भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) द्वारा जारी ड्राफ्ट रेगुलेशन का उद्देश्य प्रीडेटरी प्राइसिंग से जुड़े आरोपों के मद्देनजर वस्तुओं या सेवाओं की लागत निर्धारण की कार्यप्रणाली में सुधार करना है। गौरतलब है कि प्रीडेटरी प्राइसिंग एक प्रकार की प्रतिस्पर्धा-रोधी पद्धति है।
- जब कोई कंपनी बाजार में प्रतिस्पर्धा को खत्म या कम करने के उद्देश्य से उत्पादन लागत से कम कीमत पर वस्तुएं या सेवाएं बेचती है, तो उसे प्रीडेटरी प्राइसिंग कहा जाता है।
प्रतिस्पर्धा-रोधी प्रथाओं के अन्य प्रकार

- मूल्य निर्धारण में मिलीभगत (Price Fixing): जब प्रतिस्पर्धी कंपनियां प्रतिस्पर्धा करने के बजाय आपसी समझौते से उच्च कीमतें तय करती हैं, तो उसे प्राइस फिक्सिंग कहा जाता है।
- पेटेंट का दुरुपयोग: कई बार कंपनियां प्रतिस्पर्धा को खत्म या कम करने के लिए पेटेंट का गलत इस्तेमाल करती हैं, जैसे- अन्य प्रतिस्पर्धी कंपनियों पर मुकदमा चलाने के लिए पेटेंट खरीदना।
- मिलीभगत वाली बोली: कंपनियां अक्सर सरकारी या बड़े कॉर्पोरेट कॉन्ट्रैक्ट में बोली प्रक्रिया के परिणाम को नियंत्रित करने के लिए आपस में मिलीभगत करती हैं।
- टाइंग एंड बंडलिंग: इसके तहत कोई कंपनी ग्राहकों को एक उत्पाद केवल इस शर्त पर बेचती है कि उन्हें दूसरा उत्पाद भी खरीदना होगा।
- उदाहरण के लिए- माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस के अंतर्गत MS वर्ड, MS एक्सेल आदि की बंडलिंग।
भारत में प्रतिस्पर्धा को बनाए रखने के लिए संस्थागत व्यवस्था
- कानून: प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002; उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019; बौद्धिक संपदा कानून (पेटेंट अधिनियम, 1970 और कॉपीराइट अधिनियम, 1957); आदि।
- संस्थाएं: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग, ट्राई, सेबी, IRDAI जैसे विनियामकीय प्राधिकरण, आदि।