सुर्ख़ियों में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के कार्यकारी बोर्ड ने एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (EFF) व्यवस्था के तहत पाकिस्तान के आर्थिक सुधार कार्यक्रम की पहली समीक्षा पूरी कर ली है।
अन्य संबंधित तथ्य

- IMF ने एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (EFF) के तहत लगभग 1 बिलियन डॉलर {विशेष आहरण अधिकार (SDR) 760 मिलियन} देने की अनुमति दी है।
- एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (EFF): इसके द्वारा उन देशों की सहायता की जाती है, जो संरचनात्मक बाधाओं या धीमी संवृद्धि दर और अंतर्निहित कमजोर भुगतान संतुलन के कारण गंभीर वित्तीय असंतुलन का सामना कर रहे होते हैं।
- इसके साथ ही, IMF ने रेज़िलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी फैसिलिटी (RSF) ऋण कार्यक्रम के तहत 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर (SDR 1 बिलियन) के ऋण को भी मंजूरी दी है।
- भारत ने इस ऋण को मंजूरी दिए जाने की आलोचना की और मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं लिया।

IMF फंड के प्रमुख ऋण साधन | ||
जनरल रिसोर्सेज अकाउंट (GRA) | पॉवर्टी रिडक्शन एंड ग्रोथ ट्रस्ट (PRGT) | रेसिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी ट्रस्ट (RST) |
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IMF द्वारा पाकिस्तान को दिए गए ऋण को लेकर भारत द्वारा प्रकट की गई चिंताएं
- धन के दुरुपयोग की आशंका: भारत ने आशंका जताई है कि IMF द्वारा दिए गए ऋण का उपयोग पाकिस्तान सैन्य गतिविधियों और प्रायोजित सीमा-पार आतंकवादी गतिविधियों में कर सकता है।
- सेना की भूमिका: पाकिस्तान की सेना का आर्थिक मामलों में अत्यधिक हस्तक्षेप नीतिगत विफलताओं और सुधारों के उलटफेर का जोखिम बढ़ाता है।
- वैश्विक मूल्यों को कमजोर करना: इस प्रकार का ऋण सीमा-पार आतंकवाद को बढ़ावा देने (एक तरह से प्रॉक्सी वार) वाले देशों को पुरस्कार जैसा प्रतीत हो सकता है। इससे वित्त-पोषण एजेंसियों और दानदाताओं की छवि पर प्रश्नचिन्ह लग सकते हैं।
- IMF संसाधनों का लंबे समय तक उपयोग: बार-बार के बेलआउट पैकेज के कारण, पाकिस्तान पर अब भारी कर्ज का बोझ है। इससे वह IMF के लिए 'बहुत बड़ा ऋणी' देश बन गया है, जिसकी आर्थिक विफलता IMF के लिए समस्या बन सकती है।
- IMF कार्यक्रम की प्रभावशीलता को कमजोर करना: वर्ष 1989 से अब तक पाकिस्तान ने 35 में से 28 वर्षों में IMF से धन प्राप्त किया है। इससे IMF के कार्यक्रमों, उनकी निगरानी, या पाकिस्तान द्वारा उनके कार्यान्वयन की प्रभावशीलता पर संदेह पैदा होता है।
IMF से जुड़ी अन्य प्रमुख चुनौतियां/ चिंताएं
- अप्रभावी मतदान प्रक्रिया: IMF में किसी ऋण या प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने का कोई प्रावधान नहीं है।
- उदाहरण के लिए- भारत को IMF मतदान में भाग लेने की बजाय अनुपस्थित रहना पड़ा, क्योंकि व्यवस्था औपचारिक विरोध (यानी मत नहीं देने) की अनुमति नहीं देती।
- अलोकतांत्रिक गवर्नेंस संरचना: IMF में मतदान शक्ति का वितरण सदस्य देशों के कोटे पर आधारित है, जो विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय देशों और जापान के पक्ष में बना हुआ है।
- उदाहरण के लिए- 2010 में, IMF ने ग्रीस को ऋण देने के लिए अपने नियमों में बदलाव की अनुमति दी थी।
- अप्रभावी मूल्यांकन प्रक्रिया: IMF ने 2001 में इंडिपेंडेंट इवैल्यूएशन ऑफिस (IEO) की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य IMF की नीतियों, गतिविधियों और निष्पादन के विभिन्न पहलुओं का स्वतंत्र और वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन करना है।
- यद्यपि, IEO को 'स्वतंत्र' बताया जाता है, परन्तु इसे सीधे IMF द्वारा ही शासित और वित्त-पोषित किया जाता है।
- मिश्रित सफलता: IMF की शर्तों के कारण कभी-कभी अल्पकालिक तौर पर मैक्रो-इकोनॉमिक स्थिरता तो आती है, लेकिन राजकोषीय समेकन उपाय (या आत्मसंयम) अपनाने के कारण गरीबी में वृद्धि और सामाजिक व्यय में गिरावट भी देखी जाती है।
- कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियां: IMF से उधार लेने वाले सदस्य देशों की प्राथमिक जिम्मेदारी अपने आर्थिक कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए नीतियों का चयन, डिजाइन और कार्यान्वयन करना है।
निष्कर्ष
यद्यपि IMF वैश्विक वित्तीय प्रणाली को स्थिर करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, परन्तु कई बार इसे शासन के असंतुलन, कठोर शर्तों आदि से संबंधित गंभीर चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। अपनी विश्वसनीयता और प्रभावशीलता बनाए रखने के लिए, IMF को उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के बढ़ते प्रभाव को दर्शाने हेतु कोटा और मतदान शक्ति के सुधारों में तेजी लानी चाहिए। साथ ही, अपनी ऋण देने तथा मूल्यांकन प्रक्रियाओं में पारदर्शिता एवं जवाबदेही भी बढ़ानी चाहिए।