न्यू इंडिया कोऑपरेटिव बैंक पर कड़े प्रतिबंध लगाने से अर्बन कोऑपरेटिव बैंकों (UCBs) पर RBI की निगरानी और सख्त हो गई है। इससे इन बैंकों के संचालन, गवर्नेंस और स्थिरता को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
अर्बन कोऑपरेटिव बैंक (UCBs) के बारे में
- परिचय: UCBs प्राथमिक सहकारी बैंक होते हैं, जो मुख्य रूप से शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में स्थित होते हैं।
- कानूनी स्थिति: ये बैंक राज्य सहकारी समिति अधिनियम या बहुराज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के तहत सहकारी समितियों के रूप में पंजीकृत होते हैं।
- विनियमन एवं पर्यवेक्षण या निगरानी: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत UCBs के बैंकिंग कार्यों का विनियमन एवं पर्यवेक्षण करता है।
UCBs से संबंधित प्रमुख मुद्दे
- निम्न पूंजीकरण या पूंजी की कमी: ज्यादातर अर्बन कोऑपरेटिव बैंकों के पास पर्याप्त मात्रा में पूंजी नहीं है। इसकी वजह से वित्तीय संकट की स्थिति में वे आर्थिक दबाव का सहन करने में असमर्थ हो जाते हैं।
- गवर्नेंस संबंधी चिंताएं: UCBs में धोखाधड़ी और कुप्रबंधन के कई मामले सामने आए हैं, जिससे जमाकर्ताओं की चिंताएं बढ़ गई हैं।
- गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) का उच्च अनुपात: NPAs का उच्च स्तर न केवल बैंक की लाभ कमाने की क्षमता को घटाता है, बल्कि UCBs की वित्तीय स्थिरता को भी कमजोर करता है।
UCBs में सुधार के लिए उठाए गए कदम
- नया ‘प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (PCA)’ फ्रेमवर्क: यह RBI का एक विनियामक तंत्र है, जो आर्थिक रूप से कमजोर UCBs पर प्रतिबंध लगाकर उनकी वित्तीय स्थिति सुधारने में मदद करता है।
- नेशनल अर्बन कोऑपरेटिव फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NUCFDC): यह UCBs के काम-काज में दक्षता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्तर का एक अम्ब्रेला संगठन है।
- बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अधिनियम, 2020: यह अधिनियम RBI को कुछ शर्तों के तहत कोऑपरेटिव बैंकों के बोर्ड को भंग करने का भी अधिकार प्रदान करता है।
- अन्य: UCBs का चार टियर में वर्गीकरण, शेयर जारी करने की अनुमति, आदि।