सुर्ख़ियों में क्यों
हाल ही में, उपराष्ट्रपति ने गोवा के राजभवन में आयुर्वेद के महान चिकित्सकों चरक और सुश्रुत की प्रतिमाओं का अनावरण किया। इस अवसर पर उन्होंने इनके जीवन और योगदान से प्रेरणा लेने की आवश्यकता का भी उल्लेख किया।
सुश्रुत के बारे में
- यह मान्यता है कि उनका जन्म प्राचीन नगरी काशी में लगभग 600 ईसा पूर्व में हुआ था।
- वे धन्वंतरि के गुरुकुल में दिवोदास के शिष्य माने जाते हैं।
सुश्रुत के महत्वपूर्ण योगदान:
- सुश्रुत संहिता की रचना:
- यह ग्रंथ दो खण्डों विभाजित है। इसका मूल भाग (तंत्र) पूर्वार्द्ध कहलाता है, जिसमें पांच खंड हैं। दूसरा आधा भाग उत्तरतंत्र है, जिसे बाद में जोड़ा गया था।
- यह आयुर्वेदिक चिकित्सा की महान त्रयी यानी तीन महान ग्रंथों में से एक है। इसके अलावा, अन्य दो ग्रंथों में महर्षि चरक द्वारा रचित 'चरक संहिता' और महर्षि वाग्भट्ट द्वारा रचित 'अष्टांग हृदय' हैं।
- सुश्रुत "शल्य चिकित्सा के जनक" माने जाते हैं:
- सुश्रुत संहिता में आठ प्रकार की शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं का उल्लेख मिलता है: भेद्य (काटना), छेद्य (छेदना), लेख्य (घाव को खरोंचना), वेध्या (छेद करना), एष्य (खोजना), अहर्य (निष्कर्षण), वस्रय (रक्त या द्रव निकालना) और सिव्य (टांके लगाना) शामिल हैं।
- मानव शरीर रचना विज्ञान के प्रथम अध्ययनकर्ताओं में से एक: उन्होंने सुश्रुत संहिता में मानव शरीर रचना विज्ञान (ह्यूमन एनाटोमी) के अध्ययन का विस्तार से वर्णन किया है। इसके लिए उन्होंने मृत शरीर (शव) का इस्तेमाल किया है।
- "प्लास्टिक सर्जरी के जनक": सुश्रुत ने गाल की त्वचा का उपयोग करके नाक की सर्जरी की थी। कटे हुए कान की लोब की मरम्मत की थी। कानों में छेद करने की सुरक्षित विधि विकसित की थी । कटे हुए होठों को ठीक किया था और घाव या जलने की वजह से खराब हुई त्वचा की जगह नई त्वचा का प्रत्यारोपण किया था।
- चिकित्सा नैतिकता: उन्होंने बनारस विश्वविद्यालय में चिकित्सा शिक्षक के रूप में चिकित्सकीय नैतिकता के मूल नियम स्थापित किए थे।
चरक के बारे में:
- ऐसा माना जाता है कि वे दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व और दूसरी शताब्दी ईसवी के बीच उत्तर पश्चिमी भारत में रहते थे।
- वे कुषाण साम्राज्य के राजवैद्य थे। उन्हें "भारतीय चिकित्सा का जनक" माना जाता है।
चरक के महत्वपूर्ण योगदान:
- चरक संहिता की रचना:
- चरक संहिता का स्रोत अग्निवेश तंत्र माना जाता है, जिसकी रचना अग्निवेश ने की थी।
- यह ग्रंथ आठ भागों में विभाजित है, जिन्हें अष्टांग स्थान कहा जाता है।
- यह एक व्यापक ग्रंथ है, जिसे आयुर्वेदिक चिकित्सा के मूल ग्रंथों में से एक माना जाता है।
- इसमें औषधीय पादपों तथा उनके चिकित्सीय गुणों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
- आचार्य चरक के ज्ञान का आधुनिक चिकित्सा विज्ञान पर प्रभाव
- त्रिदोष सिद्धांत: चरक के अनुसार तीन दोष शरीर की कार्यक्षमता के लिए जिम्मेदार होते हैं, अर्थात वात (गति), पित्त (परिवर्तन), और कफ (स्नेहन व स्थिरता) दोष।
- इन तीनों का संतुलन बना रहे, तो शरीर स्वस्थ रहता है। यदि कोई एक भी असंतुलित हो जाए, तो शरीर रोगग्रस्त हो जाता है।
- आयुर्वेदिक औषधियां: चरक संहिता में अनेक औषधियों का उल्लेख मिलता है, जिनका आज भी रोगों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है।
- आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में भी अनेक आयुर्वेदिक औषधियों (जैसे अश्वगंधा, तुलसी, त्रिफला आदि) का इस्तेमाल किया जा रहा है।
- योग: आचार्य चरक ने योग को शरीर और आत्मा दोनों के लिए उपयोगी बताया है तथा चरक संहिता में उसका विस्तृत वर्णन किया गया है।
- त्रिदोष सिद्धांत: चरक के अनुसार तीन दोष शरीर की कार्यक्षमता के लिए जिम्मेदार होते हैं, अर्थात वात (गति), पित्त (परिवर्तन), और कफ (स्नेहन व स्थिरता) दोष।