PSLV रॉकेट में तकनीकी खराबी के कारण इसरो का 101वां मिशन विफल हुआ (ISRO’S 101ST MISSION FAILS AS PSLV ROCKET SUFFERS MALFUNCTION) | Current Affairs | Vision IAS
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संक्षिप्त समाचार

01 Jul 2025
38 min

इसरो (ISRO) का “PSLV-C61/EOS-09” मिशन, PSLV रॉकेट के तीसरे चरण में तकनीकी खराबी के कारण विफल हो गया। यह 63वां PSLV मिशन था। 

  • अपनी प्रथम उड़ान से लेकर अब तक, ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) केवल दो बार विफल हुआ है; पहली बार 1993 की प्रथम उड़ान में और दूसरी बार 2017 में।

PSLV-C61/EOS-09 मिशन के बारे में

  • PSLV-C61 का उद्देश्य EOS-09 यानी अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट-09 को सूर्य-तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षा (SSPO) में स्थापित करना था।
    • इसे श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के पहले लॉन्च पैड से प्रक्षेपित किया गया था।
  • EOS-09 पृथ्वी का पर्यवेक्षण करने वाला अत्याधुनिक सैटेलाइट है। यह C-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) तकनीक से युक्त है।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य अलग-अलग क्षेत्रकों में उपयोग के लिए निरंतर और विश्वसनीय रिमोट सेंसिंग डेटा प्रदान करना है।
    • यह सैटेलाइट किसी भी मौसम में और दिन या रात में, पृथ्वी की सतह की हाई-रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरें लेने में सक्षम है।

PSLV के बारे में

  • यह ISRO द्वारा विकसित भारत का थर्ड जनरेशन प्रक्षेपण यान है।
  • यह चार चरणों वाला रॉकेट है। साथ ही, यह भारत का पहला प्रक्षेपण यान भी है, जिसमें तरल ईंधन चरण शामिल हैं। 
  • इसका पहला सफल प्रक्षेपण अक्टूबर 1994 में हुआ था। तब से इसकी लगातार सफलता के कारण इसे "ISRO का वर्कहॉर्स" कहा जाने लगा।
  • यह पृथ्वी की निम्न कक्षा (LEO)भू-तुल्यकालिक कक्षा (Geosynchronous) और भूस्थिर (Geostationary) कक्षा में उपग्रहों को प्रक्षेपित करने में सक्षम है।
  • इसने चंद्रयान-1 (2008) और मंगलयान (2013) जैसे प्रमुख मिशनों को भी सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया है।

यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत किया गया दूसरा अंतर्राष्ट्रीय कानूनी समझौता है। गौरतलब है कि पहला अंतर्राष्ट्रीय कानूनी समझौता WHO तम्बाकू नियंत्रण पर फ्रेमवर्क कन्वेंशन, 2003 है। 

  • अनुच्छेद 19 के अनुसार, WHA के पास दो-तिहाई मत के साथ अपनी क्षमता के भीतर किसी भी मामले पर अभिसमय/ समझौते को अपनाने का अधिकार है।

इस समझौते के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर 

  • अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (IHR), 2005 के अनुसार इसका उद्देश्य वैश्विक महामारी की रोकथाम और निगरानी को मजबूत करना।
    • IHR का उद्देश्य रोग के अंतर्राष्ट्रीय प्रसार को रोकना, उसे नियंत्रित करना और लोक स्वास्थ्य की दिशा में कार्रवाई करना है। 
  • वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क: अंतर्राष्ट्रीय स्तर की लोक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के दौरान महामारी से निपटने से संबंधित स्वास्थ्य उत्पादों की सुलभता सुनिश्चित करना।
  • संधारणीय वित्त-पोषण: IHR के अंतर्गत समन्वयकारी वित्तीय तंत्र का उपयोग इसके कार्यान्वयन के लिए किया जाएगा।
  • पैथोजन एक्सेस एंड बेनिफिट शेयरिंग (PABS) प्रणाली: इस संबंध में एक अंतर-सरकारी कार्य समूह (IGWG) के माध्यम से PABS का मसौदा तैयार करने और उस पर वार्ता करने की प्रक्रिया शुरू की गई है।
    • इस प्रक्रिया के परिणाम पर अगले वर्ष की WHA में विचार किया जाएगा। 
    • PABS का कार्य महामारी की स्थिति उत्पन्न करने वाले संभावित रोगजनकों से जुडे नमूनों और अनुक्रम जानकारी को तेजी से एवं समय पर साझा करना है।
    • PABS में भाग लेने वाले दवा विनिर्माता WHO को अपने टीकों, उपचार और डायग्नोस्टिक किट के उत्पादन के 20% तक तुरंत पहुंच उपलब्ध कराएंगे।
  • प्रवर्तन: एक बार जब PABS को अपना लिया जाएगा, तो यह समझौता देशों के समक्ष हस्ताक्षर और अनुसमर्थन के लिए प्रस्तुत किया जायेगा।
    • यह समझौता 60 देशों द्वारा अनुसमर्थन के बाद लागू किया जाएगा। 

यह रिपोर्ट विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) द्वारा जारी की गई है। यह विश्व में पशुओं के स्वास्थ्य की स्थिति पर पहली व्यापक वैश्विक रिपोर्ट है।

  • विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) का मुख्यालय पेरिस में है। इसकी स्थापना 1924 में ऑफिस इंटरनेशनल देस एपिज़ूटीज़ (Office International des Epizooties) के रूप में हुई थी। इसे विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) नाम 2003 में दिया गया था।
  • यह संगठन पशु संबंधी रोगों की जानकारी पारदर्शी रूप से साझा करता है और पशु स्वास्थ्य सुधारने के लिए कार्य करता है ताकि एक सुरक्षित, स्वस्थ और संधारणीय विश्व बना रह सके।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर 

  • रोग पैटर्न में बदलाव: अब संक्रामक पशु रोग नए भौगोलिक क्षेत्रों में फैल रहे हैं। इनमें से  लगभग 47% रोग ऐसे हैं, जो पशुओं से इंसानों में फैल सकते हैं। इन्हें जूनोटिक यानी पशुजन्य रोग कहा जाता है।
    • उदाहरण के लिए- पेस्टे डेस पेटीट्स रूमिनेंट्स भेड़ और बकरियों को प्रभावित करता है। यह रोग पारंपरिक रूप से विकासशील देशों तक ही सीमित था, अब इसका प्रसार यूरोप में भी देखा गया है। 
  • रोग की बढ़ती तीव्रता: अफ़्रीकी स्वाइन फीवरएवियन इन्फ्लूएंजा और खुरपका-मुंहपका जैसी बीमारियों की आवृत्ति एवं तीव्रता बढ़ रही है। इससे कृषि खाद्य प्रणालियों को नुकसान होता है तथा खाद्य सुरक्षा, लोक स्वास्थ्य और जैव विविधता पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।
  • रोग फैलने के कारक: इसमें जलवायु परिवर्तन और वैश्विक व्यापार का विस्तार प्रमुख कारकों में से एक है।
  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस/ AMR): अनुमान है कि 2050 तक AMR के कारण पशुधन की भारी हानि होगी। इससे 2 बिलियन लोगों की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी और परिणामस्वरूप 100 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान भी होगा।
  • रिपोर्ट में की गई मुख्य सिफारिशें:
    • बेहतर स्वच्छता और जैव सुरक्षा उपायों जैसे अन्य नियंत्रण उपायों के साथ-साथ सुरक्षित व प्रभावी टीकों की सामान उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए।
    • राष्ट्रीय पशु चिकित्सा सेवाओं को मजबूत करने, वैश्विक एवं क्षेत्रीय स्तर पर समन्वय बढ़ाने, रोग निगरानी प्रणाली में सुधार आदि के लिए निवेश को बढ़ावा देना चाहिए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत को ट्रेकोमा को लोक स्वास्थ्य समस्या के रूप में समाप्त करने के लिए प्रमाण-पत्र प्रदान किया।

  • दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में भारत तीसरा देश बन गया है, जिसने ट्रेकोमा का उन्मूलन किया है। अन्य दो देश नेपाल और म्यांमार हैं। 

ट्रेकोमा के बारे में

  • कारण: यह क्लैमाइडिया ट्रैकोमैटिस नामक बैक्टीरिया से होने वाला नेत्र रोग है। 
  • इसे WHO ने उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग की सूची में शामिल किया हुआ है।  
  • प्रभाव: यह आजीवन दृष्टिहीनता का कारण बन सकता है।
    • बार-बार संक्रमण होने पर पलकें अंदर की ओर मुड़ जाती हैं, जिससे पलकों की बरौनियाँ (Eyelashes) आँख की सतह को रगड़ती हैं। यह स्थायी रूप से कॉर्नियल क्षति का कारण बन सकता है।
  • संक्रमण का माध्यम: यह रोग संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से या मक्खियों के माध्यम से फैलता है।
  • भारत की पहलें: भारत में 1976 में ट्रेकोमा नियंत्रण कार्यक्रम को राष्ट्रीय दृष्टिहीनता और दृश्य क्षति नियंत्रण कार्यक्रम (NPCBVI) के तहत एकीकृत किया गया था।

 

वैज्ञानिकों ने पहली बार इन-सीटू एक्स-रे विवर्तन का उपयोग करके तरल कार्बन की संरचना का अध्ययन किया।

तरल कार्बन के बारे में

  • अब तक तरल अवस्था में कार्बन के बारे में बहुत कम जानकारी थी, क्योंकि इस रूप में इसका प्रयोगशाला में अध्ययन करना व्यावहारिक रूप से लगभग असंभव था।
    • सामान्य दबाव में कार्बन द्रवित नहीं होता है, बल्कि तुरंत गैसीय अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
    • यह 4,500°C के आसपास और बहुत उच्च दबाव की स्थिति में तरल अवस्था में तब्दील होता है। ऐसी स्थिति में कोई भी कंटेनर टिक नहीं सकता है।
  • उदाहरण के लिए- इसे ग्रहों के आंतरिक भाग में पाया जा सकता है।
  • यह परमाणु संलयन जैसी भविष्य की प्रौद्योगिकियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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