हिमालय पर्वतमाला की पारिस्थितिकी (THE HIMALAYAN MOUNTAIN SYSTEM ECOLOGY) | Current Affairs | Vision IAS
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हिमालय पर्वतमाला की पारिस्थितिकी (THE HIMALAYAN MOUNTAIN SYSTEM ECOLOGY)

Posted 01 Jul 2025

Updated 23 Jun 2025

40 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने काठमांडू (नेपाल) में आयोजित सागरमाथा संवाद के उद्घाटन सत्र में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

अन्य संबंधित तथ्य

  • सागरमाथा संवाद: यह एक बहुपक्षीय संवाद मंच है, जो वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय महत्व के प्रमुख मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए प्रतिबद्ध है।
  • शिखर सम्मेलन की थीम: 'जलवायु परिवर्तन, पर्वत और मानवता का भविष्य (Climate Change, Mountains, and the Future of Humanity)'।
  • भारत ने पर्वतीय क्षेत्रों में पारिस्थितिक चुनौतियों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर कार्रवाई के लिए पांच सूत्रीय सुझाव पेश किए (इंफोग्राफिक देखें)।

हिमालय पर्वतमाला की भू-आकृति विशेषताएं

  • यह दुनिया की सबसे युवा और सबसे ऊँची वलित पर्वत श्रेणी है।
  • हिमालय पर्वतमाला पाँच देशों में विस्तृत ई है: भारत, नेपाल, भूटान, चीन और पाकिस्तान।
  • भूवैज्ञानिक संरचना: यह पर्वतमाला लगभग 5 करोड़ वर्ष पहले भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराव के परिणामस्वरूप बनी थी।
  • महत्वपूर्ण ग्लेशियर: गंगोत्री ग्लेशियर (भागीरथी), बंदर पुंछ ग्लेशियर (बंदरपूंछ शिखर पर यमुनोत्री ग्लेशियर), अलकापुरी ग्लेशियर (अलकनंदा), सुमेरु ग्लेशियर (मंदाकिनी), बारा शिग्री ग्लेशियर (चिनाब), जेमू ग्लेशियर (तीस्ता), आदि।
  • भारतीय हिमालयी क्षेत्र: यह क्षेत्र अग्रलिखित 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में विस्तृत है: जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, असम और पश्चिम बंगाल। भारत में हिमालयी क्षेत्र लगभग 2500 किलोमीटर की लंबाई में विस्तृत है।
  • वनस्पति: हिमालयी क्षेत्र में वनस्पति की विविधता — गिरिपाद क्षेत्रों (foothills) में उष्णकटिबंधीय वनमध्य पर्वतीय क्षेत्रों में समशीतोष्ण वन, और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अल्पाइन घास के मैदान पाए जाते हैं।

हिमालय पर्वतमाला का पारिस्थितिक महत्व

  • हिमालयी हॉटस्पॉट (जैव विविधता से समृद्ध क्षेत्र) की जैव विविधता 
    • जैव विविधता हॉटस्पॉट: भारत के चार जैव विविधता हॉटस्पॉट्स में से दो हॉटस्पॉट्स हिमालयी क्षेत्र में मौजूद हैं। यह हैं हिमालय हॉटस्पॉट और इंडो-बर्मा हॉटस्पॉट
    • हिमालय में प्रजातियों की अधिक विविधता और स्थानिक (एंडेमिज्म) प्रजातियों की अधिक संख्या: इस क्षेत्र में लगभग 32% पौधों की स्थानिक प्रजातियाँ  (यानी केवल यहीं पाई जाती हैं) और कुछ विशिष्ट वन्य जीव जैसे- हिम तेंदुआ, लाल पांडा, और हिमालयी नीली भेड़ (भारल) पाए जाते हैं।
  • हिमालयी क्रायोस्फीयर (पृथ्वी का तीसरा ध्रुव)
    • हिमनद की दृष्टि से महत्व: हिमालय में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हिमनद (ग्लेशियर) मौजूद (आर्कटिक और अंटार्कटिक के बाद) है।
    • हिमालय 'एशिया का वाटर-टावर' है: एशिया की 10 प्रमुख नदियाँ हिमालय क्षेत्र से निकलती हैं (जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु और यांग्त्ज़ी), जो इस पूरे क्षेत्र के लगभग 1.3 बिलियन लोगों को ताजा जल उपलब्ध कराती हैं।
  • जलवायु नियंत्रण और कार्बन संचयन (Carbon Sequestration):
    •  मानसून को प्रभावित करना: हिमालय के ग्लेशियरों और हिंद महासागर के बीच तापमान का अंतर गर्मियों के दौरान दक्षिण-पश्चिमी मानसून को भारतीय भूभाग की ओर खींचता है।
    • कार्बन सिंक: हिमालयी वन लगभग 5.4 बिलियन टन कार्बन को संग्रहीत (स्टोर) करते हैं।
    • एल्बीडो प्रभाव: हिमालय में बर्फ और ग्लेशियरों की परत के कारण इसकी एल्बीडो (किसी सतह की सूर्य के प्रकाश या ताप को परावर्तित करने की क्षमता) अधिक होती है। इससे यह पृथ्वी की एल्बीडो प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • हिमालय का आर्थिक महत्व:
    • फाइबर और लकड़ी उत्पादन: जैसे: हिमालय नेटल (बिच्छू घास) से पर्यावरण के अनुकूल फाइबर मिलता है, और ओक के पेड़ उपयोगी लकड़ी प्रदान करते हैं।
    • गुच्छी मशरूम: गुच्छी बहुमूल्य जंगली मशरूम है, जो हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है।
    • पर्यटन को बढ़ावा: 2025 तक हर साल 24 करोड़ पर्यटक हिमालयी राज्यों में आने का अनुमान लगाया था।

हिमालय पर्वतमाला  के पारिस्थितिक तंत्र के समक्ष उत्पन्न खतरे:

  • वनों की कटाई और पर्यावास का नुकसान: 2019 से 2021 के बीच हिमालयी राज्यों में 1,072 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र कम हुआ है।
    • जैव विविधता की हानि: हिम तेंदुआ, लाल पांडा और हिमालयी कस्तूरी मृग जैसी एंडेंजर्ड प्रजातियों के पर्यावास नष्ट हो रहे हैं।
  • तेजी से ग्लेशियरों का पिघलना और जल चक्र में गड़बड़ी: उदाहरण के लिए, उत्तराखंड हिमालय में गंगोत्री ग्लेशियर 1935 और 2022 के बीच 1,700 मीटर सिकुड़ गया है।
    • ग्लेशियर के सिकुड़ने से हिमानी झीलों का आकार बढ़ता है, जिससे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) का खतरा बढ़ जाता है। जैसे कि, उत्तराखंड में 2013 की केदारनाथ आपदा
  • हिमालय क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
    • अगर वैश्विक तापमान 3°C तक बढ़ता है, तो  90% हिमालयी क्षेत्र एक साल से अधिक समय तक सूखे का सामना करेगा।
    • जल स्रोतों पर खतरा: भारतीय हिमालय क्षेत्र के झरने (स्प्रिंग्स) जो लगभग 50 मिलियन लोगों के लिए जीवन रेखा हैं, अब अनियमित बारिश और पारिस्थितिकी क्षरण के कारण सूख रहे हैं या मौसमी बनते जा रहे हैं
      •  2018 में नीति आयोग ने चेतावनी दी थी कि इस क्षेत्र के आधे से अधिक झरने  खत्म होने की कगार पर हैं, जिससे नदियों में जल का प्रवाह कम हो सकता है।
    •  हिमालय क्षेत्र वैश्विक औसत से 2 से 5 गुना तेजी से गर्म हो रहा है। इससे यहां की जैव विविधता और प्राकृतिक संतुलन पर गंभीर असर पड़ रहा है।
  • हिमालय में अनियंत्रित पर्यटन: हिमालय क्षेत्र की वहनीय-क्षमता पर बिना कोई अध्ययन किए अनियंत्रित पर्यटन और विकास के गंभीर भौगोलिक दुष्परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। इनमें भूस्खलन और भू-धंसाव (Land Subsidence) शामिल हैं।
    • उदाहरण के लिए, जोशीमठ में भू-धंसाव, जो पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अत्यधिक अवसंरचना के निर्माण का दुष्परिणाम है।
  • अनियंत्रित जलविद्युत विकास: हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में सिंधु नदी बेसिन में 115 से अधिक बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं नदी पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरण के लिए खतरा बन रही हैं।

हिमालय पर्वतमाला के पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए शुरू की गई पहलें

भारत की पहलें

  • नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन इकोसिस्टम (NMSHE): यह भारत की जलवायु परिवर्तन कार्य-योजना का एक प्रमुख मिशन है, जिसका मुख्य उद्देश्य हिमनद (ग्लेशियर) की निगरानी, जैव विविधता संरक्षण, और आपदा से निपटने की क्षमता बढ़ाना है।
  • प्रोजेक्ट स्नो-लेपर्ड: प्रथम व्यापक गणना (2019-2023) में भारत में 718 हिम तेंदुए या स्नो लेपर्ड पाए गए (विश्व का लगभग 10 से 15% स्नो लेपर्ड)
  • सेंटर फॉर क्रायोस्फीयर & क्लाइमेट चेंज स्टडीज: यह हिमालयी ग्लेशियरों की निगरानी करता है।
  • आपदा से निपटने की तैयारी: इसमें ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) के खतरे वाले क्षेत्र की पहचान (मैपिंग) शामिल है।
  • संधारणीय पर्यटन और अपशिष्ट प्रबंधन: स्वदेश दर्शन योजना इको-टूरिज्म को बढ़ावा देती है; 2022 में पूरे भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया गया, जिससे प्रदूषण कम करने में मदद मिली है।

वैश्विक पहलें

  • अंतर्राष्ट्रीय हिमनद संरक्षण वर्ष (2025) और क्रायोस्फीयर दशक (2025–2034): ये पहलें यूनेस्को और विश्व मौसम संगठन (WMO) द्वारा चलाई जा रही हैं।
  • ग्लोबल स्नो लेपर्ड एंड इकोसिस्टम प्रोटेक्शन प्रोग्राम (GSLEP): इसके तहत 12 देश हिम तेंदुओं के संरक्षण के लिए सहयोग करते हैं।
  • इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD): यह एक अंतर-सरकारी संगठन है, जो हिंदू-कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र के संरक्षण और विकास के लिए कार्य करता है।
  • इंटरनेशनल बिग कैट्स एलायंस (IBCA): यह संधि आधारित संगठन है, जो दुनिया की 7 बड़ी बिल्ली (बिग कैट्स) प्रजातियों;  बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, चीता, जगुआर और प्यूमा — के संरक्षण के लिए कार्य करता है।
  • सिक्योर (SECURE) हिमालय परियोजना: यह परियोजना "वन्यजीव संरक्षण और अपराध रोकथाम के लिए वैश्विक साझेदारी" (ग्लोबल वाइल्डलाइफ प्रोग्राम) का हिस्सा है, जिसे ग्लोबल एनवायरनमेंट फैसिलिटी (GEF) द्वारा वित्त पोषित किया गया है।

 

 

निष्कर्ष

भारतीय हिमालय का भू-राजनीतिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व है। हालांकि इस क्षेत्र में भूमि उपयोग में बदलाववन्यजीव का अवैध व्यापारजंगल की आग, और इंसानी गतिविधियों का बढ़ता दबाव इस नाजुक जैव विविधता हॉटस्पॉट के लिए लगातार खतरा बने हुए हैं। इससे यह साफ होता है कि इस क्षेत्र के संरक्षण के लिए और अधिक प्रयासों की जरूरत है।

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  • सागरमाथा संवाद
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  • हिमालयी हॉटस्पॉट
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