इंटरटाइडल बायोब्लिट्ज भारत के इंटरटाइडल जोन की जैव-विविधता को दर्ज करने के लिए आयोजित एक सिटीजन साइंस पहल है। इसका ‘कोस्टल कंजर्वेशन फाउंडेशन’ और ‘ईस्ट कोस्ट कंजर्वेशन टीम’ ने संयुक्त रूप से आयोजन किया था।
- इस पहल के दौरान फ्लैटवॉर्म ‘स्यूडोसेरोस-बिफासिया’ (Pseudoceros bifascia) को पहली बार भारत की मुख्य भूमि पर दर्ज किया गया। इसे आंध्र प्रदेश के तट पर खोजा गया था।
इंटरटाइडल जोन के बारे में
- इंटरटाइडल जोन यानी अंतर्ज्वारीय क्षेत्र वह स्थल है, जहां समुद्र, भूमि से मिलता है। यह क्षेत्र उच्च-ज्वार के दौरान जलमग्न रहता है और ज्वार कम होने पर हवा के संपर्क में आ जाता है।
- यह अत्यधिक चुनौतीपूर्ण पारिस्थितिकी-तंत्र है। यहां रहने वाली प्रजातियों में नमी, तापमान और लवणता में निरंतर होने वाले बदलावों को सहन करने के साथ-साथ तेज लहरों का सामना करने की क्षमता भी होनी चाहिए।

इंटरटाइडल जोन का महत्त्व
- यह समुद्री जीवों के लिए प्रजनन क्षेत्र है। यह क्षेत्र वास्तव में मछलियों, क्रस्टेशियंस और अन्य समुद्री जीवों के लिए संरक्षित नर्सरी के रूप में कार्य करता है।
- यह क्षेत्र प्राकृतिक बफर का कार्य करते हुए तटीय क्षेत्रों के कटाव को रोकता है। इस तरह यह समुद्री लहरों की ऊर्जा को अवशोषित कर तटरेखा को स्थिर रखता है।
- यह प्राथमिक उत्पादन का महत्वपूर्ण स्रोत है। साथ ही, यह ऊर्जा, पोषक तत्वों और प्रदूषकों के प्रवाह को स्थलीय एवं समुद्री पारिस्थितिकी-तंत्र के बीच नियंत्रित करता है।
- प्राथमिक उत्पादन (Primary Production) वास्तव में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा स्वपोषी बायोमास (शैवाल और पादप) का निर्माण है।
- यह कार्बन अवशोषण का प्रमुख स्रोत भी है। दरअसल यह क्षेत्र कार्बन को संग्रहित करने में सहायक होता है, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सकता है।.
इंटरटाइडल जोन के समक्ष प्रमुख खतरे
- जलवायु परिवर्तन: इसकी वजह से समुद्री तूफानों की तीव्रता और समुद्री जलस्तर में वृद्धि हो रही है। साथ ही, तापमान में वृद्धि के कारण बड़ी संख्या में समुद्री जीव-जंतु मर रहे हैं। इस वजह से संपूर्ण खाद्य श्रृंखला खतरे में पड़ सकती है।
- मानव गतिविधियों की वजह से व्यवधान: तेल रिसाव; तटीय पर्यटन; संसाधनों का अत्यधिक दोहन; स्थलीय, वायु-जनित और समुद्री प्रदूषण; तथा तटीय विकास गतिविधियां इंटरटाइडल पारिस्थितिकी-तंत्र के लिए गंभीर खतरा हैं।