सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (SSC) द्वारा की गई लगभग 25,000 कर्मचारियों की नियुक्तियों को रद्द करने के कोलकाता हाई कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा।
- इस निर्णय के साथ सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नियुक्तियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार करने के लिए चार प्रमुख सिद्धांत भी निर्धारित किए हैं।
पश्चिम बंगाल राज्य बनाम बैसाखी भट्टाचार्य (चटर्जी) मामले में निर्धारित चार प्रमुख सिद्धांत:

- गहन जांच प्रक्रिया के दौरान धोखाधड़ी के संकेत मिलने पर संपूर्ण परीक्षा परिणाम को रद्द किया जा सकता है:
- यह सिद्धांत सुप्रीम कोर्ट के "सचिन कुमार एवं अन्य बनाम दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (DSSSB)" के निर्णय पर आधारित है।
- अपवाद: यदि संभव हो तो संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 16(1) के अंतर्गत समानता के अधिकार के अनुरूप दोषी एवं निर्दोष अभ्यर्थियों के बीच अंतर किया जाना चाहिए।
- पूरी चयन प्रक्रिया को रद्द करने का निर्णय उचित और निष्पक्ष जांच से प्राप्त पर्याप्त साक्ष्य के आधार पर ही लिया जाना चाहिए।
- साक्ष्य को यह सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है कि अनियमितताएं संदेह से परे हैं, बल्कि यह दर्शाना चाहिए कि पूरी चयन प्रक्रिया में व्यवस्था संबंधी खामियां उचित रूप से मौजूद हैं। इसके लिए प्रायिकता यानी प्रोबेबिलिटी टेस्ट का उपयोग करना चाहिए।
- यदि चयन प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा सिद्ध हो जाए, तो चयन प्रक्रिया की शुचिता को निर्दोष अभ्यर्थियों को होने वाली असुविधा के ऊपर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
- जब यह सिद्ध हो जाए कि पूरी चयन प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर गैर-कानूनी गतिविधियां शामिल हैं, तो व्यावहारिक वजहों से प्रत्येक व्यक्ति को नोटिस देना और सुनवाई का अधिकार देना आवश्यक नहीं होगा।
- उपर्युक्त में से अंतिम तीन सिद्धांतों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने "तमिलनाडु राज्य एवं अन्य बनाम ए. कलैमणि (2021) वाद" में दिए गए निर्णय को आधार बनाया है।
चयन प्रक्रिया रद्द करने से संबंधित कुछ अन्य न्यायिक निर्णय:
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