सुर्ख़ियों में क्यों?
राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण ने 'जैव विविधता (पहुँच और लाभ साझाकरण) विनियम, 2025" नाम से नए नियम जारी किए हैं।
अन्य संबंधित तथ्य
- नए नियमों का उद्देश्य यह तय करना है कि जैविक संसाधनों और उनसे जुड़े पारंपरिक ज्ञान के उपयोग से होने वाले लाभों को किस प्रकार से सभी के बीच न्यायपूर्ण तरीके से साझा किया जाए।
- ये नियम जैव-विविधता अधिनियम (BDA), 2002 के प्रावधानों के तहत राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) के द्वारा अधिसूचित किए गए हैं। इन नियमों ने 2014 में जारी नियमों का स्थान लिया है।
- भारत में 'पहुंच और लाभ साझाकरण ( ABS)" से जुड़ा सबसे प्रसिद्ध मामला केरल की कानी जनजाति और आयुर्वेदिक गुणों वाले आरोग्यपाचा पौधे (ट्राइकोपस जेलेनिकस) से जुड़ा है। यह जनजाति पारंपरिक रूप से इस पौधे में मौजूद रिवाइटलाइजिंग गुणों (जीवनी दवा) के कारण इनका इस्तेमाल करती थी।
पहुंच और लाभ साझाकरण (ABS) क्या है?
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पहुंच और लाभ साझाकरण (ABS) पर भारत का कानूनी फ्रेमवर्क?
- पृष्ठभूमि और उद्देश्य: भारत ने जैव विविधता के संरक्षण और इसके विभिन्न घटकों के संधारणीय उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए जैव विविधता अधिनियम, 2002 को लागू किया। यह अधिनियम जैव-विविधता कन्वेंशन (CBD) के लिए भारत की प्रतिबद्धता के तहत लागू किया गया था।
- दायरा और कवरेज: नागोया प्रोटोकॉल के प्रभाव में आने से पहले लागू किए गए जैव विविधता अधिनियम का दायरा काफी व्यापक है। इसमें भारत के सभी जैव संसाधन शामिल हैं।
- वहीं नागोया प्रोटोकॉल केवल आनुवंशिक संसाधनों तक सीमित है।
- कार्यान्वयन:
- भारत त्रिस्तरीय व्यवस्था के माध्यम से ABS को लागू करता है: केंद्रीय स्तर पर राष्ट्रीय जैव-विविधता प्राधिकरण (NBA), राज्य स्तर पर राज्य जैव विविधता बोर्ड (SBBs) और स्थानीय स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन समितियां (BMCs)।
- भारत की उपर्युक्त वैधानिक संस्थाएं जैव विविधता अधिनियम के तहत 'पहुंच, लाभ साझाकरण और वितरण' का प्रबंधन करती हैं।
नियमों की मुख्य विशेषताएं

- डिजिटल सीक्वेंस इन्फॉर्मेशन (DSI) को शामिल करना: जारी नियमों का लक्ष्य जैविक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों को साझा करने के तरीकों को बताना है। इसमें डिजिटल सीक्वेंस इन्फॉर्मेशन या उससे जुड़ी जानकारी भी शामिल है।
- DSI: यह पॉलिसी से संबंधित एक शब्द है, जो अनुवांशिक संसाधनों का डिजिटल रूप में जानकारी को प्रदर्शित करता है। इसमें DNA, RNA और प्रोटीन अनुक्रम जैसे जीनोमिक डेटा शामिल होते हैं।
- पूर्व सूचित सहमति (PIC): जैविक संसाधनों तक पहुंच बनाने के इच्छुक व्यक्ति/ उद्योग को मंजूरी के लिए NBA को पूर्व सूचना देनी होगी।
- यह नियम जैव विविधता अधिनियम, 2002 के तहत अधिसूचित औषधीय पौधों की प्राप्ति या उनके उपयोग पर लागू नहीं होगा।
- लाभ साझा करने की मात्रा: नए नियम व्यक्ति/ उद्योग के वार्षिक टर्नओवर के आधार पर स्लैब का निर्धारण करते हैं। (बॉक्स देखें)।
- जिन सभी उपयोगकर्ताओं का वार्षिक टर्नओवर 1 करोड़ रुपये से अधिक है, उन्हें हर साल उपयोग किए गए जैविक संसाधनों की जानकारी के साथ एक विवरणी (स्टेटमेंट) देनी होगी।
- उच्च मूल्य वाले जैविक संसाधनों के लिए लाभ साझाकरण: वे जैविक संसाधन जो संरक्षण या आर्थिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं, उनके मामले में लाभ साझाकरण की राशि नीलामी/ बिक्री मूल्य या खरीद मूल्य का कम-से-कम 5% होगी। अगर इनका व्यावसायिक उपयोग किया जाता है, तो यह राशि 20% से अधिक भी हो सकती है।
- उदाहरण के लिए रेड सैंडर्स, अगरवुड, आदि।
- शोध परिणामों का हस्तांतरण (IPR का उपयोग नहीं): यदि जैविक संसाधनों या पारंपरिक ज्ञान पर आधारित शोध परिणामों को साझा या हस्तांतरित किया जाता है, तो आवेदक को राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) के साथ आपसी सहमति के अनुसार आर्थिक या गैर-आर्थिक लाभ साझा करना होगा।
- बौद्धिक संपदा (IPR) के व्यवसायीकरण पर लाभ साझा करना: यदि कोई व्यक्ति जैविक संसाधनों का उपयोग करके विकसित की गई IPR के आधार पर किसी उत्पाद का व्यवसायीकरण करता है, तो उसे वार्षिक सकल फैक्ट्री बिक्री मूल्य (करों को छोड़कर) का अधिकतम 1% तक का आर्थिक लाभ साझा करना होगा। यह दर क्षेत्रक और प्रत्येक मामले की प्रकृति पर निर्भर करेगी।

कार्यान्वयन में मौजूद चुनौतियां
- संसाधनों की सीमा-पार प्रसारित होने की प्रकृति: अनुवांशिक संसाधन और पारंपरिक ज्ञान अक्सर एक से अधिक देशों में मौजूद होते हैं। इससे पूर्व सहमति (PIC) लेना और लाभों को सभी संबंधित पक्षों के बीच न्यायपूर्वक साझा करना मुश्किल हो जाता है।
- क्षमता का अभाव: जैव विविधता पर कन्वेंशन (CBD), इसके प्रोटोकॉल और राष्ट्रीय जैव विविधता कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए मानव संसाधन और संस्थाओं की क्षमता अभी भी पर्याप्त नहीं है।
- परंपरागत कानूनों की सीमित मान्यता: परंपरागत ज्ञान से जुड़े स्थानीय नियम-कानूनों को प्रचलित कानूनी सिस्टम या बौद्धिक संपदा (IP) कानून में ठीक से जगह नहीं दी गई है। इससे आदिवासी/स्थानीय समुदायों की शासन प्रणाली को उचित संरक्षण और मान्यता नहीं मिल पाती।
- डॉक्यूमेंट फॉर्मेट में लाने की जटिल प्रक्रिया: जैव विविधता और उससे जुड़े पारंपरिक ज्ञान को रिकॉर्ड करना (जैसे कि पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर के माध्यम से) अधिक समय लेने वाली और तकनीकी रूप से जटिल प्रक्रिया है। हालांकि यह प्रक्रिया इन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान करने और लाभ-साझाकरण के लिए बहुत जरूरी है।
- शैक्षणिक बनाम व्यावसायिक अनुसंधान: शैक्षणिक उद्देश्यों से शोध और व्यावसायिक लाभ के लिए किए गए शोध के बीच फर्क करना मुश्किल होता है। इससे कानून के तहत मिलने वाली छूट का गलत इस्तेमाल हो सकता है और लाभ-साझाकरण की अनिवार्यता को नजरअंदाज किया जा सकता है।
- मजबूत बाजार प्रणाली का अभाव: अधिक विस्तृत और कमजोर वैल्यू चेन स्थानीय समुदायों को मिलने वाले आर्थिक लाभ को कम कर देती हैं। इसलिए आवश्यक है कि इन समुदायों को सशक्त बाजार तक पहुँच, वैल्यू चेन में समान भागीदारी, और ऐसी प्रभावी प्रणालियों से जोड़ा जाए, जो संसाधनों के वास्तविक धारकों तक लाभ पहुंचाने में सक्षम हों।
- निगरानी से जुड़ी समस्याएं: कई सरकारी एजेंसियों की भागीदारी और उनके अधिकार क्षेत्रों में टकराव के कारण ABS नियमों का पालन और समन्वय ठीक से नहीं हो पाता।
- कम जागरूकता: जैव विविधता कन्वेंशन (CBD), नागोया प्रोटोकॉल और जैव विविधता अधिनियम, 2002 के बारे में जनता की समझ कम है।
आगे की राह
- बहुपक्षीय लाभ-साझाकरण: नागोया प्रोटोकॉल के अनुरूप, सीमाओं के पार निष्पक्ष तरीके से लाभ साझाकरण के लिए एक वैश्विक तंत्र विकसित करना चाहिए।
- स्वदेशी समुदायों को सशक्त बनाना: परंपरागत कानूनों को वैधानिक रूप से मान्यता देना और उन्हें ABS फ्रेमवर्क में एकीकृत करना चाहिए।
- डाक्यूमेंट्स को डिजिटल बनाना: तकनीक का उपयोग करके PBR (पब्लिक बायोडायवर्सिटी रजिस्टर) बनाने की प्रक्रिया को तेज करना चाहिए, ताकि संरक्षण और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
- अनुसंधान के उद्देश्य को स्पष्ट करना चाहिए: आनुवंशिक संसाधनों या पारम्परिक ज्ञान के दुरुपयोग को रोकने के लिए अकादमिक और व्यावसायिक अनुसंधान के बीच अंतर करने वाले स्पष्ट नियम निर्धारित किए जाने चाहिए।
- निगरानी में सुधार: एक केंद्रीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म स्थापित करना चाहिए, जो राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA), राज्य जैव विविधता बोर्ड (SBBs) और जैव विविधता प्रबंधन समितियों (BMCs) को आपस में जोड़े, ताकि नियमों के पालन की रियल-टाइम निगरानी की जा सके।