सुप्रीम कोर्ट ने बाल तस्करी से निपटने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए | Current Affairs | Vision IAS
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सुप्रीम कोर्ट ने बाल तस्करी से निपटने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए

Posted 16 Apr 2025

13 min read

सुप्रीम कोर्ट ने पिंकी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में सुनवाई करते हुए सभी हाई कोर्ट्स को निर्देश दिया कि बाल तस्करी से संबंधित मुकदमों का निपटारा छह महीनों के भीतर किया जाए। साथ ही, इस मामले में हुई प्रगति पर भी रिपोर्ट देने को कहा।

  • शीर्ष न्यायालय ने ऐसे मामलों में दोषी सिद्ध होने की कम दर पर भी चिंता जताई। कम दोषसिद्धि दर के लिए निम्नलिखित कारण जिम्मेदार हैं:
    • तस्करों को आसानी से जमानत मिलना, 
    • गवाहों का बाद में मुकर जाना,
    • मुकदमे में देरी, आदि। 

बाल तस्करी से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट के अन्य प्रमुख निर्देश:

  • रिपोर्टिंग:
    • लापता बच्चों के मामलों को अपहरण या तस्करी माना जाए जब तक कि कोई अन्य वजह साबित न हो।
    • पुलिस या एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (AHTU) द्वारा मानव तस्करी के सभी मामलों की अनिवार्य रिपोर्टिंग सुनिश्चित की जाए।
  • बाल संरक्षण प्रणाली को मजबूत करना:
    • प्रत्येक राज्य की राजधानी में राज्य स्तरीय एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग ब्यूरो की स्थापना की जाए।
    • प्रत्येक जिले में बाल कल्याण समितियों की स्थापना की जाए और जिन जिलों में ये पहले से स्थापित हैं, उनमें सुधार किया जाए।
    • खतरनाक उद्योगों की नियमित जांच की जाए, और नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
    • पीड़ित बच्चों के लिए बाल-मित्र न्यायालयों की स्थापना की जाए, जैसे कि तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में स्थापित किए गए हैं।
  • अन्य उपाय:
    • पीड़ितों की सहायता से संबंधित प्रणालियों में सुधार करना चाहिए।
    • कम्युनिटी पुलिसिंग को बढ़ावा देना चाहिए।
    • बच्चों के बचाव और पुनर्वास तथा जन-जागरूकता अभियानों में गैर-सरकारी संगठनों की मदद लेनी चाहिए।  

बाल तस्करी को रोकने के लिए उठाए गए कदम:

  • किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम (2015): यह कानून तस्करी के पीड़ित या असुरक्षित बच्चों की सुरक्षा एवं पुनर्वास सुनिश्चित करता है।
  • लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम (2012): यह कानून बालकों को यौन शोषण से बचाने के लिए बाल-अनुकूल प्रक्रियाओं का प्रावधान करता है।
  • बालक और कुमार श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) [CALPR] अधिनियम, 1986: इसके तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बालकों के नियोजन पर प्रतिबंध लगाया गया है जबकि 14-18 वर्ष की आयु के कुमारों (किशोरों) को खतरनाक कार्यों या व्यवसायों में नियोजन पर प्रतिबंध लगाया है है।
  • राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP): इसके तहत जिला स्तरीय कार्यक्रमों के माध्यम से बाल श्रमिकों का पुनर्वास किया जाता है।
  • PENCIL पोर्टल: यह CALPR अधिनियम और NCLP योजना के सही से क्रियान्वयन की निगरानी करता है।
  • Tags :
  • बाल तस्करी
  • एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट
  • किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम
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