भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर के अनुसार, सरकार ने अब तक डी-डॉलराइजेशन की दिशा में विचार नही किया है | Current Affairs | Vision IAS
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    भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर के अनुसार, सरकार ने अब तक डी-डॉलराइजेशन की दिशा में विचार नही किया है

    Posted 07 Dec 2024

    11 min read

    हाल ही में, RBI गवर्नर ने स्पष्ट किया है कि सरकार ने अब तक डी-डॉलराइजेशन की दिशा में कदम नहीं उठाया है। भारत वर्तमान में अपने घरेलू व्यापार को भू-राजनीतिक अस्थिरता से उत्पन्न जोखिम से मुक्त करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।  

    डी-डॉलराइजेशन क्या है?

    • इसके बारे में: इसका उद्देश्य मौजूदा डॉलराइजेशन की व्यवस्था को बदलना है। यदि यह संभव होता है तो इससे वैश्विक व्यापार और वित्तीय लेन-देन में डॉलर के उपयोग में उल्लेखनीय कमी आएगी।
      • डॉलराइजेशन का अर्थ है वैश्विक बाजार में अमेरिकी डॉलर का ऐतिहासिक वर्चस्व। 
    • हालिया रुझान: भारत, ब्राजील, रूस, चीन और इंडोनेशिया जैसे देश अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए स्थानीय मुद्रा व्यापार की ओर बढ़ रहे हैं। 
      • भारत ने रूस सहित अलग-अलग देशों के साथ भारतीय रुपये (INR) में ट्रेड इन्वॉयसिंग की अनुमति दी है। 
      • हालिया ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (कज़ान, 2024) में भी साझा ब्रिक्स मुद्रा की संभावना पर चर्चा हुई थी।

    देश डी-डॉलराइजेशन की ओर क्यों बढ़ रहे हैं?

    • विनिमय दर जोखिम में कमी: डी-डॉलराइजेशन देशों को अपनी स्थानीय मुद्राओं में व्यापार करने की अनुमति देता है। साथ ही, इससे अमेरिकी डॉलर के मूल्य में उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिम भी कम होते हैं।
    • उन्नत मौद्रिक नीति नियंत्रण: इससे देशों को अमेरिकी डॉलर से प्रभावित हुए बिना अपनी आर्थिक स्थितियों के लिए उपयुक्त रणनीतियों को लागू करने में मदद मिलेगी। 
    • भू-राजनीतिक लाभ: अमेरिका अपने प्रभुत्व और प्रतिबंधों के माध्यम से डॉलर का हथियार की तरह इस्तेमाल करता आया है। डी-डॉलराइजेशन अमेरिका के इस तरह के कदम को हतोत्साहित कर सकता है। 

    डी-डॉलराइजेशन से जुड़ी चुनौतियां क्या हैं?

    • वित्तीय लेन-देन को प्रभावित करना: वर्तमान में क्रूड ऑयल, स्वर्ण जैसी कई मदों की कीमतें डॉलर में तय और विनियमित की जाती हैं। डी-डॉलराइजेशन लेन-देन की इस प्रक्रिया को जटिल बना सकता है।   
    • वित्तीय अस्थिरता: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में डॉलर का आकस्मिक परित्याग घरेलू मुद्राओं के समक्ष विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव, महंगे ऋण जैसे जोखिम पैदा कर सकता है।

    निष्कर्ष

    भारत के मामले में, डी-डॉलराइजेशन को रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरणरुपीफिकेशन के साथ पूरित किया जा सकता है, जो किसी भी संस्था को रुपये की खरीद या बिक्री पर पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करेगा। 

    • Tags :
    • डी-डॉलराइजेशन
    • ट्रेड इन्वॉयसिंग
    • रुपीफिकेशन
    • ब्रिक्स मुद्रा
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