सुर्ख़ियों में क्यों?
PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाल के वर्षों में संसद के दोनों सदनों में गैर-सरकारी विधेयकों को मिलने वाले समय में कमी आई है।
गैर-सरकारी विधेयक क्या होता है?
- परिचय: संसद के जो सदस्य (निर्वाचित या मनोनीत) मंत्री नहीं होते, उन्हें गैर-सरकारी या प्राइवेट मेंबर कहा जाता है। इन सदस्यों द्वारा प्रस्तुत विधेयक को गैर-सरकारी विधेयक (Private Member's Bill: PMB) कहा जाता है।
- ऐसे विधेयक का मसौदा तैयार करना उस सदस्य की जिम्मेदारी होती है जो इसे संसद में प्रस्तुत करता है।
- प्रक्रिया: गैर-सरकारी विधेयक प्रस्तुत करने से एक महीने पहले उसकी सूचना देनी होती है। गैर-सरकारी विधेयक लोक सभा अध्यक्ष या राज्य सभा के सभापति की अनुमति से प्रस्तुत किया जाता है। यदि विधेयक प्रस्तुत करने की मंजूरी मिल जाती है, तो:
- लोक सभा में प्रत्येक शुक्रवार को कार्यवाही के अंतिम ढाई घंटे गैर-सरकारी विधेयक पर विचार और चर्चा के लिए निर्धारित होते हैं।
- राज्य सभा में ऐसे विधेयक पर विचार और चर्चा के लिए प्रत्येक वैकल्पिक शुक्रवार (एक शुक्रवार के अंतराल पर) को दोपहर 2.30 बजे से 5.00 बजे तक ढाई घंटे का समय निर्धारित है।
- भारत में पारित किया गया पहला गैर-सरकारी विधेयक "मुस्लिम वक्फ विधेयक, 1952" था। इस विधेयक को सैयद मोहम्मद अहमद कासमी ने संसद में प्रस्तुत किया था।
गैर-सरकारी विधेयकों का क्या महत्व है?
- नीतिगत नवाचार: ये विधेयक सांसदों को ऐसी नई नीतिगत पहल रखने या उन विषयों को उठाने का अवसर प्रदान करते हैं, जिन्हें सरकार ने अब तक नजरअंदाज किया हो या प्राथमिकता न दी हो।
- उदाहरण के लिए: "राइट टू डिस्कनेक्ट विधेयक, 2019" एक गैर-सरकारी सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया गया था। इस विधेयक में कर्मचारियों को उनके नियत कार्य घंटे के बाद ऑफिस कार्य के लिए संपर्क नहीं किए जाने का कानूनी अधिकार देने का प्रावधान शामिल था।
- सुधार की संभावना: गैर-सरकारी विधेयक पुराने कानूनों में सुधार या नए मुद्दों पर नई बहस को प्रेरित कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिए: "ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का अधिकार विधेयक, 2014" एक गैर-सरकारी सदस्य द्वारा पहली बार प्रस्तुत किया गया था। इसके बाद सरकार ने 'ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019' पेश किया।
- पार्टी लाइन से स्वतंत्र अभिव्यक्ति: ये विधेयक सांसदों को 10वीं अनुसूची के प्रावधानों से परे जाकर तथा पार्टी अनुशासन से स्वतंत्र होकर अपने विचार व्यक्त करने का अवसर प्रदान करते हैं, जिससे लोकतांत्रिक भागीदारी और विमर्श को बढ़ावा मिलता है।
- निगरानी और संतुलन: ये विधेयक सरकार की नीतियों का विकल्प प्रस्तुत कर सांसदों को सरकार की जवाबदेही तय करने का एक प्रभावी माध्यम प्रदान करते हैं।
गैर-सरकारी विधेयकों की संख्या कम क्यों होती जा रही है?
- व्यवधान: संसद की बैठक बार-बार स्थगित होने और सामान्यतः सत्रों में हंगामा होने की वजह से इन विधेयकों पर चर्चा का समय नहीं मिल पाता है।
- उदाहरण के लिए: 17वीं लोक सभा के कार्यकाल (2019-24) के दौरान लोक सभा में 729 और राज्य सभा में 705 गैर-सरकारी विधेयक प्रस्तुत किए गए, लेकिन इनमें से केवल 2 विधेयक लोक सभा में और 14 विधेयक राज्य सभा में चर्चा के लिए प्रस्तुत किए गए।
- प्रक्रिया संबंधी समस्याएं: गैर-सरकारी विधेयकों के लिए आवंटित समय कम होने (सप्ताह में केवल 2–3 घंटे) के कारण इन पर चर्चा शुरू होने में वर्षों लग जाते हैं।
- लोक सभा के अध्यक्ष/ राज्य सभा के सभापति द्वारा विधेयकों को प्रस्तुत करने की अनुमति देने या अस्वीकार करने का विवेकाधिकार राजनीतिक विचारों से प्रभावित हो सकता है।
- संसाधनों की कमी: गैर-सरकारी सदस्यों के पास अनुसंधान सहायता, विधेयक का प्रारूप तैयार करने की विशेषज्ञता या संस्थाओं से समर्थन का अभाव होता है। जबकि इस तरह की सुविधाएं सरकारी विधेयकों को प्राप्त होती हैं।
- 'पारित होने की कम संभावना' से जुड़ी धारणा: अब तक बहुत कम गैर-सरकारी विधेयक ही पारित होकर कानून का रूप ले सके हैं। इसलिए संसद सदस्य ऐसे विधेयकों के प्रस्तुत करने पर मेहनत करने से बचते हैं।
- उदाहरण के लिए: अब तक केवल 14 गैर-सरकारी विधेयक ही कानून बन सके हैं और अंतिम बार ऐसा विधेयक 1970 में पारित हुआ था।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: कई गैर-सरकारी सांसदों ने बताया है कि सरकारें अपने विधायी एजेंडे को प्राथमिकता देती हैं और गैर-सरकारी विधेयकों की उपेक्षा करती हैं।
आगे की राह
- प्रक्रियाओं को सरल बनाना: गैर-सरकारी विधेयकों पर चर्चा के लिए निश्चित और व्यवधान रहित समय निर्धारित किया जाए। ऐसे विधेयकों पर संसदीय कार्यवाही को डिजिटल रूप से ट्रैक किया जाना चाहिए, आदि।
- प्रक्रिया नियमों में संशोधन करके यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि गैर-सरकारी विधेयक के लिए निर्धारित समय के दौरान किसी अन्य विषय पर चर्चा न की जाए।
- अनुसंधान सहायता: सांसदों को प्रभावी तरीके से गैर-सरकारी विधेयक तैयार करने में सहायता देने के लिए एक अलग अनुसंधान संस्था (जैसे कि यूनाइटेड किंगडम की पब्लिक बिल कमेटी) स्थापित की जा सकती है।
- संस्थागत सहायता: संसद एक ऐसी समीक्षा समिति का गठन कर सकती है जो गैर-सरकारी विधेयकों की गुणवत्ता, प्रासंगिकता और संवैधानिकता का परीक्षण करके उन पर चर्चा को प्राथमिकता दे।
- यूनाइटेड किंगडम के "10 मिनट रूल मॉडल" को भी अपनाया जा सकता है, जिसमें सांसद एक संक्षिप्त भाषण के साथ लघु विधेयक प्रस्तुत करते हैं जो नए विधेयक के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।