रिपोर्ट दर्शाती है कि देशज या मूलवासी समुदायों को अंतर्राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई वित्त-पोषण का केवल 1% से भी कम प्राप्त होता है। साथ ही, अक्सर उन्हें जलवायु परिवर्तन से निपटने की निर्णय प्रक्रियाओं से भी बाहर रखा जाता है।
जलवायु परिवर्तन का देशज लोगों पर प्रभाव
- देशज समुदाय की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: कृषि, मात्स्यिकी और वानिकी पर आधारित उनकी आजीविकाएं जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रही हैं। इससे इन समुदायों की आर्थिक आत्मनिर्भरता और संधारणीयता खतरे में पड़ गई है।
- भूमि और प्राकृतिक संसाधन पर प्रभाव: उनके पूर्वजों की भूमि और पारिस्थितिकी-तंत्रों में बदलाव से जमीन से जुड़ी उनकी सांस्कृतिक परम्पराएं प्रभावित हो रही हैं। इससे प्राकृतिक पर्यावरण के उपयोग और संरक्षण में उनकी भूमिका तथा इन संसाधनों पर उनकी संप्रभुता कम हो रही है।
- स्वास्थ्य और सेहत पर प्रभाव: स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं उपलब्ध नहीं होने तथा पारंपरिक खाद्य स्रोतों से वंचित होने के कारण देशज समुदायों के जलवायु परिवर्तन से संबंधित बीमारियों की चपेट में आने का खतरा बढ़ गया है।
- भाषा और सांस्कृतिक विरासत पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण देशज समुदायों की भाषाओं, परंपराओं एवं सांस्कृतिक पहचान के समक्ष संकट उत्पन्न हो गया है।
जलवायु परिवर्तन से निपटने में देशज समुदायों की भूमिका
- जैव विविधता संरक्षण में भूमिका: विश्व की केवल 6% आबादी होने के बावजूद, देशज समुदाय पृथ्वी पर बची जैव विविधता के लगभग 80% का संरक्षण करते हैं।
- पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण में भूमिका: देशज समुदाय भूमि, क्षेत्रों और संसाधनों के पारंपरिक उपयोग व प्रबंधन के अमूल्य स्रोत हैं। इसी तरह उनकी पारंपरिक कृषि पद्धतियां संसाधनों को समाप्त किए बिना पृथ्वी की देखभाल सुनिश्चित करती हैं।
- उदाहरण के लिए- मेक्सिको का कोमकाक (Comcaac) समुदाय समुद्री और पारिस्थितिकी-तंत्र के पारंपरिक ज्ञान को अपनी भाषा में संरक्षित करता है।
- देशज संस्कृति द्वारा संरक्षण: सोमालिया के कुछ देशज समुदायों की संस्कृति में कुछ प्रकार के वृक्षों की कटाई पर प्रतिबंध है। इस परंपरा का दस्तावेजों में दर्ज नीतियों की बजाय कहावतों, कहानियों और सामाजिक मान्यताओं द्वारा पीढ़ियों से पालन किया जाता रहा है।