सुप्रीम कोर्ट ने लेफ्टिनेंट कर्नल सुप्रिता चंदेल बनाम भारत संघ और अन्य वाद में महिला सेना अधिकारी को स्थायी कमीशन प्रदान करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए यह आदेश दिया है।
- मामले की पृष्ठभूमि: मूल नीति में 2013 में संशोधन के बाद सशस्त्र बल अधिकरण ने अन्य आवेदकों को एक बार आयु में छूट देकर राहत प्रदान की थी।
- हालांकि, अपीलकर्ता को इसका लाभ नहीं दिया गया, क्योंकि वह मूल मामले में पक्षकार नहीं थीं।
- सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: 'जो राहत समान परिस्थितियों वाले व्यक्तियों को दी गई है, उसे उन व्यक्तियों को भी स्वतः प्रदान किया जाएगा, जिन्होंने कोई याचिका दायर नहीं की है।
- कोर्ट ने इस फैसले के लिए अमृतलाल बेरी (1975) और के.आई. शेफर्ड केस (1987) जैसे पुराने फैसलों का हवाला दिया।
महिला सैन्य कर्मियों को स्थायी कमीशन
- वर्ष 1992 में, केंद्र सरकार ने पहली बार महिलाओं को सेना के कुछ कैडर, जैसे शॉर्ट सर्विस कमीशन और आर्मी सर्विस कोर आदि में शामिल होने की अनुमति दी थी।
- 2020 तक, महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन (सेवानिवृत्ति की आयु तक) के रूप में नियुक्त करने की अनुमति नहीं थी।
- उन्हें शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाता था, जिसका कार्यकाल 10+4 वर्ष का होता था।
- सुप्रीम कोर्ट ने बबीता पुनिया एवं अन्य वाद (2020) में महिला सैन्य कर्मियों को स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया था। साथ ही, उन्हें कमांड पदों पर नियुक्ति के लिए योग्य माना था।
- कोर्ट ने कहा कि महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
अनुच्छेद 142 के बारे में
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