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राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के 5 वर्ष {5 YEARS OF NATIONAL EDUCATION POLICY: NEP)

19 Aug 2025
2 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के 5 वर्ष पूरे हुए।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के बारे में

  • यह स्वतंत्रता के बाद देश की तीसरी शिक्षा नीति है। पहली दो नीतियाँ क्रमशः 1968 और 1986 में जारी की गई थीं। 1986 वाली नीति को 1992 में संशोधित किया गया था।
  • NEP, 2020 का मसौदा कस्तूरीरंगन समिति की सिफ़ारिशों के आधार पर तैयार किया गया था।
  • NEP के मूलभूत सिद्धांत
    • वैचारिक समझ पर ज़ोर: इसमें रटने की बजाय समझ विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
    • तकनीक का उपयोग: शिक्षण और सीखने के तरीके में, भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने तथा दिव्यांग छात्रों तक पहुंच बनाने के लिए तकनीक को अपनाने पर बल दिया गया है।
    • 'हल्का लेकिन मज़बूत' विनियामक फ्रेमवर्क: सत्यनिष्ठा, पारदर्शिता और संसाधन दक्षता सुनिश्चित करता है।
    • विविधता का सम्मान: सभी पाठ्यक्रमों, शिक्षण कार्य और नीति में स्थानीय संदर्भों को शामिल किया गया है।
    • समानता और समावेशन: यह प्रावधान वंचित वर्गों के लिए किया गया है।
    • अनुसंधान: यह उत्कृष्ट शिक्षा और विकास के लिए एक आवश्यक शर्त है।
    • प्रगति की निरंतर समीक्षा: निरंतर अनुसंधान और नियमित मूल्यांकन के आधार पर निरंतर समीक्षा करना।

NEP 2020 के प्रमुख फोकस क्षेत्र

स्कूली शिक्षा

प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा (Early Childhood Care and Education: ECCE)

  • 8 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यक्रम एवं शैक्षणिक ढांचा (NCPFECCE)।

बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान (Foundational Literacy and Numeracy: FLN)

  • डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर नॉलेज शेयरिंग (DIKSHA/ दीक्षा): यह स्कूली शिक्षा के लिए एक राष्ट्रीय मंच है, जो 133 भारतीय भाषाओं में डिजिटल शिक्षण सामग्री प्रदान करता है।

नई शिक्षाशास्त्रीय और पाठ्यक्रम संरचना

  • 5+3+3+4 की रूपरेखा और NCERT द्वारा तैयार किया गया स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या फ्रेमवर्क (NCFSE)।

बहुभाषावाद

  • कक्षा 5 तक और अधिमानतः कक्षा 8 व उससे आगे तक शिक्षा का माध्यम, क्षेत्रीय भाषा/मातृभाषा/स्थानीय भाषा होगी। 

मूल्यांकन सुधार

  • राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र, PARAKH/ परख (समग्र विकास के लिए प्रदर्शन आकलन, समीक्षा और ज्ञान का विश्लेषण): यह छात्रों के आकलन एवं मूल्यांकन के लिए एक मानक-निर्धारण निकाय है।

शिक्षक

  • प्रत्येक स्कूल स्तर पर छात्र-शिक्षक अनुपात (PTR) 30:1 से कम रखना।
  • शिक्षक पात्रता परीक्षा (TETs) को बेहतर बनाना।
  • प्रत्येक शिक्षक को प्रति वर्ष कम-से-कम 50 घंटे का सतत पेशेवर विकास प्रशिक्षण लेना होगा।

मानक- निर्धारण और प्रत्यायन

  • राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (SCERT) द्वारा स्कूल गुणवत्ता आकलन और प्रत्यायन संरचना (School Quality Assessment and Accreditation Form: SQAAF) विकसित की जाएगी। 

उच्चतर शिक्षा

गुणवत्तापूर्ण विश्वविद्यालय और कॉलेज

  • विविध निकास विकल्पों के साथ 3 या 4 वर्षीय स्नातक डिग्री पाठ्यक्रम।
  • विभिन्न उच्चतर शिक्षा संस्थानों (HEIs) से अर्जित शैक्षिक क्रेडिट्स को डिजिटल रूप से संग्रहीत करने के लिए एक एकेडमिक बैंक ऑफ़ क्रेडिट (ABC) की स्थापना की जाएगी,

शिक्षक शिक्षा

  • शिक्षकों के ऑनलाइन प्रशिक्षण के लिए SWAYAM/ DIKSHA जैसे तकनीकी मंचों का उपयोग।
  • नेशनल मिशन फॉर मेंटरिंग: शिक्षकों को अनुभवी पेशेवरों द्वारा गुणवत्तापूर्ण मेंटरिंग सत्रों के जरिए प्रशिक्षित किया जाता है।

नियामकीय रूपांतरण

  • भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग (HECI) अम्ब्रेला विनियामक संस्था के रूप में कार्य करेगा, जिसके अंतर्गत चार स्वतंत्र स्तर होंगे।

अन्य प्रमुख क्षेत्र

  • व्यावसायिक शिक्षा के एकीकरण के लिए राष्ट्रीय समिति (NCIVE)।
  • व्यावसायिक शिक्षा।
  • वयस्क शिक्षा और आजीवन सीखना।
  • भारतीय भाषाओं, कला और संस्कृति को बढ़ावा देना।
  • एक स्वायत्त निकाय, राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच (NETF) के माध्यम से प्रौद्योगिकी का उपयोग और एकीकरण, आदि।

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की प्रमुख उपलब्धियां

  • स्कूली शिक्षा (आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25)
    • प्राथमिक स्तर पर लगभग सार्वभौमिक सकल नामांकन अनुपात (GER): 93%
    • स्कूल ड्रॉपआउट दर में गिरावट: प्राथमिक स्तर पर 1.9%, उच्च प्राथमिक स्तर पर 5.2% और माध्यमिक स्तर पर 14.1%
    • डिजिटलीकरण: 2019-20 से 2023-24 के बीच कंप्यूटर की उपलब्धता वाले विद्यालय 38.5% से बढ़कर 57.2% और इंटरनेट सुविधा वाले स्कूल 22.3% से बढ़कर 53.9% हो गए हैं। 
  • उच्चतर शिक्षा (18-23 आयु वर्ग) (आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25)
    • GER में वृद्धि: 2014-15 में 23.7% से बढ़कर 2021-22 में 28.4% हो गया।
    • कुल उच्चतर शिक्षण संस्थानों (HEIs) की संख्या में वृद्धि: इनमें 2014-15 से 2022-23 तक 13.8% की वृद्धि हुई है।
  • ग्रामीण विद्यालय (वार्षिक शिक्षा की स्थिति रिपोर्ट (ASER) 2024)
    • FLN निर्देश: 15,728 ग्रामीण विद्यालयों में से 80% से अधिक को FLN निर्देश प्रदान किए जा चुके हैं।
    • 6-14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों में कुल विद्यालय नामांकन दर: पिछले लगभग 20 वर्षों से 95% से अधिक रही है।
    • विद्यालय में नामांकन न करवाने वाले 15-16 वर्ष की आयु के बच्चों के अनुपात में गिरावट: यह 2018 के 13.1% से घटकर 2024 में 7.9% हो गया है।
  • शिक्षक प्रशिक्षण: NISHTHA (शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम) के तहत 12.97 लाख शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया है।
  • नवाचार: 2023-24 में पेटेंट की संख्या 92,168 तक पहुंच गई, जिसमें उच्चतर शिक्षण संस्थानों का योगदान 25% था।
  • समावेशिता: समावेशी आवासीय विद्यालयों में 7.58 लाख लड़कियों का नामांकन हुआ।
  • अंतर्राष्ट्रीयकरण: डीकिन और वोलोंगोंग विश्वविद्यालयों (ऑस्ट्रेलिया) तथा साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय (यूके) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के परिसर भारत में भी खोले गए हैं।
  • साक्षरता: लद्दाख पहला पूर्ण साक्षर प्रशासनिक क्षेत्र बना, जिसके बाद मिज़ोरम, गोवा और त्रिपुरा का स्थान आता है।
  • बहुभाषावाद: CUET, JEE (Mains) और NEET (UG) जैसी राष्ट्रीय परीक्षाएं 12 भारतीय भाषाओं में आयोजित की जा रही हैं।
  • निगरानी और मूल्यांकन: PARAKH/ परख राष्ट्रीय सर्वेक्षण (दिसंबर 2024) के तहत 74,000 विद्यालयों के 21.15 लाख छात्रों को कवर किया गया है।

NEP 2020 को लागू करने में चुनौतियां

  • अपर्याप्त फंडिंग: भारत में कुल शिक्षा व्यय GDP के 3% के आस-पास है, जबकि NEP का लक्ष्य इसे GDP का 6% तक करना है।
    • वित्त-पोषण मुख्य रूप से इनपुट-आधारित है, जो अवसंरचना, भर्ती और सामग्री वितरण पर केंद्रित है। इस वजह से वास्तविक शिक्षण परिणामों में सुधार नहीं हो रहा है।
  • केंद्र-राज्य नीतिगत विभाजन: उदाहरण के लिए- केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने पीएम श्री (PM-SHRI) विद्यालयों के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है, क्योंकि इसके लिए NEP को पूरी तरह से अपनाने की शर्त है।
  • संस्थागत विलंब: UGC के उत्तराधिकारी के रूप में भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग (HECI) के गठन और शिक्षक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या फ्रेमवर्क के गठन में देरी हो रही है।
  • अत्यधिक विनियमन: विनियामक फ्रेमवर्क (UGC/AICTE) में वर्तमान में शिक्षा और अनुसंधान के विभिन्न पहलुओं से संबंधित 50 से अधिक नियम शामिल हैं।
  • प्रतिधारण दर के संबंध में चुनौतियां: उदाहरण के लिए- आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, उच्च माध्यमिक स्तर (कक्षा I से XII) के मामले में प्रतिधारण दर 45.6% है।
  • अन्य मुद्दे:
    • शिक्षकों को तकनीकी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें लैपटॉप को स्मार्ट बोर्ड से जोड़ने में कठिनाई आदि शामिल हैं।
    • तमिलनाडु जैसे राज्यों ने त्रि-भाषा फार्मूला को थोपने का विरोध किया गया है।
    • प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा में प्रभावी शिक्षण अवधि की कमी (प्रति दिन केवल 35 मिनट)।
    • चार-वर्षीय स्नातक डिग्री को लागू करने में अवसंरचना और फैकल्टी की कमी के कारण चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत शुरू की गई प्रमुख सरकारी योजनाएं/ पहलें

  • पीएम श्री/ PM SHRI (पीएम स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया): इसका लक्ष्य 2022-2027 तक 14,500 से अधिक स्कूलों का कायाकल्प करना है।
  • बेहतर समझ और संख्यात्मक ज्ञान के साथ पढ़ाई में प्रवीणता हेतु राष्ट्रीय पहल (निपुण भारत/ NIPUN Bharat): इसका उद्देश्य 2026-27 तक कक्षा 3 के अंत तक बच्चों में मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान (FLN) सुनिश्चित करना है।
  • वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन (ONOS): यह केंद्रीय क्षेत्रक की एक योजना है, जो एक ही मंच पर विद्वत्तापूर्ण शोध लेखों और जर्नल प्रकाशनों तक देशव्यापी पहुंच प्रदान करती है।
  • विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (CwSN) के लिए पहल: भारतीय सांकेतिक भाषा के लिए पीएम ई-विद्या DTH चैनल; प्रशस्त (PRASHAST) नामक दिव्यांगता स्क्रीनिंग व्यवस्था आदि।
  • प्रेरणा (PRERNA): यह कक्षा 9 से 12 तक के चयनित छात्रों के लिए एक आवासीय कार्यक्रम है, जो अनुभवात्मक शिक्षा पर केंद्रित है।
  • उल्लास/ ULLAS या नव भारत साक्षरता कार्यक्रम (NILP): यह 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के उन वयस्कों को सशक्त बनाने के लिए एक केंद्र प्रायोजित पहल है, जो औपचारिक स्कूली शिक्षा से वंचित रह गए थे।
  • विद्यांजलि: यह एक स्वयंसेवी आधारित स्कूली कार्यक्रम है, जो सामुदायिक सहभागिता और कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
  • राष्ट्रीय विद्या समीक्षा केंद्र (RVSK): यह साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने के लिए स्कूली शिक्षा के प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों (KPIs) पर रियल टाइम आधारित डेटा प्रदान करता है।

NEP 2020 को लागू करने संबंधी सुधारों के लिए आगे की राह

  • परिणाम-आधारित वित्त-पोषण (OBF): वित्त-पोषण के लिए एक ऐसा दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जिसमें भुगतान पूर्व-परिभाषित व सत्यापित परिणामों की उपलब्धि के आधार पर दिया जाता हो, न कि इनपुट या गतिविधियों के आधार पर।
  • बेहतर समन्वय: प्रगति की निगरानी के लिए एक साझा फ्रेमवर्क विकसित करने और स्थानीय संदर्भों के अनुकूल सुधारों की आवश्यकता है।
  • प्रौद्योगिकी-सक्षम शिक्षण इकोसिस्टम: निरंतर निगरानी के साथ लागू करने पर यह जुड़ाव और प्रतिधारण दर में सुधार कर सकता है।
    • जैसे- शिक्षकों के पेशेवर विकास के लिए AI का लाभ उठाना और छात्रों के लिए AI-संचालित व्यक्तिगत ट्यूटर प्रदान करना।
  • संरचित पीयर लर्निंग को एकीकृत करना: उदाहरण के लिए- मिशन अंकुर (मध्य प्रदेश और गुजरात) के तहत स्कूलों एवं समुदायों की भागीदारी से प्राथमिक छात्रों के समग्र विकास व FLN कौशल की उपलब्धि सुनिश्चित की जाती है।
  • क्षमता निर्माण: फैकल्टी विकास कार्यक्रमों में निवेश करना, शिक्षकों के लिए एक सहायता प्रणाली का निर्माण करना और संस्थागत नेतृत्व को मज़बूत बनाना।
  • विकेंद्रीकरण और लचीलापन: संस्थानों को अपने विशिष्ट संदर्भ के अनुकूल NEP को अपनाने के लिए लचीलापन प्रदान करना, नवाचार एवं स्वामित्व को बढ़ावा देना आदि।

निष्कर्ष

अपने कार्यान्वयन के पांच साल बाद, NEP 2020 ने समावेशिता, गुणवत्ता और प्रासंगिकता पर ध्यान केंद्रित करके भारत के शैक्षिक परिदृश्य को बदलने के लिए एक मजबूत नींव रखी है। हालांकि नामांकन, डिजिटल पहुंच और शिक्षक विकास में प्रगति सराहनीय है, लेकिन इसकी पूरी क्षमता को साकार करने के लिए वित्त-पोषण में वृद्धि, बेहतर गवर्नेंस व अवसंरचना और नीतिगत बाधाओं को दूर करना महत्वपूर्ण है।

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