यह विधेयक तटीय क्षेत्रों के माध्यम से होने वाले व्यापार के लिए एक अलग कानूनी फ्रेमवर्क प्रदान करता है। साथ ही, इसके विनियमन के दायरे में पोत, नाव, नौकायन पोत, मोबाइल अपतटीय ड्रिलिंग यूनिट्स जैसे सभी प्रकार के जलयानों को ला दिया गया है।
विधेयक के मुख्य प्रावधानों पर एक नजर
- तटीय व्यापार के लिए लाइसेंस: यह भारतीय जहाजों को व्यापार के लिए लाइसेंस की आवश्यकता को समाप्त करता है। हालांकि, विदेशी जहाजों को नौवहन महानिदेशालय (DGS) से लाइसेंस लेना अनिवार्य होगा।
- तटीय व्यापार से आशय भारत में एक स्थान या बंदरगाह से दूसरे स्थान या बंदरगाह तक समुद्री मार्ग से माल या यात्रियों के परिवहन से है।
- रणनीतिक योजना और डेटा संग्रह: विधेयक में राष्ट्रीय तटीय और अंतर्देशीय पोत-परिवहन रणनीतिक योजना तथा राष्ट्रीय तटीय पोत-परिवहन डेटाबेस बनाना अनिवार्य किया गया है।
- राष्ट्रीय तटीय और अंतर्देशीय पोत-परिवहन रणनीतिक योजना को प्रत्येक दो वर्षों में अपडेट करना होगा।
- नौवहन महानिदेशालय (DGS) के अधिकार: DGS को सूचना प्राप्त करने, निर्देश जारी करने और नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने जैसे अधिकार प्रदान किए गए हैं।
- केंद्र सरकार का नियंत्रण: यह विधेयक केंद्र सरकार को नियमों में छूट देने और नियमों के अनुपालन की निगरानी करने की शक्ति प्रदान करता है, ताकि भारत में तटीय पोत-परिवहन के संचालन को सुविधाजनक और प्रभावी बनाया जा सके।
विधेयक का महत्त्व
- यह सड़क और रेल नेटवर्क पर यातायात की भीड़भाड़ को कम करके अंतर्देशीय जलमार्ग एवं नदियों पर निर्भर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा।
- यह विधेयक भारतीयों के स्वामित्व वाले तटीय बेड़े (Coastal fleet) के विकास को बढ़ावा देगा। इसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विदेशी जहाजों पर निर्भरता कम होगी।
- लॉजिस्टिक्स लागत में कमी आएगी, हरित परिवहन को बढ़ावा मिलेगा, और तटीय क्षेत्रों का प्रादेशिक विकास सुनिश्चित होगा।