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संक्षिप्त समाचार

19 Aug 2025
11 min

यह पहल वित्तीय सक्षमता बढ़ाने के लिए कृषि में डिजिटल नवाचारों का हिस्सा है।

क्रॉपिक (फसलों के रियल टाइम अवलोकन और फोटो का संग्रह) पहल के बारे में

  • यह प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के अंतर्गत कृषि मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया एक मोबाइल ऐप है।
    • फसल चक्र के दौरान 4-5 बार फसलों की जियो-टैग की गई तस्वीरें लेना।
  • इसमें फोटो का विश्लेषण करने और उससे आवश्यक जानकारी प्राप्त करने हेतु AI-आधारित क्लाउड प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जाएगा और इसे वेब-आधारित एक डैशबोर्ड पर देखा जा सकेगा।
  • वित्त-पोषण: यह PMFBY के अंतर्गत नवाचार एवं प्रौद्योगिकी कोष (FIAT) के माध्यम से किया जाएगा।
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ये नियम अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के तहत अधिसूचित किए गए हैं। 

नियमों के बारे में:

  • उद्देश्य- अपतटीय क्षेत्रों में यूरेनियम और थोरियम जैसे परमाणु खनिजों के अन्वेषण एवं खनन को विनियमित करना।
  • ये नियम तभी लागू होंगे, जब परमाणु खनिजों का संकेंद्रण एक निश्चित न्यूनतम स्तर से अधिक होगा।
  • नियमों के तहत सरकार द्वारा नामित संस्थाओं को ही अन्वेषण लाइसेंस या उत्पादन पट्टे दिए जा सकते हैं।
    • यदि कोई विदेशी संस्था अन्वेषण कार्य करना चाहती है, तो उसे पहले सरकारी प्राधिकारियों से अनुमोदन लेना होगा।

भारत में प्रमुख परमाणु खनिज

  • यूरेनियम:
    • मुख्य भंडार: झारखंड, आंध्र प्रदेश, मेघालय, राजस्थान आदि।
      • जादूगोड़ा (झारखंड) देश की पहली खदान है, जहां वाणिज्यिक स्तर पर यूरेनियम निकाला गया।
    • अन्य महत्वपूर्ण खदानें: लांबापुर-पेड्डागट्टू (आंध्र प्रदेश), बगजाता खदान (झारखंड) आदि।
    • भारत में अधिकतर यूरेनियम भंडार छोटे हैं और दुनिया के प्रमुख यूरेनियम उत्पादक देशों की तुलना में काफी कम गुणवत्ता वाले हैं।
  • थोरियम:
    • भारत में यूरेनियम के भंडार सीमित हैं, लेकिन थोरियम के प्रचुर भंडार हैं।
    • मोनोजाइट में लगभग 8-10% थोरियम होता है।
    • केरल और ओडिशा के समुद्र तटों की रेत में मोनोजाइट के समृद्ध भंडार पाए जाते हैं।

वित्त मंत्री ने ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) की स्थापना को बढ़ावा देने और अधिक फॉर्च्यून 500 कंपनियों को भारत में आकर्षित करने के लिए उद्योग एवं सरकार से मिलकर काम करने का आग्रह किया है।वर्ष 2024 में, भारत में हर सप्ताह औसतन 1 नया GCC स्थापित हुआ था। 

GCC क्या है

  • GCC को ग्लोबल इन-हाउस सेंटर या कैप्टिव (GIC) भी कहा जाता है।
  • ये वैश्विक कंपनियों द्वारा बनाए गए विदेशी केंद्र होते हैं, जो अपनी मूल कंपनी को विविध प्रकार की सेवाएं प्रदान करते हैं।
    • जैसे-  IT सेवाएं, अनुसंधान और विकास (R&D) सेवाएं, ग्राहक सहायता इत्यादि।
  • ये केंद्र वैश्विक कॉरपोरेट संगठन की आंतरिक संगठनात्मक संरचना के अंतर्गत कार्य करते हैं।
  • भारत में GCC वृद्धि के लिए जिम्मेदार कारक: 
    • कम लागत में सेवाएं मिलना;
    • डिजिटल और नीतिगत तैयारी (स्मार्ट सिटीज़, डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रम);
    • कुशल और सस्ता कार्यबल (अंग्रेजी जानने वाले युवा);
    • बड़ा उपभोक्ता बाजार आदि।

भारत में GCC के विकास में चुनौतियां

  • टियर-II और टियर-III शहरों में कुशल कार्यबल की सीमित उपलब्धता;
  • अवसंरचना की कमी (भौतिक और डिजिटल कनेक्टिविटी);
  • जटिल विनियामक संरचनाएं;
  • साइबर सुरक्षा खतरे आदि।

आवश्यक रणनीतिक हस्तक्षेप

  • नई तकनीकों को अपनाना: जैसे- AI, ऑटोमेशन, क्लाउड कंप्यूटिंग आदि।
  • भू-राजनीतिक जटिलताओं से निपटना: जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्यों और परिणामी विनियामक अनिश्चितता से निपटने के लिए अति सक्रिय गवर्नेंस मॉडल अपनाना चाहिए।
  • कार्यबल रणनीतियों को पुनर्परिभाषित करना: इसमें प्रतिभा का कौशल विकास करना, नए कौशल सिखाना और हाइब्रिड वर्क मॉडल अपनाना आदि शामिल हैं।
  • संधारणीयता: GCC को पर्यावरणीय, सामाजिक और गवर्नेंस (ESG) लक्ष्यों के अनुरूप बनाया जाना चाहिए।

NTP-2025 का उद्देश्य राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति, 2018 में हुई प्रगति को आगे बढ़ाना है।

  • इस नीति के जरिए 5G/ 6G, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), क्वांटम कम्युनिकेशंस, सैटेलाइट नेटवर्क और ब्लॉकचेन जैसी उन्नत तकनीकों से उत्पन्न होने वाली नई चुनौतियों का समाधान पेश किया गया है।
  • यह नीति "भारत-एक दूरसंचार उत्पाद राष्ट्र" के दृष्टिकोण के तहत भारत को दूरसंचार प्रौद्योगिकी के लिए "पसंदीदा राष्ट्र" के रूप में स्थापित करने का प्रयास करती है।

NTP-2025 के बारे में

  • विज़न: सार्वभौमिक और सार्थक कनेक्टिविटी सुनिश्चित करके तथा सुरक्षित व संधारणीय दूरसंचार नेटवर्क्स का निर्माण करके भारत को एक डिजिटल रूप से सशक्त अर्थव्यवस्था में बदलना।
  • मिशन: इसमें छह रणनीतिक मिशनों की रूपरेखा दी गई है:
    • सार्वभौमिक और सार्थक कनेक्टिविटी: दूरसंचार नेटवर्क का विस्तार करना, सेवा की गुणवत्ता में सुधार करना तथा समावेशी डिजिटल भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करना।
    • नवाचार: अनुसंधान, स्टार्ट-अप्स और उद्योग-शैक्षिक जगत-सरकार के बीच संबंधों को मजबूत करना।
    • घरेलू विनिर्माण: कुशल कार्यबल, निवेश और डिजाइन-आधारित विनिर्माण के माध्यम से आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा देना।
    • सुरक्षित एवं विश्वसनीय दूरसंचार नेटवर्क: सुरक्षा बढ़ाना, साइबर हाइजीन को बढ़ावा देना और एक लचीला व भरोसेमंद दूरसंचार इकोसिस्टम का निर्माण करना।
    • ईज़ ऑफ लिविंग और ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस: दूरसंचार सेवाओं तक पहुंच को सुगम बनाना, डिजिटल समावेशन को बढ़ावा देना और व्यापार के अनुकूल माहौल बनाना।
    • संधारणीय दूरसंचार: दूरसंचार के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए हरित प्रौद्योगिकियों, चक्रीय अर्थव्यवस्था और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना।

हाल ही में, केंद्र सरकार ने एल्यूमीनियम और कॉपर विज़न डाक्यूमेंट्स जारी किए। 

एल्यूमीनियम और कॉपर विज़न डाक्यूमेंट्स के बारे में

  • ये डाक्यूमेंट्स बढ़ती घरेलू मांग को पूरा करने के लिए दीर्घकालिक रणनीति प्रदान करेंगे।  साथ ही, कच्चे माल की निरंतर आपूर्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे।
  • कॉपर (तांबा) विज़न डॉक्यूमेंट: वर्ष 2047 तक देश में तांबे की मांग में छह गुना वृद्धि का अनुमान है। साथ ही, 2030 तक 5 मिलियन टन प्रति वर्ष (MTPA) अतिरिक्त कॉपर स्मेल्टिंग और रिफाइनिंग क्षमता जोड़ने की योजना है।
  • एल्यूमीनियम विज़न डॉक्यूमेंट: इसमें वर्ष 2047 तक एल्युमिनियम उत्पादन को छह गुना बढ़ाने का रोडमैप प्रस्तुत किया गया है। साथ ही, बॉक्साइट उत्पादन क्षमता को  बढ़ाकर 150 मिलियन टन प्रति वर्ष करने का लक्ष्य रखा गया है।  

तांबा और एल्यूमीनियम के उत्पादन क्षेत्र

एल्यूमीनियम/ बॉक्साइट

  • भारत:
    • भंडार: भारत में बॉक्साइट का सबसे अधिक 41% भंडार ओडिशा में है। इसके बाद छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश में हैं।
  • ओडिशा बॉक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। ओडिशा में भारत का 73% बॉक्साइट उत्पादन होता है।
  • विश्व:
    • चीन एल्यूमीनियम का सबसे बड़ा उत्पादक है। वहां विश्व का 58% एल्यूमीनियम उत्पादन होता है। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील और भारत का स्थान है। 

तांबा

  • भारत:
    • भंडार: भारत में तांबे का सबसे अधिक 52.25% भंडार राजस्थान में है। इसके  बाद मध्य प्रदेश और झारखंड का स्थान है।
    • उत्पादन: वर्ष 2022-23 में मध्य प्रदेश तांबे का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य (देश का 57%) था। इसके बाद राजस्थान (43%) का स्थान था।
  • विश्व:
    • विश्व में चिली के पास तांबे का सबसे बड़ा भंडार (19%) है। इसके बाद पेरू और ऑस्ट्रेलिया (10%) का स्थान है। 

RBI ने संशोधित दिशा-निर्देश जारी कर विनियमित संस्थाओं द्वारा AIF योजना की कुल राशि के 20% तक निवेश करने की सीमा तय कर दी है।

वैकल्पिक निवेश कोष (AIF) के बारे में

  • यह भारत में पंजीकृत फंड आधारित संस्था है, जो निजी रूप से निवेश जुटाती है। साथ ही, ये अपने निवेशकों के लाभ के लिए निर्धारित निवेश नीति के अनुसार, निवेश करने हेतु भारतीय या विदेशी अनुभवी निवेशकों से फंड भी एकत्रित करता है।  
  • AIF का विनियमन भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा SEBI (वैकल्पिक निवेश कोष) विनियम, 2012 के तहत किया जाता है।

AIF की श्रेणियां

  • श्रेणी I AIF: ये स्टार्ट-अप्स, सोशल वेंचर, लघु और मध्यम उद्यम (SME) आदि में निवेश करते है। 
    • इनके उदाहरण हैं- वेंचर कैपिटल फंड, एंजेल फंड, SME फंड, अवसंरचना फंड, आदि।
  • श्रेणी II AIF: वे अपने दैनिक परिचालन खर्चों को पूरा करने के अलावा किसी अन्य प्रकार के ऋण या ऋण प्रतिभूतियों में निवेश का उपयोग नहीं करते हैं। 
    • इनके उदाहरण हैं: रियल एस्टेट फंड, ऋण निवेश फंड, प्राइवेट इक्विटी फंड आदि।
  • श्रेणी III AIF: ये फंड्स रिटर्न बढ़ाने के लिए उधारी लेकर निवेश करते हैं, जिनमें सूचीबद्ध या गैर-सूचीबद्ध डेरिवेटिव्स में निवेश भी शामिल है। 
    • इनके उदाहरण हैं: हेज फंड, प्राइवेट इन्वेस्टमेंट इन पब्लिक इक्विटी (PIPE) फंड आदि।

पिछले 6 वित्तीय वर्षों में भारतीय डिजिटल भुगतान व्यवस्था में 65,000 करोड़ से अधिक डिजिटल लेनदेन हुए हैं, जिनका मूल्य लगभग 12,000 लाख करोड़ रुपये से अधिक है।

डिजिटल भुगतान सूचकांक (DPI) के बारे में

  • RBI ने DPI (जो आधिकारिक रूप से हर छमाही आधार पर प्रकाशित होता है) को भारत में डिजिटल भुगतान सुविधा को अपनाने में हुई प्रगति को मापने के लिए विकसित किया है।
  • DPI में निम्नलिखित व्यापक पैरामीटर शामिल हैं: भुगतान सक्षमकर्ता; भुगतान अवसंरचना - मांग-पक्ष कारक और आपूर्ति-पक्ष कारक; भुगतान प्रदर्शन; उपभोक्ता केंद्रीयता।
  • नवीनतम RBI-DPI के अनुसार, 2018 से अब तक डिजिटल भुगतान की पैठ में चार गुना वृद्धि हुई है।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के एक अध्ययन में दैनिक आधार पर बाजार के रुझानों पर नज़र रखने के लिए वित्तीय स्थिति सूचकांक (FCI) की शुरुआत का प्रस्ताव दिया गया है।

वित्तीय स्थिति सूचकांक (FCI) के बारे में

  • यह 2012 के बाद से ऐतिहासिक औसत के संदर्भ में पेक्षाकृत कठिन या आसान वित्तीय बाजार स्थितियों के स्तर का आकलन करता है।
  • इसमें चुने हुए संकेतक पांच बाजार खंडों का प्रतिनिधित्व करते हैं: मुद्रा बाजार, सरकारी प्रतिभूति बाजार, कॉर्पोरेट बॉण्ड बाजार, विदेशी मुद्रा बाजार और इक्विटी बाजार।
  • FCI का उच्च सकारात्मक मान यह दर्शाता है कि बाजार की स्थिति अधिक नियंत्रित है।

हाल ही में विश्व बैंक की ‘ग्लोबल फाइंडेक्स 2025’ रिपोर्ट जारी की गई। यह रिपोर्ट डिजिटल और वित्तीय समावेशन में उपलब्धियों को दर्शाती है।

रिपोर्ट में भारत से जुड़े मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

  • भारत में लगभग 90% लोग खाताधारक (Account ownership) हैं अर्थात वे वित्तीय प्रणाली से जुड़ चुके हैं। 
  • 16% खाताधारकों के खाते निष्क्रिय हैं यानी इनमें कोई लेनदेन नहीं होता है। अन्य निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यह अनुपात केवल 4% है।
  • 2021 से 2024 के बीच, केवल निष्क्रिय खाते रखने वाली महिलाओं और पुरुषों का अनुपात कम हुआ है।
  • मोबाइल फोन नहीं रखने में मुख्य बाधाएं हैं –
    • डिवाइस की ऊँची कीमत
    • भरोसेमंद मोबाइल नेटवर्क कवरेज की कमी। 

यू.एस. कांग्रेस ने स्टेबलकॉइन्स को विनियमित करने के लिए ‘जीनियस एक्ट’ पारित किया। यह एक्ट स्टेबलकॉइन्स के लिए एक विनियामक ढाँचा (नियम और कानून) स्थापित करेगा।

  • स्टेबलकॉइन एक प्रकार की क्रिप्टोकरेंसी है, जिसका मूल्य किसी अन्य मुद्रा, वस्तु या वित्तीय साधन से जुड़ा होता है। उदाहरण के लिए- टेथर (USDT), जिसकी कीमत अमेरिकी डॉलर से जुड़ी होती है। 
  • इनसे भुगतान करने में आसानी और तेजी आ सकती है।

स्टेबलकॉइन्स का उपयोग क्यों बढ़ा है?

  • आधारभूत/ अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Asset) से संबद्ध: इससे स्टेबलकॉइन्स अपनी कीमत को ज्यादा स्थिर बनाए रखते हैं। इसी वजह से वे बिटकॉइन जैसी ज्यादा उतार‑चढ़ाव वाली क्रिप्टोकरेंसी की तुलना में लेन‑देन के लिए ज्यादा भरोसेमंद बन गए हैं।
    • आधारभूत/अंतर्निहित परिसंपत्तियों के पीछे सामान्यतः कोई संस्था या जारीकर्ता होता है, जो उनकी कीमत की गारंटी देता है। इसके विपरीत, कई क्रिप्टोकरेंसी (जैसे बिटकॉइन) किसी केंद्रीय संस्था या जारीकर्ता द्वारा समर्थित नहीं होतीं। इसी कारण स्टेबलकॉइन्स के जारीकर्ता की पहचान करना अपेक्षाकृत सरल होता है।
    • जारीकर्ता कोई बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान, या बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां हो सकती हैं।
  • विनियमन (Regulation): स्टेबलकॉइन्स से जुड़े नियमों और फैसलों को आमतौर पर एक संचालन निकाय द्वारा तय किया जाता है।

भारत में क्रिप्टोकरेंसी या क्रिप्टो परिसंपत्तियों का विनियमन:

  • वर्तमान में, भारत में क्रिप्टो परिसंपत्तियों के लिए कोई प्रत्यक्ष विनियमन नहीं है।
  • हालांकि, सरकार ने वित्त अधिनियम, 2022 के माध्यम से वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्तियों (VDAs) के लेन-देन के लिए एक व्यापक कराधान व्यवस्था लागू की है।
  • इस व्यवस्था के जरिए VDAs से होने वाले पूंजीगत लाभ पर 30% कर लगाया गया है।
    • आयकर अधिनियम, 1961 के अनुसार VDA का अर्थ है– क्रिप्टोग्राफिक माध्यमों या अन्य माध्यमों से उत्पन्न कोई भी जानकारी, कोड, संख्या या टोकन जिन्हें इलेक्ट्रॉनिक रूप से ट्रांसफर, स्टोर या ट्रेड किया जा सके। उदाहरण: क्रिप्टोकरेंसी, नॉन-फंजिबल टोकन (NFT) आदि।
  • 2023 में, VDAs को धन-शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 के दायरे में भी ला दिया गया था।
  • जारीकर्ता: OECD और FAO द्वारा
  • यह आउटलुक राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर कृषि आधारित उत्पादों (मछली सहित) तथा उनके बाजारों के लिए दस साल की संभावनाओं का व्यापक आकलन प्रदान करता है।
  • इस आउटलुक के अनुसार वैश्विक बाजार रुझानों (2024) पर एक नजर
    • जैव ईंधन: इसकी मांग में प्रतिवर्ष 0.9% की वृद्धि होने का अनुमान है, जिसका नेतृत्व भारत, ब्राजील और इंडोनेशिया कर रहे हैं।
    • कपास: वैश्विक स्तर पर कपास के उपयोग में वृद्धि हुई है। साथ ही, भारत चीन को पछाड़कर कपास का शीर्ष उत्पादक बनने की ओर अग्रसर है।

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