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पी.एम. पोषण | Current Affairs | Vision IAS
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Posted 11 Apr 2025

Updated 12 Apr 2025

43 min read

पी.एम. पोषण

पी.एम. पोषण  योजना के अंतर्गत स्कूली बच्चों को दिए जाने वाले पके भोजन में उपयोग होने वाली सामग्री की लागत में 9.50 फीसदी की वृद्धि की गई है। 

  • इससे विद्यार्थियों को पर्याप्त और पौष्टिक भोजन मिलता रहेगा।

पी.एम. पोषण योजना के बारे में

  • कार्यान्वयन: केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय
  • उद्देश्य: पात्र बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार करके भोजन की कमी और शिक्षा प्राप्ति की दोहरी चुनौती का समाधान करना।
  • योजना का प्रकार: यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है। 
  • इस योजना के तहत सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में बालवाटिका से लेकर कक्षा 8 तक पढ़ने वाले 11 करोड़ से अधिक छात्रों को गरम पका हुआ भोजन प्रदान किया जाता है।
  • क्रियान्वयन अवधि: 2021-22 से 2025-26 तक
  • बालवाटिका: कक्षा 1 से पहले की प्री-प्राइमरी कक्षाओं के बच्चों के लिए भी गरम भोजन परोसने की व्यवस्था है।
  • तिथि भोजन: यह सामुदायिक भागीदारी आधारित कार्यक्रम है। इसके तहत त्योहारों या विशेष अवसरों पर लोग बच्चों को विशेष भोजन उपलब्ध कराते हैं।
  • विशेष प्रावधान: आकांक्षी जिलों और एनीमिया की उच्च दर वाले जिलों के बच्चों को पूरक पोषण सामग्री प्रदान करने की विशेष व्यवस्था की गई है।
  • Tags :
  • पी.एम. पोषण
  • (प्रधान-मंत्री पोषण शक्ति निर्माण

ब्लूवाशिंग

वेस्ट टू एनर्जी (WTE) उद्योग ने अपने ऊपर लगे ‘ग्रीनवाशिंग’ के आरोपों से बचने के लिए ‘ब्लूवाशिंग’ तरीका अपना लिया है। 

ब्लूवाशिंग के बारे में

  • यह एक प्रकार की भ्रामक विपणन रणनीति है। इसमें कंपनियां अपनी सामाजिक और नैतिक व्यावसायिक जिम्मेदारियों के बारे में झूठा या बढ़ा-चढ़ाकर दावा करती हैं, ताकि वे खुद को जिम्मेदार और संधारणीय दिखा सकें।
  • अन्य संबंधित शब्दावलियां 
    • ग्रीनवाशिंग: इसमें कंपनियां अपने व्यवसाय के पर्यावरण अनुकूल होने के प्रयासों को झूठे या भ्रामक रूप में प्रस्तुत करती हैं, ताकि वे खुद को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जिम्मेदार दिखा सकें।
    • पिंकवाशिंग: इसके तहत कंपनियां केवल मार्केटिंग उद्देश्यों से खुद को LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों के रक्षक के रूप में दिखाती हैं, जबकि हकीकत में वे अपने LGBTQ+ कर्मचारियों की कार्यदशा में सुधार नहीं करती हैं।
  • Tags :
  • ब्लूवाशिंग
  • वेस्ट टू एनर्जी
  • पिंकवाशिंग

आर्कटिक बायोम

वैज्ञानिकों के एक हालिया अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि वैश्विक स्तर पर जंगल की आग की बढ़ती घटनाओं के कारण आर्कटिक टुंड्रा बायोम की कार्बन अवशोषण करने की प्राकृतिक क्षमता घट रही है। 

आर्कटिक टुंड्रा बायोम के बारे में

  • प्राप्ति क्षेत्र: आर्कटिक टुंड्रा बायोम आर्कटिक सर्कल (66° 33’N) के उत्तरी हिस्से में पाया जाता है। इसके अंतर्गत अलास्का, कनाडा, ग्रीनलैंड और रूस के कुछ हिस्से शामिल हैं।
  • विशेषताएं:
    • जलवायु: यह अत्यधिक ठंडा क्षेत्र है, जहाँ साल के लगभग 6 से 10 महीनों तक औसत तापमान 0°C से नीचे बना रहता है। यहां वर्षा बहुत कम होती है, जिससे यह रेगिस्तान जैसा प्रतीत होता है।
    • पर्माफ्रॉस्ट टुंड्रा बायोम की एक विशेष पहचान है। पर्माफ्रॉस्ट वह जमीन, तलछट या चट्टान है जो कम-से-कम दो वर्षों तक पूरी तरह जमी रहती है।
    • वनस्पति: पर्माफ्रॉस्ट के कारण पौधों की जड़ें ज़्यादा गहराई तक नहीं जा पातीं, इसलिए इस क्षेत्र में मुख्य रूप से काई, लाइकेन, छोटी झाड़ियाँ, घासें और सेजेस (Sedges) जैसे पौधे ही उगते हैं।
    • वन्यजीव: यहां प्राप्त होने वाली प्रमुख प्रजातियों में लेमिंग, आर्कटिक भेड़िए, ध्रुवीय भालू, बाज, आदि शामिल हैं।
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  • आर्कटिक बायोम
  • आर्कटिक टुंड्रा बायोम

कार्बन अधिकार (Carbon Rights)

राइट्स एंड रिसोर्सेस इनिशिएटिव (RRI) की एक रिपोर्ट में कार्बन अधिकारों का एक संक्षिप्त विवरण प्रदान किया गया है। 

कार्बन अधिकारों के बारे में

  • वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्बन अधिकारों की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है।
    • कुछ संगठनों के अनुसार, कार्बन अधिकार उन लाभों पर कानूनी दावा या अधिकार हैं जो वायुमंडल से कार्बन हटाने या उसे अवशोषित करने वाली गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं।
  • कार्बन अधिकार दो मूलभूत अवधारणाओं पर आधारित होते हैं: 
    • भूमि, वृक्ष, मृदा आदि में कार्बन को अवशोषित और संग्रहित करने से जुड़े संपत्ति अधिकार।
    • उत्सर्जन व्यापार योजनाओं के माध्यम से इन संपत्ति अधिकारों के हस्तांतरण से उत्पन्न लाभों पर अधिकार। 
  • Tags :
  • कार्बन अधिकार
  • राइट्स एंड रिसोर्सेस इनिशिएटिव

सुनामी प्रवण क्षेत्र

भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) के अनुसार, भारत के सभी तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश पर दो प्रमुख सबडक्शन ज़ोन (प्रविष्ठन क्षेत्र) से उत्पन्न होने वाली सुनामी की घटनाओं से प्रभावित होने का खतरा है। 

  • ये दो प्रमुख सबडक्शन ज़ोन हैं: अंडमान-निकोबार-सुमात्रा द्वीपीय चाप और मकरान सबडक्शन ज़ोन। 

अंडमान-निकोबार-सुमात्रा द्वीप चाप के बारे में

  • यह द्वीपों और पर्वतों की 5,000 किलोमीटर लंबी श्रृंखला है। यह म्यांमार से इंडोनेशियाई द्वीपसमूह तक विस्तृत है।
  • यहाँ भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे धंस रही है, जिससे यह क्षेत्र एक प्रमुख सबडक्शन जोन बन गया है।  

 मकरान सबडक्शन ज़ोन के बारे में

  • यह प्लेट विवर्तनिकी सीमा (Tectonic plate boundary) है। यहां अरब सागर प्लेट, यूरेशियन प्लेट के नीचे धंस रही है। यह मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्वी ईरान और दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान में अवस्थित है। 
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  • INCOIS
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  • सबडक्शन ज़ोन

मैटर-एंटीमैटर असममिति

सर्न/ CERN के लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर ब्यूटी ((LHCb) एक्सपेरिमेंट ने बारियोंस पार्टिकल्स में चार्ज-पैरिटी (CP) उल्लंघन की पुष्टि की है। बारियोंस पार्टिकल्स वे कण हैं जो प्रोटॉन और न्यूट्रॉन सहित परमाणु नाभिक बनाते हैं।

  • पार्टिकल्स और एंटी-पार्टिकल्स एक-दूसरे के जैसे दिखते हैं, जैसे शीशे में देखने पर होता है। लेकिन कुछ कण ऐसे हैं जो इस नियम को तोड़ते हैं, और ऐसा चार्ज-पैरिटी (CP) उल्लंघन के कारण होता है।
  • मैटर-एंटीमैटर पार्टिकल्स हमेशा एक साथ बनते हैं और इनका द्रव्यमान एक जैसा होता है, परंतु विद्युत आवेश विपरीत होता है।
    • यदि वे संपर्क में आते हैं, तो वे एक दूसरे को नष्ट कर देते हैं, और पीछे शुद्ध ऊर्जा मुक्त करते हैं।
  • बिग बैंग की परिघटना के बाद, मैटर का एक बहुत छोटा हिस्सा बच गया, जिससे आज का पूरा दृश्य ब्रह्मांड बना है।
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  • मैटर-एंटीमैटर असममिति
  • CERN
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विटामिन D

हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीयों में विटामिन D की कमी एक महत्वपूर्ण समस्या बन गई है। गौरतलब है कि भारत में हर पांच में से एक व्यक्ति विटामिन D कमी से ग्रस्त है।

  • शहरी जीवन-शैली, वायु प्रदूषण का उच्च स्तर, इनडोर कार्य की संस्कृति, आदि कारक शरीर में विटामिन D बनने की प्राकृतिक प्रक्रिया में बाधा डाल रहे हैं। 

विटामिन D के बारे में

  • इसे कैल्सीफेरॉल के रूप में भी जाना जाता है। यह वसा में घुलनशील विटामिन है जो बेहतर स्वास्थ्य के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
  • यह प्राकृतिक रूप से कुछ सीमित खाद्य पदार्थों में ही पाया जाता है, जबकि अन्य खाद्य पदार्थों में इसे मिलाया जा सकता है। यह आहार पूरक के रूप में भी उपलब्ध है।

विटामिन D के स्रोत

  • प्राकृतिक: मनुष्य का शरीर सूर्य के प्रकाश से प्राकृतिक रूप से विटामिन D का निर्माण करता है।
  • खाद्य पदार्थ: तैलीय मछली (सैल्मन, सार्डिन, हेरिंग, मैकेरल, आदि); लाल मांस और लीवर; अंडे का योल्क; आदि।
  • महत्त्व: यह शरीर में कैल्शियम और फॉस्फेट के स्तर को नियंत्रित करता है, जो हड्डियों, दांतों और मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी है। 
  • कमी होने पर क्या होता है: 
    • हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, जिससे फ्रैक्चर और ऑस्टियोपोरोसिस हो सकता है। 
    • बच्चों में यह रिकेट्स नामक रोग पैदा कर सकता है, जिसमें हड्डियां कमजोर होकर झुकने लगती हैं। 
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  • विटामिन D
  • कैल्सीफेरॉल

डायटम्स

स्यूडो-निट्ज़्चिया (Pseudo-nitzschia) एक विशेष प्रकार का डायटम है। यह डोमोइक एसिड का उत्पादन करता है, जो एक प्रकार का मरीन टॉक्सिन या समुद्री विष है। यह विष समुद्री खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करता है और सी लायंस में आक्रामक व्यवहार पैदा करता है।

डायटम के बारे में

  • डायटम्स प्रकाश-संश्लेषण करने वाले शैवाल हैं। इनकी बाहरी परत सिलिका से बनी होती है। ये महासागर और नदियों से लेकर मृदा तक लगभग सभी जलीय और नम वातावरण में पाए जाते हैं। 

महत्त्व

  • प्रकाश संश्लेषण: ये क्लोरोफिल A और C की मदद से सूर्य के प्रकाश को ऊर्जा में बदलने का काम करते हैं।
  • ऑक्सीजन उत्पादन: डायटम पृथ्वी की 20-25% ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं।
  • कार्बन का अवशोषण: ये वातावरण से CO₂ का अवशोषण तथा ऑक्सीजन निर्मुक्त करते हैं।
  • खाद्य श्रृंखला का आधार: इनसे मिलने वाले लॉन्ग-चेन फैटी एसिड को ज़ूप्लैंकटन, कीड़े, मछलियां, और व्हेल जैसे जीव खाते हैं।

जल गुणवत्ता संकेतक: डायटम pH, लवणता, पोषक तत्वों, तलछट और मानव प्रभाव के प्रति संवेदनशील होते हैं।

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  • डायटम्स
  • डोमोइक एसिड
  • स्यूडो-निट्ज़्चिया
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