सुप्रीम कोर्ट ने पिंकी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में सुनवाई करते हुए सभी हाई कोर्ट्स को निर्देश दिया कि बाल तस्करी से संबंधित मुकदमों का निपटारा छह महीनों के भीतर किया जाए। साथ ही, इस मामले में हुई प्रगति पर भी रिपोर्ट देने को कहा।

- शीर्ष न्यायालय ने ऐसे मामलों में दोषी सिद्ध होने की कम दर पर भी चिंता जताई। कम दोषसिद्धि दर के लिए निम्नलिखित कारण जिम्मेदार हैं:
- तस्करों को आसानी से जमानत मिलना,
- गवाहों का बाद में मुकर जाना,
- मुकदमे में देरी, आदि।
बाल तस्करी से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट के अन्य प्रमुख निर्देश:
- रिपोर्टिंग:
- लापता बच्चों के मामलों को अपहरण या तस्करी माना जाए जब तक कि कोई अन्य वजह साबित न हो।
- पुलिस या एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (AHTU) द्वारा मानव तस्करी के सभी मामलों की अनिवार्य रिपोर्टिंग सुनिश्चित की जाए।
- बाल संरक्षण प्रणाली को मजबूत करना:
- प्रत्येक राज्य की राजधानी में राज्य स्तरीय एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग ब्यूरो की स्थापना की जाए।
- प्रत्येक जिले में बाल कल्याण समितियों की स्थापना की जाए और जिन जिलों में ये पहले से स्थापित हैं, उनमें सुधार किया जाए।
- खतरनाक उद्योगों की नियमित जांच की जाए, और नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
- पीड़ित बच्चों के लिए बाल-मित्र न्यायालयों की स्थापना की जाए, जैसे कि तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में स्थापित किए गए हैं।
- अन्य उपाय:
- पीड़ितों की सहायता से संबंधित प्रणालियों में सुधार करना चाहिए।
- कम्युनिटी पुलिसिंग को बढ़ावा देना चाहिए।
- बच्चों के बचाव और पुनर्वास तथा जन-जागरूकता अभियानों में गैर-सरकारी संगठनों की मदद लेनी चाहिए।
बाल तस्करी को रोकने के लिए उठाए गए कदम:
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