    • अवरोधों का निर्माण करना: इसके तहत मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए कांटेदार तार की बाड़, सौर ऊर्जा से चलने वाली बिजली की बाड़, बायोफेन्स जैसी भौतिक बाधाओं का निर्माण किया जाना चाहिए। 
    • नीतिगत फ्रेमवर्क को सक्षम बनाना: प्रभावी मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन योजनाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय कानूनों और सम्मेलनों में उपयुक्त सिद्धांत, प्रोटोकॉल और प्रावधानों को शामिल किया जाना चाहिए।  
      • उदाहरण के लिए: WWF ने सतत विकास लक्ष्यों के तहत या संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता अभिसमय के तहत मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन योजना को शामिल करने का सुझाव दिया है। 
    • समुदाय की भूमिका को बढ़ावा देना: इसके लिए समुदाय-आधारित स्वयंसेवकों या मौजूदा 'वन्यजीव मित्रों' जैसी त्वरित कार्रवाई करने वाली टीमों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। 

    भेड़िया (कैनिस ल्यूपस/ Canis lupus) के बारे में

    • गति: ये 45 कि.मी./ घंटा तक की तेज गति से दौड़ सकते हैं।
    • प्राकृतिक शिकारी: ये मुख्य रूप से कृंतक, खरगोश और मवेशियों का शिकार करते हैं।
    • अत्यधिक सामाजिक: ये 6 से 8 तक के झुंड में रहते हैं और इन्हें लगभग 180-200 वर्ग किलोमीटर के पर्यावास क्षेत्र की आवश्यकता होती है।
    • समूह की व्यवस्था: यह आमतौर पर आजीवन एकल साथी (Monogamous) के साथ रहता है। समूह में नर भेड़िये का प्रभुत्व होता है।
    • संचार: ये अलग-अलग आवाजें निकालकर और गंध छोड़कर आपस में संचार करते हैं। 

    भारत में भेड़िये की दो प्रजातियां पाई जाती हैं: ग्रे वुल्फ और हिमालयन वुल्फ।

    ग्रे वुल्फ या भारतीय भेड़िया (कैनिस ल्यूपस पैलिप्स)

    • पर्यावास: ये कांटेदार वन, झाड़ीदार वन, शुष्क और अर्ध-शुष्क घास के मैदान, अर्ध-शुष्क भारत के कृषि-पशुपालन क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
      • इनमें से अधिकांश वन्यजीव संरक्षित क्षेत्रों के बाहर, आबादी वाले क्षेत्रों के निकट रहते हुए अपना जीवन बिताते हैं।
    • संरक्षण की स्थिति
      • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची I
      • IUCN: लिस्ट कंसर्न 

    हिमालयन वुल्फ या तिब्बती भेड़िया (कैनिस ल्यूपस चान्को)

    • पर्यावास: ये हिमाचल प्रदेश, जम्मू, कश्मीर, उत्तराखंड और सिक्किम सहित अपर-ट्रांस हिमालयी क्षेत्र की बंजर भूमि में पाए जाते हैं। 
    • संरक्षण स्थिति
      • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची I
      • IUCN: वल्नरेबल 

     

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    • Himalayan Wolf
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    • Mitigation Strategy and Action Plan (2021-26)
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