भारत का डेयरी सहकारी क्षेत्रक (India's Dairy Cooperative Sector) | Current Affairs | Vision IAS
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    भारत का डेयरी सहकारी क्षेत्रक (India's Dairy Cooperative Sector)

    Posted 01 Jan 2025

    Updated 28 Nov 2025

    1 min read

    सुर्ख़ियों में क्यों? 

    केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय ने 'श्वेत क्रांति 2.0' के लिए मानक संचालन प्रक्रिया जारी की है। इसका उद्देश्य भारत के डेयरी सहकारी क्षेत्रक में बदलाव लाना है। 

    श्वेत क्रांति 2.0 के मुख्य उद्देश्य

    • डेयरी सहकारी समितियों द्वारा दूध की खरीद में वृद्धि: इसका उद्देश्य अगले पांच वर्षों में दूध की खरीद में 50% की वृद्धि करना है। इससे 2029 तक डेयरी सहकारी समितियों में दूध की खरीद बढ़कर 1,000 लाख किलोग्राम प्रतिदिन तक हो जाने का अनुमान है।
    • महिला कृषकों को सशक्त बनाना: ग्रामीण क्षेत्रों में डेयरी क्षेत्रक में रोजगार सृजन के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाकर तथा कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में उनकी भूमिका को बढ़ाकर उन्हें सशक्त बनाया जाएगा।
    • डेयरी संबंधी अवसंरचनाओं को मजबूत बनाना: श्वेत क्रांति 2.0 के लक्ष्यों को केंद्रीय क्षेत्रक की योजना राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (NPDD) 2.0 के अंतर्गत शामिल कर लिया गया है।
      • NPDD के तहत डेयरी अवसंरचना को मजबूत करने के लिए गांव के स्तर पर दूध खरीद प्रणाली, गुणवत्तापूर्ण दूध खरीद हेतु मिल्क चिलिंग प्लांट स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। 
    • डेयरी निर्यात को बढ़ावा देना: दूध के परीक्षण के लिए आवश्यक उपकरणों को स्वदेशी स्तर पर विकसित करके, बल्क में दूध की खरीद करके एवं डेयरी संबंधी अवसंरचनाओं के विकास के माध्यम से डेयरी उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा दिया जाएगा।
    • वित्तीय समावेशन: 'सहकारी समितियों के बीच सहयोग' पहल का राष्ट्रव्यापी स्तर पर विस्तार करने की घोषणा भी की गई है। इसे गुजरात में पायलट परियोजना के रूप में सफलतापूर्वक संचालित किया गया है।
      • इस कार्यक्रम के तहत किसानों को रुपे-किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से ब्याज मुक्त नकद ऋण प्रदान कराया जाएगा और डेयरी सहकारी समितियों को माइक्रो-ए.टी.एम. वितरित किए जाएंगे। इससे किसानों के घर तक बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकेंगी।

    श्वेत क्रांति के बारे में

    • देश में 'श्वेत क्रांति' 1970 में ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम के साथ शुरू हुई थी। यह एक डेयरी विकास कार्यक्रम था, जिसे भारत को दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए शुरू किया गया था।
    • ऑपरेशन फ्लड को भारत के राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDBद्वारा संचालित किया गया और यह विश्व का सबसे बड़ा 'दुग्ध विकास कार्यक्रम' है
    • इस आंदोलन का नेतृत्व डॉ. वर्गीज कुरियन ने किया था। उन्हें "भारत में श्वेत क्रांति के जनक' के रूप में जाना जाता है।
      • भारत में डॉ. वर्गीज कुरियन की जयंती को प्रतिवर्ष 26 नवंबर को राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के रूप में मनाया जाता है।
    • ऑपरेशन फ्लड निम्नलिखित तीन चरणों में लागू किया गया था:
      • चरण-1 (1970-80): इसके तहत देश के 18 प्रमुख मिल्क-शेड्स को 4 शहरों (दिल्ली, मुंबई, कोलकाता व चेन्नई) से जोड़ा गया।
      • चरण-2 (1981-1985): इसके तहत 43,000 ग्राम सहकारी समितियों की स्थापना की गई थी। इससे दूध पाउडर का उत्पादन 22,000 टन से बढ़कर 140,000 टन हो गया।
      • चरण-3 (1985-1996): इसके तहत 30,000 नई सहकारी समितियां स्थापित की गई थीं। साथ ही, पशु स्वास्थ्य क्षेत्र में अनुसंधान और विकास पर जोर दिया गया।

    डेयरी क्षेत्रक में सहकारिता (कोऑपरेटिव्स) का महत्त्व

    • किसानों के आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देना: अमूल और नंदिनी जैसी सहकारी समितियों ने किसानों में आर्थिक असमानता को कम करते हुए धन का समान रूप से वितरण सुनिश्चित किया है।
    • बाजार तक पहुंच: सहकारी समितियां लघु किसानों को अपने उत्पाद के लिए बाजार उपलब्ध कराती हैं। इससे उनकी सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति बढ़ती है और उन्हें उपभोक्ताओं तक अधिक प्रभावी ढंग से पहुंचाने में मदद मिलती है।
    • महिला सशक्तीकरण का समर्थन: डेयरी क्षेत्रक में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर सहकारी समितियां उनकी आर्थिक स्वतंत्रता में योगदान देती हैं। डेयरी सहकारी समितियों में 35% प्रतिभागी महिलाएं हैं।
    • वित्तीय समावेशन को बढ़ावा: सहकारी बैंक किसानों और अपने सदस्यों को कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करते हैं।
    • संकट से निपटने की क्षमता और जोखिम न्यूनीकरण: सहकारी समितियां बुरे दौर में मजबूत सहायता नेटवर्क उपलब्ध कराकर अपने सदस्यों को आर्थिक संकट से निपटने में मदद करती हैं और बाजार के मूल्य उतार-चढ़ाव से उनकी रक्षा करती हैं।

    भारत की डेयरी सहकारी समितियों के समक्ष चुनौतियां

    मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और केरल के कुछ हिस्सों में सफल सहकारी मॉडल देखे गए हैं। देश के अन्य राज्यों में सहकारी मॉडल अधिक सफल नहीं रहा है। इसके कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

    • वित्त-पोषण: सहकारी समितियों को कंपनियों की तुलना में निवेश आकर्षित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसा इसलिए क्योंकि सहकारी समितियां अपने सदस्यों के वित्तीय योगदान या ऋण पूंजी पर निर्भर होती हैं, वहीं कंपनियां मुख्य रूप से इक्विटी पूंजी पर निर्भर होती हैं।  
    • मिल्क ग्रिड बनाने में बाधाएं: देश में दूध उत्पादन इकाइयां बिखरी हुई हैं और दूध उत्पादन वाली भौगोलिक स्थलाकृतियां भी असमान हैं। इससे एक बड़े सुपर स्ट्रक्चर के रूप में मिल्क ग्रिड के विकास में रुकावट आती है। ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों को जो खरीद मूल्य प्राप्त होता है उसे अकुशलता की वजह से पशुधन विस्तार या दुग्ध उत्पादन में निवेश नहीं किया जाता है। इससे उन्हें प्राप्त मूल्य की वास्तविक वैल्यू और कम हो जाती है। इसके अलावा, दुग्ध परिवहन और प्रसंस्करण की लागत भी अधिक होती है।
    • डेयरी किसानों/ दूध उत्पादकों के समक्ष चुनौतियां: किसानों को दूध की कम कीमतें मिलने, चारे या पशु आहार की उच्च लागत, बाजार में उतार-चढ़ाव, पशु चिकित्सा सेवाओं की कमी, दूध निकालने वाले उपकरणों का अभाव, गोबर के निपटान तथा दुग्ध उत्पादन का रिकॉर्ड रखने जैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
      • जिन पशुपालक किसानों के पास सिंचित भूमि है, वे तुलनात्मक रूप लाभ की स्थिति में होते हैं, जबकि भूमिहीन किसान पशुपालकों को कई प्रकार के नुकसानों का सामना करना पड़ता है।
    • उपभोक्ता प्राथमिकताएं और बाजार के ट्रेंड: दुग्ध सहकारी समितियों को कुछ अन्य चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है, जैसे- उपभोक्ता की पसंद में निरंतर बदलाव, अधिक नियम-कानून, बाजार में प्रतिस्पर्धा, मौसम में निरंतर बदलाव, आदि।

    डेयरी क्षेत्रक को मजबूत करने के लिए शुरू की गई पहलें 

    • राष्ट्रीय गोकुल मिशन: इसे गाय की देशज नस्लों के विकास और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए लागू किया जा रहा है।
    • राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम: इसका उद्देश्य दूध और दूध से निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता को बढ़ाना एवं डेयरी से संबंधित आधारभूत अवसंरचनाओं को मजबूत करके दूध की संगठित खरीद की हिस्सेदारी को बढ़ाना है।
    • पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम (LHDCP): इसका उद्देश्य रोगनिरोधी टीकाकरण कार्यक्रमों के माध्यम से पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार करना है। 
    • पशुपालन अवसंरचना विकास निधि: इसका उद्देश्य उद्यमियों, निजी कंपनियों आदि द्वारा डेयरी प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन अवसंरचना स्थापित करने के लिए निवेश को प्रोत्साहित करना है।
    • किसान क्रेडिट कार्ड (KCC): इसके तहत पशुपालकों और डेयरी किसानों को बैंकों से आसानी से और कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है।

    आगे की राह

    भारत की डेयरी सहकारी समितियों को अधिक प्रभावी और प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए निम्नलिखित पहलों को अपनाया जा सकता है:

    • तकनीकों को अपनाना: दुग्ध सहकारी समितियों के संचालन को सहज बनाने के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (ICT) को अपनाने को बढ़ावा देना चाहिए।
      • प्रमुख स्थानों पर साइबर स्टोर स्थापित करना चाहिए और ग्राहक डेटाबेस तैयार करना चाहिए। इससे बाजार के वर्गीकरण में मदद मिलेगी और लक्षित बिक्री बढ़ाई जा सकेगी।
      • ग्रामीण सहकारी समितियों के लिए वेब-आधारित बिजनेस-टू बिजनेस प्रणाली शुरू करनी चाहिए। इससे डीलरों और स्टॉकिस्टों के साथ लेनदेन को आसान बनाया जा सकेगा।
    • दुग्ध का दक्षतापूर्वक प्रसंस्करण:
      • गुणवत्ता और सुरक्षा पर ध्यान देना: उच्च स्तर की खाद्य सुरक्षा (फ़ूड सेफ्टी) और गुणवत्ता मानकों को बनाए रखते हुए शुद्ध दुग्ध की खरीद सुनिश्चित करनी चाहिए।
      • कोल्ड चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर: अधिक समय तक दूध की गुणवत्ता बनाए रखने और दुग्ध का सुचारू परिवहन सुनिश्चित करने के लिए मजबूत कोल्ड चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करना आवश्यक है।
      • ब्रांड निर्माण और प्रचार: दुग्ध ब्रांड के प्रचार के लिए ऑनलाइन माध्यमों, इंटरैक्टिव वेब-साइट्स और विपणन की नई रणनीतियों के माध्यम से ब्रांड वैल्यू बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। उदाहरण के लिए- फ़ूड तैयार करने की गाइड या क्विज़ के माध्यम से उपभोक्ताओं को आकर्षित करना।
    • निर्यात को बढ़ावा देना:
      • प्रतिस्पर्धात्मकता: अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों के समक्ष घरेलू ब्रांड्स की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाकर देश के डेयरी ब्रांड्स में विश्वास पैदा करना चाहिए।
      • व्यावसायिक नजरिया रखना: किसानों को डेयरी सहकारी समितियों का प्रबंधन व्यावसायिक सोच के साथ करना चाहिए, जिसमें लाभप्रदता और संधारणीयता पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
      • मुक्त व्यापार समझौते से बाहर रखना: देश के दुग्ध उत्पादकों एवं घरेलू मिल्क ब्रांड्स को अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए डेयरी क्षेत्रक को मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) से बाहर रखा जाना चाहिए।

    निष्कर्ष

    सहकारी मॉडल का लाभ उठाकर, भारत का डेयरी क्षेत्रक अपनी पूर्ण क्षमता को प्राप्त कर सकता है। इससे भारत को वैश्विक स्तर पर डेयरी उत्पादों का अग्रणी निर्यातक बनाया जा सकेगा।

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