भारत के विदेश मंत्री ने कहा कि ‘नई विश्व व्यवस्था क्षेत्रीय और एजेंडा-विशेष आधारित होगी’ | Current Affairs | Vision IAS
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भारत के विदेश मंत्री ने कहा कि ‘नई विश्व व्यवस्था क्षेत्रीय और एजेंडा-विशेष आधारित होगी’

Posted 04 Apr 2025

Updated 05 Apr 2025

14 min read

हाल ही में, भारत के विदेश मंत्री ने “बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (बिम्सटेक/ BIMSTEC)” शिखर सम्मेलन की तैयारियों से जुड़ी बैठक को संबोधित किया। 

  • इस अवसर पर उन्होंने कहा कि विश्व व्यवस्था मल्टीलेटरलिज्म (बहुपक्षवाद) से मिनीलेटरलिज्म की ओर बढ़ रही है, ऐसे में बिम्सटेक जैसे क्षेत्रीय समूहों को अधिक महत्वाकांक्षी अप्रोच अपनानी चाहिए।

मिनीलेटरल्स क्या हैं?

  • मिनीलेटरल्स ऐसे अनौपचारिक और लक्षित समूह होते हैं, जिनमें आमतौर पर 3 या 4 देश ही सदस्य होते हैं। ये किसी विशिष्ट खतरे, आपात स्थिति या सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को हल करने के लिए एक साथ आते हैं, और कम समय में समाधान खोजने की मंशा रखते हैं। इनके उदाहरण हैं: I2U2, ब्रिक्स, क्वाड (QUAD) आदि। 

एजेंडा-विशेष मिनीलेटरल्स की बढ़ती संख्या के लिए जिम्मेदार कारक

  • मल्टीलेटरल यानी बहुपक्षीय संस्थानों की सीमाएं: संयुक्त राष्ट्र (UN) और विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे संस्थानों में अलग-अलग हित रखने वाले सदस्य देशों के बीच आम सहमति बनाना मुश्किल होता है।
    • इसके विपरीत, मिनीलेटरल्स में कम देश शामिल होते हैं। इससे तेजी से निर्णय लेना और कार्यान्वयन संभव होता है। उदाहरण के लिए- क्वाड ने कोविड-19 महामारी के दौरान वैक्सीन वितरण में त्वरित समन्वय दिखाया है।
  • महाशक्तियों के बीच प्रतिद्वंद्विता: बढ़ते तनाव के कारण बड़े मल्टीलेटरल संगठनों का संचालन बाधित हुआ है। उदाहरण के लिए- विश्व व्यापार संगठन (WTO) का विवाद निवारण तंत्र ठप पड़ गया है। 
    • इससे राष्ट्र अब ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP)’ जैसे क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौतों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
  • नवीन और आपात चुनौतियां: जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा जैसे विषयों को बहुपक्षीय मंचों पर प्राथमिकता नहीं दी जा रही है।
    • इसके विपरीत, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसे एजेंडा-विशेष संगठन विशिष्ट विशेषज्ञता और संसाधनों का प्रभावी उपयोग कर रहे हैं।

मिनीलेटरलिज्म के समक्ष चुनौतियां

  • स्थायित्व की कमी: छोटे समूहों में एक-दूसरे पर विश्वास स्थापित करना आसान होता है, लेकिन सरकारों के बदलने से एजेंडा पर विकास रुक सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: जापान के प्रधान मंत्री शिंजो आबे के त्याग-पत्र के चलते 2007 के बाद बहुत लंबे समय तक क्वाड पर वार्ता आगे नहीं बढ़ पाई।
  • अधिक समावेशी नहीं होना: उदाहरण के लिए- आसियान देशों ने AUKUS के गठन को लेकर चिंता जताई है। इससे क्षेत्रीय एकता खतरे में पड़ सकती है।
  • सीमित संसाधन: छोटे समूहों के पास जलवायु परिवर्तन या कोविड महामारी जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए पर्याप्त वित्तीय और तकनीकी संसाधन नहीं होते।

 

निष्कर्ष

मिनीलेटरल स्तर पर एजेंडा-विशिष्ट साझेदारी बनाने के साथ-साथ भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और WTO जैसे बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार के लिए भी प्रयास करते रहना चाहिए। इससे विश्व व्यवस्था नियम-आधारित और समावेशी बनी रहेगी।

  • Tags :
  • BIMSTEC
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