2020 के एक समझौते के तहत बांग्लादेश को यह सुविधा दी गई थी कि वह अपने देश की वस्तुओं को भारतीय भूमि पर स्थित सीमा शुल्क स्टेशनों (LCSs) के माध्यम से यूरोप, पश्चिम एशिया आदि क्षेत्र के अन्य देशों को निर्यात कर सकता है।
- भारत ने इस समझौते को रद्द करने का प्राथमिक कारण लॉजिस्टिक्स से जुड़ी चुनौतियों को बताया है। इसमें विशेष रूप से इस बात का उल्लेख किया गया है कि भारतीय बंदरगाहों और हवाई अड्डों पर अत्यधिक भीड़भाड़ हो रही है, जिससे भारत के अपने निर्यात कार्यों में बाधा उत्पन्न हो रही है।
- हालांकि, सरकार ने यह फैसला तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों और बांग्लादेशी सरकार के मुख्य सलाहकार द्वारा हाल ही में की गई टिप्पणियों के बाद लिया है। गौरतलब है कि बांग्लादेशी सरकार के सलाहकार ने यह कहते हुए हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की नेट सुरक्षा प्रदाता की भूमिका को नकार दिया था कि ‘बांग्लादेश ही हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में सभी के लिए एकमात्र सुरक्षा प्रदाता है।’
हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में नेट सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका
- भू-रणनीतिक: हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की केंद्रीय स्थिति; लगभग 7,500 किलोमीटर की तटरेखा; और मलक्का जलडमरूमध्य, बाब अल-मंदेब जैसे प्रमुख चोकपॉइंट्स से भारत की निकटता; आदि इसे IOR में एक महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करते है।
- भारत ने ‘महासागर/ MAHASAGAR’ (क्षेत्र में सुरक्षा और विकास के लिए पारस्परिक और समग्र उन्नति) विजन, 2025 जारी किया है। यह 2015 के सागर/ SAGAR नीति का ही विस्तार है।
- समुद्री सुरक्षा: भारत हिंद महासागर क्षेत्र में एंटी-पायरेसी और तस्करी-रोधी अभियान संचालित करता है। इससे समुद्री व्यापार मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- विकास और मानवीय सहायता: भारत ने हिंद महासागर में 2004 में आई सुनामी, 2014 के मालदीव जल संकट और 2022 के श्रीलंकाई आर्थिक संकट जैसी स्थितियों में तुरंत मदद पहुँचाई। इस त्वरित प्रतिक्रिया ने भारत को इस क्षेत्र में “संकट के समय सबसे पहले मदद करने वाले देश” के रूप में पहचान दिलाई है।
हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की वर्तमान स्थिति के समक्ष चुनौतियां
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