भारत में इस्पात क्षेत्रक (Steel Sector in India) | Current Affairs | Vision IAS
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    भारत में इस्पात क्षेत्रक (Steel Sector in India)

    Posted 01 Jan 2025

    Updated 28 Nov 2025

    1 min read

    सुर्ख़ियों में क्यों? 

    हाल ही में, केंद्र सरकार ने 2034 तक 500 मिलियन टन घरेलू इस्पात उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है।

    भारत के इस्पात क्षेत्रक के बारे में

    • पारंपरिक रूप से धातुओं में इस्पात का शीर्ष स्थान रहा है और यह औद्योगीकरण के प्रमुख कारकों में शामिल रहा है।
    • इस्पात लोहे और कार्बन की एक मिश्रधातु है। इसमें कार्बन की मात्रा 2% से कम, मैंगनीज की मात्रा 1% और आंशिक मात्रा में सिलिकॉन, फास्फोरस, सल्फर और ऑक्सीजन शामिल होते हैं। कार्बन की मात्रा अधिक होने पर इसे कास्ट आयरन कहा जाता है।
    • भारत में इस क्षेत्रक का विकास घरेलू स्तर पर कच्चे माल की उपलब्धता से प्रेरित है, जैसे- लौह अयस्क (लौह अयस्क का पांचवां सबसे बड़ा भंडार), सस्ता श्रम (जैसे- पश्चिम बंगाल में दुर्गापुर), और अवसंरचना विकास में वृद्धि तथा फलते-फूलते ऑटोमोबाइल क्षेत्रक और रेलवे, आदि।
    • भारत में इस्पात उद्योग के विकास को प्रेरित करने वाले अन्य स्थानिक कारक हैं: जल की उपलब्धता (जैसे- स्वर्णरेखा नदी के निकट जमशेदपुर में टाटा स्टील), बाजारों से निकटता (जैसे- छत्तीसगढ़ में भिलाई संयंत्र) और परिवहन साधन की उपलब्धता (जैसे- विशाखापत्तनम बंदरगाह के पास आंध्र प्रदेश में विजाग स्टील प्लांट)।

    भारत में इस्पात क्षेत्रक के समक्ष प्रमुख चुनौतियां क्या हैं?

    • पूंजी की कमी: इस्पात उद्योग में अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। ग्रीनफील्ड रूट के माध्यम से 1 टन इस्पात बनाने की क्षमता स्थापित करने के लिए लगभग 7,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता पड़ती है।
      • इस्पात की मांग, चक्रीय प्रकृति की होती है। इसलिए, मंदी के दौरान निवेश पर रिटर्न कम हो जाता है।
    • लॉजिस्टिक की उच्च लागत: नीति आयोग का अनुमान है कि जमशेदपुर से मुंबई तक माल ढुलाई की लागत 50 डॉलर प्रति टन तक हो सकती है, जबकि रॉटरडैम से मुंबई तक यह प्रति टन 34 अमेरिकी डॉलर है। 
    • कच्चे माल की कमी: हालांकि, भारत में लौह अयस्क और कोयले का पर्याप्त भंडार है, लेकिन कोकिंग कोल का भंडार न के बराबर है।
      • भारत अपनी कोकिंग कोल की ज़रूरतों को ऑस्ट्रेलिया से महंगे आयात के माध्यम से पूरा करता है।
    • प्रति व्यक्ति खपत कम: 2023 में विश्व में प्रति व्यक्ति तैयार स्टील की खपत 219.3 किलोग्राम थी और चीन में यह 628.3 किलोग्राम थी। वहीं, 2023-24 में भारत में प्रति व्यक्ति इस्पात खपत महज 97.7 किलोग्राम थी।
    • इस्पात उत्पादन के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की जरूरत: विश्व में इस्पात उद्योग सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जित करने वाला विनिर्माण क्षेत्रक है। इसलिए, इस उद्योग का कार्बन फुटप्रिंट का स्तर काफी अधिक होता है।
    • निर्यात में चुनौतियां: उदाहरण के लिए, भारत के लौह और इस्पात का निर्यात मुख्य तौर पर यूरोपीय संघ (EU) को किया जाता है। EU द्वारा इस्पात के आयात पर 19.8% से 52.7% तक के कार्बन टैक्स लगाने के प्रस्ताव के कारण भारतीय निर्यात प्रभावित हो सकता है।

    इस्पात क्षेत्रक को बढ़ावा देने के लिए सरकार की पहलें 

    • राष्ट्रीय इस्पात नीति, 2017: इसका लक्ष्य 2030-31 तक भारत में इस्पात उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 300 मिलियन टन (MT) करना और प्रति व्यक्ति इस्पात खपत को बढ़ाकर 160 किलोग्राम करना है। 
    • 'मेक इन इंडिया' पहल के साथ पी.एम. गति-शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान: इस्पात की खपत को बढ़ाने के लिए रेलवे, रक्षा, आवास जैसे प्रमुख क्षेत्रकों में मांग को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
    • स्पेशलिटी स्टील हेतु उत्पादन-से-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना: इस योजना का उद्देश्य भारत में स्पेशलिटी इस्पात के उत्पादन को बढ़ावा देना और पूंजी निवेश आकर्षित करके आयात को कम करना है।
    • मिशन पूर्वोदय: यह मिशन कोलकाता में एकीकृत इस्पात हब की स्थापना के माध्यम से पूर्वी भारत (ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश) के त्वरित विकास के लिए शुरू किया गया है।
    • संशोधित इस्पात आयात निगरानी प्रणाली (SIMS) 2.0: इसका उद्देश्य इस्पात के आयात की अधिक प्रभावी तरीके से निगरानी करना और घरेलू इस्पात उद्योग को प्रभावित करने वाली समस्याओं का समाधान करना है।

    आगे की राह

    • इस्पात उद्योग के डीर्बोनाइज़ेशन के लिए जरूरी नीतियां तैयार करना: इस्पात उद्योग के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस और ग्रीन हाइड्रोजन जैसी स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निवेश करने की आवश्यकता है।
    • एडवांस प्रौद्योगिकी: दक्षता और उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाया जाना चाहिए।
      • ऑटोमेशन, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और मशीन लर्निंग जैसी इंडस्ट्री 4.0 प्रौद्योगिकियां, उत्पादकता को बढ़ा सकती हैं और भारतीय इस्पात उद्योग को घरेलू और वैश्विक माँगों को पूरा करने में सक्षम बना सकती हैं।
    • उत्पाद विविधीकरण पर जोर देना: जैसे- निर्माण कार्य के लिए एडवांस स्ट्रक्चरल इस्पात, ऑटोमोटिव और एयरोस्पेस के इस्तेमाल के लिए विशेष मिश्र धातु का निर्माण करना, आदि।

    अन्य संबंधित तथ्य 

    इस्पात क्षेत्रक को कार्बन मुक्त बनाना

    • इस्पात एवं भारी उद्योग मंत्री ने "भारत में इस्पात क्षेत्रक को हरित बनाना: रोडमैप और कार्य योजना" रिपोर्ट जारी की है।
      • यह रिपोर्ट मंत्रालय द्वारा गठित 14 टास्क फोर्स की सिफारिशों के आधार पर तैयार की गई है।
    • हरित इस्पात: वैसे, भारत सरकार ने "ग्रीन  इस्पात" को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया है, लेकिन आमतौर पर जीवाश्म ईंधन का उपयोग किए बिना इस्पात के उत्पादन को ग्रीन स्टील यानी हरित इस्पात कहा जाता है।
    • भारतीय इस्पात क्षेत्रक की CO2 उत्सर्जन तीव्रता: 2005 में प्रति टन कच्चे इस्पात पर लगभग 3.1 टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन होता था, जो 2022 में घटकर लगभग 2.5 टन CO2 रह गया है।

    इस्पात क्षेत्रक को कार्बन मुक्त करने के लिए शुरू की गई पहलें

    • परफॉर्म, अचीव और ट्रेड (PAT) योजना: यह योजना राष्ट्रीय वर्धित ऊर्जा दक्षता मिशन का हिस्सा है। यह योजना इस्पात उद्योग को ऊर्जा की खपत कम करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
    • इस्पात स्क्रैप रीसाइक्लिंग नीति 2019: यह लौह स्क्रैप के वैज्ञानिक प्रसंस्करण और रीसाइक्लिंग के लिए धातु स्क्रैपिंग केंद्रों की स्थापना को सुगम बनाने और बढ़ावा देने के लिए एक फ्रेमवर्क प्रदान करती है।
    • राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (NGHM): इसके तहत इस्पात मंत्रालय को इस्पात निर्माण में ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए पायलट परियोजना के बजट का 30% हिस्सा आवंटित किया गया है।
    • कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (CCTS): इसका उद्देश्य विभिन्न सेक्टर्स से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने या रोकने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था में इस्पात क्षेत्रक सहित कार्बन क्रेडिट सर्टिफिकेट व्यापार तंत्र के माध्यम से उत्सर्जन का मूल्य निर्धारण करना है।
    • Tags :
    • Steel Sector in India
    • Decarbonising Steel Sector
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