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    प्रधान मंत्री ने बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की

    Posted 15 Nov 2025

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    प्रधानमंत्री ने बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती मनाई और जनजातीय पुनरुत्थान, उपनिवेशवाद विरोधी प्रतिरोध तथा भारत में जनजातीय अधिकारों और भूमि सुधारों के प्रयासों में उनकी भूमिका पर प्रकाश डाला।

    15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर 'जनजाति गौरव दिवस' के रूप में मनाया जाता है। 

    • उल्लेखनीय है कि सरकार ने 2021 में 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस घोषित किया था।

    बिरसा मुंडा के बारे में

    • प्रारंभिक जीवन:
      • उनका जन्म 1875 में वर्तमान झारखंड के खूंटी जिले के उलिहातू गांव में हुआ था। उनके बचपन का नाम दाउद मुंडा था।
      • वे छोटानागपुर पठार क्षेत्र की मुंडा जनजाति से संबंधित थे। यह क्षेत्र वर्तमान में झारखंड में है।
    • उनकी शिक्षाएं और विश्वास
      • एकेश्वरवाद: उन्होंने बिरसाइत (Birsait) नामक एक नए पंथ की स्थापना की थी। यह संप्रदाय एक ईश्वर में विश्वास करता था और आदिवासी समाज में सुधार के लिए आचार संहिता का पालन करने पर जोर देता था।
      • जनजातीय आस्था का पुनरुद्धार: उन्होंने ईसाई मिशनरियों के प्रभाव को अस्वीकार कर दिया और पारंपरिक मुंडा धार्मिक प्रथाओं में सुधार करने का प्रयास किया।
      • नैतिक अनुशासन: उन्होंने स्वच्छता, कठोर परिश्रम, शराब से दूर रहने तथा व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन में पवित्रता पर जोर दिया।
    • औपनिवेशिक प्रतिरोध में योगदान
      • उन्होंने मुंडा विद्रोह का नेतृत्व किया। इस विद्रोह को “उलगुलान (महान विप्लव)” भी कहा जाता है।
      • मुंडा जनजाति में बिरसा के योगदान के कारण उन्हें भगवान का दर्जा दिया गया है। उन्हें धरती आबा (पृथ्वी का पिता) के रूप में पूजा जाता है।
    • मृत्यु और विरासत
      • 9 जून, 1900 को एक बीमारी के कारण उनकी मृत्यु रांची जेल में हुई थी।
      • उनके आंदोलन ने बेगार प्रथा को समाप्त करने में योगदान दिया था। इसके परिणामस्वरूप, काश्तकारी अधिनियम (1903) पारित किया गया, जिसके तहत खुंटकट्टी प्रणाली को मान्यता प्रदान की गई।  
      • छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (1908): इसके तहत आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने पर रोक लगा दी गई।

    मुंडा विद्रोह के बारे में

    • बिरसा मुंडा ने 1895 में छोटानागपुर, बंगाल और ओडिशा के आदिवासियों को एकजुट करके इस आंदोलन की शुरुआत की थी। इस आंदोलन का लक्ष्य दिकू लोगों (बाहरी लोगों) और यूरोपीय लोगों को अपने क्षेत्र से निकाल कर स्वतंत्र मुंडा राज्य की स्थापना करना था।
    • विद्रोह के लिए जिम्मेदार महत्वपूर्ण कारण
      • जमींदारी व्यवस्था की शुरुआत: औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार ने मुंडा समुदाय की मुंडारी खुंटकट्टी यानी सामुदायिक भू-स्वामित्व जैसी पारंपरिक प्रथाओं को समाप्त कर दिया।
        • ब्रिटिश सरकार की नीतियों के चलते आदिवासी समुदायों में वेथ बेगारी (जबरन मजदूरी) और बंधुआ मजदूर (बंधुआ मजदूरी) जैसी कुरीतियां पैदा हो गईं।
      • दिकुओं (बाहरी लोग, जैसे- साहूकार, व्यापारी, मिशनरी आदि) द्वारा शोषण।
      • मिशनरियों द्वारा उनकी पारंपरिक संस्कृति की आलोचना आदि।
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