भारत जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया (India overtakes Japan to become 4th Largest Economy) | Current Affairs | Vision IAS
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संक्षिप्त समाचार

01 Jul 2025
103 min

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की हालिया वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट के अनुसार, भारत जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।

भारत की इस आर्थिक उपलब्धि के मुख्य कारक

संरचनात्मक कारक: 

  • शहरीकरण और लोगों की बढ़ती आकांक्षाएं: इनके कारण प्रति व्यक्ति आय और जीवन-शैली से संबंधित दैनिक उपभोग में वृद्धि हो रही है। 
  • जनसांख्यिकीय लाभांश: भारतीयों की वर्तमान औसत आयु लगभग 29 वर्ष है।
  • घरेलू मांग में वृद्धि: निजी उपभोग, भारत की GDP में लगभग 70% का योगदान देता है, आदि।

नीतिगत कारक: 

  • कराधान और व्यापार से संबंधित सुधार: जैसे - वस्तु एवं सेवा कर (GST), इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC), कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती, आदि।
  • अवसंरचना निर्माण पर बल देना: जैसे - राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन, पी.एम. गति शक्ति, आदि।
  • आत्मनिर्भर भारत, उत्पादन-से-सम्बद्ध प्रोत्साहन योजना, आदि जैसी प्रमुख नीतिगत पहलें।

तकनीकी कारक: 

  • डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर: जैसे- UPI, जैम ट्रिनिटी, आदि। 
  • भारतीय आई.टी., सॉफ्टवेयर निर्यात और परामर्श सेवाओं के लिए मजबूत वैश्विक मांग, आदि।
  • बाह्य और वैश्विक कारक: FDI अंतर्वाह में वृद्धि तथा ‘चाइना प्लस वन’ और सप्लाई चेन रेजिलिएंस इनिशिएटिव जैसी रणनीतियों के जरिए वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का पुनर्संतुलन, आदि। 

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भविष्य की संभावनाएं

भारत अगले 2.5 से 3 वर्षों में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है, जिसके लिए निम्नलिखित प्रमुख कारक उत्तरदायी हैं:

  • एनर्जी ट्रांजिशन: नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में तीव्र वृद्धि (2030 तक 500 GW का लक्ष्य) और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसे वैश्विक मंचों पर भारत की नेतृत्वकारी भूमिका इसे हरित विकास के अग्रणी देश के रूप में स्थापित करती है।
  • विनियामकीय स्थिरता: बैंकिंग क्षेत्रक में सुधार (जैसे- बैंक पुनर्पूंजीकरण) और RBI जैसे मजबूत विनियामक संस्थान की मौजूदगी भारत की समग्र आर्थिक स्थिरता को मजबूती प्रदान करती है।

संयुक्त राज्य अमेरिका के हाउस ऑफ़ रीप्रेज़ेंटेटिव ने विप्रेषणों के बहिर्गमन पर 3.5% कर के प्रावधान वाले 'वन, बिग, ब्यूटीफुल बिल' को मंजूरी दी।

  • ‘विप्रेषणों के अंतरण पर उत्पाद शुल्क' नामक यह नया प्रस्तावित प्रावधान 1 जनवरी, 2026 से लागू होगा।

विप्रेषण (Remittance) के बारे में

  • परिभाषा: किसी अन्य देश में काम करने वाले लोगों द्वारा अपने गृह देश में धन के अंतरण को विप्रेषण के रूप में जाना जाता है।
    • 2023 में, प्रवासी कामगारों द्वारा अपने गृह देशों को भेजी गई कुल विप्रेषण राशि लगभग 656 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
  • 2024 में भारत को कुल वैश्विक विप्रेषण का 14.3% हिस्सा प्राप्त हुआ था। यह अब तक भारत द्वारा प्राप्त की गई सबसे अधिक हिस्सेदारी है।

विधेयक के मुख्य प्रावधानों पर एक नजर

  • विप्रेषण कर (उत्पाद शुल्क) केवल गैर-अमेरिकी नागरिकों पर लागू होगा, जबकि अमेरिकी नागरिकों को इससे छूट दी गई है।
    • इससे प्रभावित समूहों में वीज़ा धारक (H-1B व F-1), ग्रीन कार्ड धारक आदि शामिल हैं।
  • इस विधेयक में विप्रेषण के बहिर्गमन पर लगने वाले कर को 5% से घटाकर 3.5% करने का प्रावधान किया गया है।

विप्रेषण के अंतरण पर उत्पाद शुल्क का प्रभाव

  • वैश्विक आर्थिक प्रभाव: अल-सल्वाडोर, मैक्सिको, भारत जैसे देश जो अमेरिकी विप्रेषण से सबसे अधिक लाभ प्राप्त करते हैं को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
    • यह विधेयक विदेशी कामगारों को अमेरिका में संपत्ति या रोजगार बनाए रखने से भी हतोत्साहित कर सकता है।
  • भारत में विप्रेषण के अंतर्वाह में कमी: संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के लिए विप्रेषण का सबसे बड़ा स्रोत है। इसने 2023-24 में कुल विप्रेषण प्रवाह में 32.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान किया था।
  • विप्रेषण कर लगने से अमेरिका में भारतीयों द्वारा कुछ धन को ग्रे या ब्लैक मार्केट में अंतरित किया जा सकता है, ताकि इस नए प्रावधान से बचा जा सके।

संबंधित सुर्ख़ियां {उदारीकृत विप्रेषण योजना (LRS)}

RBI के अनुसार वित्त वर्ष 2025 में उदारीकृत विप्रेषण योजना (LRS) के तहत छात्र विप्रेषण पांच साल के निचले स्तर (2.92 बिलियन अमेरिकी डॉलर) पर आ गया है। यह छात्र बहिर्वाह में कमी का संकेत देता है।

उदारीकृत विप्रेषण योजना (LRS) के बारे में

  • उत्पत्ति: भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 2004 में इसकी शुरुआत की गई थी।
  • लाभ: सभी निवासी व्यक्तियों (जिनमें नाबालिक भी शामिल हैं) को किसी भी अनुमेय चालू या पूंजीगत खाते के लेन-देन या दोनों के संयोजन के लिए प्रति वित्तीय वर्ष 250,000 डॉलर तक की राशि स्वतंत्र रूप से भेजने की अनुमति है।
  • इसके तहत विप्रेषण की बारंबारता पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
  • यह योजना कॉर्पोरेट्स, साझेदारी फर्मों, हिंदू अविभाजित परिवार (HUF), ट्रस्ट आदि के लिए उपलब्ध नहीं है।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वैकल्पिक निवेश कोष (AIF) में निवेश के नियमों में संशोधन किया।

वैकल्पिक निवेश कोष (AIF) के बारे में

  • यह भारत में पंजीकृत फंड आधारित संस्था है, जो निजी रूप से निवेश जुटाती है। साथ ही, ये अपने निवेशकों के लाभ के लिए निर्धारित निवेश नीति के अनुसार निवेश करने हेतु भारतीय या विदेशी अनुभवी निवेशकों से फंड भी एकत्रित करता है।  
  • ये संस्थाएं भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा SEBI (वैकल्पिक निवेश कोष) विनियम, 2012 के अनुसार विनियमित हैं।

AIF की निम्नलिखित तीन श्रेणियां हैं:

  • श्रेणी I: ये स्टार्ट-अप्स, सोशल वेंचर, लघु और मध्यम उद्यम (SME) आदि में निवेश करते है। 
    • इनके उदाहरण हैं- वेंचर कैपिटल फंड, SME फंड आदि।
  • श्रेणी II: ये इक्विटी और ऋण प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं। 
    • इनके उदाहरण हैं: रियल एस्टेट फंड, प्राइवेट इक्विटी फंड आदि।
  • श्रेणी III: ये फंड्स रिटर्न बढ़ाने के लिए निवेश उधारी लेकर निवेश करते हैं, जिनमें सूचीबद्ध या गैर-सूचीबद्ध डेरिवेटिव्स में निवेश भी शामिल है। 

इनके उदाहरण हैं: हेज फंड, प्राइवेट इन्वेस्टमेंट इन पब्लिक इक्विटी (PIPE) फंड आदि। 

हाल ही में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने लागत विनियम, 2025 अधिसूचित किए हैं। इनमें प्रीडेटरी प्राइसिंग को रोकने के लिए नई परिभाषाएं दी गई हैं।

प्रीडेटरी प्राइसिंग के बारे में

  • परिभाषा: प्रीडेटरी प्राइसिंग वास्तव में प्रतिस्पर्धा को कम करने या प्रतिद्वंद्वियों को समाप्त करने के उद्देश्य से अपनी वस्तुओं या सेवाओं को लागत से कम कीमत पर बेचना है।
  • प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की धारा 4(2) के अनुसार, किसी बड़ी या वर्चस्व वाली कंपनी द्वारा की गई प्रीडेटरी प्राइसिंग, दुरूपयोग वाली गतिविधि है।
  • प्रीडेटरी प्राइसिंग के प्रभाव:
    • ग्राहकों पर प्रभाव: अल्पकाल के लिए कम कीमतों के कारण लाभकारी होती है, लेकिन लंबे समय में विकल्पों की कमी और कीमतों में वृद्धि के कारण नुकसानदायक सिद्ध होती है।
    • कंपनियों पर प्रभाव: यह सभी कंपनियों को अल्पकाल में नुकसान पहुंचाती है, लेकिन जब प्रतिद्वंद्वी बाहर हो जाते हैं, तो एकाधिकार प्राप्त कंपनियां कीमतें बढ़ाकर अपने घाटे की भरपाई करती हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने भुगतान विनियामक बोर्ड विनियम, 2025 को अधिसूचित किया। इन्हें भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के तहत अधिसूचित किया गया है। 

  • ये विनियम भुगतान और निपटान प्रणाली के विनियमन एवं पर्यवेक्षण के लिए बोर्ड विनियम, 2008 की जगह लेंगे।

भुगतान विनियामक बोर्ड के बारे में:

  • संरचना:
    • अध्यक्ष: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर
    • पदेन सदस्य: भुगतान प्रणाली के प्रभारी RBI डिप्टी गवर्नर और RBI द्वारा नामित एक अधिकारी
    • 3 सदस्य: केंद्र सरकार द्वारा नामित
    • विशेषज्ञ आमंत्रण: यह बोर्ड भुगतान, सूचना प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, कानून जैसे क्षेत्रकों से विशेषज्ञों को आमंत्रित कर सकता है।
  • कार्यकाल: सरकार द्वारा नामित सदस्यों का कार्यकाल 4 वर्षों का होगा। उन्हें फिर से नामित नहीं किया जा सकता।
  • बैठकें: प्रत्येक वर्ष कम-से-कम दो बार बैठक करना अनिवार्य है।
  • कोरम (गणपूर्ति): न्यूनतम 3 सदस्य आवश्यक हैं, जिनमें अध्यक्ष या डिप्टी गवर्नर में से कोई एक होना जरूरी है।
  • निर्णय प्रक्रिया: बहुमत से निर्णय लिए जाएंगे। यदि मत बराबर हों, तो अध्यक्ष को निर्णायक मत देने का अधिकार होगा।

RBI ने भारतीय रिज़र्व बैंक (डिजिटल ऋण) दिशा-निर्देश, 2025 जारी किए। इन दिशा-निर्देशों का मुख्य उद्देश्य उधारकर्ताओं की सुरक्षा बढ़ाना, डेटा पारदर्शिता सुनिश्चित करना और ज़िम्मेदारपरक डिजिटल ऋण (लेंडिंग) पद्धतियों को बढ़ावा देना है।

मुख्य दिशा-निर्देशों पर एक नजर

  • डिजिटल ऋण की परिभाषा: इसे डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उपयोग द्वारा दूरस्थ और स्वचालित ऋण प्रक्रिया के जरिये ग्राहकों को जोड़ने, ऋण का आंकलन करने, ऋण अनुमोदन, ऋण प्रदान और वसूली करने आदि के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • ये दिशा-निर्देश अग्रलिखित पर लागू होते हैं: वाणिज्यिक बैंक, प्राथमिक (शहरी)/ राज्य/ केंद्रीय सहकारी बैंक, NBFC (हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों सहित) और अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान।
  • डिजिटल लेंडिंग ऐप्स (DLAs) की अनिवार्य रिपोर्टिंग: सभी वैध डिजिटल लेंडिंग ऐप्स का RBI के केंद्रीकृत सूचना प्रबंधन प्रणाली (CIMS) पोर्टल पर अनिवार्य रूप से पंजीकरण होगा, ताकि एक पारदर्शी सार्वजनिक सूची बनाई जा सके।
  • समुचित सावधानी बरतना: वित्तीय संस्थाओं द्वारा ऋण सेवा प्रदाताओं (LSPs) की तकनीकी क्षमताओं, डेटा को गोपनीय रखने की उनकी क्षमता, ऋण लेने वाले की गतिविधियों और नियमों के अनुपालन पर निगरानी रखनी चाहिए।
    • LSP वस्तुतः वित्तीय संस्था की ओर से डिजिटल लेंडिंग संबंधी कार्य निष्पादन करता है।
  • उधारकर्ताओं के लिए प्रकटीकरण: वित्तीय संस्थाओं और LSPs को उधारकर्ताओं को सभी जरूरी जानकारी जैसे नियम व शर्तें, गोपनीयता नीति आदि स्पष्ट रूप से बतानी होगी, ताकि उधारकर्ता सही निर्णय ले सकें।
  • शिकायत निवारण अधिकारी: इसे डिजिटल ऋण-संबंधी शिकायतों और मुद्दों का समाधान करने के लिए LSPs द्वारा नियुक्त किया जाएगा।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI/ सेबी) ने निवेशकों को ओपिनियन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म से लेन-देन करने के प्रति सचेत किया है।

ओपिनियन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स के बारे में

  • अवधारणा: ये प्लेटफॉर्म्स प्रतिभागियों को किसी भी खेल, राजनीतिक स्थिति, मौसम या क्रिप्टो घटनाओं पर अपने पूर्वानुमानों में निवेश करके पैसा कमाने का विकल्प देते हैं:
    • प्रतिभागी अपने पूर्वानुमानों के आधार पर किसी भी घटना पर दांव लगा सकते हैं।
    • यदि पूर्वानुमान सही निकलता है, तो प्रतिभागी को धन मिलता है, तथा यदि पूर्वानुमान गलत होता है, तो उसे हार का सामना करना पड़ता है।
  • कानूनी स्थिति: यह सेबी द्वारा विनियमित नहीं है, क्योंकि इसके तहत जिन वस्तुओं का कारोबार किया जा रहा है वे भारतीय कानून के तहत प्रतिभूतियों के रूप में वर्गीकृत नहीं हैं।
  • अर्थव्यवस्था: इन प्लेटफॉर्म्स ने 5 करोड़ से अधिक लोगों के उपयोगकर्ता आधार के साथ प्रति वर्ष 50,000 करोड़ रुपये से अधिक का लेनदेन दर्ज किया है।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अनुसार, भारत का कुल निर्यात (वस्तु + सेवाएं) 2024-25 में 824.9 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। यह 2023-24 के 778.1 बिलियन डॉलर से 6.01% अधिक है।

  • यह उपलब्धि लाल सागर संकट, यूक्रेन युद्ध, पनामा नहर में सूखा, गैर-टैरिफ उपायों में वृद्धि, ऊर्जा की बढ़ती कीमतों आदि के कारण व्यापार में व्यवधानों से उत्पन्न वैश्विक स्तर पर आर्थिक गिरावट के बावजूद भी हासिल की गई है।

इससे संबंधित मुख्य आंकड़े और रुझान

  • वस्तु का निर्यात: यह 2023-24 में 437.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से कुछ बढ़कर 437.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।                      
  • सेवा का निर्यात: यह 2024-25 में 387.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है। यह 2023-24 के 341.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में 13.6% अधिक है।
    • प्रमुख क्षेत्रकों में दूरसंचार, कंप्यूटर और सूचना सेवाएं, परिवहन, यात्रा और वित्तीय सेवाएं शामिल हैं। 

निर्यात वृद्धि में बढ़ोतरी करने वाले कारक

  • नीतिगत प्रोत्साहन: सरकार ने नई विदेश व्यापार नीति, क्षेत्रक-विशिष्ट योजनाओं, व्यापार हेतु सुविधा, डिस्ट्रिक्ट एज एक्सपोर्ट हब्स इनिशिएटिव और MSMEs को समर्थन के माध्यम से निर्यात को बढ़ावा दिया है।
  • निर्यात बाजारों का विविधीकरण: दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से बढ़ती मांग ने वैश्विक स्तर पर आर्थिक गिरावट के बावजूद भी भारत के  निर्यात को बढ़ाया है।
  • व्यापार समझौते: विशेष रूप से सेवाओं और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए नए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौते किए गए हैं तथा बाजार को खोला एवं बाधाओं को कम किया गया है। जैसे भारत-UAE व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA)।
  • आपूर्ति श्रृंखला का पुनर्निर्धारण: चीन-प्लस-वन रणनीति में भारत एक विश्वसनीय विकल्प बन गया है, जो वैश्विक प्रभुत्व वाली कंपनियों को आकर्षित कर रहा है।

भारत ने विश्व बैंक भूमि सम्मेलन 2025 में ‘कंट्री चैंपियन’ की भूमिका धारण की।

  • इस सम्मेलन के दौरान समावेशी व प्रौद्योगिकी-संचालित ग्रामीण गवर्नेंस के मॉडल के रूप में भारत की भूमि प्रबंधन संबंधी प्रमुख पहलों की ओर विश्व का ध्यान आकर्षित किया गया। जैसे स्वामित्व योजना और ग्राम मानचित्र प्लेटफॉर्म। 
  • स्वामित्व योजना ने 68,000 वर्ग कि.मी. का सर्वेक्षण और 1.16 ट्रिलियन रुपये मूल्य की भूमि का मुद्रीकरण किया है। इस उपलब्धि के साथ यह वैश्विक स्तर पर समावेशी आर्थिक रूपांतरण के लिए एक स्केलेबल मॉडल के रूप में सामने आई है।
    • स्वामित्व योजना का उद्देश्य ड्रोन प्रौद्योगिकी के उपयोग के जरिये भू-खंडों का मानचित्रण करके ग्रामीण क्षेत्रों में संपत्ति के स्पष्ट स्वामित्व की स्थापना करना है।
  • क्लाइमेट रिजिलिएंस, अवसंरचना के नियोजन और योजनाओं के अभिसरण को बढ़ावा देने में ग्राम मानचित्र प्लेटफॉर्म की भूमिका को ग्लोबल साउथ के संदर्भ में काफी लाभकारी और एक उपयोगी मॉडल माना गया।
    • ग्राम मानचित्र एक भू-स्थानिक प्लानिंग प्लेटफॉर्म है, जो ग्राम पंचायतों को डेटा-संचालित व स्थानीयकृत विकास योजनाएं तैयार करने में सक्षम बनाता है।

कुशल भूमि प्रबंधन प्रणाली और आर्थिक संवृद्धि

  • नौकरियां और विकास: संपत्ति तक सुव्यवस्थित पहुंच से उद्यमशीलता, विस्तार करने, धन के पुनर्निवेश और वैकल्पिक आजीविका की सुविधा मिलती है।
  • निजी पूंजी: पंजीकृत संपत्ति संबंधी अधिकार भू-स्वामियों को भूमि को जमानत के रूप में रखने हेतु सक्षम बनाते हैं, जिससे निजी ऋण और निवेश के अवसरों को बढ़ावा मिलता है।
  • अवसंरचना वित्त-पोषण: आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं और अवसंरचना के लिए विश्वसनीय सरकारी राजस्व उत्पन्न होता है।
    • निम्न आय वाले देशों में भूमि और संपत्ति कर GDP में मात्र 0.6% का योगदान करते हैं, जबकि औद्योगिक देशों में यह आंकड़ा 2.2% है।
  • शहरी प्रबंधन: इससे शहरों के विकास की योजना बनाने, सार्वजनिक स्थानों की सुरक्षा करने, विकास के अवसरों की पहचान करने और आपदा जोखिमों का प्रबंधन करने में सहायता मिलती है।
  • खाद्य सुरक्षा: इससे भूमि पर महिलाओं के स्वामित्व में सुधार द्वारा कृषि उत्पादन में 4% की वृद्धि हो सकती है।

रिपेयरेबिलिटी इंडेक्स (RI) के लिए फ्रेमवर्क तैयार करने हेतु भरत खेड़ा की अध्यक्षता में गठित समिति ने उपभोक्ता मामलों के विभाग (DoCA) को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।

रिपेयरेबिलिटी इंडेक्स के लिए फ्रेमवर्क के बारे में (समिति की सिफारिशें):

  • ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर्स (OEMs) को फ्रेमवर्क में दिए गए स्कोरिंग मापदंडों के आधार पर रिपेयरेबिलिटी इंडेक्स संबंधी स्व-घोषणा करना अनिवार्य है।
  • रिपेयरेबिलिटी इंडेक्स को बिक्री/खरीद केन्द्रों, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर तथा पैकेज्ड उत्पादों पर क्यू.आर. कोड के रूप में प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
  • रिपेयरेबिलिटी इंडेक्स के प्रारंभिक चरण के लिए स्मार्टफोन और टैबलेट को प्राथमिकता श्रेणी के रूप में चुना गया है।
  • रिपेयरेबिलिटी इंडेक्स का आकलन छह मुख्य मापदंडों पर किया जाएगा (इन्फोग्राफिक देखें)।
    • प्रत्येक मापदंड के लिए स्कोरिंग मानदंड और भारांश विकसित किए गए हैं।
    • उत्पाद के प्राथमिक भागों या प्रायोरिटी पार्ट्स के भारांश को जोड़ने के बाद पांच-बिंदु वाले न्यूमेरिक स्केल पर रिपेयरेबिलिटी इंडेक्स निकाला जाता है

रिपेयरेबिलिटी इंडेक्स का महत्व

  • मरम्मत या रिपेयर की सुविधा में सुधार: मोबाइल और टैबलेट उत्पाद श्रेणी से जुड़ी शिकायतों में काफी वृद्धि हुई है, जो 2022-2023 के 19,057 से बढ़कर 2024-2025 में 22,864 हो गई।
  • संधारणीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: यह संधारणीय उपभोग को बढ़ावा देते हुए LiFE (पर्यावरण के लिए जीवन शैली) की अवधारणा को मजबूती प्रदान करता है।
  • ‘योजनाबद्ध तरीके से अप्रचलन (Planned Obsolescence)’ के मुद्दे का समाधान: प्रायः कंपनियां जानबूझकर ऐसे उत्पाद बनाती हैं जो थोड़े समय में खराब हो जाएं और नए उत्पाद खरीदने पड़ें।
  • रोजगार सृजन: थर्ड-पार्टी द्वारा मरम्मत की अनुमति से रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे।

राइट टू रिपेयर के बारे में

  • इसमें कंपनियों से कहा गया है कि वे उत्पादों का जीवनकाल बढ़ाने के लिए ग्राहकों और रिपेयर करने वाली दुकानों को स्पेयर पार्ट्स, उपकरण और उत्पाद की मरम्मत करने से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराएं।
    • उपभोक्ता मामलों के विभाग (DoCA) ने 2022 में ‘राइट टू रिपेयर पोर्टल इंडिया’ शुरू किया था, ताकि मरम्मत से जुड़ी आवश्यक जानकारी आसानी से उपलब्ध हो सके।

वेव्स शिखर सम्मेलन 2025 का उद्घाटन मुंबई में किया गया। इस अवसर पर प्रधान मंत्री ने भारत की क्रिएटिव इकोनॉमी को भविष्य की GDP में वृद्धि, नवाचार और समावेशी विकास के एक शक्तिशाली चालक के रूप में रेखांकित किया।

  • वेव्स का लक्ष्य 2029 तक 50 बिलियन डॉलर का बाजार तैयार करना है। इससे वैश्विक मनोरंजन अर्थव्यवस्था में भारत की स्थिति मजबूत होगी।
  • शिखर सम्मेलन के दौरान सरकार ने रचनात्मक क्षेत्र के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिएटिव टेक्नोलॉजी (IICT) स्थापित करने की घोषणा की।
    • इसकी स्थापना सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा FICCI और CII के साथ रणनीतिक साझेदारी में की जाएगी। साथ ही, इसकी परिकल्पना राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र के रूप में की गई है।

क्रिएटिव इकोनॉमी क्या है?

  • परिभाषा: क्रिएटिव इकोनॉमी को ऑरेंज इकोनॉमी भी कहा जाता है। यह आर्थिक संवृद्धि और विकास में योगदान देने के लिए रचनात्मक परिसंपत्तियों के योगदान एवं क्षमता पर आधारित एक उभरती हुई अवधारणा है।
    • इसमें मीडिया और मनोरंजन, विज्ञापन एवं मार्केटिंग, एनीमेशन, विजुअल इफेक्ट्स, गेमिंग, कॉमिक्स व एक्सटेंडेड रियलिटी (AVGC-XR) आदि शामिल हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र ने इसके वैश्विक महत्त्व पर जोर देते हुए वर्ष 2021 को “सतत विकास के लिए क्रिएटिव इकोनॉमी का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष” घोषित किया था।

भारत की क्रिएटिव इकोनॉमी

  • योगदान: यह GDP में 30 बिलियन डॉलर का योगदान देती है एवं 8% कार्यबल को रोजगार प्रदान करती है। क्रिएटिव एक्सपोर्ट सालाना 11 बिलियन डॉलर से अधिक है।
  • चुनौतियां: गलत सूचनाओं का प्रसार, कॉपीराइट, बौद्धिक संपदा, गोपनीयता और बाजार पर एकाधिकार, ग्रामीण क्षेत्रों की सीमित डिजिटल पहुंच और औपचारिक वित्त-पोषण की कमी आदि।

केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने FICCI एवं CII के सहयोग से मुंबई में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिएटिव टेक्नोलॉजी (IICT) की स्थापना की घोषणा की है। 

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिएटिव टेक्नोलॉजी (IICT) के बारे में

  • यह संस्थान AVGC-XR सेक्टर के लिए “राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र (National Centre of Excellence)” के रूप में कार्य करेगा।
    • एक्सटेंडेड रियलिटी (XR) तकनीकें डिजिटल और वास्तविक दुनिया को जोड़ती हैं। इनके उदाहरण हैं: वर्चुअल रियलिटी (VR), ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) और मिक्स्ड रियलिटी (MR)
  • यह संस्थान इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (IITs) और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट (IIMs) के मॉडल पर आधारित होगा तथा इसे एक विश्वस्तरीय शिक्षा और प्रशिक्षण केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा।

भारत में AVGC-XR सेक्टर की स्थिति

  • 2021 में वैश्विक AVGC-XR बाजार का मूल्य 366 बिलियन डॉलर था।
  • वैश्विक AVGC-XR बाजार में भारत की हिस्सेदारी फिलहाल 1% से भी कम यानी लगभग 3 अरब डॉलर है। हालांकि, 2030 तक इसके 26 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है।
    • कर्नाटक VGC-XR सेक्टर में भारत के अग्रणी राज्य के रूप में उभर रहा है। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक को देश का IT हब भी माना जाता है। 

भारत में AVGC-XR सेक्टर के विकास के प्रमुख कारण

  • OTT यूजर्स की संख्या में वृद्धि: 2024 में भारत के 547 मिलियन लोग यानी देश की 38.4% आबादी OTT से जुड़ी हुई थी।
  • स्मार्टफोन उपयोग करने वालों की संख्या में वृद्धि: IAMAI और कांतार की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 के अंत तक भारत में 900 मिलियन से अधिक लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे होंगे। इनमें अधिकांश आबादी ग्रामीण भारत की होगी।
  • एनीमेशन और VFX की उपयोगिता का विस्तार: गेमिंग, एजु-टेक, आर्किटेक्चर जैसे क्षेत्रकों में इनका व्यापक रूप से उपयोग हो रहा है।
  • नई तकनीकों का उदय: ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) और वर्चुअल रियलिटी (VR) में निवेश लगातार बढ़ रहा है।
  • अन्य कारण: अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ रहा है। साथ ही 5G नेटवर्क का तेजी से विस्तार हो रहा है, आदि।

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