हाल के दिनों में देश के अलग-अलग कॉलेजों से रैगिंग से जुड़ी कई मौतों और शिकायतों की खबरें सामने आई हैं।
- ऐसा कोई भी मौखिक, लिखित या शारीरिक कृत्य रैगिंग कहलाता है, जो जूनियर्स को परेशान करता है, डराता या अपमानित करता है और जिससे उनके मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को क्षति पहुँचती है।
- रैगिंग की मुख्य वजहों में सीनियर-जूनियर प्रतिद्वंद्विता, प्रेम-संबंधी विवाद, सेक्सुअलिटी और दूसरों को पीड़ा पहुंचाने की मानसिकता शामिल हैं।
भारत में रैगिंग से जुड़े महत्वपूर्ण आंकड़े
- आत्महत्या/ मौतें: जनवरी 2012 से अक्टूबर 2023 के बीच देश में रैगिंग से जुड़ी 78 मौतें दर्ज की गई हैं।
- UGC हेल्पलाइन में दर्ज शिकायतें: पिछले एक दशक में रैगिंग के 8,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए। रिकॉर्ड के मुताबिक 2012-2022 के बीच रैगिंग की शिकायतों में 208% की वृद्धि दर्ज की गई।
रैगिंग को समाप्त करने में मुख्य चुनौतियां
- दिशा-निर्देशों को सही से लागू नहीं करना:
- रैगिंग को रोकने वाले दिशा-निर्देशों के लागू होने के संबंध में UGC की कमजोर और प्रभावहीन निगरानी।
- रैगिंग की अधिकांश शिकायतों को कॉलेज कैंपस के भीतर ही सुलझाने का प्रयास किया जाता है।
- सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का आंशिक तौर पर पालन किया जाता है, आदि।
- प्रतिशोध का डर: पीड़ित विद्यार्थी अक्सर सीनियर्स के डर से रैगिंग की शिकायत करने से कतराते हैं।
- जागरूकता और संवेदनशीलता का अभाव: अधिकतर विद्यार्थी रैगिंग के मानसिक और कानूनी दुष्प्रभावों से अनजान रहते हैं क्योंकि एंटी-रैगिंग ओरिएंटेशन प्रोग्राम मात्र औपचारिकता बनकर रह गए हैं।
भारत में एंटी-रैगिंग फ्रेमवर्क
- UGC के विनियम: विद्यार्थियों को तीन वर्षीय पाठ्यक्रम के दौरान तीन एंटी-रैगिंग शपथपत्र जमा करने होते हैं।
- राघवन समिति (2007): इस समिति ने रैगिंग रोकने के लिए निम्नलिखित सिफारिशें की थीं:
- एंटी-रैगिंग दिशा-निर्देशों को सख्ती से लागू करना चाहिए;
- रैगिंग के मामले को आपराधिक बनाया जाना चाहिए;
- रैगिंग को रोकने के लिए शैक्षिक संस्थानों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
- अन्य सिफारिशें:
- शैक्षिक संस्थानों में शिकायत पेटियों, CCTV और ID-आधारित डैशबोर्ड के माध्यम से निगरानी बढ़ानी चाहिए।
- एंटी-रैगिंग दिशा-निर्देशों को सभी संस्थानों में सख्ती से लागू करना चाहिए।
- कानूनों का सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए।
