भारत–तुर्किये संबंध (INDIA–TURKEY RELATIONS) | Current Affairs | Vision IAS
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भारत–तुर्किये संबंध (INDIA–TURKEY RELATIONS)

Posted 01 Jul 2025

Updated 23 Jun 2025

27 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान में आतंकवाद-रोधी कार्रवाइयां की थी। इन कार्रवाइयों की तुर्किये ने आलोचना की थी। इसके कारण भारत–तुर्किये संबंधों में कड़वाहट आई है।

अन्य संबंधित तथ्य

  • तुर्किये ने भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' की आलोचना की है और इसे "उकसावे वाला" कदम बताया है। साथ ही, यह चेतावनी भी दी है कि पाकिस्तान के भीतर किए गए हमले व्यापक संघर्ष के खतरे को बढ़ा सकते हैं।
    • ज्ञातव्य है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, भारतीय वायु रक्षा प्रणाली ने पाकिस्तान द्वारा उपयोग किए गए सोंगर ड्रोन को निष्क्रिय कर दिया था। ये ड्रोन तुर्की में निर्मित थे।
  • इसके बाद भारत ने तुर्की की कंपनी 'सेलेबी एविएशन' का सिक्योरिटी क्लीयरेंस प्रमाण-पत्र रद्द कर दिया। यह कंपनी भारत के 9 हवाई अड्डों पर ग्राउंड हैंडलिंग कार्य कर रही थी।
    • उल्लेखनीय है कि कई भारतीय विश्वविद्यालयों (जैसे- जामिया मिलिया इस्लामिया) ने तुर्की के शिक्षण संस्थानों के साथ शैक्षणिक सहयोग समझौते को भी निलंबित कर दिया है।  

भारत के लिए तुर्किये का महत्त्व

  • तुर्किये की सामरिक अवस्थिति: तुर्किये यूरोप और एशिया को जोड़ता है। यह अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) का हिस्सा है। यह गलियारा भारत के लिए यूरोप एवं मध्य एशिया के साथ व्यापार बढ़ाने में अहम है। 
  • क्षेत्रीय प्रभाव: तुर्किये मध्य पूर्व, काला सागर (ब्लैक-सी) जैसे अपने पड़ोसी क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण हितधारक है। इससे भारत को इन क्षेत्रों की जानकारी रखने और अपना प्रभाव बनाए रखने में तुर्किये से मदद मिल सकती है। 
  • वैश्विक मंच: दोनों देश G-20 के सदस्य हैं। साथ ही, दोनों देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council: UNSC) में सुधार जैसे ग्लोबल गवर्नेंस के मुद्दों पर समान रुख रखते हैं। ध्यातव्य है कि तुर्किये ने UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का समर्थन किया है। 

भारत–तुर्किये संबंधों में वर्तमान चुनौतियां

  • पाकिस्तान को सैन्य एवं राजनयिक समर्थन: चीन के बाद तुर्किये, पाकिस्तान के लिए दूसरा सबसे बड़ा हथियार-आपूर्तिकर्ता देश है। इन हथियारों में ड्रोन, कॉर्वेट, मिसाइल और F-16 अपग्रेड शामिल हैं।
    • इससे पाकिस्तान की रक्षा क्षमता मजबूत होती है और वह भारत के साथ तनावपूर्ण स्थितियों का लंबे समय तक सामना कर सकता है।
  • कश्मीर मुद्दे में हस्तक्षेप करना: तुर्किये कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के रुख का समर्थन करता है। स्मरणीय है कि उसने 2019 में जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष रहे संवैधानिक अनुच्छेद 370 को हटाने के भारत के फैसले का संयुक्त राष्ट्र जैसे मंच पर विरोध भी किया था।
  • भारत के खिलाफ नकारात्मक धारणा बनाने में मदद: तुर्की समर्थित सोशल मीडिया दुष्प्रचार और डिजिटल कंटेंट भारत के आंतरिक मुद्दों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाकर भारत के खिलाफ नकारात्मक धारणाएं पैदा करते हैं।
  • तुर्किये-अज़रबैजान-पाकिस्तान का नया गठजोड़: तुर्किये और अज़रबैजान, दोनों देशों ने भारत के ऑपरेशन सिंदूर की आलोचना की थी।
    • तुर्किये और पाकिस्तान बगदाद संधि तथा सेंट्रल ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (CENTO) के सदस्य रह चुके हैं। वे ईरान के साथ क्षेत्रीय विकास सहयोग (Regional Cooperation for Development: RCD) में भी भागीदार रहे हैं।
  • इस्लामी रुख और अखिल-इस्लामवाद: तुर्किये के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्डोगन ने इस्लाम समर्थक रुख एवं वैश्विक मुस्लिम एकजुटता संबंधी दृष्टिकोण के कारण भारत की आंतरिक नीतियों की आलोचना की है। इससे दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव बढ़ा है। 

पाकिस्तान-केंद्रित रुख की ओर तुर्किये का झुकाव

  • ऐतिहासिक संबंध और शुरुआती समर्थन: भारत और तुर्किये, दोनों ने उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलनों का समर्थन किया था। भारतीय राष्ट्रवादियों ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान तुर्किये का पक्ष-समर्थन किया था। हालांकि, स्वतंत्रता के बाद यह सद्भाव मजबूत संबंधों में नहीं बदल पाया।
  • पाकिस्तान की ओर तुर्किये का झुकाव: 1947 के बाद, तुर्किये ने पाकिस्तान पर अधिक ध्यान केंद्रित किया, क्योंकि दोनों देश इस्लामी पहचान साझा करते हैं। 1970 के दशक में इस्लामी राजनीतिक दलों के उदय ने तुर्किये को पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देशों के और अधिक करीब ला दिया।
  • सुरक्षा और रणनीतिक साझेदारी: 1950 के दशक में तुर्किये और पाकिस्तान ने 'शाश्वत मित्रता संधि (Treaty of Eternal Friendship)' पर हस्ताक्षर किए थे और सोवियत संघ के प्रभाव को रोकने के लिए CENTO में शामिल हुए थे। पाकिस्तान ने इस अवसर का उपयोग भारत के खिलाफ तुर्किये का समर्थन पाने के लिए भी किया था।
    • इसी वर्ष (2025) तुर्किये और पाकिस्तान ने 'रणनीतिक साझेदारी को मजबूत, विविध और संस्थागत बनाने' के घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर भी किए हैं।
  • भारत के परमाणु कार्यक्रम का विरोध: वर्ष 1998 में तुर्किये ने भारत के परमाणु परीक्षणों की आलोचना की थी और पाकिस्तान की प्रतिक्रिया का समर्थन किया था। तुर्किये ने पाकिस्तान की परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (Nuclear Suppliers Group: NSG) की सदस्यता का समर्थन भी किया है।

निष्कर्ष

भारत–तुर्किये संबंधों में उतार-चढ़ाव देखे जाते रहे हैं। इन संबंधों को ऐतिहासिक गठजोड़, वैचारिक रुख और नए भू-राजनीतिक यथार्थ प्रभावित करते रहे हैं। दोनों देशों के बीच संबंधों में चुनौतियों को देखते हुए भारत को तुर्किये द्वारा दुष्प्रचार के खतरों का जवाब देने के लिए बहुपक्षीय मंचों का उपयोग करना चाहिए। साथ ही, तुर्किये के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों (यूनान, साइप्रस, अर्मेनिया, इजरायल, और संयुक्त अरब अमीरात) के साथ संबंधों को मजबूत बनाने पर ध्यान देना चाहिए। इससे तुर्किये के साथ रणनीतिक संतुलन बनाए रखने में मदद मिल सकती है। साथ ही, एक-दूसरे का सम्मान करने और साझा हितों के आधार पर संबंधों को फिर से सामान्य करने से अधिक स्थिर, व्यावहारिक और भविष्योन्मुख साझेदारी का मार्ग भी प्रशस्त हो सकता है। 

  • Tags :
  • भारत–तुर्किये संबंध
  • ऑपरेशन दोस्त
  • पहला गेम हमला
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