जापानी वैज्ञानिकों के इस अध्ययन के अनुसार, आर्कियन इयोन में महासागर नीले नहीं, बल्कि हरे रंग के दिखाई देते थे।
- आज से लगभग 4 अरब वर्ष पूर्व से 2.5 अरब वर्ष पूर्व तक के भूवैज्ञानिक युग को आर्कियन इयोन कहा जाता है।
अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र
- प्राचीन काल में महासागरों के हरा रंग जैसा दिखने का कारण:
- आर्कियन इयोन के दौरान वायुमंडल और महासागरों में ऑक्सीजन नहीं थी।
- चट्टानों और अंडरवाटर ज्वालामुखियों से निकलने वाला लोहा महासागरों में घुल जाता था।
- जीवन की शुरुआत अवायवीय बैक्टीरिया से हुई, जिन्होंने प्रकाश संश्लेषण करना शुरू किया। इससे बाय-प्रोडक्ट के रूप में ऑक्सीजन उत्पन्न हुई।
- ऑक्सीजन ने समुद्री जल में मौजूद लोहे से प्रतिक्रिया करके ऑक्सीकृत लोहा {Fe(III)} बनाया। इसके कारण महासागर हरे रंग के दिखाई देते थे।
- आर्कियन इयोन के दौरान वायुमंडल और महासागरों में ऑक्सीजन नहीं थी।
- सायनोबैक्टीरिया का उद्भव:
- ये लोहे से समृद्ध, हरे महासागरों में विकसित प्रकाश संश्लेषण करने वाले बैक्टीरिया थे, जो वास्तव में शैवाल नहीं थे।
- सायनोबैक्टीरिया ने दो प्रकार के पिगमेंट का उपयोग किया:
- क्लोरोफिल: सामान्य सूर्य प्रकाश को अवशोषित करने के लिए, और
- फाइकोएरिथ्रोबिलिन (PEB): हरा प्रकाश अवशोषित करने के लिए।
- इससे सायनोबैक्टीरिया को अलग-अलग तरह के प्रकाश की मौजूदगी और समुद्री परिस्थितियों में जीवित रहने में मदद मिली।
- इन बैक्टीरिया ने पृथ्वी के वायुमंडल को ऑक्सीजन से भर दिया और फिर जटिल जीवन रूपों के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।
महासागरों के अन्य संभावित रंग
- बैंगनी रंग का महासागर: प्रबल ज्वालामुखी गतिविधियों के कारण सल्फर की मात्रा बढ़ने और ऑक्सीजन की कमी होने पर बैंगनी-सल्फर-बैक्टीरिया तेजी से पनप सकते हैं, जिससे समुद्र का रंग गहरा बैंगनी नज़र आ सकता है।
- लाल रंग का महासागर: उष्णकटिबंधीय जलवायु में चट्टानों के तीव्र अपक्षय या लाल शैवाल प्रस्फुटन (जैसे “रेड टाइड”) परिघटना के कारण महासागर लाल रंग जैसा दिखाई दे सकते हैं।
- आजकल समुद्र के किनारे पोषक तत्वों के बहकर आने से शैवाल प्रस्फुटन (Algae blooms) की ऐसी घटनाएं प्रायः देखी जाती हैं।
महासागर नीले रंग का क्यों दिखाई देता है?
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