रणनीतिक साझेदारी एक कम औपचारिक लेकिन महत्वपूर्ण सहयोग होता है। इसमें मुख्य रूप से सुरक्षा से जुड़ा साझा सहयोग शामिल होता है, लेकिन यह व्यापार, अर्थव्यवस्था, प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों तक भी विस्तृत होता है।
भारत-थाईलैंड रणनीतिक साझेदारी का महत्त्व
- पारस्परिक रूप से लाभकारी लक्ष्य: दोनों देश एक स्वतंत्र, खुला, पारदर्शी, नियम आधारित, समावेशी और लचीले हिंद-प्रशांत क्षेत्र को महत्त्व देते हैं। दोनों देश आसियान केंद्रीयता का भी समर्थन करते हैं।
- ‘आसियान केंद्रीयता’ का अर्थ है कि इस क्षेत्र की भू-राजनीति और भू-अर्थव्यवस्था में ASEAN (दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन) की प्रमुख भूमिका बनी रहे।
- रणनीतिक अवस्थिति: थाईलैंड भारत का समुद्री पड़ोसी है और क्षेत्रीय शांति में उसकी महत्वपूर्ण रुचि है।
- पूरक नीतियां: भारत की "एक्ट ईस्ट" नीति और थाईलैंड की "एक्ट वेस्ट" नीति एक-दूसरे की पूरक हैं।
- अपने क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय समूहों में भूमिका: थाईलैंड भारत का एक महत्वपूर्ण साझेदार है, खासकर आसियान और BIMSTEC/ बिम्सटेक जैसे मंचों में।
किए गए अन्य प्रमुख समझौते
- अलग-अलग क्षेत्रों में सहयोग पर समझौता ज्ञापन: लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC) और पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास (MDoNER) हेतु समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
- लोगों के बीच संपर्क को सुविधाजनक बनाना: भारत-थाईलैंड कॉन्सुलर डायलॉग की स्थापना की गई।
- व्यापार सुविधा: स्थानीय मुद्रा-आधारित निपटान तंत्र की स्थापना की संभावना पर विचार किया गया।
भारत-थाईलैंड संबंधों का अवलोकन
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