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मानव विकास रिपोर्ट 2025: बढ़ती असमानता (Human Development Report 2025: Widening Inequality)

01 Jul 2025
36 min

सुर्ख़ियों में क्यों? 

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने मानव विकास रिपोर्ट 2025 जारी की है। इस रिपोर्ट में मानव विकास में भारत की प्रगति की सराहना की गई है। साथ ही, भारत में बढ़ती असमानता, विशेष रूप से आय और लैंगिक असमानताओं के बारे में चिंता भी प्रकट की गई है। 

रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

  • मानव विकास सूचकांक (Human Development Index: HDI)
    • वैश्विक: लगातार चौथे वर्ष निम्न HDI स्कोर वाले देशों और अत्यधिक उच्च HDI स्कोर वाले देशों के बीच असमानता बढ़ती जा रही है।
      • शीर्ष 3 रैंक वाले देश: आइसलैंड, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड हैं।
    • भारत: वर्ष 2022 में HDI में भारत की 133वीं रैंक थी, जो 2023 में सुधरकर 193 देशों में 130वीं हो गई थी। 
      • वर्ष 2022 में भारत का HDI मान 0.676 था, जो 2023 में बढ़कर 0.685 हो गया। इस वजह से भारत मध्यम मानव विकास श्रेणी में शामिल हो गया है और उच्च मानव विकास सीमा (HDI ≥ 0.700) के करीब पहुंच गया है। 
      • वर्ष 1990 के बाद से, भारत का HDI मान 53% से अधिक बढ़ा है, जो वैश्विक और दक्षिण एशियाई औसत से अधिक है। 
  • असमानता-समायोजित मानव विकास सूचकांक: भारत में व्यापक असमानता के कारण मानव विकास में 30.7% की हानि देखी गई।  
    • भारत की सबसे गरीब 40% आबादी के पास कुल आय का केवल 20.2% हिस्सा है, जबकि सबसे अमीर 10% के पास 25.5% हिस्सा है। 
  • बहुआयामी निर्धनता सूचकांक (Multidimensional Poverty Index: MPI): भारत की 16.4% आबादी बहुआयामी निर्धनता से ग्रस्त है तथा 4.2% आबादी चरम बहुआयामी गरीबी में जीवनयापन कर रही है। 
    • 18.7% आबादी ऐसी है, जो बहुआयामी निर्धनता के जोखिम का सामना कर रही है। 
  • लैंगिक असमानता सूचकांक (Gender Inequality Index: GII): इस सूचकांक में भारत 193 देशों में 102वें स्थान पर है। 
    • भारत में 15 वर्ष और उससे ऊपर की आयु की महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate: LFPR) 35.1% है, जबकि पुरुषों की श्रम बल भागीदारी दर 76.4% है। 

असमानता और उसका मापन

  • असमानता का अर्थ है किसी व्यक्ति या समूह की प्रस्थिति (Status), अधिकारों या अवसरों में समानता का अभाव। 
  • असमानता के कई प्रकार हैं, जैसे- आय असमानता, सामाजिक असमानता, अवसरों की असमानता, परिणामों की असमानता आदि।
  • असमानता का मापन:
    • गिनी-गुणांक: यह एक ऐसी विधि है जिसका उपयोग किसी देश या समाज में आय या संपत्ति के वितरण में असमानता को मापने के लिए किया जाता है। यह बताता है कि लोगों के बीच आय या संपत्ति कितनी समान या असमान रूप से वितरित है। 
      • इसका मान 0 से 1 के बीच होता है। यहां 0 का अर्थ पूर्ण समानता और 1 का अर्थ है पूर्ण असमानता है। 
      • गिनी गुणांकलोरेन्ज वक्र पर आधारित होता है।
    • लोरेन्ज वक्र यह दिखाता है कि असमानता कितनी ज्यादा है। वक्र जितना अधिक झुका हुआ होता है, असमानता उतनी ही अधिक होती है।
  • पाल्मा अनुपात: यह भी असमानता मापने का एक तरीका है। इसमें आय के मामले में शीर्ष पायदान पर मौजूद 10% आबादी की प्रति घंटा कुल आय को निचले पायदान पर मौजूद 40% आबादी की प्रति घंटा कुल आय से विभाजित किया जाता है।  

भारत में असमानता के लगातार बने रहने के लिए जिम्मेदार कारक 

  • सामाजिक-सांस्कृतिक असमानताएं: भारत में जाति, जेंडर आदि पर आधारित लगातार बनी रहने वाली सामाजिक असमानताएं आर्थिक विषमताओं को बढ़ावा देती हैं।
    • जेंडर पे गैप (Gender Pay Gap): विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत में पुरुष, कुल श्रम आय का 82% हिस्सा कमाते हैं, जबकि महिलाएं केवल 18% कमाती हैं। 
    • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की कमी: यह समस्या पीढ़ी-दर-पीढ़ी गरीबी को बनाए रखती है तथा विशेष रूप से ग्रामीण एवं वंचित समुदायों में आर्थिक गतिशीलता की संभावनाओं को कम कर देती है।
      • उदाहरण के लिए- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुंच नहीं होने की वजह से गरीब आबादी को मजबूरी में कम वेतन वाली नौकरियां करनी पड़ती है। इसके अलावा, इलाज पर अपनी जेब से धन खर्च करना उन्हें और गरीब बना देता है।
  • आर्थिक विकास की प्रकृति: रोजगारविहीन संवृद्धि, भारतीय अर्थव्यवस्था में 'मिसिंग मिडिल' की समस्या, क्षेत्रकवार असंतुलन आदि। वर्ष 2019 में कृषि का कुल उत्पादन केवल 15% था, जबकि यह 42% रोजगार दे रहा था। 
    • "मिसिंग मिडिल" की समस्या: इसका अर्थ है कि भारत में सूक्ष्म-उद्यमों और वृहद उद्यमों की पर्याप्त संख्या है, लेकिन इनके बीच की कड़ी माने जाने वाले लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमों (SMEs) की संख्या बहुत कम है। 
    • ग्रामीण-शहरी विभाजन: घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय ग्रामीण भारत में 4,122 रुपये और शहरी भारत में 6,996 रुपये है। 
  • श्रम नीतियां: श्रमिकों की सौदेबाजी करने की शक्ति कम हो गई है, जिससे उनका वेतन भी कम हो गया है। उदाहरण के लिए- गिग वर्कर्स और असंगठित प्लेटफॉर्म वर्कर्स की संख्या बढ़ना।
    • इसके अलावा, कर नीतियां भी पारिश्रमिक की तुलना में पूंजीगत लाभ के पक्ष में अधिक हैं, जो आय के अंतर को बढ़ाती हैं। 
      • उदाहरण के लिए- लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) पर कर दर में कटौती के कारण समृद्ध लोग कई वेतनभोगी पेशेवरों की तुलना में कम प्रभावी कर दर का भुगतान करते हैं। समृद्ध लोग अक्सर शेयर बाजार या स्टार्ट-अप इक्विटी से आय अर्जित करते हैं। 
  • गवर्नेंस से जुड़ी समस्याएं: इनमें सीमित वित्तीय संसाधन, उपलब्ध संसाधनों का अकुशल उपयोग, भ्रष्टाचार एवं नीतियों और कार्यक्रमों का खराब कार्यान्वयन आदि शामिल हैं। 
    • उदाहरण के लिए- कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों के चलते संरचनात्मक सुधारों, जैसे- भूमि सुधार, श्रम सुधार और प्रगतिशील कराधान का विरोध करते हैं। 
  • अन्य कारक: डिजिटल डिवाइड, संघर्ष (जैसे- वामपंथी उग्रवाद), जलवायु आघात (जैसे- लगातार चरम मौसमी घटनाएं), सॉवरेन ऋण संकट, कोविड-19 महामारी व्यवधान आदि।

आगे की राह 

  • नीतिगत हस्तक्षेप: राष्ट्रीय असमानता न्यूनीकरण योजना (National Inequality Reduction Plans: NIRPs) तैयार की जानी चाहिए। प्रगतिशील कर व्यवस्था को बढ़ावा दिया जाना चाहिए , ताकि जिनकी आय/ संपत्ति ज्यादा है, उनसे अधिक टैक्स लिया जा सके। 
    • योजना और कार्यान्वयन के लिए स्थानीयकृत दृष्टिकोण को बढ़ावा देना: उदाहरण के लिए- भारत में समग्र असमानता का अधिकांश हिस्सा गांवों और शहरी ब्लॉक्स के भीतर स्थानीय स्तर की असमानता की वजह से है। 
  • समावेशी वेल्थ अप्रोच: समावेशी वेल्थ का अर्थ किसी राष्ट्र की कुल संपदा से है, जिसमें वित्तीय संपत्ति के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधन, मानव और सामाजिक पूंजी भी शामिल है।
    • सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करना: असमानता को बढ़ावा देने वाली सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं, जैसे- जाति-आधारित भेदभाव एवं लैंगिक असमानताओं आदि को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए- जेंडर बजटिंग एक अच्छा कदम है। 
  • लैंगिक समानता: महिला कार्यबल की भागीदारी को बढ़ाने के लिए सुरक्षित कार्यस्थलों, बाल देखभाल सुविधाओं और काम के लचीले घंटे जैसे उपाय अपनाए जाने चाहिए। साथ ही, महिलाओं के लिए समान संपत्ति अधिकारों को प्रभावी ढंग से लागू करने की आवश्यकता है, आदि। 
  • शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच: सरकारी स्कूलों के बुनियादी ढांचे एवं शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार करने और हाशिए पर मौजूद समुदायों के लिए विशेष कदम उठाए जाने की जरूरत है।
    • रोजगार कौशल और बाजार की जरूरतों में तालमेल: अलग-अलग सामाजिक-आर्थिक समूहों की रोजगार क्षमता में सुधार के प्रयास किए जाने चाहिए।
  • सामाजिक सुरक्षा उपायों को मजबूत करना: आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को कैश ट्रांसफर, सब्सिडी और पेंशन योजनाओं के माध्यम से सुरक्षा दी जानी चाहिए।

निष्कर्ष 

भारत में असमानता को दूर करने के लिए पूरे समाज की साझी भागीदारी जरूरी है। इसके लिए केवल सरकार की नीतियां ही नहीं, बल्कि नागरिक समाज यानी समाजसेवी संगठनों की भूमिका और निजी क्षेत्रक की जवाबदेही भी महत्वपूर्ण है। किसी भी विकास योजना को बनाते समय, उसे लागू करते समय और उसके परिणामों की समीक्षा करते समय, सभी चरणों में समानता को केंद्र में रखना आवश्यक है।

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