ज्ञातव्य है कि भारत से लगभग 90 प्रतिशत बाघ आबादी अपने ऐतिहासिक पर्यावास क्षेत्र से विलुप्त हो गई थी। हालांकि, संरक्षण प्रयासों से इनकी संख्या फिर से बढ़ रही है। वर्तमान में वैश्विक बाघ आबादी का लगभग 75 प्रतिशत भारत में है।
- वर्ष 2022 में, भारत ने देश में बाघों की आबादी को सफलतापूर्वक दोगुना कर लिया था। इसे TX2 लक्ष्य के रूप में भी जाना जाता है। इस प्रकार, भारत में बहुत अधिक जनसंख्या घनत्व होने के बावजूद भी भारत ने ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम के लक्ष्य को हासिल किया है।

अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- बाघ-अधिकृत क्षेत्रों (Tiger-occupied areas) में वृद्धि हुई है: इसमें 2006 से 2018 तक 40,000 वर्ग किमी से अधिक के क्षेत्र के साथ लगभग 30% की वृद्धि हुई है।
- संरक्षित क्षेत्र: बाघ-अधिकृत 85% क्षेत्र संरक्षित क्षेत्रों के अंतर्गत आते हैं।
- मानव-बाघ सह-अस्तित्व: बाघों के 45% पर्यावास क्षेत्रों में लगभग 60 मिलियन लोग रह रहे हैं।
बाघों के संरक्षण की सफलता के लिए उत्तरदायी कारक
- भूमि पृथक्करण और भूमि साझाकरण: ये दोनों ही संतुलित रणनीतियां हैं। भूमि पृथक्करण (Land Sparing) रणनीति के तहत संरक्षण उद्देश्यों से कुछ क्षेत्रों को मानव-गतिविधि मुक्त रखा जाता है; जैसे-टाइगर रिजर्व या अभ्यारण्य। वहीं कुछ बाघ टाइगर रिजर्व और अभयारण्य जैसे संरक्षित क्षेत्रों से बाहर निकलकर बहुउद्देश्यीय जंगलों और क्षेत्रों में पहुंच जाते हैं। इन जगहों पर बाघ और इंसान सह-अस्तित्व में रहते हैं। इन्हें भूमि-साझाकरण (land sharing) क्षेत्र कहा जाता है।
- सामाजिक-राजनीतिक स्थिरता: इसने वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा दिया है, जिसका प्रमाण मानव-वन्यजीव संघर्ष नियंत्रण के बाद टाइगर रिज़र्व में बाघों की संख्या में वृद्धि है। उदाहरण के लिए- नागार्जुन सागर-श्रीशैलम, अमराबाद और सिमिलिपाल टाइगर रिज़र्व में बाघों की संख्या में वृद्धि देखी गई है।
- सामुदायिक दृष्टिकोण: केवल कम मानवीय घनत्व ही नहीं बल्कि बड़े मांसाहारियों के प्रति समुदाय की सहिष्णुता भी बाघों की संख्या में वृद्धि के कारक हैं। उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है।
बाघों की संख्या में वृद्धि का महत्त्व
- बाघ पारिस्थितिकी-तंत्र में फ्लैगशिप एवं अम्ब्रेला प्रजाति है। इससे अन्य मेगाफौना और पारिस्थितिकी-तंत्र को लाभ होता है।
- इससे कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन और आक्रामक प्रजातियों के प्रति जैविक प्रतिरोध में लाभ मिलता है।