इस अध्ययन का शीर्षक ‘भारत में चीता पुनर्वास की प्रायोगिक परियोजना के पर्यावरणीय व न्यायसंगत प्रभावों का चित्रण” है। इस अध्ययन में चीतों को पुनः बसाने और पारिस्थितिक तंत्र की पुनर्बहाली संबंधी परियोजनाओं से जुड़े व्यापक मुद्दों का विश्लेषण करने के लिए प्रोजेक्ट चीता को एक केस स्टडी के रूप में उपयोग किया है।
- प्रोजेक्ट चीता का उद्देश्य अफ्रीकी चीतों को भारत में बसाना है। गौरतलब है कि भारत में कभी एशियाई चीते पाए जाते थे लेकिन अब वे भारत से विलुप्त हो चुके हैं।
- इस प्रोजेक्ट के तहत अफ्रीका से 20 चीते मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क (KNP) में लाए गए। हालांकि, इनमें से 40% वयस्क चीतों और 29.4% शावकों की मृत्यु हो गई। साथ ही, शेष बचे चीतों के स्वास्थ्य को लेकर चिंता जताई गई है। इन वजहों से प्रोजेक्ट चीता पर सवाल उठ रहे हैं।
प्रोजेक्ट चीता से जुड़ी प्रमुख चिंताएं
- पारिस्थितिकी दृष्टि से बेमेल: भारत और अफ्रीका के बीच जलवायु, शिकार (आहार) की प्रकृति और वन्यजीवों के पर्यावास के मामले में व्यापक अंतर मौजूद हैं। ये चुनौतियां चीते के दीर्घकालिक अस्तित्व को बनाए रखने को लेकर चिंताएं पैदा करती हैं।
- तनावपूर्ण परिस्थितियां: चीते को बेहोश करने के लिए लगातार रासायनिक दवाइयों के इस्तेमाल से इन पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
- कूनो में लाए गए अधिकतर जीवित बचे चीते अभी भी कैप्टिव दशाओं में रखे गए हैं। इस वजह से ये अभी भी कूनो पार्क में स्वतंत्र रूप से विचरण करने का स्वाभाविक व्यवहार विकसित नहीं कर पाए हैं ।
- भविष्य में चीता लाने को लेकर अनिश्चितता: अफ्रीका में चीता की कम होती संख्या को लेकर पहले से ही चिंताएं जताई जा रही हैं। एक अनुमान के अनुसार अफ्रीका में लगभग 6,500 वयस्क चीते बचे हैं। जाहिर है कि भविष्य में अफ्रीका से भारत में चीता लाने का विरोध किया जा सकता है।
- इससे भारत में प्रतिवर्ष 12 चीतों को लाने की योजना के जारी रहने पर संदेह उत्पन्न हो गया है। साथ ही, इससे नैतिकता संबंधी चिंताएं भी उत्पन्न होती हैं।
- असमान सामाजिक प्रभाव: इस परियोजना में स्थानीय समुदायों की कम भागीदारी रही है। साथ ही, संरक्षण के लिए पूर्व में आदिवासी समुदायों को विस्थापन का सामना भी करना पड़ा है।
रिपोर्ट में की गई मुख्य सिफारिशें
- इस अध्ययन में अधिक सहभागी और समावेशी संरक्षण मॉडल के लिए न्यायसंगत-सूचित दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
- गौरतलब है कि कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क संरक्षण में समानता और न्याय पर जोर दिया गया है।
- स्थानीय ज्ञान: मानव और वन्यजीवों के बीच संधारणीय सह-अस्तित्व सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय ज्ञान प्रणालियों का सम्मान करना और उसका उपयोग किया जाना चाहिए।