सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, बेंगलुरु में थोड़े समय की भारी प्री-मानसून वर्षा के कारण भीषण बाढ़ आ गई।
अन्य संबंधित तथ्य

इस तरह की शहरी बाढ़ की घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं, जैसे- हैदराबाद (2020-21), चेन्नई (2021), बेंगलुरु और अहमदाबाद (2022), दिल्ली (2023)। ये सभी घटनाएं यह दर्शाती हैं कि शहरी बाढ़ अब नियमित समस्या बन गई है।
शहरी बाढ़ क्या है?
- इसके तहत कोई शहर या शहर का कोई हिस्सा भारी बारिश के चलते जलमग्न हो जाता है। ऐसा मुख्यतः जल निकासी प्रणालियों की खराब स्थिति के कारण होता है क्योंकि खराब जल-निकासी प्रणालियां तीव्र एवं अचानक हुई भारी बारिश के जल को नहीं संभाल पाती हैं।
- शहरी बाढ़ और ग्रामीण बाढ़ में अंतर होता है, क्योंकि शहरों में जमीन पर अधिक निर्माण होता है। इस वजह से बाढ़ की तीव्रता (flood peak) 1.8 से 8 गुना तक बढ़ सकती है और बाढ़ का पानी 6 गुना तक ज्यादा हो सकता है। सरल शब्दों में कहें तो शहरों में निर्माण कार्यों व ज्यादा पक्की जमीन होने के कारण बारिश का पानी जल्दी नहीं सोखता, जिससे बाढ़ का पानी ज्यादा एकत्र हो जाता है।
शहरी बाढ़ के कारण
प्राकृतिक कारक

- मौसम संबंधी कारक: अचानक और भारी वर्षा के कारण शहरी क्षेत्रों में जल का जमाव हो जाता है, उदाहरण- मुंबई बाढ़ (2005), चेन्नई बाढ़ (2015)। इसी तरह महोर्मि (Storm surge) और तेजी से बर्फ पिघलने की वजह से बाढ़ का अतिरिक्त जोखिम पैदा होता है। उदाहरण- सिक्किम बाढ़ (2023)।
- जलवायु परिवर्तन ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है। उदाहरण के लिए- IPCC ने चेतावनी दी है कि दक्षिण एशिया में मानसून की तीव्रता बढ़ रही है, जिससे हमारे शहरों पर लगातार बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है।
- हाइड्रोलॉजिकल कारक: बाढ़ का जोखिम तब उत्पन्न होता है जब वर्षा के दौरान भू-सतह पर जल बहाव जमीन की जल-अवशोषण दर से अधिक हो जाता है। इससे अतिरिक्त जल आस-पास के क्षेत्रों में चला जाता है और बाढ़ का कारण बनता है।
- यमुना के जलग्रहण क्षेत्र में भारी वर्षा के परिणामस्वरूप यमुना नदी का जलस्तर बढ़ जाता है, जिससे दिल्ली में बाढ़ आ जाती है।
मानवजनित कारक
- अनियोजित शहरीकरण: उदाहरण के लिए- बेंगलुरु की नालियां केवल वर्षा जल के निकास के लिए बनाई गई थी, लेकिन आजकल इनसे होकर प्रतिदिन लगभग 2000 MLD (मिलियन लीटर दैनिक) सीवेज प्रवाहित होता है।
- इसके अलावा, बिल्डर्स नालियों की चौड़ाई कम करके या उन्हें सड़कों में बदलकर उन पर अतिक्रमण कर लेते हैं या नालियों को समाप्त कर देते है। मौजूदा नालियां कचरे या गाद से भरी हैं।
- झीलों पर अतिक्रमण: जैसे-जैसे लोग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर आते हैं, वे अक्सर खाली या गैर-स्वामित्व वाली भूमि यानी जल निकायों के पास निचले इलाकों में बस जाते है। कभी-कभी तो संपूर्ण जलग्रहण क्षेत्र पर ही अतिक्रमण कर लेते है।
- उदाहरण- पुडुचेरी में ओस्टरी झील, महाराष्ट्र में चारकोप झील, चेन्नई में पल्लवरम दलदली भूमि।
- बांधों से पानी की अनियोजित निकासी: जब बिना योजना और पूर्व सूचना के बांधों या झीलों से पानी छोड़ा जाता है, तो शहरों में अचानक बाढ़ आ जाती है और लोगों को बचाव का मौका भी नहीं मिलता।
- उदाहरण- 2015 में चेम्बरमपक्कम झील से अचानक जल छोड़े जाने के कारण चेन्नई में बाढ़ आ गई थी। इसी प्रकार, खडकवासला बांध के खुलने के कारण पुणे में बाढ़ आ गई थी।
- अवैध खनन गतिविधियां: नदी की रेत और क्वार्टजाइट के अवैध खनन से मृदा का कटाव होता है जिससे जल स्रोतों की जल धारण क्षमता कम हो जाती है। इससे बारिश का पानी तेजी से और अधिक मात्रा में बहता है, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। उदाहरण- कावेरी नदी (तमिलनाडु) में नदी तल की गहराई कम होने से बाढ़ की तीव्रता बढ़ी है।
शहरी बाढ़ प्रबंधन की चुनौतियां
- संवैधानिक ज़िम्मेदारियों का विभाजन: जल राज्य सूची का विषय है, जबकि जल निकास प्रणालियों के प्रबंधन की जिम्मेदारी शहर की नगरपालिकाओं की होती है। इससे नीतियां बनाने और लागू करने के बीच देरी होती है, क्योंकि राज्य और नगर निगमों के बीच समन्वय की कमी होती है।
- अवसंरचना और तकनीकी चुनौतियां: एक बड़ी समस्या यह भी है कि भारत के कई शहरों या उनके कुछ हिस्सों में जल निकासी की जो व्यवस्था है वह बहुत पुरानी है और इन्हें कम मात्रा में जल प्रवाह के लिए बनाया गया है। वर्तमान में अगर भारी वर्षा होती है तो यह अत्यधिक जल प्रवाह को संभाल नहीं पाती है जिससे बाढ़ आने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
- सामाजिक और आर्थिक असमानता: आमतौर पर समाज का गरीब तबका अपर्याप्त अवसंरचना वाले बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में रहता है। उनके पास पुनर्निर्माण और भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए कम संसाधन होते हैं।
- तेजी से बढ़ते शहरीकरण के दुष्प्रभाव: जैसे-जैसे शहर तेजी से फैलते हैं, वैसे-वैसे पक्की और कठोर सतहें बढ़ती जाती हैं। इससे प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली बाधित होती है और बारिश का पानी तेजी से बढ़कर जल प्रबंधन प्रणालियों पर दबाव डालता है।
- बेहतर जल निकासी डिजाइन के लिए आवश्यक डेटा की कमी: भारत के प्रमुख शहरों के लिए इंटेंसिटी ड्यूरेशन फ्रीक्वेंसी (IDF) कर्व IMD (भारत मौसम विज्ञान विभाग) से आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाता है।
शहरी बाढ़ से निपटने के उपाय
- NDMA के दिशा-निर्देश: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने विभिन्न मंत्रालयों, राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों और नगर निकायों को उनकी आपदा प्रबंधन योजनाएं तैयार करने के लिए मार्गदर्शन देने हेतु दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
- बाढ़ पूर्वानुमान केंद्र: केंद्रीय जल आयोग (CWC) ने सभी प्रमुख नदी घाटियों के लिए संबंधित प्राधिकरणों/ एजेंसियों को दैनिक बाढ़-बुलेटिन जारी करने के लिए बाढ़ पूर्वानुमान केन्द्रों का एक नेटवर्क तैयार किया है।
- तकनीकी उपाय: मुंबई के लिए एकीकृत बाढ़ चेतावनी प्रणाली, जिसे IFLOWS-मुंबई कहा जाता है, और चेन्नई के लिए तटीय बाढ़ चेतावनी प्रणाली, जिसे CFLOWS-चेन्नई कहा जाता है, वेब GIS आधारित निर्णय समर्थन प्रणालियां हैं। ये मौसम पूर्वानुमान मॉडल, हाइड्रोलॉजिक मॉडल और हाइड्रोडायनामिक मॉडल से प्राप्त डेटा और आउटपुट को एकीकृत करती हैं।
- इसी तरह, सटीक मौसम पूर्वानुमान प्रदान करने के लिए मिशन मौसम के तहत 39 डॉप्लर मौसम रडार स्थापित किए गए हैं।
- भूजल पुनर्भरण कार्यक्रम: कृत्रिम भूजल पुनर्भरण मास्टर योजना, 2020 का उद्देश्य देशभर में 1.42 करोड़ वर्षा जल संचयन संरचनाओं के निर्माण के माध्यम से 185 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) जल को संचित करना है।
- जल निकाय विकास योजनाएं: अमृत सरोवर मिशन का लक्ष्य वर्षा जल संचयन के लिए प्रत्येक जिले में 75 जल निकायों का विकास करना है।
- शहरी अवसंरचना उपाय: अमृत 2.0 योजना में वर्षा जल निकासी को जल निकायों में एकत्रित करने और जल निकासी प्रणालियों को मजबूत करने का प्रावधान है।
आगे की राह: वैश्विक सर्वोत्तम पद्धतियां
- सिंगापुर का ABC कार्यक्रम: इसमें जल को "सक्रिय, सुंदर और स्वच्छ" बनाने के लिए "ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर" का उपयोग किया जाता है। यह कार्यक्रम सार्वजनिक स्थानों को हरा-भरा बनाने और निजी विकास को संधारणीय सिद्धांतों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करने पर केंद्रित है।
- इससे बाढ़ से सुरक्षा और सामुदायिक मेलजोल, दोनों प्रकार के लाभ मिलते हैं।
- वियना का न्यू डेन्यूब सिस्टम: यह बाढ़ से बचाव के लिए 1969 में डेन्यूब नदी के किनारे बनाया गया चैनल है जिसकी लंबाई 21 किलोमीटर है। जब बाढ़ नहीं आती है तब यह निष्क्रिय रहता है लेकिन बाढ़ के समय वियर्स (weirs) खोलकर अतिरिक्त पानी को सोख लेता है।
- इससे मुख्य नदी पर दबाव कम होता है और शहर को बाढ़ से राहत मिलती है।
- चीन की स्पॉन्ज सिटीज़: यह एक शहरी डिज़ाइन पद्धति है जिसमें प्रकृति-आधारित समाधानों जैसे कि छिद्रदार सतहों, पुनर्बहाल आर्द्रभूमि और जल चैनलों का उपयोग किया जाता है।
- यह पारंपरिक कठोर सतहों और जल निकासी पर निर्भर रहने की बजाय पृथ्वी की प्राकृतिक जल अवशोषण क्षमता पर आधारित है।
- डेनमार्क की ग्रीन क्लाइमेट स्क्रीन: यह वर्षा जल प्रबंधन प्रणाली है जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं का उपयोग करके इमारतों से उत्सर्जित जल को प्रोसेस करती है। पानी गटर से विलो पैनल्स के माध्यम से बहता है, जिसके पीछे मिनरल वूल लगा होता है जो पानी को सोखता है।
- भारी वर्षा के दौरान अतिरिक्त पानी को बागानों या निकटवर्ती हरित क्षेत्रों में छोड़ दिया जाता है।
- अन्य संभावित समाधान: कंटूर मैपिंग (ढलान के नक्शे) तैयार करना, भारी वर्षा जल की निकासी प्रणाली को बेहतर बनाना, क्रॉस-ड्रेनेज वर्क, पंपिंग क्षमता को बढ़ाना शामिल हैं।