प्रधान मंत्री ने इस तथ्य को उजागर किया कि औपनिवेशिक मानसिकता तब गहन होने लगी, जब 1835 ई. में ब्रिटिश सांसद थॉमस बैबिंगटन मैकाले ने भारत के सांस्कृतिक आधार को खत्म करने के लिए एक बड़ा अभियान शुरू किया।
- 1835 ई. में शिक्षा पर मैकाले मिनट जारी किया गया था। इस मिनट में भारत में संस्कृत, हिंदी, अरबी आदि प्राच्य भाषाओं में शिक्षा को निरर्थक घोषित करते हुए अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देने पर बल दिया गया था।
- ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने के संदर्भ में, महात्मा गांधी ने टिप्पणी की थी कि “भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली एक सुंदर वृक्ष थी, जिसे उखाड़कर नष्ट कर दिया गया।”
भारत में औपनिवेशिक मानसिकता: मुख्य तत्व
- भाषा: अदालतों और विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी भाषा का उपयोग आकांक्षी माना जाता है। इससे कभी-कभी गैर-अंग्रेजी भाषी लोगों के लिए पहुंच में बाधा उत्पन्न होती है।
- संस्कृति: औपनिवेशिक शासन ने पश्चिमी सांस्कृतिक तत्वों को थोपा है, जिसमें पश्चिमी वेशभूषा, भोजन, कला के रूप, तौर-तरीके और मूल्य शामिल हैं। ये तत्व भारतीय ज्ञान प्रणालियों को हीन बताते हैं।
- कानून और संस्थाएं: IPC (भारतीय दंड संहिता), वन कानून, राजद्रोह जैसे कई औपनिवेशिक कानून और आपराधिक प्रक्रियाएं सेवा की बजाय नियंत्रण स्थापित करने पर केंद्रित हैं।
- आर्थिक प्रणाली: आयातित आर्थिक मॉडल्स और निजी पूंजी पर जोर देने से बड़ी संख्या में आबादी की निर्धनता में वृद्धि हुई है।
- ज्ञान प्रणालियां: अनुसंधान और नवाचार के आयातित मॉडल्स पर अधिक जोर देने के कारण देशज ज्ञान प्रणालियां भुला दी गई हैं।
संज्ञानात्मक विऔपनिवेशीकरण (Cognitive Decolonisation): आगे की राह
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