27 दिसंबर 2024 को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की विनिमय दर में 23 पैसे की गिरावट दर्ज की गई और यह 85 रुपये के ऊपर पहुंच गया। इससे पहले रुपये में एक दिन में 68 पैसे की सबसे बड़ी गिरावट 2 फरवरी, 2023 को दर्ज की गई थी।
- विनिमय दर किसी मुद्रा के दूसरी मुद्रा के सापेक्ष मूल्य को दर्शाती है। इस तरह वास्तव में विनिमय दर एक मुद्रा की कीमत को दूसरी मुद्रा के संदर्भ में व्यक्त करती है।
रुपये के मूल्यह्रास के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारक
- अमेरिकी डॉलर का मजबूत होना: अमेरिकी केंद्रीय बैंक ‘फेडरल रिजर्व’ ने सख्त मौद्रिक नीति अपनाते हुए ब्याज दरों को बढ़ाया है। इससे निवेशक अधिक ब्याज के लालच में उभरते बाजारों से पूंजी निकाल रहे हैं।
- इसका एक उदाहरण भारत से विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) का बाहर जाना है।
- बढ़ता व्यापार घाटा: कच्चे तेल के अधिक आयात के कारण भारत का व्यापार घाटा बढ़ गया है।
- अन्य कारक: भारत में मुद्रास्फीति दर उच्च बनी हुई है।
- गौरतलब है कि जब मुद्रास्फीति की दरें अधिक होती हैं, तो मुद्रा का मूल्य आमतौर पर कम हो जाता है, आदि।
रुपये के मूल्यह्रास का प्रभाव
- नकारात्मक प्रभाव
- आयात महंगा होना: रुपया कमजोर होने पर आयात (विशेषकर कच्चे तेल के आयात) के लिए अधिक रुपयों का भुगतान करना पड़ता है।
- इससे व्यापार घाटा और भी बढ़ जाता है।
- अन्य प्रभाव: विदेशी ऋण लेना महंगा पड़ जाता है। इसके अलावा, मुद्रास्फीति और बढ़ जाती है, क्योंकि देश में आयातीत वस्तुएं महंगी हो जाती हैं, आदि।
- आयात महंगा होना: रुपया कमजोर होने पर आयात (विशेषकर कच्चे तेल के आयात) के लिए अधिक रुपयों का भुगतान करना पड़ता है।
- सकारात्मक प्रभाव
- निर्यात को बढ़ावा: डॉलर के मामले में घरेलू कंपनियों के लिए उत्पादन लागत या सेवा लागत कम हो जाती है। इससे विदेशी बाजारों में निर्यात सस्ता हो जाता है और निर्यात को बढ़ावा मिलता है।
- विदेशों से प्राप्त रेमिटेंस (विप्रेषण) का मूल्य बढ़ जाता है: उदाहरण के लिए अप्रवासी भारतीयों (NRIs) द्वारा डॉलर में धन भेजा जाता है। इसके बदले उनके परिवार को अधिक रुपये प्राप्त होते हैं।
रुपये को स्थिर करने के लिए किए जा सकने वाले उपाय
|