महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 के तहत मनरेगा योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। यह योजना एक वित्तीय वर्ष में उस ग्रामीण परिवार को 100 दिनों के मजदूरी आधारित रोजगार की गारंटी देती है, जिसका वयस्क सदस्य स्वेच्छा से अकुशल शारीरिक श्रम करने का इच्छुक होता है।
समिति द्वारा उठाए गए मुद्दे
- लंबित मामलों की अधिक संख्या: मजदूरी और सामग्री दोनों घटकों की कुल लंबित देनदारियां 23,446.27 करोड़ रुपये है। यह मौजूदा बजट का 27.26% है।
- जॉब कार्डों को अमान्य घोषित करना: 2021-22 में मामूली वर्तनी त्रुटियों या आधार बेमेल होने के कारण लगभग 50.31 लाख जॉब कार्ड हटा दिए गए।
- मजदूरी संबंधी मुद्दे: मनरेगा की मजदूरी मुद्रास्फीति के साथ तालमेल बिठाने में विफल रही है, और यह निर्वाह स्तर से भी नीचे गिर गई है।
- सामाजिक लेखा परीक्षा में अनियमितताएं: 2024-25 में लगभग 67% नियोजित ग्राम पंचायतों का लेखा-परीक्षण किया गया।
समिति द्वारा की गई सिफारिशें
- सर्वेक्षण: कार्यक्रम की कमियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए पूरे देश में स्वतंत्र और पारदर्शी तरीके से सर्वेक्षण किए जाने की आवश्यकता है।
- मुआवजे में वृद्धि: श्रमिकों के लिए समय पर पारिश्रमिक सुनिश्चित करने हेतु विलंबित मजदूरी के लिए वर्तमान मुआवजा दर को बढ़ाया जाना चाहिए।
- ज्ञातव्य है कि श्रमिक मस्टर रोल बंद होने के सोलहवें दिन से अधिक विलंब की अवधि के लिए प्रतिदिन अवैतनिक मजदूरी के 0.05% की दर से विलंब मुआवजा पाने के हकदार हैं।
- आधार का कार्यान्वयन: आधार-आधारित भुगतान प्रणाली वैकल्पिक बनी रह सकती है तथा वैकल्पिक भुगतान तंत्र भी उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
- सामाजिक लेखा-परीक्षा को मजबूत बनाना: नियमित रूप से लेखा-परीक्षा सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीण विकास विभाग द्वारा सामाजिक लेखा-परीक्षा कैलेंडर शुरू किया जाना चाहिए।
मनरेगा के तहत शुरू की गई नई पहलें
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