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रक्षा प्रौद्योगिकी और ऑपरेशन सिंदूर (Defense Technology and Operation Sindoor)

01 Jul 2025
54 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने अपनी हवाई क्षेत्र क्षमताओं के माध्यम से सैन्य अभियानों में तकनीकी श्रेष्ठता को प्रदर्शित किया।

ऑपरेशन सिंदूर को सक्षम बनाने वाली प्रमुख रक्षा प्रौद्योगिकियां

भारत की हवाई क्षेत्र निगरानी प्रणाली

प्रणाली 

विवरण 

भारतीय वायुसेना की {एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (IACCS)}

  • यह एक स्वचालित कमान और कंट्रोल प्रणाली है, जो सभी वायु रक्षा परिसंपत्तियों जैसे भूमि आधारित रडार्स, हवाई सेंसर्स, सिविल रडार्स, और संचार तंत्र से प्राप्त डेटा को एकीकृत करती है।
    • यह वायु अभियानों के दौरान युद्ध क्षेत्र की पूरी तस्वीर और वहां की स्थिति के बारे में सटीक जानकारी प्रदान करती है।
  • विकसित किया गया: भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा, जो सार्वजनिक क्षेत्रक की एयरोस्पेस एवं डिफेंस इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी है।

बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (BMD) नेटवर्क का मिशन कंट्रोल सेंटर (MCC)

  • यह 500 कि.मी. से अधिक की रेंज वाले लॉन्ग-रेंज ट्रैकिंग रडार (LRTR) के नेटवर्क के माध्यम से भारतीय हवाई क्षेत्र की लगातार निगरानी करता है। इस नेटवर्क में स्वोर्डफ़िश रडार शामिल हैं। 
  • यह निम्नलिखित से भी डेटा प्राप्त करता है:
    • भारतीय वायु सेना और राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO) के ELM-2090 टेरा सिस्टम्स से डेटा प्राप्त करना। ये सिस्टम्स लंबी दूरी तक खोज अभियान कर सकते हैं और वस्तुओं का पता लगा सकते हैं। इन्हें इजरायल से प्राप्त किया गया है। 
    • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित नेत्र एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (Netra AEW&C)। इसका 240 डिग्री रडार कवरेज और 200 कि.मी. तक की रेंज है।
    • तीन इज़राइली IL-76-आधारित फाल्कन एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम्स (AWACS)। इनका 360-डिग्री रडार कवरेज और 400 किलोमीटर से अधिक की रेंज है।

भारतीय थल सेना की 'आकाशतीर' प्रणाली

  • यह एक AI संचालित और पूरी तरह से स्वचालित एयर डिफेंस प्रणाली है। इसे शत्रु देश के ड्रोन्स, मिसाइलों, माइक्रो मानव रहित हवाई वाहनों (UAVs) और लॉइटरिंग हथियारों को रोकने एवं निष्क्रिय करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह विविध रडार प्रणालियों, सेंसर्स और संचार प्रौद्योगिकियों को एक ही परिचालन ढांचे में एकीकृत करती है।
  • यह युद्ध क्षेत्रों में कम ऊंचाई वाले हवाई क्षेत्र की स्वायत्त निगरानी और भूमि आधारित वायु रक्षा हथियार प्रणालियों के कुशल नियंत्रण को सक्षम बनाती है।
  • विकसित: इसे भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) ने स्वदेशी रूप से विकसित किया है।

भारतीय नौसेना की 'त्रिगुण/ TRIGUN' प्रणाली

  • यह भारतीय नौसेना का समुद्री डोमेन जागरूकता मंच है। यह समुद्र-आधारित रडार, सोनार और संचार नोड्स को एकीकृत करता है। इसकी मदद से तटीय और गहरे समुद्र में रियल टाइम में खतरों का पता लगाया जा सकता है।

NavIC के माध्यम से उपग्रह निगरानी (नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन) 

  • विकसित: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा।
  • कवरेज:  यह प्रणाली भारत के संपूर्ण भूभाग के अलावा इसकी सीमाओं से 1,500 कि.मी. तक के क्षेत्र को कवर करती है। यह अवस्थिति, वेग और समय (Position, Velocity & Timing) संबंधी सेवाएं प्रदान करती है।
  • इसमें 7 सैटेलाइट्स और 24 x 7 संचालित होने वाले ग्राउंड स्टेशनों का एक नेटवर्क शामिल है।
    • 3 सैटेलाइट्स भू-स्थैतिक कक्षा (Geostationary orbit) में तथा 4 झुकाव युक्त भू-तुल्यकालिक कक्षा (Geosynchronous orbit) में स्थापित हैं।
    • ये सैटेलाइट्स ड्यूल बैंड सिग्नल (L5 और S-बैंड) से लैस हैं।
      • L5 सिग्नल सैन्य उपयोग के लिए एन्क्रिप्टेड है।

 

 

भारत की बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली

भारत की वायु रक्षा प्रणाली चार परतों से बनी है (इन्फोग्राफिक देखें)।

प्रत्येक परत के मुख्य घटक

पहली परत (अत्यंत कम दूरी)

ड्रोन डिटेक्ट, डेटर एंड डिस्ट्रॉय (D4) एंटी-ड्रोन सिस्टम

  • विकसित: DRDO द्वारा विकसित और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा निर्मित।
  • यह दोहरी-परत वाली "किल मैकेनिज्म" (नष्ट करने की प्रणाली) से लैस है:
    • हार्ड किल: लेजर डायरेक्टेड एनर्जी वेपन सिस्टम (लेजर निर्देशित ऊर्जा हथियार प्रणाली)।
    • सॉफ्ट किल: ड्रोन कम्युनिकेशन चैनल रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) डिटेक्शन एंड जैमिंग, GPS जैमिंग / स्पूफिंग सिस्टम।
  • अन्य विशेषताएं:
    • रडार सिस्टम: ड्रोन का पता लगाना और ट्रैकिंग। 
    • चार्ज-कपल्ड डिवाइस (CCD), इन्फ्रा-रेड कैमरा: ड्रोन लक्ष्य का पता लगाने और ट्रैकिंग के लिए। 
    • कमांड एंड कंट्रोल सेंटर (C3): पूरे सिस्टम के लिए पावर सोर्स के साथ।

मैन-पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम्स (MANPADS)

  • ये सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल्स हैं। इन्हें एक अकेला व्यक्ति ले जा सकता है और दाग सकता है, या एक दल के रूप में एक से अधिक व्यक्ति ले जा सकते हैं और दाग सकते हैं। 
  • भारत ने रूसी MANPADS खरीदे हैं। इनमें इग्ला-M और इसका अधिक उन्नत संस्करण इग्ला-S शामिल हैं। 

शिल्का सिस्टम्स (ZSU-23-4) 

  • यह एक स्वचालित और रडार-गाइडेड एंटी-एयरक्राफ्ट हथियार प्रणाली (SPAAG) है। यह ट्रैक्ड चेसिस पर लगी होती है। 
  • यह रूसी मूल की मोबाइल एयर डिफेंस फायर कंट्रोल प्रणाली है। इसे भूमि पर तैनात सैनिकों और सशस्त्र वाहनों को हवाई हमलों से बचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • इसमें तीसरी पीढ़ी की इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल प्रणाली, फेज्ड एरे 3D ट्रैकिंग रडार, और सटीक नेविगेशन प्रणाली है, जो दिन हो या रात हर समय किसी भी हवाई हमले से 360 डिग्री सुरक्षा प्रदान करती है।

Zu-23 mm प्रणाली

  • इसका सोवियत डिजाइन है। यह ट्विन बैरल वाली एंटी-एयरक्राफ्ट गन है। इसमें दो 23 मि.मी. ऑटोकैनन लगी होती हैं।
  • हवाई लक्ष्यों के लिए इसकी प्रभावी रेंज 2.5 कि.मी. और ज़मीनी लक्ष्यों के लिए लगभग 2 कि.मी. है।
  • यह बहुत ज्यादा मात्रा में आगजनी में सक्षम है तथा इसका इस्तेमाल अक्सर कम उड़ान वाले खतरों से स्थिर प्रतिष्ठानों को बचाने के लिए किया जाता है।

 

L/70 एंटी-एयरक्राफ्ट गन

  • यह 40 मि.मी. की एक तोप है। इसमें रडार, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर, ऑटो-ट्रैकिंग सिस्टम सहित कई विशेषताएं हैं।
  • स्वीडन की बोफोर्स कंपनी द्वारा विकसित और भारत में निर्मित।
  • 4 किलोमीटर तक की रेंज के साथ प्रति मिनट 240-330 राउंड फायर करने में सक्षम।

दूसरी परत (कम दूरी)

आकाश

  • यह एक कम दूरी की सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल (SRSAM) प्रणाली है। इसे महत्वपूर्ण जगहों और क्षेत्रों को हवाई हमलों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • विकसित: DRDO द्वारा। 
  • वर्तमान में यह प्रणाली भारतीय वायु सेना (IAF) और भारतीय थल सेना में सेवा में है।
  • मुख्य विशेषताएं:
    • इंटरसेप्शन रेंज: 30-35 किलोमीटर। 
      • 2016 में सरकार ने इसकी अगली पीढ़ी की प्रणाली आकाश-नेक्स्ट जनरेशन (Akash-NG) के विकास को मंजूरी दी थी, जिसकी रेंज 70 किलोमीटर तक बढ़ाई गई है।
    • यह 18 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर लक्ष्यों को भेद सकती है।
    • यह एक साथ कई लक्ष्यों को ग्रुप मोड या स्वतंत्र मोड में निशाना बना सकती है।
    • इसमें इलेक्ट्रॉनिक काउंटर-काउंटर मेजर्स (ECCM) की तकनीक शामिल है। इससे यह इलेक्ट्रॉनिक हमलों के खिलाफ भी काम कर सकती है।

SPYDER (सरफेस-टू-एयर पायथन एंड डर्बी)

  • यह एक निचले स्तर की व त्वरित प्रतिक्रिया वाली सतह-से-हवा में मार करने में सक्षम मिसाइल (SAM) प्रणाली है। यह एयरक्राफ्ट्स, हेलिकॉप्टर्स, ड्रोन्स (UAVs) और सटीक निर्देशित हथियारों को मार गिराने में सक्षम है।
  • विकसित: इजरायल द्वारा। 
  • मुख्य विशेषताएं:
    • यह दो प्रकार की इंटरसेप्टर मिसाइल्स 'पायथन-5 और डर्बी' दागती है।
    • भारत ने 18 SPYDER-MR (मीडियम रेंज) प्रणालियां खरीदी हैं।
    • इनकी मारक क्षमता 35 किलोमीटर है।
    • ये 16 से 20 किलोमीटर की ऊँचाई पर उड़ रहे लक्ष्यों को भेद सकती हैं।

लिगेसी सोवियत सिस्टम्स 

  • S-125 पेचोरा, 9K33 Osa-AK, और 2K12 क्यूब/Kvadrat

तीसरी परत (मध्यम दूरी)

बराक-8 मिसाइल रक्षा प्रणाली

  • सह-विकसित: भारत और इजरायल के बीच एक अंतर-सरकारी समझौते के तहत DRDO और इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित।
  • यह प्रणाली दो संस्करणों में उपलब्ध है:
    • नौसेना-आधारित लंबी दूरी की सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल (LRSAM) प्रणाली: इसकी रेंज 100 किलोमीटर तक है।
    • मध्यम दूरी की सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल (MRSAM) प्रणाली: इसकी रेंज 70 किलोमीटर तक है।

चौथी परत (लंबी दूरी)

S-400 सुदर्शन चक्र

  • S-400 को भारत में सुदर्शन चक्र भी कहा जाता है। यह बहु-कार्यात्मक रडार, स्वायत्त पहचान व लक्ष्यीकरण प्रणाली, एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम, लॉन्चर और एक कमांड एंड कंट्रोल सेंटर को एकीकृत करती है।
  • विकसित: रूस के अल्माज़ सेंट्रल डिज़ाइन ब्यूरो ने S-400 ट्रायम्फ के रूप में विकसित किया है।
    • भारत ने 2016 में पांच S-400 प्रणालियों की खरीद के लिए एक समझौता किया था।
  • इसमें चार प्रकार की मिसाइल्स का उपयोग किया जाता है: कम दूरी (40 कि.मी.), मध्यम दूरी (120 कि.मी.), लंबी दूरी (250 कि.मी.), और अत्यधिक लंबी दूरी (400 कि.मी.)। इस प्रकार यह स्तरीय रक्षा का निर्माण करती है।
  • यह 400 कि.मी. तक की रेंज और 30 कि.मी. तक की ऊंचाई पर विमान, UAVs, तथा बैलिस्टिक एवं क्रूज मिसाइल्स सहित सभी प्रकार के हवाई लक्ष्यों को निशाना बना सकती है।

बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (BMD) कार्यक्रम

  • यह एक दो-स्तरीय प्रणाली है। यह किसी भी आने वाली बैलिस्टिक मिसाइल को रोकने में सक्षम है। इसके विकास चरण-1 में 2,000 किलोमीटर तक की दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों को रोकने पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जबकि चरण-2 में इस क्षमता को 5,000 किलोमीटर तक बढ़ाया जाएगा। 
    • पृथ्वी वायु रक्षा (PAD) प्रणाली: यह 2,000 कि.मी. तक की रेंज वाली, 80 कि.मी. तक की ऊँचाई पर और मैक 5 की गति से आने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों को रोक सकती है।
      • भारत अपने BMD कार्यक्रम के चरण-II के हिस्से के रूप में, पृथ्वी डिफेंस व्हीकल (PDV) विकसित कर रहा है। PDV 100 कि.मी. तक की ऊँचाई पर बाह्य वायुमंडलीय टारगेट्स को रोक सकता है।
    • एडवांस्ड एयर डिफेंस (AAD) सिस्टम: यह प्रणाली 30 कि.मी. तक की ऊँचाई पर आने वाले बैलिस्टिक मिसाइल खतरों को रोक सकती है।

 

 

 

अन्य हथियार प्रणालियां जिनका संभावित रूप से उपयोग किया गया

हथियार 

विवरण 

ब्रह्मोस मिसाइल

  • यह एक लंबी दूरी की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली है। यह लगभग 2-3 मैक की गति से गमन करती है।
    • क्रूज मिसाइल्स जेट इंजनों द्वारा संचालित होती है।
  • इसे DRDO और रूस के NPOM के बीच एक संयुक्त उद्यम ब्रह्मोस एयरोस्पेस द्वारा विकसित किया गया है।
  • मुख्य विशेषताएं:
    • यह "फायर एंड फॉरगेट" (दागो और भूल जाओ) सिद्धांत पर काम करती है।
    • लंबी मारक क्षमता (290 कि.मी. तक) और लक्ष्य तक पहुंचने के लिए विविध प्रकार के प्रक्षेप-पथों (Trajectories) को अपनाती है।
    • आसानी से रडार के दायरे में नहीं आती
    • सटीक निशाना और अत्यधिक विनाशक क्षमता, जो प्रभाव के समय उच्च गतिज ऊर्जा (काइनेटिक एनर्जी) से और भी घातक बन जाती है।

राफेल हथियार प्रणालियां

  • राफेल लड़ाकू विमान (जेट) अत्याधुनिक हथियारों से लैस होते हैं और सटीक हमलों के लिए उपयोग किए जाते हैं। इन विमानों को फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन ने बनाया है।
  • कुछ हथियारों के उदाहरण निम्नलिखित हैं:
    • SCALP (स्टॉर्म शैडो): यह एक स्टील्थ एयर-लॉन्च क्रूज मिसाइल है। इसे MBDA ने बनाया है। यह दुश्मन की सीमा के अंदर 450 किलोमीटर तक मार कर सकती है।
    • AASM HAMMER  (हाइली एजाइल एंड मॉड्यूलर म्यूनिशन एक्सटेंडेड रेंज) बम: ये 70 किलोमीटर तक की दूरी से दागे जा सकते हैं, और बेहद सटीकता के साथ निशाना साधते हैं। इन्हें कम ऊंचाई से भी लॉन्च किया जा सकता है।
    • मेटियोर (METEOR) मिसाइल: यह अत्याधुनिक बियॉन्ड विजुअल रेंज (BVR) एयर-टू-एयर मिसाइल है, जो इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर स्थितियों में भी प्रभावी है।

ड्रोन्स

निष्कर्ष 

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की स्वदेशी वायु रक्षा तकनीक ने अपनी दक्षता और विश्वसनीयता को साबित किया है। यह उपलब्धि सार्वजनिक-निजी भागीदारी, नवाचार को बढ़ावा देने वाली नीतियों, मजबूत सार्वजनिक क्षेत्रक के कार्यान्वयन और दीर्घकालिक रक्षा विज़न के सफल संयोजन का परिणाम है।

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